चुनाव 2012 में मुस्लिम व दलित
लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: :January 17, 2012 पर प्रकाशित
चुनाव 2012 में मुस्लिम व दलित
लेखक : नैनीताल समाचार :: :: वर्ष :: :January 17, 2012 पर प्रकाशित
प्रवीण कुमार भट्ट
उत्तराखंड राज्य बनने के 11 साल बाद भी मुस्लिमों के प्रति रवैये में खास तब्दीली नहीं आई है। पिछली विधानसभा में चार मुसलमान विधायक चुनकर आए। बसपा से मंगलौर से काजी निजामुद्दीन, बाहदराबाद से मोहम्मद शहजाद एवं लालढांग से हाजी तस्लीम अहमद विधायक बने। लेकिन विपक्ष में रहने के कारण इनका कोई लाभ अल्पसंख्यक वर्ग नहीं उठा पाया। वैसे तो बसपा ने राज्य विधानमण्डल दल का नेता भी मोहम्मद शहजाद को बनाया, तथापि किसी मुस्लिम प्रतिनिधि को राज्य में मंत्री बनने का मौका अब तक नहीं मिल सका है। इस बार सत्तारूढ़ भाजपा हो या पिछली बार कांग्रेस, किसी से भी इस अल्पसंख्यक समुदाय के किसी प्रतिनिधि के चुन कर न आ पाने के कारण कोई मंत्री नहीं बन सका।
वैसे तो मुसलमान पूरे प्रदेश में बिखरे हैं, लेकिन नैनीताल, उधमसिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून की कई विधानसभा सीटों पर मुसलमानों की प्रभावशाली उपस्थिति है। इसके बावजूद दोनों मुख्य राजनैतिक दल मुसलमानों को टिकट देने में आनाकानी करते रहे हैं। इस बार चुनावों में हरिद्वार-रुड़की के पीरान कलियर एवं देहरादून जिले के सहसपुर सीट से मुस्लिमों को टिकट देने का दबाव कांगे्रस में बढ़ रहा है।
राज्य के उधमसिंह नगर जिले में 20 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है तो हरिद्वार में 37 प्रतिशत। नैनीताल में 15 प्रतिशत और देहरादून में दस प्रतिशत मुसलमान हैं। राज्य की सत्तर में से दस सीटों पर मुसलमान निर्णायक भूमिका निभाता है। उधमसिंह नगर के सितारगंज, किच्छा, जसपुर, नैनीताल के कालाढूंगी, हल्द्वानी, हरिद्वार के बाहदराबाद, मंगलौर, पीरान कलियर, लालढांग, देहरादून के सहसपुर सीटों पर मुस्लिम मत निर्णायक स्थिति में हैं। इसके बावजूद न तो भाजपा ने अब तक मुसलमान को टिकट दिया, न ही कांग्रेस ने। इस बात को अब इन दोनों दलों से जुड़े मुसलमान कार्यकर्ता मुद्दा बना रहे हैं।
इधर कांग्रेस द्वारा दलित सम्मेलनों में दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा से उत्साहित दलित कांग्रेस के साथ इस बार जोर-शोर से जुटे दिख रहे हैं। उन्हें आशा है कि कांग्रेस ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में यशपाल आर्य के हाथों कमान सौंपी तो पाँच लोकसभा सीटों पर कांग्रेस का परचम लहराया। अब विधानसभा चुनाव की बारी है।
राहुल के चुनावी शंखनाद को राज्य में हुई रैली में दलित जबरदस्त संख्या में उमड़कर आए। हालांकि प्रदेश में दलित मतदाता कांग्रेस के साथ ही रहे हैं। बसपा ने राज्य के दो जिलों हरिद्वार और उधमसिंहनगर में कुछ पकड़ जरूर बनाई। लेकिन पहाड़ का शिल्पकार कांग्रेस या भाजपा के साथ ही रहा है। कांग्रेस ने अपनी सरकार में दलित को मंत्री और स्पीकर तो बनाया, लेकिन इस बार दलित मुख्यमंत्री के रूप में प्रदेश की सत्ता पर काबिज होने का ख्वाब बुन रहे हैं। दलितों का रोष भाजपा से यही है कि सत्तासीन होने पर वह नेतृत्व में दलितों को भागीदारी नहीं देती। इस चुनाव में कुल 15 सीटें, 13 सीटें अनुसूचित जाति के लिए और दो अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। प्रदेश की सत्ता की चाबी उसी के हाथ लगती है, जिसके साथ आरक्षित सीटों से जुडे़ सर्वाधिक जनप्रतिनिधि आते हैं। विडम्बना देखिए कि इसके बावजूद दलित प्रदेश को नेतृत्व देने लायक नहीं बन पाए। यह रोष दलित नेताओं में साफ दिखता है।
राज्य की सुरक्षित घोषित की गई सीटों के अलावा भी राज्य की आधा दर्जन से अधिक ऐसी सीटों पर दलित ही निर्णायक स्थिति में हैं। कांग्रेस के प्रदेश सचिव सुमेर चंद रवि का कहना है कि इन सामान्य सीटों पर भी दलितों को टिकट देना चाहिए। लेकिन हकीकत यह है कि राज्य के स्पीकर रह चुके यशपाल आर्य, जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं, मुक्तेश्वर विधानसभा के समाप्त होते ही मैदान में जाकर किसी सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने को मजबूर हैं। जबकि वे सामान्य सीट से चुनाव लड़कर जीत सकते हैं।
दलित चिंतक एवं शिल्पकारों के बीच काम कर चुके महेश चंद्र डोनिया के अनुसार आरक्षण के खिलाफ शुरू हुए आंदोलन के बाद अस्तित्व में आने वाले इस राज्य के दलित एवं शिल्पकार कांग्रेस से यही उम्मीद लगाए बैठे हैं कि शायद इस बार यह राजनीतिक भूल दुरुस्त करे और किसी दलित को राज्य का ताज सौपे। उत्तराखंड समता आंदोलन ने भी 'उत्तराखंड में दलित मुद्दों की पहचान' नाम से एक मुहिम चलाकर दलित घोषणा पत्र तैयार किया है। समता आंदोलन के संयोजक प्रेम पंचोली का कहना है कि दलितों का मंदिरों में प्रवेश, दलितों के साथ बढ़ती हिंसा, आरक्षण के बावजूद 15 हजार से अधिक पदों का खाली होना जैसे अनेक मुद्दे इस घोषणा पत्र में शामिल किए गए हैं।
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