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Nilakshi Singh कायस्थ जाति में उत्पन प्रेमचंद ब्राह्मणवाद द्वारा सताए गए दलितों का दर्द समझ सकते थे क्योंकि कायस्थ भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था में शूद्र माने जाते हैं
कायस्थ जाति में उत्पन प्रेमचंद ब्राह्मणवाद द्वारा सताए गए दलितों का दर्द समझ सकते थे क्योंकि कायस्थ भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था में शूद्र माने जाते हैं
प्रेमचंद की एक कहानी है 'सद्गति'. कहानी में एक दलित अपनी पुत्री का लग्न निकलवाने पंडित के घर जाता है. पंडित उसे लकड़ी फाड़ने के काम में लगा देता है. वह दलित सारा दिन भूखा-प्यासा वहां लकड़ी फाड़ता रहता है और अंतत: वहीं पर उसके प्राण पखेरू उड़ जाते हैं. अब प्रश्न उसके अंतिम संस्कार का आता है. दलित लोग उसके शव को इसलिए नहीं छूते कि वह पंडित के यहां मरा था और पंडित महाराज उसे अछूत होने के कारण स्पर्श करना गंवारा नहीं करते. अंतत: किसी प्रकार पंडित महोदय उसके पैर में रस्सी बांधकर उसके शव को जंगल में फेंक आते हैं. 'सद्गति' में एक ब्राह्मण द्वारा एक दलित का शोषण किस प्रकार किया जाता है, यह बात बड़ी शिद्दत से प्रेमचंद ने उठाई है.
कायस्थ जाति में उत्पन प्रेमचंद ब्राह्मणवाद द्वारा सताए गए दलितों का दर्द समझ सकते थे क्योंकि कायस्थ भी ब्राह्मणवादी व्यवस्था में शूद्र माने जाते हैं. स्वामी विवेकानंद जब शिकागो धर्म संसद में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे तब यहाँ के ब्राह्मणों ने यह कह कर स्वामी विवेकानंद को अपना प्रतिनिधि मानने से इनकार कर दिया था कि विवेकानंद कायस्थ जाति के हैं जो शूद्र वर्ण में आती है और शूद्र को हमारे धर्म पर बोलने का कोई अधिकार नहीं है.
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