Monday, February 24, 2014

जल मल एकाकार,गर्मी से पहले पेयजल खरीदने को मजबूर,अब तो आक्सीजन भी खरीदना होगा

जल मल एकाकार,गर्मी से पहले पेयजल खरीदने को मजबूर,अब तो आक्सीजन  भी खरीदना होगा


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास


बंगाल के रोमांसप्रिय नागरिकों के लिए शीत उत्सव समाप्त प्राय है।वसंत की दस्तक होते न होते गर्मी की आंच सुलगने लगी है।बीच वसंत में ही नरकयंत्रणा की शुरुआत हो चुकी है।


जल मल एकाकार,गर्मी से पहले पेयजल खरीदने को मजबूर हैं लोग।


अब तो आक्सीजन भी खरीदना होगा,हालत ऐसी बन रही है। जलवायु और मौसम चक्र बदल रहे हैं तेज तेज। चावल और सब्जियों में आर्सेनिक हैं।गनीमत है कि आटा बाहर से आता है। मछलियां जिन पोखरो में पलती है,उसका जल भी आर्सेनिक।


पिछले लोकसभा चुनावों से जो परिवर्तन सुनामी का सिलसिला है,उसके तहत बंगाल में पैंतीस साल के वाम शासन के अवसान के बाद मां माटी मानुष की सरकार सत्ता में हैं।पंचायतों के बाद नगर निगमों और नगरपालिकाओं की सरकारे भी बदल गयी हैं।पानीहाटी नगरपालिका में करीब चालीस साल बाद सत्ता दल बदला है। तो कोलकाता के बाद हावड़ा में भी लाल का सफाया हो गया है। लेकिन नागरिक सेवाओं के मामले में हाल बेहाल है।कुछ भी नहीं बदला है।


महानगर कोलकाता ,माहनगर हावड़ा और उपनगरों में सत्ता बदल जाने के बावजूद नागरिक सेवाएं बेहतर होने  के लक्षण नहीं हैं। मौजूद हालात  जो बन रहे हैं और बने हुए हैं उससे परिस्थितयां बेलगाम हो जाने की ही आशंका है।


पूर्व कोलकाता और पश्चिम कोलकाता ही नहीं, बारासात कल्याणी से लेकर बारुईपुर सोनारपुर तक अब महानगर है। भले ही वह कोलकाता नगर निगम से बाहर हो।


इस व्यापक इलाके में बढ़ती हुई आबादी और महानगर  के सीमित दायरे में अंधाधुध बहुमंजिली निर्माण से सारी व्यवस्था टूटने के कगार पर है।


आर्थिक बदहाली की वजह से नागरिक सेवाएं सुधारने के लिए नया निवेश असंभव  है।


जलनिकासी अब एक बेहद असंभव समस्या हो गयी है। अब पेयजल की बारी है।


कोलकाता और हावड़ा नगरनिगम इलाकों के अलावा उपनगरों में भी गर्मी हो या बरसात पेयजल संकट बना रहता है और नागरिक त्राहि त्राहि करते हैं।


कोलकाता और उपनगरों में भी जलापूर्ति का सारा दारोमदार शताब्दी प्राचीन इंदिरा गांधी  पलता जल परियोजना पर निर्भर है।


अब बंगाल में नदी प्रबंधन की बदहाल तस्वीर सुंदरवन और उत्तर बंगाल से कोलकाता तक स्थानांतरित होने लगी है। हुगली नदी के कगार कोलकाता में लगातार कट रहे हैं और जिसकी शिकार हो रही है पलता जलपरियोजना।


कोलकाता नगरनिगम के इंजीनियरों के मुताबिक इसका कोई पुख्ता इंतजाम नहीं हो पाया तो पलता जलपरियोजना के गंगा गर्भ में समा जाने की आशंका है।


पुख्ता इंतजाम राज्यसरकार कर नहीं सकती। इसके लिए केंद्रीय मदद की दरकार है।


बंगाल में केंद्र में काबिज सत्तादल के नेताओं, मंत्रियों के राज्य नेतृत्व से जो मधुर संबंध हैं, उसके मद्देनजर समीकरण रातोंरात बदले बिना केंद्रीय मदद असंभव है। अब इंतजार कीजिये, इस बरसात या उस बरसात पलता परियोजना के अवसान का और सोचते रहे कि पीने को पानी कहां से मिलेगा!


हावड़ा में जल मल एकाकार है।शुद्ध पेयजल के मोहताज हावड़ावासियों ने वाम दलों को हावड़ा बाहर कर दिया। लेकिन पेयजल की हालत सुधरी हो ऐसा नहीं है। चालीस साल बाद सत्ता बदल के बाद हफ्तों से पानीहाटी के सोदपुर इलाके में जल मल एकाकार है।पेयजल खरीदकर दिन बीता रहे हैं लोग।कहीं कोई सुनवाई नहीं है।तो सोनारपुर राजपुर नगर पालिका में भी लोग पचास पचास रुपये में पानी खरीद कर दिन गुजार रहे हैं। सोदपुर में टाला का पानी बीस रुपये भाव बिक रहा है।फर्क इतना है।


नये कोलकाता लेकटाउन, राजारहाट, न्यू टाउन,साल्ट लेक तक गड़िया तक जो नये विकसित जनपद है,उसके लिए पेयजल सबसे बड़ी समस्या है।


गौरतलब है कि बंगाल में उद्योग और कारोबार का हाल जो भी हो, शहरीकरण बहुत तेज हुआ है। इसमें कोई दो राय नहीं है। लेकिन नागरिक सेवाओं के बिना असुरक्षित शहरीकरण से तबाह हैं लोग, इसमें भी दो राय नहीं हो सकती। बंद कल कारखानों की जमीन पर आवासीय कालोनियां बन गयी हैं तो खेती की जमीन पर महानगर कोलकाता और हावड़ा, दुर्गापुर, मालदह, सिलीगुड़ी,आसनसोल जैसे बड़े शहरों के साथ साथ छोटे शहरों और कस्बों का बहुत तेज विस्तार हुआ है।


जमीन और आवासीय परिसर की कीमतें आसमान छूने लगी हैं। कोलकाता का भूगोल उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम चारों  तरफ विस्तृत हुआ है। कोलकाता से जुड़े हावड़ा, बारासात, बारुईपुर, सोनारपुर से लेकर कल्याणी तक अंधाधुंध शहरीकरण हुआ है। राजमार्गों के किनारे कहीं एक इंच जमीन खाली नहीं है। सर्वत्र निर्माण और विस्तार की धूम मच गयी है। यही हालत दुर्गापुर,मालदह, मुर्शिदाबाद, सिलीगुड़ी, शांतिनिकेतन और आसनसोल की है। लेकिन नगर निगमों और पालिकाओं की ओर से नये आवासीय इलाकों की बात तो रही दूर साल्टलेक, राजारहाट और लेकटाउन जैसे आवासीय इलाकों में जनसुविधाओं का पर्याप्त इंतजाम नहीं किया गया है।



कोलकाता की अमरकथा तो विचित्र हैं ही।बार बार सत्ता बदल होते रहने के बाद भी पेयजल और निकासी की व्यवस्था दुरुस्त हो नही पा रही है।


कोलकाता से लेकर उत्तर के समस्त नगरों से टाला से पानी सप्लाई होती है।वह पानी बेहतर है। लेकिन वह पानी ल्रवत्र पहुंच ही नहीं पाता।जो स्थानीय पंप लगाये गये हैं,ज्यादातर जलापूर्ति उन्हीं से होती है।


मुश्किल यह है कि जहां टाला का पानी पहुंचता है और जहां वह पानी नहीं पहुंचता, निकासी बंदोबस्त की जर्जर दशा के लिए जल मल एकाकार होना आम बात है।


पेयजल मिले भी तो बीमारी का सबब बन रहा है पानी और लोग खरीदकर पानी पी रहे हैं।

नये कोलकाता में तो मिनरल वाटर की सप्लाई भी कम पड़ने की आशंका हो गयी है और शायद लोगों को शीतल पेय से ही प्यास बुझाने की नौबत आयेगी।


जो नये आवासीय परिसर बन रहे हैं,उसे म्युटेशन,निर्माण से लेकर कम्पीलशन सर्टिफिकेट तक लेने की प्रक्रिया में इतने स्तरों पर इतने लोगों को खिला पिलाकर खुश करने की नौबत आती है कि नागरिक सेवाेंएं बहाल करने की कहीं कोई प्राथमिकता है नहीं।


सड़कें हैं नहीं,परिवहन है नहीं और ऊपर से पेयजल भी नहीं है।


जब पेयजल भी शुद्ध नहीं है और हरियाली की तबाही है।पेड़ अंधाधुंध काटे जा रहे हैं।नदी, नालों,पोखरों और तालाबों में नयी कंक्रीट सभ्यता की नींव डाली जा रही है तो उनके वाशिंदों के लिए स्वस्थ जीवन सबसे बड़ी चुनौती है।


वाइरल बीमरियां चालू हो चुकी हैं।मलेरिया और डेंगु घात लगाकर बैठे है। आर्सेनिक से झुलस रहे हैं लोग। पेट और सांस की बीमारियों की चपेट में हैं कोलकाता से लेकर हावड़ा, सोनारपुर से लेकर बैरकपुर बारासात तक की दिन दूनी रात चौगुणी बढ़ती जाती शहरी आबादी।


पानी  तो लोग खरीदकर ही पी रहे हैं। नारियल पानी भी महंगा है। मोबाइल टावरों की वजह से गांवों में भी नारियल बीमार है।शीतल पेय में रासायनिक है।


अब तो जीने के लिए शायद आक्सीजन भी खरीदना होगा।


अभी हालत यह है कि 'सिटी ऑफ जॉय' के नाम से मशहूर कोलकाता शहर में 70 हजार से अधिक लोगों के सर पर छत नहीं है।यहां तक कि उन्हें शुद्ध और सुरक्षित पेयजल, स्वच्छ प्रसाधन जैसी नागरिक सुविधायें तक उपलब्ध नहीं है।रोजाना इस शहर में नौकरी और रोजगार केलिए करीब एक करोड़ से ज्यादा लोगो की आवाजाही है। दिनभर रातभर कोलकाता में कामकाजी इस आबादी के लिए भी स्थाई आबादी के अतिरिकत शुद्ध पेयजल जुटाने की जि्मेवारी है कोलकाता नगरनिगम की। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पेयजल ऐसा होना चाहिए जो स्वच्छ, शीतल, स्वादयुक्त तथा गंधरहित हो। कोलकाता नगर निगम (के.एम.सी) के अनुरक्षन में कोलकाता शहर का क्षेत्रफल 185 कि.मी.२ (71 वर्ग मील) है।हालांकि कोलकाता की शहरी बसावट काफ़ी बढ़ी है, जो २००६ में कोलकाता शाहरी क्षेत्र 1,750 कि.मी.२(676 वर्ग मील) में फैली है। इसमें १५७ पिन क्षेत्र है। यहां की शहरी बसावट के क्षेत्रों को औपचारिक रूप से ३८ स्थानीय नगर पालिकाओं के अधीन रखा गया है। इन क्षेत्रों में ७२ शहर, ५२७ कस्बे एवं ग्रामीण क्षेत्र हैं।कोलकाता महानगरीय जिले के उपनगरीय क्षेत्रों में उत्तर २४ परगना, दक्षिण २४ परगना, हावड़ा एवं नदिया आते हैं।इस पूरे इलाके की आबादी २ करोड २९ लाख है।


विशेषज्ञों की राय है कि इस संकट से बचने का एकमात्र उपाय है कि पलता जलपरियोजना के दायरे में गंगा किनारे करीब दो किलमीटर इलाके में भूगर्ब में इंटरलाकिंग शीट पाइल यानी भूग्रभीय लौह प्राचीर बना दी जाये।नगर निगम ने इस आशय का फैसला भी कर लिया है। इस दीवाल की औसत उच्चता 30-35 फीट होनी है और इस परियोजना का खर्च आयेगा 119 करोड़ रुपये का। नगरनिगम के कोषागार से इतनी बड़ी रकम निकाली नहीं जा सकती और राज्य सरकार भी नही दे सकती। लिहाजा कोलकाता नगरनिगम ने केंद्र सरकार क दरख्वास्त भेजी है किकि केंद्रीय जवाहर लाल नेहरु शहरी विकास मिशन के मार्फत उसे यह राशि उपलब्ध करा दी जाये। अभ इतने बड़े मसले पर सर्वदलीय प्रयास के बिना कोई प्रगति तो होने से रही। बंगाल में दलबद्ध राजनीति बंगाल के हितों की कितनी खबर लेती है, यह बार बार साबित हो चुका है। अब सवाल है कि कोलकाता और उपनगरों में पेयजल संकट से बचने के लिए क्या नये ितिहास का निर्माण होगा और गौरतलब है कि इसी पर निर्भर है कोलकाता और उपनगरों में बहुआकांक्षित नागरिक जीवन का भविष्य।



No comments: