Monday, June 6, 2016

शून्य से भी कम अंक पाने वाले भी बनेंगे इंजीनीयर तो ऐसे इंजीनियर किस काम के होंगे? एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर पद पर ओबीसी आरक्षण ख़त्म। সব পরীক্ষার্থীকেই ভর্তির সুযোগ ইঞ্জিনিয়ারিংয়ে বেসরকারি কলেজে আসন ভরাতে নেগেটিভ নম্বর পাওয়া পড়ুয়াদেরও র‌্যাঙ্ক, ক্ষুব্ধ শিক্ষামহল एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास हस्तक्षेप

शून्य से भी कम अंक पाने वाले भी बनेंगे इंजीनीयर तो ऐसे इंजीनियर किस काम के होंगे?

एसोसिएट प्रोफेसर व प्रोफेसर पद पर ओबीसी आरक्षण ख़त्म।

সব পরীক্ষার্থীকেই ভর্তির সুযোগ ইঞ্জিনিয়ারিংয়ে

বেসরকারি কলেজে আসন ভরাতে নেগেটিভ নম্বর পাওয়া পড়ুয়াদেরও র‌্যাঙ্ক, ক্ষুব্ধ শিক্ষামহল


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

हस्तक्षेप

स्वयंपोषित मुनाफावसूली के शिक्षा बाजार में उच्चशिक्षा के लिए अब प्रतियोगिता परीक्षा में रोलनंबर और एडमिट कार्ड हासिल करने के बाद निमित्तमात्र परीक्षा में बैठने की औपचारिकता भर निभानी है और ऐसी प्रवेश परीक्षा में शून्य से नीचे भी उनका अंक हो तो डाक्टरी इंजीनियरिंग के लिए उनका दाखिले की गारंटी है।ऐसा नायाब बंदोबस्त फिलहाल बंगाल में दीदी की सत्ता में वापसी के बाद हो गया है।बाकी राज्यों का हाल हम नहीं जानते।


बंगाल के निजी इंजीनियरिंग कालेज में छात्रों का टोटा पड़ गया है तो उद्योग बंधु सरकार ने नायाब तरीका निकाला है कि ज्वाइंटइंजीनियरिंग परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्तियों के अंक चाहे शून्य से कम क्यों न हों,उन सभी के लिए इंजीनियरिंग कालेजों के सिंहद्वार खुले हुए है और अभिभावकों की जेबें भारी हैं या स्वयंवित्त पोषित योजनाओं के तहत छात्र क्रज हासिल कर लें तो इन महंगे निजी इंजीनियरिंग संस्थानों में शून्य से भी कम अंक के बावजूद न उनका दाखिला तय है बल्कि वे इंजीनियर भी बन जायेंगे।


शून्य से भी कम अंक पाने वाले भी बनेंगे इंजीनीयर तो ऐसे इंजीनियर कस काम के होंगे?


डब्ल्यूबीजेइइ के अध्यक्ष सजल दासगुप्ता ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि इस बार परीक्षा में बैठनेवाले सभी छात्रों को रैंक कार्ड दिया जायेगा। भले ही कुछ छात्रों के कम अंक आये हों, लेकिन नतीजों में सभी छात्रों को रैंक कार्ड दिया जायेगा।


डब्ल्यूबीजेइइ के अध्यक्ष बताया कि यह रैंक कार्ड छात्र बोर्ड की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते हैं। सभी छात्रों का नाम मेरिट लिस्ट में शामिल किया जायेग। साथ ही अधिक व कम अंक पानेवाले सभी छात्रों की काउंसेलिंग की जायेगी।


गौरतलबहै कि  डब्ल्यूबीजेइइ की गुणवत्ता बढ़ाने व छात्रों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस बार बोर्ड ने एक सुझाव बॉक्स भी तैयार किया था, जिसमें छात्रों व शिक्षकों के सुझाव मांगे गये थे। इसी आधार पर परीक्षा के प्रश्नपत्र के पैटर्न व आवेदन की प्रक्रिया में बदलाव किया गया था।


यह दावा भी गौरतलब है कि  राज्य में हाल ही में स्थापित इंजीनियरिंग कॉलेजों में एआइसीटीइ (ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन) के मापदंड के अनुसार गुणवत्ता व वेस्ट बंगाल यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के एफिलिएशन के आधार पर उनके कामकाज पर निगरानी की जा रही है।


इस पर तुर्रा यह कि  इस आधार पर जेइइ के छात्रों को कम रैंक आने पर भी अच्छे कॉलेजों में दाखिला मिल सकता है। गत वर्ष निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में 36 प्रतिशत सीटें खाली ही रह गयी थीं। उम्मीद है, इस बार कॉलेजों में सीटें रिक्त नहीं रहेंगी।

बांग्ला के प्रमुख अखबारों के मुताबिक शून्य से नीचे अंक पाने वाले भी रैंकिंग में होंगे और उन्हें बेशक निजी इंजीनियरंग कालेजों में दाखिला मिल जायेगा।




संपूर्ण निजीकरण और संपूर्ण विनिवेश से भारत अब शिक्षा का बाजार है और दुनियाभर के कारोबारी मशरुम की तरह कोचिंग सेंटर,एजुकेशन सेंटर,विश्वविद्यालय,मेडिकल औऱ इंजीनियरिंग कालेज की तर्ज पर नानाविध कोर्स चालू करके छात्रों और अभिभावकों से मनचाही फीस वसूल रहे हैं।


इन पर किसी तरह की निगरानी नहीं है।फैकल्टी है या नहीं है,कोई नहीं देखता।सिलेबस से लेकर पठन पाठन तक अनियंत्रित है और यह शिक्षा कारोबार का खुल्ला खेल फर्ऱूखाबादी है।


गौरतलब है कि इस बीच रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराजन ने चेतावनी भी जारी कर दी है कि गैरजरुरी डिग्रा से कुछभी हासिल नहीं होने वाला है।


ताजा खबर यह है कि यूजीसी ने अपनी ताज़ा अधिसूचना में कहा है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एसोसिएट प्रोफ़ेसर व प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण न दिया जाये। अनुसूचित जाति व जनजाति के लिए इन पदों पर आरक्षण जारी रहेगा।


इससे पूर्व सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ उड़ीसा और सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ केरल समेत विभिन्न यूनिवर्सिटियों में इन पदों पर भी ओबीसी को आरक्षण दिया जाता रहा है, जबकि दिल्ली यूनिवर्सिटी व जेएनयू में इसके लिए संघर्ष जारी था।


यह नया घटनाक्रम बहुत चिन्ताजनक है तथा न सर्फ मनुवाद की स्थापना की दिशा में उठाया गया कदम है, बल्कि वंचित समुदायों में फूट डालने की रणनीति का भी हिस्सा प्रतीत होता है।


गौरतलब है एक आरटीआई के अनुसार केंद्रीय विश्विद्यालयों में प्रोफ़ेसर पद पर ओबीसी से समुदाय से  आने वालों की संख्या उँगलियों पर गिनने लायक है।


जो सिरे से आरक्षण विरोधी हैं और निजीकरण का सिर्फ इसलिए समर्थन कर रहे हैं कि निजी क्षेत्र में आरक्षण और कोटा नहीं है,उनके लिे यह बहुत बड़ी खुशखबरी है कि राजनीति और सरकारी नौकरियों के मामले में आरक्षण और कोटा हो तो क्या शिक्षा के अबाध अनियंत्रित बाजार में उनके बच्चों के साथ न्याय होगा और बिना आरक्षण और कोटा के,बिना सरकारी शिक्षा संस्थानों के बहुसंख्यक जनगण के बच्चे उच्चशिक्षा से वंचित होकर सर्वशिक्षा जैसे सराकीर आयोजन की तरह साक्षर या तकनीशयन की तरह सत्तावर्ग की गुलामी में नत्थी हो जायेंगे और उनके बच्चों का भविष्य सोने से मढ़ा होगा।


योजनाबद्ध ढंग से शिक्षा अब क्रयशक्ति के आधार पर खरीदी जाती है और इसकी अर्थव्यवस्था सेल्फ फायनेसिंग है यानी अभिभावक मर खप पर पैसे का इंतजाम करें या छात्र सीधे बाजार या बैंक या नियोक्ताओं के पास अपना भविष्यगिरवी पर रखकर उच्चशिक्षा के साथ रोजगार हासिल करें।


कहीं भी किसी स्क्रीनिंग नहीं है और माध्यमिक उच्चमाध्यमिक परीक्षाओं में थोक के भाव सौ फीसद से लेकर अस्सी फीसद तक अंक हासिल करके सरकारी संस्थानों में स्थानाभाव की वजह से निजी संस्थानों मे महज क्रयशक्ति के आधार पर करोड़ों बच्चे दाखिला ले रहे हैं और इनमें से ज्यादातर बच्चे या तो सत्ता वर्ग से किसी न किसी तरीके से नत्थी है या जाति से सवर्ण हैं या बहुजनों के मलाईदार तबके के बच्चे ये हैं।इन संस्थानों की फीस और फीस के अलावा दूसरे खर्चइतने प्रबल हैं कि माध्यमिक उच्चमाध्यमिक तक अंग्रेजी सीखकर नौकरी पाने की जुगत में सबकुछ दांव पर लगाकर जो आम लोग अपने बच्चों को शत फीसद से लेकर अस्सी फीसद तक अंक हासिल करते देख फूला न समाये,उनकी औकात इन संस्थानों के स्वयंवित्त पोषित वातानुकूल बाड़ेबंदी में घुसने की होती नहीं है और क्रमशः जल जंगल जमीन आजीविका नौकरी और नागरिकता से भी वंचित इन बहुसंख्य आम लोगों के बच्चे इस अभूतपूर्व मेधा बाजार में घुस ही नहीं सकते।


पूरा खेल संपन्न और नवधनाढ्य अच्छे दिनों के वारिसान की जेब काटने का है,जो इस बंदोबस्त के सबसे बड़े समर्थक है और आरक्षण और कोटा के अंध विरोध में निजीकरण,विनिवेश,विनियमन और विनियंत्रण के अबाध आखेटगाह में अपने बच्चों को खुशी खुशी बलि चढ़ाने को तैयार हैं ताकि बहुजनों के बच्चों को उनके बच्चों के मुकाबले कोई मौका ही न मिले।




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