Sunday, April 22, 2012

नैनीताल आपका है, जैसे चाहें रखें… लेखक : उमेश तिवारी 'विस्वास :: अंक: 15 || 15 मार्च से 31 मार्च 2012:: वर्ष :: 35 :April 13, 2012 पर प्रकाशित

http://www.nainitalsamachar.in/nainital-is-yours-keep-it-clean/

नैनीताल आपका है, जैसे चाहें रखें…

nainital-mission-butter-flyबात की शुरूआत 22 फरवरी 2012 को ए.टी.आई में आयोजित 'नगर चिन्तन' गोष्ठी से करना चाहूँगा। झील विकास प्राधिकरण ने सुशासन प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से शहरी विकास प्रकोष्ठ ए.टी.आई और हडको, नई दिल्ली के सौजन्य से एक कार्यशाला के रूप में आयोजित किया गया था। नैनीताल झील परिक्षेत्र में प्राधिकरण की भूमिका हमेशा से ही विवादास्पद रही है, जबकि इसकी मुख्य जिम्मेदारी अनियंत्रित और गैरकानूनी निर्माण पर रोक लगाने की थी। चूँकि उत्तराखंड अभी तक उत्तर प्रदेश की छाया से उबर नहीं पाया है, इसलिये यह उत्तर प्रदेश के उपनिवेश की तरह कार्य करता है। अपना प्राधिकरण हापुड़ या रामपुर-मुरादाबाद क ऑथोरिटी जैसा ही है- उसका एक दफ्तर है जहाँ कर्मचारी कार्य करते हैं। लोग नक्शे पास करवाने लाते हैं, जो अर्जियाँ स्वीकार होती हैं, उनको अनुमति दे दी जाती हैं बांकी को समुचित राय दी जाती है, जैसे कि वे देहरादून से पास करायें या कोर्ट चले जायें। ये कोई नहीं समझता या समझाता कि नैनीताल में और अधिक निर्माण कितना खतरनाक है।

स्वाभाविक था कि प्राधिकरण में सुशासन के साथ नगर के प्रति चिन्ता करने वाले नागरिकों को बुलाया गया। अपेक्षा यह थी कि एक कार्यशाला की तरह विचार-विमर्श के बाद कुछ ठोस बातें निकल कर आयेंगी, जिनको एक संस्तुति के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा। मुँह का स्वाद उसी समय कड़ुवा हो गया जब जल्दी ही पदमुक्त हो रहे स्थानीय विधायक प्राधिकरण समेत सारे शासन-प्रशान और नागरिक की कमियाँ गिनाने लगे, जिनके लिये वे खुद भी जिम्मेदार ठहराये जा सकते हैं। उनके पाँच वर्षों के कार्यकाल का कोई ऐसा उदाहरण नहीं है, जिससे सुशासन में उनकी भागीदारी दिखाई पड़ती हो। वे सबको गलत बताते हुए इस प्रकार भाषण दे रहे थे कि अपना काम-धाम छोड़कर सभागार में बैठे मुझ जैसे लोगों को यह अपराध बोध होने लगा कि इस नगर की दुर्दशा के लिये हम ही जिम्मेदार हैं। उनका सम्भाषण इस नुक्ते पर समाप्त हुआ कि अब तक जो हो गया सो हुआ, अब आगे सब कुछ ठीक हो जाना चाहिये। वे किसे बचाना चाहते थे और भविष्य के किस नैनीताल की उन्हें चिन्ता थी, ये वही जानें। दरअसल उत्तराखंड में कमोबेश हर आदमी, जिसमें पत्रकार आदि बुद्धिजीवी भी शामिल हैं, नेताओं की तरह प्रलाप करते रहते हैं। माईक पकड़ते ही देर अपने दिल के छाले दिखाते हैं और सुनने वालों को गाड़ी में भर कर लाए गये ट्टुओं की तरह भाषण पिलाते हैं।

नगर चिंतन की इस बैठक में आगे चलकर कुछ जमीनी मुद्दे भी उभर कर आये, लेकिन तब तक प्राधिकरण के सचिव मैदान छोड़कर जा चुके थे। अगर उपस्थित भी रहते तो भी ग्रीन बैल्ट के कट चुके पेड़ तो दुबारा उग नहीं सकते थे। कार्यक्रम में कुछ वक्ताओं का कहना था कि 73वें और 74वें संविधान में नैनीताल बचाने का मंत्र छुपा हुआ है। इसके लागू होने से नगरपालिका इतनी सशक्त हो जायेगी कि अतिक्रमण रुक जायेंगे और अवैध निर्माण ढहा दिये जायेंगे। यह बहुत दूर की कौड़ी है, विशेषकर इस हालात में जबकि नगरपालिका ने बावजूद जेएनयूआरएम के फण्ड के, नगर में एक टॉयलेट, थूकदान या बारातघर जैसी किसी जन सुविधा का निर्माण नहीं किया। वे पैसे का किस प्रकार सदुपयोग करते हैं, ये जानना रोचक होगा। भूलिये मत कि पत्नियों को ग्राम प्रधान बनवा, उनकी मुहर अपनी जेब में रखकर घूमते भविष्य के विधायकों के हाथों महिला आरक्षण का गला घुटते देखा जा सकता है। नगरपालिका नक्शे पास करने के कितने पैसे खाएगी ये तब पता चलेगा, जब उसके पास पॉवर आयेगी। चिन्तकों का ये भी कहना था कि लोकपाल कानून बनने से कुछ नहीं होगा। उन्हें निश्चित रहना चाहिये, हमारा लोकतंत्र सामंतवादी ताकतों के पास गिरवी पड़ा है। लोकपाल तो प्रगतिशील और जीवंत जनतंत्र का प्रतीक है। नैनीताल या इस जैसे नाजुक इकोतंत्र को बचाने में लोकपाल या संविधान संशोधनों की क्या भूमिका हो सकती है, ये तो समय ही बतायेगा किन्तु इनके इंतजार में शहर को बर्बाद होते नहीं देखा जा सकता।

नगर चिंतन कार्यशाला अगर मात्र कोई खानापूर्ति न हो तो आयोजक बधाई के पात्र हैं। जहाँ तक नैनीताल का प्रश्न है आप खूब थूकिये, चाहे जहाँ मूतिये, नालों के ऊपर मकान बनाइये, नालियों को पाट कर बन्द कर दीजिये, प्रेशर हॉर्न बजाकर बूढों-बच्चों को आतंकित करते हुए पहाडि़यों को हिला दीजिये, बजट खर्च करने को माल रोड पर कैट्स आई ठोंकिये, पेड़ों को दीवारों में चुनिये या काट दीजिये, संविधान संशोधनों के लागू होने की प्रतीक्षा कीजिये या अपनी संवेदनशीलता को जगा कर नैनादेवी के इस प्रांगण को साफ रखिये, बचाइये!

नैनीताल आपका है, जैसा चाहें रखें।

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