Friday, 10 February 2012 10:01 |
अवनीश सोमकुंवर एक अच्छी खबर यह सुनने को मिली है कि भारत सरकार का आदिवासी विकास मंत्रालय जनजातीय समुदाय के पारंपरिक ज्ञान और उनके कलाशिल्पों को पेटेंट कराने की पहल कर रहा है। मगर ज्यादा जरूरी है विभिन्न जनजातीय समुदायों के बीच मौजूद प्रतिभाओं को सामने लाना और उन्हें सम्मान देन, न कि उन्हें प्रदर्शनी के लिए कोई वस्तु बना कर पेश करन। ऐसे सभी उदाहरण उनके आदिम जन-जीवन के बरक्स हमारे पिछड़ेपन और संवेदनहीनता का ही सबूत हैं। ध्यान रखना चाहिए कि अगर हमारा यही रवैया बना रहा तो कल हमें भी सोचना पड़ेगा कि किसी जनजातीय समुदाय को खुद से अलग मानने वाले हम लोगों ने अपने सभ्य होने की कितनी शर्तें पूरी की हैं। |
Friday, February 10, 2012
आदिवासी की नुमाइश
http://www.jansatta.com/index.php/component/content/article/11119-2012-02-10-04-32-11
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