तिमांग्शु धूलिया के लिए चुनौती है समरू बेगम!
- Created on Friday, 20 April 2012 10:27
- Written by एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
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इस फिल्म की कहानी 18वीं शताब्दी के भारत में एक नाचने वाली लड़की के तौर पर शुरुआत करने वाली आम लड़की का इतिहास का बेहद खास किरदार बनने की कथा को फिल्म माध्यम में जीवंत करने की तिमांग्शु की चुनौती है। बेगम जोयाना नोबिस सोमरु पर होगी उर्फ बेगम समरु मेरठ स्थित सरधाना में 18वीं शताब्दी में शासन किया।बेगम समरु ने अपने करियर की शुरुआत नाच करनेवाली डांसर के रूप में किया था।आगे चल कर उन्होंने शासन किया। उन्होंने आर्मी में ट्रेनिंग भी ली।वाकई कितने दिलचस्प पहलू हैं बेगम समरु के. छुटपन में ही उन्होंने विदेशी सैनिक से शादी कर ली।फिर ब्रिटिश हुकुमत पर राज किया।बायोपिक फिल्में उमराव जान, बैंडिंट क्वीन, सिल्क स्मिथा जैसी फिल्में पसंद की जाती रही हैं।लेकिन इन सबसे अलहदा है बेगम समरू।
यह घूंघट की आड़ में हुश्न का दीदार करने का मामला नहीं है कतई, बल्कि इतिहास के खोये हुए पन्नों की खोज में सफर करने जैसा है।इतिहासकारों ने बेगम-समरु की जीवन पर आधारित पुस्तक में लिखा है कि बेगमस मरु के शासन की नीति आईने की तरह साफ-सुथरी थी। बेगम-समरु ने हमेशा अपने शासन काल में हमेशा जनता के हित को ध्यान में रखते हुए कानून व्यवस्था बनाए रखती थी।दिल्ली की समरु मुगल शासक शाह आलम की निगाह में आने से पहले कोठे की गायिका थीं।
बेगम समरु के रुतबे का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद बादशाह शाह आलम ने उन्हें अपना संरक्षक माना। राजनय और राजनीति की जानकारी रखने वाली बेगम समरु ने दिल्ली में ऐसी हैसियत हासिल कर ली थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी के फौजी अधिकारी और रणनीतिज्ञ अपने मंसूबों के लिए उन्हें ज़रूरी समझने लगे थे।
बेगम समरु की परवरिश इतनी पक्की थी कि वे बादशाह, विदेशी सैनिकों, ज़मींदारों और शाही घराने के लोगों से मेलजोल में कोई दिक्कत नहीं महसूस करती थी। सरधना बेगम समरु की राजधानी रहा है, जहां बेगम समरु का विश्व प्रसिद्ध चर्च है। जिनके शासनकाल में यहां गंगनहर की खुदाई का काम चला।
फिल्मोद्योग में तारिका रानी मुखर्जी के फिल्मकार तिग्मांशु धूलिया की अगली फिल्म में नर्तकी बेगम समरू की भूमिका निभाने की चर्चा है। वैसे खुद धूलिया कहते हैं कि उन्हें नहीं पता कि यह खबर कहां से फैली जबकि रानी ने अब तक उनकी फिल्म के लिए स्वीकृति नहीं दी है।
खबर थी कि अदाकारा रानी मुखर्जी अब बेगम बनने जा रही हैं, लेकिन आदित्य चोपड़ा से शादी रचाकर उनकी बेगम नहीं बल्कि वह तिग्मांशु धूलिया की आने वाली फिल्म में बेगम समरू का किरदार निभाएंगी। नेशनल स्कूल आफ ड्रामा, नई दिल्ली के छात्र तिमांग्शु के लिए बेगम समरू की भूमिका के लिए सही चेहरी खोजना अब वाकई मुश्किल काम नजर आने लगा है।बेगम समरू की किरदार बहुत ही मुश्किल है, महज यह लिखने से तिमांग्शु का संकट समझ में नहीं आयेगा, अगर आप बेगम समरू के बारे में नहीं जानते।
बेगम मजहब से मुसलमान है कि ईसाई, या फिर दोनों, साफ साफ बताना मुश्किल है। बादशाह शाह आलम की मददगार या अपने फ्रांसीसी प्रेमी की माशुका, उसकी कौन सी भूमिका निर्मायक है यह कहना भी मुश्किल है। नाचनेवाली लड़की से लड़ाकू सेना की कमान संबालने वाली असामान्य नायिका के रुप में उसका उत्तरण सेल्युलायड पर रेखांकित करना वाकई बहुत मुशकिल काम है।
खासकर तब जबकि सत्रहवीं अठारवीं सदी के बारतीय रजवाड़ों और रानियों का इतिहास तथ्य निर्भर कम, और किंवदंतियों पर आधारित ज्यादा है।ब्रिटिश गेजेट और मिलिटरी दस्तावेज खंगालकर थोड़े बहुत तथ्य मिल सकते हैं, पर बागियों के बारे में शासकों का बयान कितना तत्यपरक होगा, इसमें संदेह है।
इस फिल्म के लिए निःसंदेह तिमांग्शु को पान सिंह तोमर के मुकाबले ज्यादा पापड़ बेलने होंगे।'पान सिंह तोमर' के बाद यह फिल्म धूलिया की दूसरी ऐसी फिल्म होगी जो वास्तविक जीवन के किसी किरदार पर आधारित होगी। धूलिया की फिल्म 'पान सिंह तोमर' एथलीट से सैनिक और फिर डाकू बने पान सिंह की सच्ची कहानी पेश करती है।
धूलिया ने कहा, "मैंने रानी से सम्पर्क किया था। मुझे नहीं पता था कि उन्होंने इसके लिए हां कहा है। मुझे समाचार पत्रों से यह पता चला। रानी ने न तो मुझे फोन किया और न ही फिल्म में भूमिका के लिए स्वीकृति दी।"
फिल्मोद्योग में कहा जा रहा है कि इरफान अभिनीत 'पान सिंह तोमर' की सफलता के बाद धूलिया बॉलीवुड के स्थापित कलाकारों से ही सम्पर्क कर रहे हैं। उन्होंने स्पष्ट किया, "मैंने 'पान सिंह तोमर' से पहले रानी से सम्पर्क किया था।"उन्होंने बताया कि बेगम समरू की कहानी बहुत पहले लिखी गई थी।
उन्होंने कहा, "यह एक पुरानी कहानी है। मैंने चार से पांच साल पहले यह कहानी लिखी थी।"बेगम का कद महज चार फुट ग्यारह इंच की बतायी जाती है। कदकाठी की दृष्टि से रानी इस किरदार का फिटमफिट चेहरा नजर आता है। बेगम की जटिल भूमिका निभाने के लिए बाहैसियत अभिनेत्री उनकी काबिलियत पर भी शक की ज्यादा गुंजाइश नहीं है। वैसे रानी के लिए पीरियड फिल्म में काम करने का अनुभव नया नहीं है।
इससे पहले वह फिल्म मंगल पांडेय में आमिर खान के साथ काम कर चुकी हैं। अब जब तिमांग्शु इस विकल्प को कारिज कर रहे हैं, तो यह जानना वाकई दिलटस्प होगा कि बेगम बतौर कौन सा चेहरा उनकी जेहन में है।इससे पहले इस भूमिका के लिए माही गिल का नाम भी चर्चा में रहा है।
मीडिया की यह बेहद बचकाना प्रचार है कि तिमांग्सु की फिल्म बेगम समरू एक तवायफ की जिंदगी पर आधारित है।विडंबना यह है कि आज के ज्यादातर पत्रकारों और यहां तक कि साहित्यकारों को बी अपने इतिहास से कोई दूर दूर का वास्ता नहीं रह गया है।
मीडियो के मुताबिक सा हब बीबी और गैंगस्टर व पान सिंह तोमर के बाद निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की फेवरेट मानी जाने वाली माही गिल को बॉलीवुड की खंडाला गर्ल रानी मुखर्जी ने जोर का झटका दिया है। दरअसल पान सिंह तोमर के बाद निर्देशक तिग्मांशु धूलिया एक और रियल स्टोरी पर आधारित फिल्म बनाने जा रहे हैं।
यह मूवी वर्ष 1778 से उत्तर प्रदेश के मेरठ में सरधना पर राज करने वाली बेगम समरू पर की असली जिंदगी पर आधारित है। बेगम समरू बेहद आशिक मिजाज होने के साथ कूटनीति में माहिर थीं। तिग्मांशु की इस मूवी में माही की बजाए रानी आशिक मिजाज तवायफ़ की भूमिका निभाने जा रही हैं।
पता चला है कि फिल्म के लिए रानी का चयन उनके नो वन किल्ड जेसिका में निभाए बोल्ड किरदार को देखते हुए किया गया है। तिग्मांशु को रानी का यह किरदार बेहद पसंद आया था यही कारण है कि उन्होंने बेगम समरू के लिए रानी को तुरंत फाइनल कर लिया। फिल्म एक तवायफ़ की जिंदगी पर आधारित है ऐसे में रानी एक बार फिर मुज़रा करती नजर आएंगी।
इससे पहले वे फिल्म मंगल पांडे-द राइजिंग में मुज़रा कर चुकी हैं। अब देखने वाली बात यह होगी कि कूटनीति में माहिर बेगम समरू की भूमिका में रानी, पान सिंह तोमर के इरफान को मात दे पाती हैं या नहीं।इस पहेली को बूझने के लिए एक उदाहरण काफी होगा,मेरठ के ऐतिहासिक कस्बे सरधना की बेगम समरु, जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था, का भी प्रकाशन उद्योग के विकास में सराहनीय योगदान है।
बेगम समरु के ईसाई धर्म स्वीकार करने से सरधना रोमन कैथोलिक मिशनरियों का केन्द्र बन गया। यहां ईसाई मिशनरियों ने 1848 के आसपास एक मुद्रणालय खोला। इसका उद्देश्य धर्म प्रचार में योगदान करना था। इसमें 1850 से पहले उनकी धार्मिक पुस्तकें प्रकाशित होती थीं इसके अलावा ईसाई पादरियों के व्याख्यान और वार्तालाप फारसी और देवनागरी में छापे जाते थे।
हलधर विद्यालय कृषक समिति और मेरठ के समाज सेवियों की मदद से सरधना की बेगम समरु पर डॉक्यूमेंट्री तैयार की गई है। डॉक्यूमेंट्री में बेगम समरु के ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार में योगदान पर प्रकाश डाला गया है।मेरठ में बेगम बाग स्थित नारी निकेतन शहर की बेजोड़ इमारतों में है।
यह इमारत मुगल वास्तुकला से प्रेरित है, जो वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है। कहा जाता है कि पहले के समय में यह इमारत बेगम समरु का महल था। यह इमारत लगभग 160 साल पुरानी है, जो बाद में इलाही बख्श जो समरु के समय के निर्माणकर्ता थे, ने लिया।
बाद में यह शरणार्थी ट्रस्ट के हाथ में गई। 1857 के बाद की इमारतों में एक है। जो आज नारी निकेतन की इमारत के रुप में स्थापित है। आज इसी ट्रस्ट के अन्तर्गत देखरेख में है।
समरू के बचपन का नाम जोन्ना या फरजाना भी बताया जाता है लेकिन वह बेगम समरू के नाम से ही प्रसिद्ध हुई। 'समरूज् नाम के बारे में जहां इंडियन आर्कियालॉजिकल सर्वे (एएसआई) ने उनके फ्रेंच शौहर वाल्टर रेनहार्ड साम्ब्रे से माना है जो भारत में ब्रिटिश शासन में भाड़े का सिपाही था, वहीं स्टेट आर्कियॉलाजी ने समरू नाम का संबंध सरधना (मेरठ ) से माना है।
कश्मीरी मूल की बेगम समरू का जन्म 1753 में मेरठ के सरधना में माना जाता है। जो 1760 के आसपास दिल्ली में आई। बेगम समरु पर लिखी किताब 'बेगम समरू- फेडेड पोर्टेट इन ए गिल्डेड फार्मज् में जॉन लाल ने लिखा है कि '45 वर्षीय वाल्टर रेनहर्ट जो यूरोपीय सेना का प्रशिक्षक था।
यहां के एक कोठे पर 14 वर्षीय लड़की फरजाना को देखकर मुग्ध हो गया और उसे अपनी संगिनी बना लिया।बेगम समरू के बारे में कहा जाता है कि वह राजनीतिक व्यक्तित्व और शासन का कुशल प्रबंधन करने वाली महिला थी। शायद यही कारण था कि एक पत्र में तत्कालीन गवर्नर लार्ड बिलियम बैंटिक ने उन्हे अपना मित्र कहा और उनके कार्य की प्रशंसा की। बेगम समरू को सरधना की अकेली कैथोलिक महिला शासिका भी कहा जाता है। इस महल में 40 साल से दुकान कर रहे बुजुर्ग ने बताया कि इस
महल के अंदर से सुरंग लाल किले से मिलती है जिसके रास्ते हाथी-घोड़े और सैनिक जाते थे और इस महल के चारो ओर तेरह कुंए थे। जिससे महल के समीप बागों को पानी दिया जाता था।
इतिहासकारों का मानना है कि बेगम ने 18वीं और 19वीं शताब्दी में राजनीति और शक्ति संघर्ष में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक राजनीतिक जीवन व्यतीत करने के बाद उसकी मृत्यु लगभग 90 साल की आयु में सन 1836 में हुई।
एक समय उत्तर भारत की सबसे सशक्त महिला रही बेगम का नाम अब शायद कम लोग ही जानते हैं । दिल्ली के चांदनी चौक स्थिति बेगम समरू के महल में एक समय बुद्धिजीवियों, रणनीतिकारों और कुछ रियासतों के लोग विचार विमर्श करने आते थे लेकिन आज उस महल की वर्तमान हालत देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि यह कभी उनकी हवेली रही होगी।
दिल्ली के चांदनी चौक इलाके के अंदर तंग गलियों से होकर किसी तरह वहां पहुंच भी जाएं तो उसकी हालत देखकर यह नहीं कह सकते कि यह कभी कोई हवेली रही होगी। यहां गंदगी के बीच खड़ा है दिल्ली पर्यटन विभाग द्वारा लगाया गया बोर्ड जो इस महल के बारे में जानकारी दे रहा है। लेकिन दिलचस्प यह है कि यह जानकारी आधी-अधूरी ही नहीं बल्कि गलत भी है।
यहां दी गई जानकारी दो भाषाओं में है। हिन्दी में जहां इसे 1980 में भगीरथमल द्वारा खरीदा गया बताया गया है वहीं अंग्रेजी में उन्हीं के द्वारा 1940 में खरीदा गया बताया गया है।
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