Monday, November 14, 2011

“लंपट” सिविल सोसाइटी कानून कैसे बना सकती है?

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"लंपट" सिविल सोसाइटी कानून कैसे बना सकती है?

10 November 2011 14 Comments

एनडीटीवी इंडिया पर लोकपाल पर बहस के दौरान मनीष सिसोदिया की एक अनायास टिप्‍पणी को सायास और सवर्ण दुराग्रह मानने की अपील के साथ वरिष्‍ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने फेसबुक पर एक स्‍टैटस लगाया। कहा कि ये लंपट देश को हांकना चाहते हैं। लेकिन दिलीप मंडल की ही टिप्‍पणी को आधा-अधूरा और भ्रम फैलाने वाला बताते हुए वरिष्‍ठ टीवी पत्रकार और निवेश मंथन के संपादक राजीव रंजन झा ने उनसे बहस की। आइए, देखें‍ कि इस बहस में कौन अपनी बात कायदे से रख रहा है और कौन अपना आपा खो रहा है : मॉडरेटर

♦ दिलीप मंडल

सवर्ण सिविल सोसायटी ने कहा है कि "सरकारी योजनाओं के भ्रष्टाचार के मामलों में अगर दलित और कमजोर वर्गों के लोग पकड़े जाएं तो उन्हें दोगुने साल के लिए जेल में भेजा जाए… इससे हमारा काम खत्म हो जाएगा।" सही-सही शब्दश: सुनने के लिए वीडियो में 39:00 मिनट से 40:00 मिनट का अंश सुनें। संदर्भ समझने के लिए वीडियो देखें।

राजीव रंजन झा

मनीष सिसोदिया : हरीश जी, जितने मुद्दे आप उठा रहे हैं, वे सारे के सारे सरकारी असफलता के मुद्दे हैं। अगर योजनाएं दलित तक नहीं पहुंच रही हैं, तो वह सरकार की असफलता है। और सरकार ने उस योजना में चोरी करने वालों के खिलाफ जेल भेजने का कानून नहीं बनाया। गांव के रहने वाले दलित को जब अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, वृद्धावस्था पेंशन लेने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है, वहां आपकी सरकार फेल। सरकारें फेल हुई हैं, आपकी भी हुईं, बराबर वालों (साथ में बीजेपी के प्रकाश जावड़ेकर बैठे हैं) की भी हुईं।

हरीश रावत : आपने कभी इन मुद्दों पर लड़ाई लड़ी है?

मनीष : यह सरकार की जिम्मेदारी थी कि सारी सुविधाएं वहां पहुंचतीं और ये सुविधाएं बिना रिश्वत दिये पहुंचतीं, बिना पेंशन काटे पहुंचतीं। नहीं पहुंच रही हैं, इसलिए लोकपाल की जरूरत पड़ी है। इन योजनाओं के पैसे की चोरी करने वालों को जेल भेजा जाए और हम तो ये भी कह रहे हैं कि अगर वह दलित वर्ग से है तो उसको दोगुने साल के लिए जेल भेजा जाए। अगर वो इकोनॉमिक वीकर सेक्शन से है, सोशल वीकर सेक्शन से है तो उसको दोगुने साल के लिए जेल भेजा जाए। यही तो बात हम कह रहे हैं। इतना आप कर दीजिए, हमारा तो काम खत्म हो जाएगा, हम तो अपनी नौकरियां करने लगेंगे।

राजीव रंजन झा

शायद मनीष सिसोदिया के खिलाफ लठ ले कर खड़े हो गये लोग चाहते हैं कि दलित योजनाओं के पैसे की चोरी की खुली छूट हो, क्योंकि मनीष तो चाहते हैं कि इन योजनाओं के पैसे की चोरी करने वालों को जेल भेजा जाए। लोग ठीक से सुनते नहीं, अब पढ़ ही लें। कोई कह देता है कि कौआ कान ले गया तो कान पर ध्यान देने के बदले कौए के पीछे दौड़ पड़ते हैं।

दिलीप मंडल

यह सरकार की जिम्मेदारी थी कि सारी सुविधाएं वहां पहुंचतीं और ये सुविधाएं बिना रिश्वत दिये पहुंचतीं, बिना पेंशन काटे पहुंचतीं। नहीं पहुंच रही हैं, इसलिए लोकपाल की जरूरत पड़ी है। इन योजनाओं के पैसे की चोरी करने वालों को जेल भेजा जाए और हम तो ये भी कह रहे हैं कि अगर वह दलित वर्ग से है तो उसको दोगुने साल के लिए जेल भेजा जाए। अगर वो इकोनॉमिक वीकर सेक्शन से है, सोशल वीकर सेक्शन से है, तो उसको दोगुने साल के लिए जेल भेजा जाए। यही तो बात हम कह रहे हैं। इतना आप कर दीजिए, हमारा तो काम खत्म हो जाएगा, हम तो अपनी नौकरियां करने लगेंगे।

दो गुने साल के लिए जेल क्यों?

राजीव रंजन झा

अगर दलित योजनाओं के पैसे की चोरी एक दलित व्यक्ति ही करे तो यह खुद अपने समुदाय के प्रति गंभीर अपराध नहीं है?

दिलीप मंडल

और जनलोकपाल सिर्फ उन संस्थाओं के लिए क्यों जहां सामाजिक विविधता है। बाकी क्यों नहीं।

राजीव रंजन झा

जब पुलिस का कोई व्यक्ति अपराध करता है तो अदालतें उस पर ज्यादा सख्त होती हैं, क्योंकि पुलिस के लोगों की जिम्मेदारी अपराध रोकने की है।

जनलोकपाल उन जगहों के लिए है, जहां सरकारी पैसा यानी जनता का पैसा खर्च हो रहा है।

दिलीप मंडल

NGO में बड़ा पैसा किसका है?

NGO के नाम पर केजरीवाल गैंग को मिर्गी का दौरा पड़ जाता है।

राजीव रंजन झा

जहां भी सरकारी पैसा खर्च हो रहा हो, उसका पूरा हिसाब जनता को मिलना चाहिए और उसमें कोई भ्रष्टाचार हो तो सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।

एनजीओ के बारे में खुद इस क्षेत्र के लोग कहते हैं कि 90 प्रतिशत एनजीओ भ्रष्ट हैं।

दिलीप मंडल

तो NGO जनलोकपाल में क्यों नहीं? इसका विरोध क्यों?

राजीव रंजन झा

एनजीओ को जो सरकारी अनुदान मिलेगा, वह किसी सरकारी विभाग से ही मिलेगा। सरकारी विभाग के अनुदान का लेखाजोखा अपने-आप जनलोकपाल के दायरे में आ जाएगा।

दिलीप मंडल

NGO का लेखाजोखा? डर किस बात से हैं?

राजीव रंजन झा

अगर कोई एनजीओ सरकार से पैसे नहीं ले रहा हो तो उसका लेखाजोखा आपको क्यों चाहिए?

वैसे भी एनजीओ को रिटर्न भरना ही होगा।

अब कहिए कि स्कूल लोकपाल के दायरे में क्यों नहीं, अस्पताल लोकपाल के दायरे में क्यों नहीं, कंपनियां लोकपाल के दायरे में क्यों नहीं, सारा देश लोकपाल के दायरे में क्यों नहीं…

मोटी सी बात है, जहां सरकारी पैसा लगे, उसमें भ्रष्टाचार का कोई मामला लोकपाल की जांच के दायरे में रखा जाए।

दिलीप मंडल

कंपनियों के इस्टिट्यूशनल इनवेस्टर्स में सरकारी बैंक और बीमा कंपनियां भी होती हैं।

राजीव रंजन झा

अगर उसमें गड़बड़ी होती है तो जांच भी होती है। यूटीआई का मामला भूल गये क्या?

दिलीप मंडल

जांच होती ही है, तो अलग से लोकपाल क्यों चाहिए?

राजीव रंजन झा

जहां भी सरकारी पैसा लगेगा, वहां कोई सरकारी संस्थान भी होगा। उस सिरे से चीजें पकड़ में रहेंगी। दूसरा सिरा भी पकड़ कर सारा जहान लोकपाल के माथे पर डालने की जरूरत क्या है?

अलग से लोकपाल क्यों? सारी बहस घूम कर वहीं लौट आयी! लोकपाल इसलिए कि जांच के मौजूदा सारे तंत्र सरकारी नियंत्रण में हैं और इस समय भ्रष्टाचार का मूल स्रोत सरकार ही बन गयी है। भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के सारे सरकारी तंत्र विफल रहे हैं, इसलिए एक स्वतंत्र जांच संस्था जरूरी है।

दिलीप मंडल

सरकार से नाराज हो गये तो आप उसे बदल सकते हैं। इंदिरा और अटल तक को आपने हराया है। केजरीवाल जैसों को हराने या हटाने का ऑप्शन ही नहीं है। ये गुंडागर्दी मचा देंगे।

लोकपाल की अवधारणा अलोकतांत्रिक है।

राजीव रंजन झा

केजरीवाल को लोकपाल नहीं बनाएंगे। ठीक है!

दिलीप मंडल

किरण बेदी?

राजीव रंजन झा

कैसे?

दिलीप मंडल

जस्टिस मुखर्जी, जस्टिस सब्बरवाल?

राजीव रंजन झा

चलिए, उनको भी नहीं बनाएंगे!

राजीव रंजन झा

लोकपाल का चुनाव मुझे या आपको या टीम अन्ना को नहीं करना है।

दिलीप मंडल

केजरीवाल को किसने हक दिया कि वह सरकार के साथ मिलकर कानून ड्राफ्ट करे। खासकर तब जबकि अण्णा कह चुके हैं कि कोर कमेटी में कमजोर तबकों को नयी कोरकमेटी में प्रतिनिधित्व देंगे। अप्रतिनिधि संस्था को सरकार ने क्यों बुलाया ड्राफ्टिंग के लिए।

शिशिर वोइके

वाह! दलितों के लिए कठोर क़ानून बनाने की जिस तरह से वकालत की जा रही है, स्पष्ट है कि मनुस्मृति लागू करने की साजिश चल रही है।

राजीव रंजन झा

ड्राफ्टिंग कमेटी सरकार ने बनायी है, उसमें सिविल सोसाइटी को सरकार ने आमंत्रित किया है।

शिशिर वोइके

राजीव जी, विष परीक्षा हर बार दलित को ही क्यों?

राजीव रंजन झा

मैं सिविल सोसाइटी (नाम के किसी संगठन) का सदस्य नहीं हूं। मुझे जो बात ठीक लगती है, उसे ठीक कहता हूं। आप भी लोकपाल का अपना रूप सामने रखें, जो बात ठीक लगेगी उसका समर्थन करूंगा।

शिशिर जी, मनीष सिसोदिया ने जो कहा है, उस पर ऊपर लिख चुका हूं।

दिलीप मंडल

सिविल सोसायटी है क्या, और सरकार ने इसके प्रतिनिधि के नाम पर पांच लोगों को कैसे बुलाया। आपने उन्हें वोट दिया था। अब तो अण्णा खुद कह रहे है कि हमारी टीम में सबका प्रतिनिधित्व नहीं है।

राजीव रंजन झा

मनीष ने कहा है कि दलितों के लाभ के लिए बनी योजनाओं के पैसे की चोरी करने वालों को जेल भेजा जाए। वे ऐसा नहीं कह रहे कि सवर्णों को इन योजनाओं में चोरी की छूट रहे और दलितों को ऐसा करने पर जेल भेजा जाए। लेकिन अगर दलित योजनाओं के पैसे की चोरी एक दलित व्यक्ति ही करे तो क्या यह खुद अपने समुदाय के प्रति गंभीर अपराध नहीं है? इस संदर्भ में वे कह रहे हैं कि अगर एक दलित ही इन योजनाओं में चोरी करे तो उसे दोगुनी सजा दे दीजिए। वैसे ही, जैसे एक पुलिसकर्मी जब चोरी करे तो अदालत को उस पर ज्यादा सख्त होना चाहिए।

सिविल सोसाइटी क्या है, इसका जवाब वही देंगे। मुझे नहीं पता।

दिलीप मंडल

दलितों और कमजोर वर्गों के अफसरों को दोगुनी सजा क्यों। IPC से देश चलेगा या मनु के विधान से?

शिशिर वोइके

दिलीप जी, भ्रष्ट केजरीवाल को काले झंडे दिखाने पर तो लोग पीट दिए जाते हैं, भ्रष्ट लोकपाल को हटाने की बात सोचेंगे भी तो मार ही डाले जाएंगे। ये चाहते हैं कि देश की जनता और संसद सवर्ण लोकपाल के सामने हेल हिटलर की मुद्रा में खड़ी रहे।

दिलीप मंडल

पीट दिया। अब उपवास करके शुद्धि कर रहे हैं!!!

ये लफंगे देश चलाना चाहते हैं।

राजीव रंजन झा

चलिए, लगता है आपके तर्क समाप्त हुए!

दिलीप मंडल

लंपट सिविल सोसायटी के हाथ में कानून ड्राफ्ट करने का दायित्व कैसे सौंपा जा सकता है।

शिशिर वोइके

अच्छा, राजीव जी..। दलित को दलित योजनाओं में पैसा खाने के लिए दोगुनी सजा मिले, दलितों को निपटाने का तो उत्तम फार्मूला सोच लिया है आपने। ये फार्मूला दलित प्रतिनिधित्व को विभिन्न योजनाओं से हटाने के लिए भी प्रयोग किया जाएगा। बढ़िया है।

पर कृपया स्पष्ट करें कि सवर्णों को किन योजनाओं में दोगुनी सजा देना चाहेंगे आप? कैटेगरी वाइज बताइएगा। देना चाहेंगे भी या नहीं, ये भी बताइएगा।

राजीव रंजन झा

मैं सिविल सोसाइटी का सदस्य नहीं हूं। यह जवाब आपको या तो वे लोग ही देंगे या सरकार देगी। वैसे आपको याद दिला दूं कि किसी को इस तरह लफंगा और लंपट कहना, वह भी फेसबुक जैसे सार्वजनिक मंच पर, कानूनन गलत है। आप जैसे वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षक से इसकी आशा नहीं की जाती।

दिलीप मंडल

सिविल सोसायटी मानहानि का मुकदमा कर दे। लेकिन सिविल सोसायटी है क्या? मानहानि कानून में ट्रूथ इज डिफेंस की व्यवस्था है। नागपूर का वीडिया ट्रूथ है। इसलिए सिविल सोसायटी यह केस नहीं करेगी।

दिलीप मंडल

दलितों और कमजोर तबकों के अफसरों को कब दोगुनी सजा हो, यह व्यवस्था तो सिविल सोसायटी के पास हैं। लेकिन सवर्ण अफसर को कब दोगुनी सजा होगी, होगी भी या नहीं, इसका कोई प्रावधान उनके पास नहीं है।

दिलीप मंडल

शिशिर वोइके, धन्यवाद।

शिशिर वोइके

सिविल सोसाइटी के कृत्यों की तो पुरजोर वकालत कर रहे हैं आप राजीव जी। वकील का फ़र्ज है मुवक्किल पर उठे सवालों के जवाब देना। जवाब दीजिए।

दिलीप मंडल

राजीव, अगर आप भी सिविल सोसायटी नहीं हैं, में भी नहीं हूं, शिशिऱ भी नहीं हैं, तो ये सिविल सोसायटी है क्या? और इसमें कौन लोग हैं।

राजीव रंजन झा

सिविल सोसाइटी ने मुझे वकील नहीं बनाया। लोग मुझे अपना वकील बनाने का जोखिम नहीं उठा सकते, क्योंकि वकील को बस अपने मुवक्किल के पक्ष की बात कहनी होती है, जबकि मैं उनकी गलत बात को भी तुरंत गलत बोल दूंगा।

राजीव रंजन झा

अगर दलित योजनाओं के पैसे की चोरी एक दलित व्यक्ति ही करे तो यह खुद अपने समुदाय के प्रति गंभीर अपराध नहीं है? ऐसे व्यक्ति पर आपको क्या बड़ा प्रेम उमड़ेगा?

राजीव रंजन झा

धन्यवाद दिलीप जी, आपको मेरी इतनी बातों में कोई तो बात पसंद आयी :)

दिलीप मंडल

कानून के हिसाब से उसे सजा मिलनी चाहिए। समुदाय के आधार पर दोगुनी या तीन गुनी सजा का मैं सख्त विरोधी हूं। आप सब होंगे।

दिलीप मंडल

समुदाय, जाति, धर्म, संप्रदाय के आधार पर दंड का निर्धारण का मतलब है बर्बर दौर में वापसी।

शिशिर वोइके

दिलीप जी… अरे सर, धन्यवाद कहकर शर्मिंदा न करें। धन्यवाद तो मुझे आपको देना चाहिए कि आप पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, दलितों के मुद्दों को आवाज दे रहे हैं। इन वर्गों को मंच दे रहे हैं पत्रकारों, साहित्यकारों, जनप्रतिनिधियों के समक्ष अपनी बात रखने का। वरना मीडिया ने तो हमें कभी कुछ समझा ही नहीं था।

राजीव रंजन झा

फिर तो जब अदालतें एक अपराधी पुलिसकर्मी पर ज्यादा सख्त होती हैं, तो क्या आप उसके भी सख्त विरोधी होंगे? पुलिसकर्मियों को ज्यादा सजा दी जाये, यह किसी कानून में नहीं लिखा है। यह स्थितियों की विवेचना की बात है। न्यायाधीश स्थितियां देख कर अपने विवेक का प्रयोग करते हैं। एक ही अपराध पर किसी को 2 साल और किसी को 7 साल की सजा क्यों होती है? यहां भावना की बात है। मनीष की भावना यह है कि दलितों के लाभ के लिए बनी योजनाओं में अगर एक दलित ही चोरी करे, तो यह ज्यादा बड़ा अपराध है। क्या आप इस भावना से असहमत हैं?

शिशिर वोइके

अपने से पिछड़े समुदाय का अहित करने वाले को चार गुनी सजा होनी चाहिए। अपने से पिछड़ों का अहित करना सबसे बड़ा अपराध है। आप ये फार्मूला स्वीकार करें, हम आपका फार्मूला स्वीकार कर लेते हैं।

दिलीप मंडल

शिशिर वोइके जी, आपके तर्क बेहद दमदार हैं। आभार।

राजीव रंजन झा

बिल्कुल ठीक। निर्बल को न सताइये, जाकी मोटी हाय।

शिशिर वोइके

दिलीप जी… बस सर, आप लोगों को पढ़-सुनकर ही सीख रहे हैं। शुक्रिया।

राजीव जी… बस आपका उपरोक्त कमेंट हम मनीष सिसौदिया के मुंह से सुनना चाहते हैं। वर्ना उम्मीद मत कीजिए कि सिर्फ दलितों-पिछड़ों को टार्गेट करके की गयी इस बयानबाजी के लिए हम उन्हें माफ करेंगे।

राजीव रंजन झा

मनीष सिसोदिया की बात सुन कर मुझे जो भावना समझ में आयी, वह मैंने लिख दिया। मुझे लगा कि उनकी बात को गलत समझा जा रहा है। बाकी आप उन्हें माफ करें या न करें, इससे मेरी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

शिशिर वोइके

एक ही वर्ग को टार्गेट करके कही गयी बात का समर्थन करने आप यहां तक पहुंच गये। सेहत पर फर्क तो पड़ा ही होगा। खैर… अंत भला तो सब भला। आपकी सेहत के लिए शुभकामनाएं।

राजीव रंजन झा

मनीष का कथन एक वर्ग को टार्गेट करने वाला नहीं, उससे सहानुभूति रखने वाला है। जब इतना लिखने के बाद भी आप उस बात को समझने के लिए तैयार नहीं है, तो जाहिर बात है कि मैं किसी पहले से भरे हुए घड़े में पानी डालने की कोशिश कर रहा था।

शिशिर वोइके

वाह! क्या सहानुभूति है साहब? जिसने 'सह' रहकर 'सहा' न हो वही इस तरह से 'अनुभूत' कर सकता है।

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