Wednesday, May 2, 2012

मई दिवस के झंडे को ऊंचा उठाओ!

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मई दिवस के झंडे को ऊंचा उठाओ!

मई दिवस के झंडे को ऊंचा उठाओ!

By  | May 1, 2012 at 11:36 am | No comments | आजकल

मई दिवस मनाने की शुरुआत हुए 125 साल से भी ज्यादा समय गुजर चुका है। इन सवा सौ साल के इतिहास में दुनिया के मजदूर वर्ग की स्थिति में कई उतार-चढ़ाव आए। उसे हार और जीत के कई दौर से भी गुजरना पड़ा लेकिन बुरी से बुरी स्थिति में भी मई दिवस का जज्बा कभी खत्म नहीं हुआ। आज जब एक लंबी हार के दौर के बाद मजदूर आंदोलन दुनिया के ज्यादातर बड़े देशों में पूंजीपति वर्ग को एक बार फिर चुनौती देने की स्थिति में आने लगा है, मई दिवस का झंडा उसे फिर से एकजुट होने के लिए पुकार रहा है।
पहली मई का दिन दुनिया के मजदूरों के लिए एकजुटता प्रदर्शित करने का दिन भी होता है। क्योंकि उसने बहुत ठोकर खाकर जाना है कि एकजुट होकर ही वह अपने अधिकारों को पा सकता है। मई दिवस के इतिहास ने उसे सिखाया है कि अगर एक देश के सारे मजदूर एकजुट हो जाएं तो देश की सत्ता उसके हाथ में आ सकती है और वह उस देश को एक बेहतरीन समाज में तब्दील कर सकता है। अगर ऐसा न हो तो मालिक के आगे उसकी हैसियत गुलामों से ज्यादा नहीं होती है।

मजदूर वर्ग एक क्रान्तिकारी वर्ग है
चूंकि मजदूर ही समाज की हरेक चीज का उत्पादन करता है और मजदूरों की ज्यादातर आबादी संपत्तिहीन लोगों की है इसलिए एक बेहतर समाज बनाने के आंदोलन में मजदूर वर्ग ही सबसे आगे होता है। समाज के दूसरे सारे तबकों मंे किसी न किसी स्तर की परजीविता मौजूद होती है। जिसका मतलब है अपने अस्तित्व के लिए वे किसी न किसी मामले में दूसरे तबकों पर निर्भर होते हैं। सिर्फ मजदूर ही ऐसा तबका है जो न सिर्फ अपने दम पर समाज में जिंदा रहता है बल्कि दूसरे तबकों का बोझ भी उसके कंधों पर होता है। इसके बावजूद समाज में कोई शौक से मजदूर नहीं बनता। संपत्तिहीन लोगों के पास इसके अलावा कोई चारा नहीं होता है कि वो अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए पूंजीपति के पास जाए और अपना श्रम बेचे। आज जब खेती-किसानी लगातार घाटे का सौदा बनती जा रही है और जमीन छोटे किसानों के हाथ से निकलती जा रही है तो किसानों का एक बड़ा तबका भी मजदूरों के खेमे में शामिल होता जा रहा है। इस तरह मजदूरों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
आज हमारे देश में आबादी का सबसे बड़ा तबका मजदूरों का है। इसके बावजूद यह तबका एक वर्ग के रूप में संगठित नहीं है। वह जाति, धर्म, भाषा, इलाका, स्थायी व ठेका मजदूर जैसे अनेकों नामों में खंड-खंड में बंटा हुआ है। वह जितना बिखराव का शिकार होता है उसकी जीवन परिस्थितियां और खराब होती जाती हैं। लेकिन अपने अनुभवों से ज्यों-ज्यों वह यह महसूस करता जा रहा है कि यह बंटवारा उसकी कमजोरी और मालिकों की मजबूती बना हुआ है, उसकी एकता बढ़ती जा रही है।
अपने इतिहास को जानो
आज हमारे देश में मजदूर आबादी का बड़ा हिस्सा उन मजदूरों का है जो एक ऐसे दौर में पैदा हुए हैं जब देश में मजदूर आंदोलन हार और बिखराव के दौर से गुजर रहा था। पूंजीवाद का डंका बज रहा था और मजदूर शब्द को हिकारत से देखा जाने लगा था। मजदूर अपनी जाति, अपने धर्म और इलाके के बारे में तो जानता था लेकिन मजदूर वर्ग के इतिहास के बारे में उसने कुछ नहीं सुन रखा था। जो चीजें एक मजदूर को दूसरे मजदूर से अलग करती हैं, उसके बारे में तो मजदूर परिचित था लेकिन उसे जोड़ने वाली चीज से वह पूरी तरह अंजान था। मजदूर वर्ग का इतिहास बेहद गौरवशाली और प्रेरणादायी है। मजदूर आंदोलन के शुरुआती दौर में उसे पता ही नहीं था कि उसके श्रम में कौन सी जादुई क्षमता छिपी हुई है और उसकी एकजुटता से मालिक वर्ग क्यों कांप उठता है। उसने बहुत कीमत चुका कर यह शिक्षा हासिल की की उसका शोषण करने के मामले में अपनी जाति व धर्म के मालिकों और विदेशी मालिकों में कोई फर्क नहीं है। चूंकि मजदूर वर्ग के शानदार इतिहास से मालिक वर्ग बहुत खौफ खाता है इसलिए वह पूरी कोशिश में रहता है कि मजदूर मई दिवस के इतिहास के बारे में न जानें। मालिक वर्ग की सेवारत राजनीतिक पार्टियां मजदूर जनता को जाति, धर्म और इलाके के नाम पर बांटने के लिए दिन-रात एक किये रहती हैं। इसलिए मजदूरों को एकजुट होने के लिए सबसे पहले मई दिवस के इतिहास यानी अपने वर्ग के इतिहास को जानना बहुत जरूरी है।
दुनिया के मजदूरों एक हो!
मई दिवस पहली बार 1 मई 1886 के दिन अमेरिका में मनाया गया था। अमेरिका में उन दिनों कल-कारखाने, फैक्ट्रियों का बहुत तेजी से विस्तार हो रहा था। यूरोप समेत दुनिया के कई देशों से लाखों लोग मजदूरी करने अमेरिका गए। उस समय अमेरिका में मजदूरों को 14 से 16 घंटे और कहीं-कहीं 18 से 20 घंटे तक काम करना पड़ता था। इन्हीं हालात में 'काम के घंटे आठ करो' का आंदोलन पैदा हुआ। 1 मई 1886 को इसी मांग को लेकर अमेरिका के लाखों मजदूरों ने एक दिन की हड़ताल की। हड़ताल इतनी जबर्दस्त थी कि पूंजीपति वर्ग को झुकना पड़ा और आठ घंटे का कार्यदिवस धीरे-धीरे लागू होना शुरू हो गया। अपनी हार से तिलमिलाए पूंजीपतियों ने मजदूर नेताओं से इसका बदला लिया। इसी सिलसिले में उन्होंने अमेरिका के सबसे बड़े औद्योगिक शहर शिकागो के चार बड़े नेता पार्संस, स्पाइस, फिशर व एंजिल को झूठे मुकद्दमों में फंसाकर फांसी चढ़वा दी।
अमेरिका में मई दिवस के आंदोलन की सफलता के बाद ज्यों-ज्यों दुनिया में कल-कारखानों का विस्तार होता गया वैसे-वैसे मजदूरों की संख्या बढ़ती गई और मजदूरों का आंदोलन भी बढ़ता गया। 'दुनिया के मजदूरों एक हो' के नारे ने एक ऐसी ताकत हासिल कर ली जो दुनिया के शासक पूंजीपतियों के दिलांे में कंपकंपी पैदा करने लगा। दूसरी ओर यह वही समय था जब भारत समेत एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका महाद्वीपों के गुलाम देशों में आजादी का आंदोलन भी जोर पकड़ रहा था। 'दुनिया के मजदूरों एक हो' और 'हमें आजादी दो' के नारों ने एक-दूसरे को भरपूर ताकत दी और बीसवीं शताब्दी के शुरुआती लगभग 50 साल तक इन्हीं का झण्डा लगभग पूरी दुनिया में बुलंद रहा। इन पचास सालों में मजदूर वर्ग का हर मामले में बहुत तेजी के साथ विकास हुआ। इस दौरान प्रचलित धारणाओं के विपरीत मजदूर वर्ग ने यह दिखाया कि वह समाज का सबसे जिम्मेदार तबका है और किसी देश को बहुत बेहतरीन ढंग से चला सकता है। उसके हाथों समाज का न सिर्फ वर्तमान सुरक्षित होता है बल्कि भविष्य का बेहतर ख्याल भी केवल वही रख सकता है। पूंजीपति वर्ग जहां बार-बार यह साबित करने का प्रयास करता है कि मुनाफा और लालच के बिना कोई अर्थव्यवस्था या समाज चल ही नहीं सकता है, वहीं मजदूरों ने साबित कर दिया कि मुनाफे और लालच पर अगर रोक लगा दी जाए और हर इंसान को आगे बढ़ने का मौका मिले तो वास्तव में ऐसा समाज ही चौतरफा विकास कर सकता है।
हार के बाद फिर से उठा मजदूर वर्ग
हालांकि मई दिवस का झण्डा हमेशा बुलंदियों पर नहीं रहा। मजदूर वर्ग द्वारा हासिल जीत अंतिम जीत नहीं थी। दुनिया का पूंजीपति वर्ग अभी ज्ञान-विज्ञान, धन-दौलत और तीन-तिकड़मों के हथियार से लैस था। इसलिए अंतिम जीत के लिए मजदूर वर्ग को अभी और जागरूक होने की जरूरत थी। लिहाजा उसे एक लंबी हार और पीछे हटने का दौर देखना पड़ा। यह दौर पूंजीपतियों के पलटवार करने और मजदूर जनता के लिए अथाह परेशानी, बर्बादी, बिखराव और पस्तहिम्मती का दौर था।
लेकिन इसी दौर ने मजदूर जनता को बहुत कुछ सिखाया भी। हालांकि इस दौर के जवां मजदूरों को मई दिवस का कुछ ज्ञान न था फिर भी अपने अनुभवों से उसने अपने देश के शासकों, जिसे भगतसिंह काले अंग्रेज कहा करते थे, के असली चरित्र को देखा। अपने इन्हीं अनुभवों के दम पर भारत का मजदूर वर्ग नए सिरे से और नई आक्रामकता के साथ फिर से खड़ा होता दिख रहा है। दुनिया के दूसरे देशों की स्थिति और भी विस्फोटक बनती जा रही है। एक ओर पूंजीपति शासन वर्ग एक संकट से दूसरे संकट में उलझता जा रहा है वहीं दूसरी ओर मजदूर वर्ग अपनी क्रान्तिकारी जनता के साथ मिलकर शासकों की ईंट से ईंट बजाने पर अमादा है।
स्पष्ट है कि आज दुनिया एक नए दौर में प्रवेश कर चुकी है। एक ऐसे दौर में यदि भारत का मजदूर वर्ग मई दिवस से परिचित हो जाए और उसकी शिक्षाओं को आत्मसात कर ले तो कोई आश्चर्य नहीं कि वह एक अपराजेय शक्ति बनकर भारत के क्रान्तिकारी बदलाव की लड़ाई में आम जनता की अगुवाई करने लगे।
'मेहनतकश' का आलेख
साभार – रेड टूलिप्स

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