नाम्या का कुछ भरोसा नहीं, सबको चूत्या बनाता फिरता है!
♦ विष्णु खरे
इजराइल के विरोध में गुंटर की कविता और विष्णु खरे के प्रतिवाद के संदर्भ में विष्णु जी और अभिषेक श्रीवास्तव के बीच और भी पत्राचार हुए हैं, जिसे अभिषेक ने अपने ब्लॉग जनपथ पर शेयर किया है। एक पत्र में विष्णु जी ने आग्रह किया है कि यह सब कहीं छपे, मोहल्ला पर न छपे तो बेहतर। हालांकि यहां छपे, यहां न छपे वाली बात के पीछे के आग्रह को समझना दिलचस्प होगा, लेकिन अभी फिलहाल अभिषेक के जवाब पर एक स्पष्टीकरण जरूरी है। अभिषेक ने जवाब दिया…
मैं आपका पत्र और अपना प्रत्युत्तर अपने ही ब्लॉग पर डालूंगा, लेकिन यदि अविनाश वहां से उठा कर अपने यहां चिपका देते हैं (जैसा कि उनकी आदत है), तो इसका मैं कुछ नहीं कर सकता … मेरी मूल टिप्पणी (कविता समेत) सबसे पहले मैंने अपने जनपथ (www.junputh.com) पर ही लगायी थी। वहां से मोहल्ला और अन्य जगहों पर इसे उठा लिया गया।…
यह अर्द्धसत्य है। अभिषेक ने कवितानुवाद अपने ब्लॉग पर डालने के बाद एक पत्र अपने उन तमाम जानकारों के पास भेजा था, जिनके पास कोई न कोई ब्लॉग है। लिखा था,नमस्कार। जिस कविता की वजह से नोबेल पुरस्कार प्राप्त कवि गुंटर ग्रास के इजरायल में घुसने पर पाबंदी लगी है, उसका हिंदी अनुवाद मैं भेज रहा हूं। इस उम्मीद के साथ कि इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें और ज्यादा से ज्यादा जगह यह पहुंच सके। सहयोग की अपेक्षा है। इस कविता को यहां भी पढ़ सकते हैं… www.janpath.blogspot.com…
बहरहाल, खुद को श्रेष्ठ और बाकियों को कमतर बताने वाले इस पत्राचार के बीच विष्णु खरे ने नामदेव ढसाल के संदर्भ में कुछ बातें बतायी हैं, जिनका पाठ और प्रचार इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि कवि को सिर्फ उसकी उपस्थिति और उसके वर्तमान के बाड़े में ही नहीं देखना चाहिए। भारतीय कविता के इतिहास में नामदेव ढसाल का योगदान बड़ा है और लिहाजा उन्हें सिर्फ शिवसेना का कार्यकर्ता और कवि नहीं माना जाना चाहिए।इसके बावजूद कि हमने पिछले दिनों बीजेपी से जुड़े दक्षिणपंथी विचारक राकेश सिन्हा के हाथों सम्मानित होने पर मंगलेश डबराल पर संदेह किया था। यह संदेह इसलिए था, क्योंकि खुद मंगलेश डबराल दूसरे कवियों की प्रतिबद्धताओं को जांचने के लिए इसी तरह की कसौटी का प्रयोग करते रहे हैं।
हम यहां सिर्फ नामदेव ढसाल के संदर्भ में अभिषेक श्रीवास्तव को लिखा गया विष्णु खरे का पत्र शेयर कर रहे हैं। बाकी के पत्र आप उनके ब्लॉग पर ही पढ़ें…
मॉडरेटर
अठावले और पासवान के साथ ढसाल
नामदेव ढसाल मराठी कविता के सर्वकालिक बड़े कवियों में है। आज उसका महत्व अपने समय के तुकाराम से कम नहीं, जबकि तुका ने अंततः ईश्वर-भक्ति के जरिये कुछ सहना ही सिखाया। सवर्णों ने आज तुका को पूर्णतः को-ऑप्ट कर लिया है। नामदेव ढसाल की क्रांतिकारी दलित कविता ने सारी भारतीय भाषाओं की आधुनिक दलित कविता को जन्म दिया। उसने सारे दलित ही नहीं, सवर्ण साहित्य को प्रभावित किया और कर रहा है। यह उसका एक अमर योगदान है।
नामदेव ने कोई छह वर्ष पहले एक विश्व साहित्य सम्मेलन किया था, जिसमें शायद मुंबई के एक दलित-मराठा माफिया का पैसा भी लगा था। मुझे उसने उसमें तब दिल्ली से "बाइ एअर" और "फाइव-स्टार" बुलाया था। मैंने सार्वजनिक रूप से इनकार किया। अभी इस साल शायद वह उसे दुहराना चाहता है लेकिन अब दिलीप चित्रे नहीं हैं, जिन्होंने पिछली बार सब कुछ किया था और अंग्रेजी में अनिवार्य पत्र-व्यवहार भी। इस बार उसने मेरे-उसके मित्र और अनुवादक-कवि-आलोचक चंद्रकांत पाटील की मदद चाही। चंद्रकांत ने उससे कहा कि विष्णु (मैं) मुंबई में ही है, तू उसकी मदद ले। नामदेव बोला कि अरे विष्णु से मैं बात नहीं करूंगा, वह कभी करेगा नहीं। जबकि दिल्ली पुस्तक मेले में उसके संग्रह के विमोचन से पहले मंच पर मुझे मुंबई से उसका अरेतुरे वाला फोन आया था। मराठी में कौन नहीं जानता कि नामदेव शिव-सेना आरएसएस से संबद्ध है। लेकिन सब हंसते हैं। कहते हैं नाम्या का कुछ भरोसा नहीं है। वो सबको चूत्या बनाता फिरता है, हरेक से संबद्ध है और हरेक के विरुद्ध है।
इस टोन और इस भाषा को मराठी में अरेतुरे की भाषा कहते हैं और ये पक्के मराठी मित्रों के बीच चलती है। मुझे महाराष्ट्र और मराठी साहित्य में मानद मराठीवाला समझा जाता है क्योंकि मैं उसे बोल-पढ़ और थोड़ा लिख भी लेता हूं।
अब जिन्हें इस तरह का कुछ पता नहीं है, उनसे जिंदगी में पहली मुलाकात में, वह भी हिंदी के एक प्रकाशक की शराब-पार्टी में, जिसमें मैं निमंत्रण के बाद ही पहली बार (अजय कुमार जी के साथ) इसलिए आया कि कुंवर नारायण को विमोचन-पूर्व शमशेर-अंक दे सकूं और नीलेश रघुवंशी का कविता-संग्रह और पहला उपन्यास ले सकूं, ऐसे विषय पर क्या बात करूं? आप जरा अशोक महेश्वरी से पूछिए कि विष्णु खरे पिछली बार राजकमल के ऐसे आयोजन में कब आया था?
मैं मानता हूं कि अलाहाबाद में पाकिस्तान और पार्टीशन थेओरी का प्रतिपादन करने वाले अल्लामा इकबाल का फिरन निरपराध मुस्लिम-हिंदुओं के खून से रंगा हुआ है। फिर भी हम उन्हें बड़ा शायर मानते और भारत के अनऑफिशियल, जन-गण-मन से कहीं अधिक लोकप्रिय, राष्ट्र-गीत "सारे जहां से अच्छा" को गाते हैं या नहीं?
(विष्णु खरे। हिंदी कविता के एक बेहद संजीदा नाम। अब तक पांच कविता संग्रह। सिनेमा के गंभीर अध्येता-आलोचक। हिंदी के पाठकों को टिन ड्रम के लेखक गुंटर ग्रास से परिचय कराने का श्रेय। उनसे vishnukhare@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)
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