Thursday, July 6, 2017

बंगाल के बेकाबू हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात। इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक। अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है। पलाश विश्वास

बंगाल के बेकाबू  हालात राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता और अखडंता के लिए बेहद खतरनाक, चीनी हस्तक्षेप से बिगड़ सकते हैं हालात।
इजराइल से दोस्ती की प्रतिक्रिया में इस्लामी कटट्रपंथी भी अब हर मायने में गोरक्षकों के बराबर खतरनाक।
अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है।
पलाश विश्वास
बंगाल में जो बेलगाम हिंसा भड़क गयी है,राजनीतिक दलों की सत्ता की लड़ाई में उसके खतरे पक्ष विपक्ष में राजनीतिक तौर पर बंट जाने से बाकी देश को शायद नजर नहीं आ रहे हैं।
कोलकाता से लगे समूचे उत्तर 24 परगना जिला हिंसा की चपेट में है और पहाड़ में दार्जिंलिग में बंद और हिंसा का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा है।गोरखा जन मुक्ति मोर्चा ने  अंतिम लड़ाई का ऐलान कर दिया है और पहाड़ों में बरसात और भूस्खलन के मौसम में जनजीवन अस्तव्यस्त है।
दार्जिलिंग के बाद सिक्किम के नजदीक कलिंगपोंग में भी हिंसा और आगजनी की वारदातें तेज हो गयी है।
सिक्किम सही मायने में दार्जिलिंग जिला होकर वहां तक पहुंचने वाले रास्ते के अवरुद्ध हो जाने की वजह से बाकी देश से अलग थलग पखवाड़े भर से है जबकि सिक्किम सीमा पर युद्ध के बादल उमड़ घुमड़ रहे हैं।
इसी बीच चीन ने मोदी के साथ जी 20 बैठक में बहुप्रचारित शीर्ष बैठक से मना कर दिया है और इसके साथ कश्मीर की तरह सिक्किम में भी अलगाववादियों को समर्थन देने की धमकी दी है।
सिक्किम ही नहीं, गोरखालैंड आंदोलनकारियों को भी अलगाव के लिए चीन समर्थन कर सकता है।
मैदानों में जलपाईगुड़ी और अलीपुरदुआर जिले के आदिवासी बहुल इलाके भी आंदोलन के चपेट में आ जाने से उत्तर पूर्व भारत को जोड़ने वाला कुल 18 किमी का कारीडोर के भी टूट जाने का खतरा है जबकि असम और पूर्वोत्तर में अलगाववादी उग्रवादी तत्व भारत से अलगाव के लिए निरंतर सक्रिय है।उत्रपूर्वमें आजादी के बाद केंद्र सरकार की सारी राजनीति इन्हीं तत्वों के समर्थन से चलती है।
असम में जो सरकार बनी है,वह भी अल्फा के समर्थन से है और यह सरकार अल्फाई एजंडा के तहत राजकाज चला रही है।
बंगाल के हालात इसलिए राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंड़ता के लिए बेहद खतरनाक होते जा रहे हैं।जिसे नजरअंदाज करके संघ परिवार बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने के हालात बनाने में लगा है और गोरखालैंड आंदोलन को भी उसका खुल्ला समर्थन है।
कल हस्तक्षेप पर लगे हमारे पोस्ट पर हिंदी के जाने माने कथाकार कर्मेंदु शिशिर ने टिप्पणी की है कि मैंं ममता बनर्जी को क्लीन चिट दे रहा हूं जो खुद दंगा भड़काती हैं।
कृपया हस्तक्षेप के तमाम पुराने आलेख देख लें,हमने कभी ममता बनर्जी का समर्थन नहीं किया है।
हमारे लिए मसला ममता बनर्जी या वामपक्ष का नहीं है।यह सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा का मामला है।
लगातार तीन चार दिनों से उत्तर चब्बीस परगना में हिंसा भड़की हुई है।संघ परिवारे के लोग सोशल मीडिया में उग्र हिंदुत्व के एजंडा के मद्देनजर धार्मिक ध्रूवीकरण के लिए भड़काऊ अफवाहें फैला रहे हैं।बंगाल में हिंदुओ पर अत्याचार हो रहे हैं और बंगाल में हिंदू सुरक्षित नहीं है,यह थीम सांग है।
फोटोशाप का खुलकर इस्तेमाल दंगा भड़काने के लिए हो रहा है।ऐसे पोस्ट विदेशी जमीन से बी हो रहे हैं,जिनपर नियंत्रण लगभग असंभव है।
ताजा पोस्ट एक फिल्म के दृश्य को उत्तर 24 परगना में हिंदू औरतों पर अत्याचार के आरोप के साथ फिल्मकार अपर्णा सेन को संबोधित है।
तो दूसरी तरफ मुस्लिम कट्टरपंथी संगठित तरीके से हिंसा भड़काने में सक्रिय हैं,जिनपर वोटबैंक की राजनीति की वजह से पहले 35 साल तक वाम शासन ने कोई नियंत्रण नहीं किया और तृणमूल जमाने में उनके संरक्षण का हाल यह है कि उत्तर 24 परगना में हिंसा पर सफाई देते हुए इन कट्टरपंथियों को चेताननी देकर मुख्यमंत्री ने कहा है कि आपको हमने बहुत संरक्षण दिया हुआ है और अब हम इस दंगाई तेवर को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे।
ममता के बयान के मुताबिक सड़कों पर दंगाई भीड़ इतनी बड़ी तादाद में उमड़ रही है कि उन्हें तितर बितर करने के लिए पुलिस गोली चलाये तो सैकड़ों बेगुनाह मारे जायेंगे और इसलिए पुलिस प्रशासन लाठी गोली की बजाय बातचीत से भीड़ को शांत करने की कोशिश कर रही है।
दूसरी ओर दार्जिलिंग के पहाड़ों में गोरखा आंदोलनकारियों के साथ बातचीत की कोई पहल नहीं हो रही है।
पहाड़ और मैदान में विभाजन हो गया है।
चाय बागानों में मौत का उत्सव शुरु हो गया है।
गौरतलब है कि पहाड़ की गोरखा आबादी की रोजमर्रे की जिंदगी इन्हीं चायबागानों से जुड़ी हैं।सुबास घीसिंग से लेकर विमल गुरुंग तक तमाम नेता चाय बागानों से हैं।
गोरखालैंड के जवाब में सिलीगुड़ी में भी हिंसा हो रही है।इसके साथ ही बंगाल अब पूरी तरह हिंदू और मुस्लिम उग्रवाद के शिकंजे में हैं,जिनपर सरकार,प्रशासन और पुलिस का कोई नियंत्रण नहीं है।
हिंसा पर नियंत्रण के लिए अर्धसैनिक बलों की कंपनियां भेजने की मांग केंद्र सरकार खारिज कर रही है।
जाहिर है कि इसमें राजनीति हो रही है।
बाकी देश में आतंकी हमला होने के बावजूद बंगाल आतंकवादी हमलों से अब तक बचा रहा है।
क्योंकि बंगाल का आतंकवादी और कट्टरपंथी मुसलमान सुरक्षित कारीडोर की तरह इस्तेमाल कर रहे थे।
इन तत्वों पर पिछले चालीस सालों में कोई नियंत्रण खालिस वोटबैंक की राजनीति की वजह से नहीं हुआ है तो अब उन पर काबू पाना या उनका मुकाबला करना बेहद मुश्किल है।उत्तर 24 परगना के हालात इसीलिए बेकाबू है।जल्दी इस आत्मघाती हिंसा पर काबू पाने की केंद्र और राज्य सरकार और सभी राजनीतिक दल मिलकर पहल न करें तो पूरे बंगाल और पूरे पूर्वोत्तर भारत से लेकर बिहार में भी यह बेलगाम हिंसा संक्रमित हो सकती है।
इस बीच अमेरिका के बाद भारत इजराइल का भी रणनीतिक साझेदार बन गया है।पाकिस्तानी आईएसआई नेटवर्क को छोड़कर  भारत को अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवादी समूहों ने निशाना बनाने से परहेज किया है।लेकिन इजराइल से मुस्लिम और अरब देशों और इस्लाम के खिलाफ अमेरिकी युद्ध में इजराइल की सक्रिय और निर्णायक भूमिका के मद्देनजर यह समीकरण गड़बड़ाया हुआ नजर आ रहा है।
इस्लामी आंतकवादी समूह के स्लीपिंग सेल हमेशा दुनियाभर में सक्रिय हैं और भारत में भी वे बहुत बड़े पैमाने पर घुसपैठ कर गये हैं।इन तमाम तत्वों की भारतविरोधी गतिविधियां तेज होने की आशंका है।
पिछले कई बरस से दुर्गापूजा और मुहर्म पर बंगाल में चिटफुट सांप्रदायिक हिंसा होती रही है।लेकिन बंगाल में साहित्य और कला माध्यमों,लोकसंस्कृति,बाउल फकीर संत परंपरा के तहत भारत विभाजन के बावजूद गांव देहात में हिंदू और मुसलमान अमन चैन से रहते आये हैं और वे किसी तरह के उकसावे में नहीं आते और उन्हें अलग अलग पहचाना भी नहीं जाता।
मालदह और मुर्शिदाबाद जिलों में जनसंख्या लगभग बराबर होने के बावजूद इधर के वर्षों की छिटपुट वारदातों के अलावा सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास नहीं है।
कोलकाता में बड़ी संख्या में मुसलमान हैं और उत्तर और दक्षिण 24 परगना,हावड़ा,नदिया और हुदगली में बहुत सारे इलाकों में मुसलमानों की तादाद हिंदुओ के मुकाबले ज्यादा हैं।
फिरभी अमन चैन और साझा सांस्कृतिक विरासत और मातृभाषा बांग्ला की वजह से कोई बड़ी सांप्रदायिक वारदात नहीं हुई हैं।भारत विभाजन और शरणार्थी समस्या के शिकार देश के इस हिस्से में अमन चैन का माहौल काबिले  तारीफ रहा है।
उत्तर भारत,बाकी देश और बांग्लादेश में भी मंदिर मस्जिद विवाद की वजह से बार बार व्यापक पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा हाल के दशकों में होती रही है।
वाम शासन के 35 सालों में वैसी हिंसा की कोई वारदात बंगाल में नहीं हुई है।हाल के वर्षों में जो छिटपुट हिंसा होती रही है,उसपर पुलिस प्रशासन ने तुंरत काबू  पा लिया।
लेकिन पिछले तीन चार दिनों से उत्तर 24 परगना में हिंसा का तांडव मचा हुआ है।इस बीच कोलकाता में भी गड़बजड़ी फैलाने की कोशिश हुई,कटट्रपंथियों को तुरंत गिरफ्तार करके कोलकाता में हालात नियंत्रित कर लिया गया।
अब तक उत्तर 24 परगना के सीमावर्ती मुस्लिम बहुल इलाकों में सुंदरवन से सटे हिंगलगंज,बशीरहाट,बादुड़िया से लेकर सीमावर्ती वनगांव के देगंगा इलाकों तक हालात बेकाबू रहे हैं।
बादुड़िया में कर्फ्यू लगा है।
मुख्यमंत्री और राज्यपाल में टकराव होने के बाद भाजपा ने जोर शोर से बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है।केंद्र ने राज्यपाल से रपट मांगी है और राज्यपाल ने वह रपट भी भेज दी है।
ममता बनर्जी के कट्टर विरोधी वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बोस ने यह मांग उठते ही बाकायदा संवादाताओं को संबोधित करते हुए बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने का पुरजोर विरोध किया है। इसके साथ ही विमान बोस ने बंगाल में हाल की हिसां की वारदातों के संघ परिवार का गेमप्लान बताया है।
दार्जिलिंग में हिंसा भड़कने के तुरंत बाद हमने एक घंटे के वीडियो में बांग्ला में विस्तार से इस गेमप्लान के बारे में बताया है और सभी राजनीतिक दलों को सचेत रहने की चेतावनी दी है।
हमने ममता बनर्जी से विभाजन की राजनीति से बाज आने की अपील की थी और मौजूदा हालात को विपक्ष के सफाये और पहाड़ पर राजनीतिक कब्जे की उनकी महत्वाकांक्षा का परिणाम बताया था।इस वीडियो को अबतक करीब इक्कीस हजार से ज्यादा लोगों ने देखा है।
हस्तक्षेप पर लगे आलेखों में आप देख सकते हैं कि हम बंगाल में जाति,धर्म,भाषा,नस्ले के सभी क्षेत्रों में वर्चस्व के खिलाफ हमेशा मुखर रहे हैं।
महाश्वेता देवी से हमने दशकों पुराना अंतरंग रिश्ता सिर्फ इसलिए तोड़ दिया क्योंकि वे ममता बनर्जी की सरकार से नत्थी हो गयीं।उनकी वजह से नवारुण दा से भी हमारा संप्रक टूटा,जिसका हमें अफसोस है।
जाहिर सी बात है कि हमारे लिए यह सत्ता की राजनीति नहीं है और न यह ममता बनर्जी का मामला है।
हम इसे संघ परिवार का मामला भी नहीं मानते।हम शुरु से इसे राष्ट्रीय सुरक्षा,एकता और अखंडता का मामला मानते रहे हैं।
खासकर सिक्किम के हालात के मद्देनजर।चीन को भारत में हस्तक्षेप का अब तक कोई मौका नहीं मिला है।लेकिन सिक्किम में हस्तक्षेप करने की उसने खुल्ला ऐलान कर दिया है।
नेपाल और बांगलादेश के साथ भारत के संबंध अब वैसे नहीं रह गये हैं।खासकर नेपाल के रास्ते दार्जिलंग के पहाड़ों को सिक्किम के साथ अलग करने की गतिविधियों को चीन से हर तरह की मदद मिलने की आशंका है।ममता ने ऐसा आरोप लगाया भी है।
दूसरी ओर,अरुणाचल प्रदेश पर चीन ने अपना दावा नहीं छोड़ा।उस मोर्चे पर तनाव लगातार बना हुआ है।
उत्तराखंड में भी चीनी घुसपैठ होती रहती है।
हिमालय 1962 की लड़ाई में जख्मी हुआ है और अभ भी युद्ध हुआ तो हिमालय और हिमालयी जनता पर इसका सीधा असर है। उत्तराखंड में जमे,पले बढ़े होने की वजह से हमें सबसे ज्यादा फिक्र हिमालय की सेहत,जल संसाधन और पर्यावरण की है चाहे लोग हमें राष्ट्रद्रोही का तमगा देते रहे।
अगर बंगाल की हिंसक वारदातों को जल्द से जल्द नियंत्रित नहीं किया गया तो उत्तर पूर्व के अलग थलग पड़ने के नतीजे भारत की सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के लिए बेहद खतरनाक हो सकते हैं।
ममता बनर्जी की सरकार गिराकर या बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू करने से हालात पर राजनीतिक नियंत्रण रखना भी मुश्किल हो जायेगा।केंद्र सरकार इस पर गौर करें तो बेहतर।
हमारे ख्याल से वाम मोर्चा ने इसीलिए राष्ट्रपति शासन का विरोध किया है,जो इन हालात में एकदम सही है।
बाकी राजनीतिक दलों को भी अपने राजनीतिक हित के बजाये दार्जिलिंग के साथ बाकी बंगाल और समूचे पुर्वोत्तर में खतरे में पड़ी सुरक्षा और आंतरिक सुरक्षा के मद्देनजर कदम उठाने चाहिए। यह ममता का समर्थन नहीं है,राष्ट्रहित में ऐसा जरुरी है।
ममता बनर्जी ने संघ परिवार के दंगाई एजंडा के मुकाबले शांतिवाहिनी हर बूथ के स्तर पर बनाने का ऐलान किया है।
उन्होंने पंद्रह दिनों के भीतर साठ हजार शांति कमिटियां गैरराजनीतिक लोगों को लेकर बनाने का ऐलान किया है।
गोरक्षकों के तांडव के साथ साथ देश में मुस्लिम कट्टर पंथ के आक्रामक तेवर के मद्देनजर ऐसी शांति कमिटियां पूरे देश में बनें तो बेहतर।भाजपा की सरकारे भी ऐसी शांति कमिटियां बनायें तो और बेहतर है क्योंकि भाजपा शासित राज्यों से सांप्रदायिक हिंसा पूरे देश में संक्रमित हो रही है।
इस बीच आज बशीरहाट में दोबारा  हिंसा भड़क गयी है।जिसका सीधा मतलब है कि जुबानी जमाखर्च के अलावा जमीन पर शांति प्रक्रिया शुरु ही नहीं हो सकी है,जबकि पुलिस और प्रशासन की तरह से उत्तर 24 परगना में हिंदुओं और मुसलमानों को लेकर शांति बैठकें शुरु करने का दावा किया गया है।
अमन चैन के लिए साझा चूल्हे की विरासत बचाना बेहद जरुरी है,जो खतरे में है।कितने खतरे में है ,उसे समझने के लिए इस रपट पर गौर करें।
कोलकाता के बांग्ला दैनिक 'एई समय' (टाइम्स ऑफ इण्डिया ग्रुप) के पत्रकार ने बसिरहाट के मागुरखाली गाँव से रपट दी है - इस गाँव में हिन्दू-मुसलमान सैकड़ों साल से एक साथ रहते आ रहे हैं।
भजन-कीर्तन गाने वाले दल, हिन्दू -मुसलमान दोनों के घर-आँगन में गाते हैं। मस्जिद के सामने देवी-देवताओं की जय के नारे लगाते हैं।
इसी गाँव का 18 साल का युवा है - सौभिक सरकार, जिसकी एक धार्मिक घृणात्मक फेसबुक टिप्पणी ने आसपास के इलाकों में उत्तेजना फैला दी।
कुछ युवकों ने सौभिक के घर में आग लगाने की कोशिश की। मस्जिद कमिटि के अध्यक्ष अमीरुल इस्लाम ने उन्हें रोका।
बाद में बाहर से आये ढेरों युवाओं ने सरकार के घर पर हमला किया, जिसे गाँव के हिन्दूओं-मुसलमानों ने मिल कर रोका। मकसूद ने दमकल को खबर दे कर बुलाया।
बाहरी लोग आएं और गाँव के एक व्यक्ति के घर को आग लगा जाएँ, ऐसा कभी नहीं हुआ, कहा गाँव की गौरी मंडल ने।
कौन थे ये बाहरी हमलावर ...। "
(प्रसेनजित बेरा की रपट पर आधारित)

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