Sunday, April 22, 2012

अब कभी कोई राधाकृष्‍णन कभी राष्‍ट्रपति नहीं बन सकेगा!

http://mohallalive.com/2012/04/23/who-will-be-the-next-president/

 आमुखनज़रिया

अब कभी कोई राधाकृष्‍णन कभी राष्‍ट्रपति नहीं बन सकेगा!

23 APRIL 2012 NO COMMENT

♦ पलाश विश्‍वास

बाघ खा जायेगा, यह डर भी राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन से मिलने के मौका खोने के लिए काफी नहीं था!


ब हमने होश संभाला, तब भारत के राष्ट्रपति थे डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन। डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन (5 सितंबर 1888 – 17 अप्रैल 1975) भारत के पहले उप-राष्ट्रपति (1952 – 1962) और दूसरे राष्ट्रपति रहे। उनका जन्म दक्षिण भारत के तिरुत्तनि में हुआ था, जो चेन्नयी से 64 किमी उत्तर-पूर्व में है। उनका जन्मदिन (5 सितंबर) भारत में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्वभर में बाहैसियत दार्शनिक जिनकी साख अभी बनी हुई​ है। तब शायद मैं तीसरी में पढ़ता था। हरिदासपुर हाईस्कूल में। 1964- 65 की बात होगी। आज जैसे हम अपने गांव बसंतीपुर से सीधे​ सात किमी दूर पंतनगर विश्वविद्यालय जा सकते हैं, उस वक्त ऐसी सुविधा नहीं थी। सड़कें ही नहीं थीं। रुद्रपुर होकर जाना होता था। करीब 18 मील का रास्ता। जंगल से होकर गुजरना होता था। रास्ते में राहजनी का डर तो था ही, उन दिनों बाघ का आतंक भी था। कुछ ही दिन पहले मेरे सहपाठी शिवपुर के वरुण और मदन के बड़े भाई ​​को रुद्रपुर के रास्ते शाम को बाघ खा गया था। वे डाकघर में काम करते थे। दोस्तों के साथ रुद्रपुर से इवनिंग शो की फिल्म देखकर लौट रहे थे। वे सबसे पीछे थे। बाघ ने उनको दबोच​ लिया तो बाकी लोगों के लिए करने को कुछ नहीं था। अगले दिन कास के जंगल में उनकी अधखायी लाश मिली थी। बाघ मारने शिकारी भी​ बुलाया गया, पर बाघ का अता पता नहीं चला। और तो और, हमारे गांव और बगल के अर्जुनपुर के बीच पहाड़ी नदी के किनारे एक बाघ मारा​ भी गया था। लेकिन पंतनगर विश्वविद्यालय में राष्ट्रपति दीक्षांत समारोह में आ रहे हैं और पिताजी उनसे मिलने जा रहे हैं, इस सूचना ने​ हममें इतनी सनसनी भर दी कि बाघ का डर भी काफूर हो गया। हमने तुरंत तय कर लिया कि हमें राष्ट्रपति से जरूर मिलना है। वैसे मैं पिताजी के साथ कहीं भी निकल पड़ने में कोई डर महसूस नहीं करता था। उनके साथ कई कई दिनों तक चलने वाली पंचायत में भी मैं दूर के गांव तक चला जाया करता था। हर साल रुद्रपुर के ही अटरिया मेला तो जाना तय ही था, वहां से रात को ही साइकिल पर उसी रास्ते से लौटना होता था और बाघ का डर वही था। इसलिए अपनी जिद पर कायम रहने के लिए मुझे कुछ ज्यादा बहादुरी की जरूरत भी नहीं थी।

आंधी पानी का मौसम। पिताजी हमें अपने साथ ले जाने का जोखिम उठाना नहीं चाहते थे। क्योंकि कार्यक्रम शाम का था, लौटने में देर रात ​​हो जानी थी। मैं स्कूल से लौटकर अपने साथियों के साथ कबड्डी खेलने लगा। एकदम कीचड़ से लथपथ। तभी खबर मिली कि पिताजी अपने एक साथी के साथ साइकिल से पंतनगर के लिए रवाना हो गये। मैं बिना घर लौटे, उसी हालत में भूत की तरह पीछे-पीछे दौड़ पड़ा और पिताजी को रास्ते में मीलभर दौड़कर पकड़ ही लिया। उन्हें घर लौटना पड़ा। मैं नहा धोकर साइकिल के कैरियर पर सवार होकर राष्ट्रपति दर्शन को निकल ही पड़ा। तय था कि पिताजी के मित्र बरेली से पीटीआई के संवाददाता एनयेम मुखर्जी राष्ट्रपति से मुलाकात के लिए वक्त लेकर रहेंगे। पर हुआ यह​ कि राष्‍ट्रपति अचानक अस्वस्थ हो जाने की वजह से नहीं आये। उनकी जगह दीक्षांत समारोह में उप राष्ट्रपति डॉ जाकिर हुसैन आये। उनसे मुलाकात तो नहीं हो सकी, लेकिन मुखर्जी साहब ने उनका दीक्षांत भाषण सुनने का इंतजाम जरूर करा दिया। इसी से हम जोश में भर गये। कार्यक्रम समाप्त होते न होते आंधी पानी की शुरुआत हो गयी। पंतनगर में तब कोई परिचित नहीं था। कम से कम रुद्रपुर तक जरूर आना था, जहां शरणार्थी शिविर की हाल ही में स्थापना हो गयी थी।

मैं मना रहा था कि किसी तरह रुद्रपुर पहुंच जाएं। सुबह घर जा सकते हैं। आंधी काफी तेज थी। पानी भी खूब ​​बरस रहा था। ऊपर से जंगल का रास्ता। घुप्प अंधेरा। तेज दौड़ती गाड़ियों की रोशनी से ही साइकिलें चल रही थीं, जो रुद्रपुर में भी नहीं ​रुकी। हम कौए की तरह भीगे हुए बाघ का आतंक पार कर घर लौटे आधी रात के करीब।

​डाक्टर राधाकृष्णन समस्त विश्व को एक शिक्षालय मानते थे। उनकी मान्यता थी कि शिक्षा के द्वारा ही मानव दिमाग का सद उपयोग किया जाना संभव है। इसीलिए समस्त विश्व को एक इकाई समझ कर ही शिक्षा का प्रबंधन किया जाना चाहिए। एक बार ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए डाक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि मानव को एक होना चाहिए। मानव इतिहास का संपूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है, जब देशों की नीतियों का आधार विश्व शांति की स्थापना का प्रयत्न करना हो। डॉ. राधाकृष्णन अपनी बुद्धिमतापूर्ण व्याख्याओं, आनंददायी अभिव्यक्ति और हंसाने, गुदगुदाने वाली कहानियों से अपने छात्रों को मंत्रमुग्ध कर दिया करते थे। वे छात्रों को प्रेरित करते थे कि वे उच्च नैतिक मूल्यों को अपने आचरण में उतारें। वे जिस विषय को पढ़ाते थे, पढ़ाने के पहले स्वयं उसका अच्छा अध्ययन करते थे। दर्शन जैसे गंभीर विषय को भी वे अपनी शैली की नवीनता से सरल और रोचक बना देते थे।

तब हम नागरिक शास्त्र या राजनीति विज्ञान नहीं पढ़ रहे थे। किसी प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री से मिलने के लिए हमने कभी ऐसी जिद की हो, याद नहीं आता। वैसे घर में राजनेताओं का आना-जाना लगा ही रहता था। हमने नारायण दत्त तिवारी और कृष्ण चंद्र पंत को भी कभी ज्यादा भाव​ नहीं दिये। लेकिन राष्ट्रपति के बारे में एक उत्तेजक आदर भाव जरूर था, जो नेहरु के लिए भी नहीं था। क्या यह इसलिए कि तब राष्ट्रपति कोई राजनेता नहीं थे, बल्कि राजनीति से परे सार्वजनिक जीवन के निर्विवाद आइकन। बचपन में कोई विचारधारा दिमाग में तो थी नहीं, लेकिन देश के प्रथम नागरिक के प्रति असंभव सम्मानभाव था। ​​भारत के राष्ट्रपति या भारतीय राष्ट्रपति राष्ट्रप्रमुख और भारत के प्रथम नागरिक हैं, साथ ही भारतीय सशस्त्र सेनाओं के प्रमुख सेनापति भी हैं। सिद्धांततः राष्ट्रपति के पास पर्याप्त शक्ति होती है। पर कुछ अपवादों के अलावा राष्ट्रपति के पद में निहित अधिकांश अधिकार वास्तव में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले मंत्रिपरिषद के द्वारा उपयोग किये जाते हैं। राष्ट्रपति को भारत की संसद के दोनों सदनों (लोक सभा और राज्य सभा) तथा साथ ही राज्य विधायिकाओं (विधान सभाओं) के निर्वाचित सदस्यों द्वारा पांच वर्ष की अवधि के लिए चुना जाता है। पदधारकों को पुनः चुनाव में खड़े होने की अनुमति दी गयी है। वोट आवंटित करने के लिए एक फार्मूला इस्तेमाल किया गया है ताकि हर राज्य की जनसंख्या और उस राज्य से विधानसभा के सदस्यों द्वारा वोट डालने की संख्या के बीच एक अनुपात रहे और राज्य विधानसभाओं के सदस्यों और राष्ट्रीय सांसदों के बीच एक समानुपात बनी रहे। अगर किसी उम्मीदवार को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो एक स्थापित प्रणाली है जिससे हारने वाले उम्मीदवारों को प्रतियोगिता से हटा दिया जाता है और उनको मिले वोट अन्य उम्मीदवारों को तब तक हस्तांतरित होता है, जब तक किसी एक को बहुमत नहीं मिलता। उपराष्ट्रपति को लोक सभा और राज्य सभा के सभी (निर्वाचित और नामजद) सदस्यों द्वारा एक सीधे मतदान द्वारा चुना जाता है। भारत के राष्ट्रपति नयी दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में रहते हैं, जिसे रायसीना हिल के नाम से भी जाना जाता है। राष्ट्रपति अधिकतम दो कार्यकाल तक ही पद पर रह सकते हैं। अब तक केवल पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने ही इस पद पर दो कार्यकाल पूरा किया है। उस वक्त हमें यह ब्यौरा मालूम न था।

राष्ट्रपति पद को लेकर जब पहली बार विवाद शुरू हुआ, डॉ जाकिर हुसैन के निधन के बाद, तब भी हम प्राइमरी स्कूल हरिदासपुर के छात्र थे। डॉ वीवी गिरि को इंदिरा गांधी ने अपनी मर्जी से राष्ट्रपति बनाया, तो कांग्रेस का विभाजन ही हो गया। लेकिन जनज्वार पर सवार इंदिरा​ गांधी को 1974 तक ज्यादा चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा। विवादित ढंग से चुने जाने के बावजूद डॉ गिरि के समय तक राष्ट्रपति वाकई देश के पहले नागरिक हुआ करते थे। याद रहे कि 1969 में राष्ट्रपति पद का चुनाव हुआ था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस पद के लिए पहले नीलम संजीव रेड्डी का नाम सुझाया था। पर बाद में उन्हें लगा कि रेड्डी स्वतंत्र विचार के व्यक्ति हैं और उनकी हर बात नहीं मानेंगे, इसलिए इंदिरा जी ने निर्दलीय उम्मीदवार वीवी गिरि का समर्थन कर दिया। इंदिरा गांधी ने अपने दल के सांसदों व विधायकों यानी मतदाताओं से अपील कर दी कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट दें। इस सवाल पर कांग्रेस में फूट पड़ गयी और कुछ अन्य दलों की मदद से इंदिरा गांधी ने श्री गिरि को विजयी बनवा दिया। बाद में गिरि के चुनाव को चुनौती देते हुए याचिका दायर कर दी गयी। याचिका में मुख्य आरोप यह लगा कि राष्ट्रपति के चुनाव प्रचार के दौरान ऐसे परचे छापे और वितरित किये गये, जो संजीव रेड्डी के चरित्र को लांछित करते थे। श्री रेड्डी कांग्रेस के ऑफिसियल उम्मीदवार थे। इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एसएम सिकरी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया गया। मुकदमा सोलह सप्ताह तक चला। सीके दफ्तरी गिरि के वकील थे। मुकदमे में 116 गवाहों के बयान हुए। इक्कीस दस्तावेज पेश किये गये। अंतत: सुप्रीम कोर्ट ने गिरि के खिलाफ पेश याचिकाएं खारिज कर दीं।

​लेकिन आपातकाल के फतवे पर जिस तरह तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से दस्तखत कराये गये, उससे राष्ट्रपति पद की गरिमा जो गिरने लगी, उसमें फिर कोई ठहराव नहीं आया। बतौर संस्था राष्ट्रपति पद आलंकारिक भी नहीं रहा। उसके सारे अलंकार सत्ता दल के हितों के लिए गिरवी पर रखे जाते रहे। प्रसिद्ध वैज्ञानिक डा एपीजे अब्दुल कलाम के कार्यकाल में थोड़ा फर्क जरूर महसूस हुआ। लेकिन तरह-तरह के कोटे और राजनीतिक समीकरण से जैसे सत्तादल ने देश के सर्वोच्च पद की गरिमा खत्म कर दी, वह बेनजीर है। दलित राष्ट्रपति के बाद पहली महिला राष्ट्रपति का कार्यकाल भी हमने देख लिया। दलित राष्ट्रपति हो जाने से भारत में जाति प्रथा का उन्मूलन तो होना नहीं था, पर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में​ बहिष्कृत, अस्पृश्य समुदायों के सशक्‍तीकरण की जरूर उम्मीद थी। इसी तरह पहली बार निर्वाचित महिला राष्ट्रपति से देश को काफी कुछ​ उम्मीदें थीं। लेकिन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल की भूमिका न सिर्फ पार्टी बल्कि कारपोरेट हितों के रक्षाकवच बनने तक में सीमित रह ​​गयी। उनका बेटा विवाद में फंसा और उन पर जमीन हड़पने तक के आरोप भी लगे।

कहा यह जा रहा है कि कुल मिलाकर कांग्रेस राष्ट्रपति पद के लिए दो उम्मीदवारों पर अपना दांव लगा सकती है। हालांकि इसकी आधिकारिक घोषणा अभी कांग्रेस ने नहीं की है, पर कयास लगाया जा रहा है कि वह प्रधानमंत्री के तकनीकी सलाहकार सैम पित्रोदा पर अपना दांव लगा सकती है। हालांकि उसे उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी भी कम नहीं भा रहे हैं क्योंकि एक तो वह अल्पसंख्यक समुदाय से हैं, दूसरे वर्तमान में वह उपराष्ट्रपति भी हैं। पर सैम पित्रोदा का यहां पलड़ा भारी दिख रहा है क्योंकि कांग्रेस की कई बैठकों में वह बतौर सदस्य शिरकत कर चुके हैं। इसलिए माना जा रहा है कि सैम को कांग्रेस राष्ट्रपति पद के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर सकती है।

सैम पित्रोदा कोई मामूली उम्मीदवार नहीं हैं। उनके तार वाशिंगटन से जु़ड़े हैं। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा सरदर्द बनी ममता बनर्जी पित्रोदा की सलाह से ही पोरिबर्तन का माहौल बना रही हैं। पित्रौदा को उम्मीदवार बनाने पर ममता के लिए एतराज करना मुश्कल होगा। खुली अर्थव्यवस्था के पहले आइकन रहे हैं पित्रौदा। कांग्रेस उन्हें उम्मीदवार बनाये तो विदेशी पूंजी और अमेरिका दोनों को आर्थिक सुधारों के भविष्य के बारे में आश्वस्त​ किया जा सकेगा।

इस बार यह भी कहा जा रहा है कि किसी आदिवासी को राष्ट्रपति बनाने की तैयारी है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा कि देश के अगले राष्ट्रपति के लिए एक गैर राजनीतिक उम्मीदवार आदर्श पसंद हो सकता है। उन्होंने इस बात का खंडन किया कि उनकी पार्टी ने पीए संगमा का संभावित उम्मीदवार के रूप में समर्थन किया है। पवार ने नवी मुंबई में लड़कियों के हॉस्टल का उद्घाटन करने के बाद कहा, 'अगले राष्ट्रपति के लिए यूपीए और एनडीए दोनों के पास अपनी पसंद का उम्मीदवार जिताने के लिए आवश्यक संख्याबल नहीं है। इसलिए मैं समझता हूं कि एक गैर राजनीतिक व्यक्ति एक आदर्श पसंद हो सकता है।'

जब पूरे देशभर में आदिवासियों के विरुद्ध युद्ध जारी है, बाकी समुदायों से उनको अलग-थलग रखा जा रहा है, संविधान की पांचवी या छठीं अनुसूची के तहत आदिवासियों को हासिल अधिकार कहीं नहीं मिल रहे, उनके जनप्रतिरोध को माओवादी करार देकर सैन्य दमन चल रहा है सर्वत्र, ऐसे संगीन हालात में किसी शिबू सोरेन, अजित जोगी या पीए संगमा को राष्ट्रपति बना दिये जाने से क्या हालात बदल जाएंगे?

अपने बचपन में आदमखोर बाघ से हम डरते नहीं थे। अब वे जंगल भी बचे नहीं हैं। पर सीमेंट का जो बीहड़ है और जिस पर प्रोमोटर बिल्डर राज का जो कब्जा है, उसके चप्पे चप्पे पर आदमखोरों का आतंक है और हम इस आतंक के साये में जीने को अभिशप्त हैं।

भारत के राष्ट्रपतियों की सूची

श्रीमती प्रतिभा पाटिल के पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की सूची इस प्रकार है…

राजेंद्र प्रसाद : 26 जनवरी 1950 से 13 मई 1962
सर्वपल्ली राधाकृष्णन : 13 मई 1962 से 13 मई 1967
जाकिर हुसैन : 13 मई 1967 से 03 मई 1969
वीवी गिरि (कार्यवाहक) : 3 मई 1969 से 20 जुलाई 1969
मोहम्मद हिदायतउल्ला (कार्यवाहक) : 20 जुलाई 1969 से 24 अगस्त 1969
वीवी गिरि : 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974
फखरुद्‍दीन अली अहमद : 24 अगस्त 1974 से 11 फरवरी 1977
बीडी जत्ती (कार्यवाहक) : 11 फरवरी 1977 से 25 जुलाई 1977
नीलम संजीव रेड्‍डी : 25 जुलाई 1977 से 25 जुलाई 1982
ज्ञानी जैलसिंह : 25 जुलाई 1982 से 25 जुलाई 1987
रामास्वामी वेंकटरामन : 25 जुलाई 1987 से 25 जुलाई 1992
शंकरदयाल शर्मा : 25 जुलाई 1992 से 25 जुलाई 1997
केआर नारायणन : 25 जुलाई 1997 से 25 जुलाई 2002
एपीजे अब्दुल कलाम : 25 जुलाई 2002 से 25 जुलाई 2007


अब राष्ट्रपति पद को लेकर जो खिचड़ी पक रही है, उसमें राष्ट्रहित कम, राजनीतिक समीकरण और बाध्यताओं की गूंज ज्यादा है। जिस प्रकार पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरि और संजीव रेड्डी के चुनाव के समय कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी से ऊपर उठकर वीवी गिरि को राष्ट्रपति बनाया था, उसी प्रकार इस बार भी कांग्रेस की पसंद का राष्ट्रपति बनना नामुमकिन है। मसलन बदले हुए हालात में उत्तर प्रदेश चुनाव में काग्रेस समेत दूसरे दलों को मात दे चुकी सपा अब राष्ट्रपति चुनाव में भी अपनी बड़ी भूमिका साबित करना चाहती है। राष्ट्रपति चुनाव जून में है, लेकिन राजनीतिक व रणनीतिक लिहाज से पार्टी ने अभी से दूसरे दलों को टटोलना शुरू कर दिया है। खास तौर पर उन दलों से, जिन्हें काग्रेस से परहेज है। कोशिश राष्ट्रपति पद के लिए एक ऐसा प्रत्याशी सामने लाने की है, जिसका विरोध करना दूसरे दलों के लिए मुश्किल हो। अब जबकि राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल का कार्यकाल खत्म होने में तीन महीने से भी कम समय रह गये हैं, ऐसे में उनके उत्तराधिकारी की संभावनाओं की चर्चा तेज होना लाजिमी है। राष्ट्रपति पद के लिए जो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं, उनमें प्रसिद्ध तकनीक प्रचारक सैम पित्रोदा और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी का नाम है। पित्रोदा और अंसारी के अलावा प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी, पश्चिमी बंगाल के पूर्व गवर्नर गोपाल कृष्ण गांधी, रक्षा मंत्री एके एंटनी, कांग्रेसी सांसद कर्ण सिंह, स्पीकर मीरा कुमार, पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के नामों पर भी सुगबुगाहट है। दिल्ली में 10 जनपथ के करीबी होने की वजह से पंजाब के गवर्नर और नगर प्रशासक शिवराज पाटिल को देश का नया राष्ट्रपति बनाये जाने की चर्चा भी जोरों पर है। कांग्रेस पार्टी ने अगला राष्ट्रपति बनाने के लिए नये चेहरे की तलाश तेज कर दी है। इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व संभावित नामों के प्लस व माइनस प्वाइंट पर डीटेल में चर्चा कर किसी एक पर सहमति बनाने में जुटा है। खासतौर पर ऐसे नाम का चयन करने के प्रयास हो रहे हैं, जिस पर ज्यादा से ज्यादा सहयोगी दल सहमत हो सकें। लोकसभा चुनाव में दो साल का समय शेष रह गया है, जिस वजह से राष्ट्रपति पद ऐसे व्यक्ति को सौंपने के प्रयास हो रहे हैं, जो पार्टी को मजबूती दिला सके। कांग्रेस को अपना राष्ट्रपति बनाने के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के समर्थन की जरूरत होगी। समाजवादी पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम या किसी अन्य नाम को समर्थन देने से कांग्रेस के समक्ष अपना राष्ट्रपति बनाने में मुसीबत खड़ी हो सकती है।

सूत्रों के मुताबिक सपा राष्ट्रपति चुनाव में अपनी भूमिका व प्रत्याशी को लेकर पूरी तरह गंभीर है। उस लिहाज से काम भी शुरू कर दिया गया है। बीते दिनों कोलकाता में तृणमूल काग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी से सपा के राज्यसभा सदस्य किरनमय नंद की मुलाकात वैसे तो शिष्टाचारवश थी, लेकिन बातचीत राष्ट्रपति चुनाव के मसले पर भी हुई। कई मामलों में केंद्र सरकार के सामने मुसीबत खड़ी करने वाली ममता बनर्जी राष्ट्रपति पद के लिए जुलाई में होने वाले चुनाव में भी मुलायम सिंह यादव का साथ देकर कांग्रेस के लिए परेशानी खड़ी कर सकती हैं। सपा की पूरी कोशिश दूसरे दलों के प्रमुख नेताओं से किसी एक प्रत्याशी के नाम पर सहमति बनाने की है। उसकी अनौपचारिक कोशिशें शुरू हो गयी हैं।

आगामी 24 अप्रैल से संसद के बजट सत्र का दूसरा हिस्सा शुरू हो रहा है। उस दौरान सभी दलों के प्रमुख नेता दिल्ली में होंगे। यह मुहिम तब और रफ्तार पकड़ेगी। सपा यह मानकर चल रही है कि पूर्व राष्ट्रपति कलाम को एक बार फिर से राष्ट्रपति बनाने पर जरूरी नहीं है कि सभी दलों में सहमति बन ही जाए। या फिर कलाम खुद ही तैयार न हों। पार्टी की नजर में एक और प्रत्याशी है, वह भी मुस्लिम समुदाय से है। महत्वपूर्ण पद पर है, लेकिन राष्ट्रपति पद के चुनाव की घोषणा के पहले पार्टी उसके नाम का खुलासा नहीं करना चाहती। सपा को उम्मीद है कि उसकी तरफ से सुझाये प्रत्याशी के नाम पर शायद ही किसी दल की असहमति हो, लेकिन जब तक दूसरे दलों से पर्याप्त विचार-विमर्श नहीं हो जाता, पार्टी अपने पत्तों नहीं खोलना चाहेगी। विधानसभा चुनाव में भारी जीत में मुस्लिम मतदाताओं की अहम भूमिका को पार्टी ने काफी गंभीरता से लिया है। वह राष्ट्रपति चुनाव में भी अग्रणी भूमिका निभाकर अपनी जमीन को और मजबूत करना चाहती है।

इस बीच, भाजपा भी राष्ट्रपति चुनाव पर अपने पत्तो खोलने से बच रही है। पार्टी के एक नेता ने कहा, हो सकता है कि कोई चौंकाने वाला नाम आ जाए, जिस तरफ अभी किसी का ध्यान न हो।

(पलाश विश्वास। पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, आंदोलनकर्मी। आजीवन संघर्षरत रहना और सबसे दुर्बल की आवाज बनना ही पलाश विश्वास का परिचय है। हिंदी में पत्रकारिता करते हैं, अंग्रेजी के पॉपुलर ब्लॉगर हैं। अमेरिका से सावधान उपन्यास के लेखक। अमर उजाला समेत कई अखबारों से होते हुए अब जनसत्ता कोलकाता में ठौर। उनसे palashbiswaskl@gmail.com पर संपर्क करें।)


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