रुपए की अंधी हवस ने जिन्दा इंसानों को बिकाऊ माल तो बनाया ही है, इसने हैवानियत के ऐसे-ऐसे रूप पैदा कर दिए हैं जिसमें मानव अंगों की तस्करी जैसे धन्धे तक तेजी से फैलते जा रहे हैं...
खबर है कि एटा जिला चिकित्सालय के शवगृह से 16 साल के एक ग़रीब किशोर की बाईं आँख गायब हो गयी. तीन डाक्टरों के पैनल की जाँच रिपोर्ट के हवाले से एटा के सी.एम.ओ. किसी साजिश से इनकार करते हुए इसे चूहों की करतूत बताते हैं.
अगले ही दिन एक और खबर आयी कि कांशीरामनगर जिला मुख्यालय कासगंज जिला अस्पताल के शवगृह से भी 45 वर्षीय लवारिस अधेड़ की दोनों आँखें गायब हो गयीं. यहां के सी.एम.ओ. भी ऐसा ही बयान देकर इतिश्री कर चुके हैं और आलाअधिकारियों नें जाँच के आदेश दे दिए. दोनो ही घटनाएं सरकारी अस्पताल की हैं और शवगृह में ताले में बन्द थीं.
आज बाजारवाद के इस दौर में संवेदनहीनता की ये घटनाएं कोई अपवाद नहीं हैं. रुपए की अंधी हवस ने जिन्दा इंसानों को बिकाऊ माल तो बनाया ही है, इसने हैवानियत के ऐसे-ऐसे रूप पैदा कर दिए हैं जिसमें मानव अंगों की तस्करी जैसे धन्धे तक तेजी से फैलते जा रहे हैं. 17 साल पहले आई.आई.टी. कानपुर के छात्र तपस के साथ घटित ऐसी ही एक हृदयहीन घटना पर प्रतिक्रियास्वरूप लिखित विश्वनाथ मिश्र की कविता 'तपस की आँख' बरबस ही याद आ गयी - मुकुल
विश्वनाथ मिश्र
तपस की आँख गायब हो गयी
अखबार में पढ़ा
चूहे उठा ले गये होंगे-
डॉक्टरों ने कहा!
लेकिन शक है तपस के पिताजी को-
अंगों की बिक्री के लिए
आँख गायब की गयी
पोस्टमार्टम हाउस के फार्मेसिस्ट ने कहा
यहीं से तीन साल पहले
उसकी बहन के शव का कान भी
गायब हुआ था
जिसे चूहे ही खा गये थे
यही नहीं, अब तक न जाने कितने
शवों के नरम अंग
इस तरह गायब हो चुके हैं!
आदमी बिकाउ माल है-
जि़न्दा या मुर्दा!
.................
चूहे भी कितने चालाक हो गये हैं
उठा ले जाते हैं साबूत अंग
ऐसे कि टोपे जा सकें-
चूहे भी कितने चालाक हो गये हैं
कि सर्जन बन गये हैं!
और इसलिए
पोस्टमार्टम हाउस में
घूमते रहते हैं!
(मार्क्सवादी चिन्तक विश्वनाथ मिश्र चर्चित और विवादित किताब 'विद्रोही वाल्मीकि' के लेखक हैं.)
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