Friday, February 10, 2012

बेदाग नहीं उप्र में किसी भी दल का दामन

बेदाग नहीं उप्र में किसी भी दल का दामन


Saturday, 11 February 2012 10:21

अनिल बंसल नई दिल्ली, 11 फरवरी। सूबे के लोगों को भयमुक्त राज देने के दावे तो उत्तर प्रदेश में सभी पार्टियों ने किए हैं, पर दामन किसी का भी बेदाग नहीं है। सत्ता हासिल करना सबका एकमात्र मकसद है और जीतने की क्षमता उम्मीदवारों के चयन की एकमात्र कसौटी। अपराधियों को तो टिकट दिए ही हैं, कई सीटों पर तो ऐसे उम्मीदवार भी उतार दिए हैं जो जेल की हवा खा रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाहुबली डीपी यादव को पार्टी में शामिल न करके खुद को पाक साफ दिखाने का उपक्रम कर रहे अखिलेश यादव भी इसी जमात में शामिल हैं। मुलायम सिंह यादव के लाडले को डीपी यादव भले दागी दिखे हों, पर जेल में बंद अभय सिंह, विजय मिश्र और शेरबाज खां उन्हें भले मानुष लगे होंगे। तभी तो सभी को उम्मीदवार बना दिया है। 
भाजपा सियासत में शुचिता का ढिंढोरा पीटती रही है। उसने दागी बाबू सिंह कुशवाहा को अपना कर बेवजह फजीहत कराई। चौतरफा हमले हुए तो उन्हें टिकट भी नहीं दिया। पर बदनामी बेवजह मोल ले ली। कुशवाहा पर तो भ्रष्टाचार के ही आरोप हैं। पर उन्हें मुद्दा बना कर जिस कांग्रेस और बसपा ने भाजपा को जम कर कोसा उनके सारे उम्मीदवार भी दूध के धुले कहां हैं। यूपी के लोगों को स्वर्ग सा सुख देने का दावा करने वाले कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से कोई पूछे कि गाजीपुर की जेल में बंद शैलेश कुमार सिंह को जंगीपुर से और कलावती बिंद को जमनिया से उन्होंने टिकट क्यों दे दिए। नानपारा से दिलीप वर्मा और श्रावस्ती से कुलदीप चौधरी के दामन पर लगे दाग भी उन्हें दिखे नहीं होंगे। दिखते तो दोनों की पत्नियों को उम्मीदवार क्यों बनाते?
हकीकत तो यह है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ रहे दलीय-निर्दलीय उम्मीदवारों में आधे भी ऐसे नहीं हैं जिनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला दर्ज न हो। पर जो जेल की सलाखों के पीछे रह कर जनादेश हासिल करना चाह रहे हों, उन्हें मौका देने के धतकरम पर ये पार्टियां क्या सफाई देंगी। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने तो कत्ल के गुनाह की सजा भोग रहे अमरमणि त्रिपाठी को न सही उनके बेटे अमन मणि त्रिपाठी को ही टिकट दे दिया। सपा के 35 उम्मीदवारों की तो पुलिस थानों में हिस्ट्रीशीट तक मौजूद हैं।


फिर भी अखिलेश डीपी यादव को गले नहीं लगाने के फैसले को ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हीं की पार्टी के एक हिस्ट्रीशीटर सीतापुर के ओमप्रकाश गुप्ता हैं। उनकी जगह उनके बेटे अनूप गुप्ता को उम्मीदवार बनाना पड़ा है क्योंकि सीट जीतने की मजबूरी है। 
राहुल गांधी भी इस कसौटी पर अलग नहीं है। पीलीभीत की बीसलपुर सीट के अपने उम्मीदवार को बदल कर उन्होंने इसे साबित किया है। कांग्रेस ने पहले यहां कुर्मी देवस्वरूप पटेल को उम्मीदवार बनाया था। उनकी स्थिति कमजोर दिखी तो अनीस अहमद खां उर्फ फूल बाबू को उम्मीदवार बना दिया। फूल बाबू पिछला चुनाव बसपा टिकट पर जीते थे। मायावती ने उन्हें मंत्री भी बनाया था। पर सूबे के लोकायुक्त ने उनके खिलाफ विधायक निधि के दुरुपयोग की शिकायत को सही पाया तो मायावती ने उनसे मंत्री पद भी छीन लिया और पार्टी से बाहर भी कर दिया। ऐसे दागी का प्रचार अब राहुल गांधी किस मुंह से करेंगे। इसी तरह सिकंदराबाद की सीट पर भी लालू यादव के समधी जितेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाने से पहले राहुल गांधी ने उनका अतीत नहीं खंगाला। पुलिस के रिकार्ड में उनका दामन भी बेदाग नहीं है। 
छोटी पार्टियों के बाहुबली उम्मीदवारों की सूची भी छोटी नहीं है। मुन्ना बजरंगी, बृजेश सिंह, अतीक अहमद, जितेंद्र सिंह बबलू, पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी, मुख्तार अंसारी आदि भी चुनाव में खम ठोंक रहे हैं। सपा के विजय मिश्र पर इलाहाबाद के बसपा विधायक गोपाल नंदी पर जानलेवा हमला करने की साजिश का आरोप है। मिश्र इस समय मेरठ की जेल में हैं। नानपारा में कांग्रेस ने दिलीप वर्मा को टिकट दे दिया था। बाद में पता चला कि सजायाफ्ता होने के कारण वे चुनाव लड़ ही नहीं सकते लिहाजा उनके बाहुबल का फायदा उठाने के लिए पार्टी ने उनकी पत्नी को टिकट देने में कतई बुराई नहीं समझी। 
उत्तर प्रदेश के मतदाताओं के सामने आज सबसे बड़ी दुविधा यही है कि वे चुनें तो किसको। एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ। मात्रा का फर्क भले हो पर भ्रष्टाचार, धन-बल, बाहुबल और जातिवाद व संप्रदायवाद जैसी बुराईयों से एक भी पार्टी बची नहीं है। पहले चरण में मतदान भले 62 फीसद हो गया हो पर मतदाताओं में न किसी के प्रति उत्साह है और न किसी का मुद्दा उन्हें प्रभावित कर पा रहा है।

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