Wednesday, February 29, 2012

बदहाल बुनियादी उद्योग! विदेशी पूंजी के भरोसे क्या अब प्रणव मुखर्जी बजट भी बनायेंगे ?


बदहाल बुनियादी उद्योग! विदेशी पूंजी के भरोसे क्या अब प्रणव मुखर्जी बजट भी बनायेंगे ?


वित्त वर्ष 2013 में विनिवेश से 50,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य


मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


आठ प्रमुख बुनियादी उद्योगों के जनवरी  महीने के प्रदर्शन ने सरकार के माथे पर एक बार फिर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। जनवरी में कोर इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर की रफ्तार 0.8 फीसदी रही।  दिसंबर 2011 में कोर इंफ्रा सेक्टर का उत्पादन 3.1 फीसदी की दर से बढ़ा था।कोर इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर यानी बुनियादी उद्योगों में कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, नैचुरल गैस, फर्टिलाइजर्स, कोयला, बिजली, सीमेंट और तैयार स्टील को शामिल किया जाता है। आईआईपी में कोर सेक्टर का 37.9 फीसदी हिस्सा है। कोर सेक्टर की कंपनियों का शेयर बाजार की रैली में अपेक्षाकृत प्रदर्शन नहीं रहने के बाद भी ।।कोर इंफ्रास्ट्रक्चर भारतीय निवेशकों की लोकप्रिय थीम है। समीकरण सीधा सा है कि बुनियादी उद्योगों पर कब्जा करके भारतीय अर्थ व्यवस्स्था में पैठ जमाकर ही बाजार पर वर्चस्व कायम किया जा​ ​ सकता है, विदेशी पूंजी और कारपोरेट रणनीति यही है।


नीति निर्धारक और अर्थ विशेषज्ञ १९९१ से विदेशी पूंजी के पीछे बेतहाशा भाग रहे है। इधर बुनियादी उद्योगों  का ढांचा ही चरमरा गया। विदेशी पूंजी के भरोसे क्या अब प्रणव मुखर्जी बजट भी बनायेंगे ? बुनियादी उद्योगों की बदहाली के प्रति राजनीति भी सिरे से उदासीन है। वैसे इसमें नयी कुछ नहीं है , राजकोषीय घाटा विदेशी निवेश और विदेशी कर्ज से पाटना ही दस्तूर है और इसी दस्तूर के मुताबिक राजनय​ ​ चलती है। पर सवाल है कि इतने गंभीर मसले की अनदेखी कब तक चलती रहेगी ? बुनियादी उद्योगों की हालत सुधारे बगैर शेयर सूचकांक के आधार पर राष्ट्र की सेहत बताने वाले डाक्टर आखिर किस मर्ज का इलाज करते हैं?औद्योगिक उत्पादन दर के साथ-साथ जीडीपी की वृद्धि दर भी गिर रही है। साफ है कि अर्थव्यवस्था में नया निवेश नहीं हो रहा है। घरेलू और वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता के कारण बड़ी निजी पूंजी नया निवेश नहीं कर रही है। इससे मांग भी मंद पड़ रही है।कारोबार ढीला पड़ रहा है। उद्यमियों को लागत की वसूली नही हो पा रही है। सरकार का रवैया तो यह है कि उत्पादन के मसले को हल किये बिना एक सेक्टर की कीमत पर दूसरे सेक्टर को राहत देकर तदर्थ समाधान निकाला जाये। उदोग जगत की नाराजगी दूर करने के लिए बहुचर्चित प्रधानमंत्री के हस्तक्षेप में भी यही फारमूला अपनाया गया। निजी बिजली कंपनियों को खुश करने के लिए नवरतन सरकारी कंपनी कोल इंडिया के हितों की बलि चढ़ा दी गयी पर कोयला उत्पादन में गिरावट की समस्या को एड्रेस ही नहीं किया गया। इस्पात उदोग की भी लंबे ्रसे से सुनवाई नहीं हो रही है। इसके उलट सर्विस सेक्टर जैसे आईटी की समस्याओं को लेकर भारत सरकार जब तब विचलित हो जाती है और ऩई दिल्ली ऴाशिंगटन एकाकार हो जाता है।जाहिर है कि खुले बाजार में बुनियादी उद्योगों को सरकार अब ज्यादा अहमियत नहीं देती है।इस प्रक्रिया में अर्थव्यवस्था एक तरह के दुष्चक्र में फंसती हुई दिखाई दे रही है।


मजदूर संगठन भी बुनियादी उद्योगों और बेसिक उत्पादन प्रणाली से अपने वजूद का नाता भूल चुके हैं। उत्पादन प्रणाली ध्वस्त होने से मजदूर संगठनों को कोइ फर्क नहीं पड़ता। मजदूर संगठन का पूरा फोकस वेतन, बोनस, पेंशन, प्रोमोशन, इंसेंटिव दिलाकर समर्थकों को खुश करना है। इसी अर्थवाद के ​​दलदल में भारतीय मजदूर आंदोलन खत्म हो गया और नीति निर्धारण में बतौर उत्पादक सामाजिक शक्ति उसकी कोई भूमिका बनने का सवाल​ ही नहीं उठता। आज हुई मजदूर संगठनों की हड़ताल में भी यह मुद्दा सिरे से गायब है। निजीकरण, महंगाई, सरकारी उपक्रमों के विनिवेश सहित केंद्र सरकार की कई नीतियों के खिलाफ 11 मजदूर संगठनों की 24 घंटे की देशव्यापी हड़ताल का मंगलवार को मिलाजुला असर देखने को मिला। हड़ताल का सबसे अधिक असर बैंकिंग एवं परिवहन क्षेत्र पर पड़ा। देशभर में सरकारी बैंक बंद रहे। यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक के कर्मचारी भी सरकार की श्रम नीतियों के खिलाफ हड़ताल में शामिल रहे।हड़ताल में रेलवे को छोड़कर सार्वजनिक क्षेत्र के करीब आठ लाख कर्मचारी शामिल हुए, जो ठेके पर मजदूरी खत्म करने, न्यूनतम मजदूरी कानूनी में संशोधन, ग्रेच्युटी में वृद्धि और मजदूर संगठनों का पंजीकरण 45 दिन के भीतर करने की मांग कर रहे हैं।श्रम संगठनों ने इसे वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के बाद सरकार की 'श्रम विरोधी नीतियों' के खिलाफ सबसे बड़ी हड़ताल बताया है। इसमें वाम समर्थित संगठनों के अतिरिक्त कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) समर्थित मजदूर संगठन भी शामिल हो रहे हैं।


देश के आठ बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर जनवरी में घटकर 0.5 फीसदी पर आ गई है। कच्चे तेल, इस्पात, प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादों के उत्पादन में गिरावट से बुनियादी उद्योगों की रफ्तार कम हुई है। आठ बुनियादी उद्योगों में कोयला, सीमेंट, उर्वरक और बिजली भी शामिल हैं। जनवरी, 2011 में बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर 6.3 फीसदी थी।ईरान संकट की वजह से ईंधन और खसतौर पर क्रूड आयल से बाजार डगमगोने की बात करते हैं वित्तमंत्री और तमाम जानकार। पर बुनियादी ​​उद्योगों की बदहाली का जिक्र तक नहीं होता। इस मर्ज का एक ही इलाज निकला है विनिवेश और निजीकरण। पर निजी हाथों में जाकर भी हालात बदल नहीं रहे हैं बल्कि बिगड़ रहे हैं। सरकारी आंकड़े ही ऐसा साबित करते हैं।बहरहाल जानकारी के मुताबिक सरकार वित्त वर्ष 2013 में विनिवेश से 50,000 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य तय कर सकती है। बजट के तहत विनिवेश के लक्ष्य में बढ़ोतरी का ऐलान मुमकिन है।


विनिवेश के 50,000 करोड़ रुपये के इस नए लक्ष्य में वित्त वर्ष 2012 के बाकी 27,000 करोड़ रुपये को भी शामिल किया जाएगा। वित्त वर्ष 2013 में बीएचईएल, सेल और आरआईएनएल में विनिवेश होने की उम्मीद है।इसके अलावा वित्त वर्ष 2013 के दौरान एनबीसीसी, एचएएल औरहिंदुस्तान कॉपर में भी विनिवेश किए जाने की संभावना है।



शेयर बाजार में पिछले चार दिन से जारी गिरावट मंगलवार को थम गई। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण वैश्विक स्तर पर मजबूत रूख के बीच रिलायंस इंडस्ट्रीज की अगुवाई में प्रमुख कंपनियों के शेयरों में लिवाली से सेंसेक्स 285 अंक की तेजी के साथ बंद हुआ। 30 शेयरों वाला सूचकांक 285.37 अंक यानी 1.64 फीसदी तेजी के साथ 17731.12 अंक पर बंद हुआ। पिछले चार कारोबारी सत्र में इसमें 977 अंक की गिरावट दर्ज की गई थी।  


प्रधानमंत्री उद्योग जगत के उन बयानों से अधिक नाराज हैं जिनमें अर्थव्यवस्था की लड़खड़ाती स्थिति के लिए यूपीए सरकार के नीतिगत पक्षाघातको जिम्मेदार ठहराया गया है। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री दोनों उद्योग जगत की इस राय से न सिर्फ इत्तेफाक नहीं रखते हैं बल्कि उन्हें लगता है कि उनकी सरकार को बदनाम और अस्थिर करने की कोशिश हो रही है।प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री दोनों की शिकायत है कि उद्योग जगत देश में बेवजह निराशा और चिंता का माहौल बना रहा है। इसके कारण स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती जा रही है।दूसरी तरफ उद्योग जगत को बहुत उम्मीदें और अपेक्षाएं थीं। उद्योग जगत को विश्वास था कि वामपंथी पार्टियों के दबाव से मुक्त यूपीए-2 सरकार न सिर्फ नव उदारवादी सुधारों को तेजी से आगे बढ़ाएगी बल्कि देश भर में नए औद्योगिक प्रोजेक्ट्स की राह में आ रही बाधाओं को भी हटाएगी। लेकिन पिछले ढाई साल में यह सरकार उनमें से ज्यादातर अपेक्षाओं और उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाई।


इस बीच वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों में तेजी को परेशान करने वाला बताया है। साथ में वित्त मंत्री ने मंगलवार को नई दिल्ली में  यह भी कहा कि घरेलू अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभावों के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमत ने अभी से ही कहर ढाना शुरू कर दिया है। इस वजह से देश के शेयर बाजार सोमवार को धराशायी हो गए। दरअसल, क्रूड ऑयल के दाम काफी चढ़ जाने से यह आशंका जताई जाने लगी है कि इससे देश में महंगाई फिर से सिर उठाने लगेगी और ऐसे में ब्याज दरों में कटौती संभवत: नहीं हो पाएगी। इसी अंदेशे को ध्यान में रखकर निवेशकों ने शेयरों की बिकवाली काफी तेज कर दी।


मुखर्जी ने संवाददाताओं से कहा, कि कच्च्चे तेल की कीमतों में तेजी परेशान करने वाली बात है। पर अभी यह कहना जल्दबाजी होगा कि इससे किस क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि ईरान के विवादास्पद परमाणु कार्यक्रम की वजह से पश्चिम के देशों के साथ उसके तनाव के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्च्चे तेल की कीमतें फिर तेजी से बढ़ रही हैं। कच्च्चा तेल फिर 125 डालर प्रति बैरल से ऊपर निकल गया है।


निवेश घटने की वजह से चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से जनवरी की अवधि में बुनियादी उद्योगों की वृद्धि दर घटकर 4.1 फीसदी रह गई है, जो इससे पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 5.7 फीसदी रही थी। देश के कुल औद्योगिक उत्पादन में बुनियादी उद्योगों की हिस्सेदारी 37.9 फीसदी है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा आज जारी आंकड़ों के अनुसार, जनवरी में कच्चे तेल के उत्पादन में 2 फीसदी की गिरावट आई।


जनवरी, 2011 में कच्चे तेल का उत्पादन 10.8 फीसदी बढ़ा था। इसी तरह प्राकृतिक गैस का उत्पादन माह के दौरान 8.9 फीसदी घटा। पिछले साल जनवरी में प्राकृतिक गैस उत्पादन में 6.3 फीसदी की गिरावट आई थी। जनवरी में पेट्रोलियम रिफाइनरी उत्पादन 4.6 फीसदी घटा, जो पिछले साल इसी माह में 8.7 फीसदी बढ़ा था।


वहीं इस्पात उत्पादन में 2.9 फीसदी की गिरावट आई। जनवरी, 2011 में इस्पात उत्पादन 2.9 फीसदी बढ़ा था। दूसरी ओर कोयले का उत्पादन माह के दौरान 7.5 फीसदी बढ़ा। पिछले साल इसी महीने में यह 1.3 फीसदी घटा था।


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Palash Biswas
Pl Read:
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