Tuesday, 20 March 2012 10:42 |
अंबरीश कुमार दरअसल, सारा मामला छवि का है। मुलायम की छवि ध्वस्त कर मायावती सत्ता में लौटी थीं पर उन्होंने और उनके मंत्रियों ने जो किया, उसके चलते बसपा की नई छवि बनी। वह बसपा जिसका मजबूत दलित जनाधार कांशीराम ने तैयार किया था और एक नया राजनीतिक एजंडा मायावती को थमाया था, उसे मायावती ने खुद, उनके दो चार अफसरों और दर्जनों मंत्रियों ने ध्वस्त कर दिया। इस बार तो उनका सर्वजन गया और गैर जाटव वोट बैंक भी दरक गया। यह खतरे का संकेत है। उससे ज्यादा जोखिम भरा रास्ता समाजवादी पार्टी का है। मुलायम सिंह के साथ जब यह संवाददाता आजमगढ़ की बड़ी रैली से लौट रहा था, तो रास्ते में बलराम यादव ने मुलायम से कहा था-नेताजी, यह भीड़ इस कुशासन के खिलाफ आई है। अगर हम भी इस रास्ते पर चले, तो अगली बार यह जनता हमें भी सत्ता से बेदखल कर देगी। यह बात मुलायम अच्छी तरह जानते हैं। जब से यह चर्चा तेज हुई कि अखिलेश यादव मुख्यमंत्री जरूर है पर समूची कैबिनेट मुलायम सिंह की है, तब से मुलायम की भी जिम्मेदारी काफी बढ़ गई है। जब अमरोहा के मंत्री महबूब अली के स्वागत में राइफल और कट्टे निकले, तो फिर खुद मुलायम सिंह को यह तेवर दिखाना पड़ा। उत्तर प्रदेश की राजनीतिक संस्कृति में हथियारों का काफी महत्त्व है। इस पर अगर अंकुश लगाने का प्रयास अखिलेश यादव के राज में न हुआ, तो उनका रास्ता भी आसान नहीं होगा।
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Tuesday, March 20, 2012
अखिलेश की सरकार पर मुलायम का चाबुक
अखिलेश की सरकार पर मुलायम का चाबुक
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