Friday, May 18, 2012

मेहंदी की फैक्ट्री में लगी आग

मेहंदी की फैक्ट्री में लगी आग



पीड़ित परिवारों को मालिक झूठी दिलासा दे लग रहा है कि सब ठीक हो जायेगा और वे लोग किसी के बहकावे में नहीं आयें, लेकिन दुर्घटना की जानकारी मांगने पर मैनेजमेंट के गुंडे लोगों से उलझ पड़ रहे हैं और धमकी दे रहे हैं कि जो करना हैं, कर लो...

सुनील कुमार 

दिल्ली के ओखला औद्योगिक क्षेत्र के फेस वन की मेहंदी और बाल काला करने का रंग बनाने वाली फैक्ट्री नं. 274 में 15 मई  को आग लग गयी. आग के कारण अबतक एक मजदूर की मौत हो चुकी है और तीन गंभीर रूप से झुलसे मजदूर सफदरजंग अस्पताल के आइसीयू वार्ड में भर्ती हैं. 

फैक्ट्री  में आग  शाम लगभग 4 बजे आग लगी.मजदूरों ने बताया कि आग लगने के समय फैक्ट्री में लगभग 100 मजदरू कार्यरत थे.इस फैक्ट्री में मेंहदी (हेयर डाई) बनाने का काम होता है जिसमें ज्वलनशील केमिकल का प्रयोग होता है.इस फैक्ट्री में दो बार पहले भी आग लग चुकी है.

factory-fire

बिना किसी नाम-बोर्ड  के चलायी जा रही ओखला क्षेत्र की इस  फैक्ट्री में आग तीसरे माले पर लगी, जिसपर मशीनें लगी हुई हैं. ज्वलनशील पदार्थ होने के कारण आग तुरंत ही फैक्ट्री के अन्य भागों में फैल गयी.करीब 15-16 अग्निशमन गाड़ियां दो-ढाई घंटे की मेहनत के बाद आग पर काबू पा सकीं.आग बुझने के बाद तीन मजदूरों को जली हुई अवस्था में बाहर निकाला गया।

झुलसे मजदूरों को पुलिस पहले होली फेमली निजी अस्पताल लेकर गई, लेकिन पुलिससिया मामला होने के कारण होली फेमली अस्पताल ने उन्हें इलाज (ढाई से तीन घंटे तक उनको कोई भी प्राथमिक उपचार नहीं मिल पाया) करने से मना करा दिया.उसके बाद पुलिस उन्हें सफदरजंग अस्पताल में भर्ती कराया जहां पर उन्हें आईसीयू में रखा गया.

इलाज के दौरान मान सिंह (22)  की मृत्यु हो गयी. मान सिंह इस कम्पनी में 6 वर्ष से कार्यरत थे, लेकिन उनके पास कम्पनी का किसी तरह की परचिय पत्र, ईएसआई कार्ड नहीं था.मान सिंह के  शव को ले जाने के लिए उनके गाँव से आये लोगों ने बताया कि मान सिंह की मां नेत्रहीन हैं और घर का एकमात्र कमासुत चिराग मान सिंह मुनाफे की आग में स्वाहा हो गया  है. मान सिंह दिल्ली के तेहखंड में किराये की माकन में रहते थे.   

गंभीर रूप से झुलसे मजदूरों में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के 19 वर्षीय दीपू भी हैं. दीपू दिल्ली के संगम विहार इलाके में अपनी मां और भाई के साथ रहते हैं और इस कम्पनी में लगभग 5 वर्ष से कार्यरत थे. दीपू की हालत बहुत ही नाजुक बनी हुई है और सफदरजंग हस्पताल के आईसीयू वार्ड नं. 22, कमरा नं. 8 में जिन्दगी और मौत से जूझ रहे हैं. दीपू की मां, बहन, भाई, जीजा और आस-पड़ोस के लोग वार्ड के बाहर जमे हुए हैं. उनकी बहन अपने दो छोटे बच्चों जिनकी उम्र करीब 6 महीना और दो साल होगी, को वार्ड के बाहर इस लू भरी गर्मी में  नीचे जमीन पर ही लेटा कर भाई के ठीक होने का इंतजार कर रही हैं. 

वहीं दिलीप कुमार पुत्र सहदेव महतो, उम्र 38 वर्ष जो कि अपने भाई के साथ जे.जे. कैम्प संजय कालोनी ओखला में रहते हुए इस कम्पनी में लगभग 5 वर्ष से काम कर रहे हैं, वो भी वार्ड नं 22 के कमरा नं. 10 में अपनी जिन्दगी से जूझ रहे हैं.

अस्पताल में जब कोई भी इस परिवार से मिलने जा रहा है  तो तुरंत ही मालिक के कारिंदे और मैनेजमेंट चौकन्ना होकर एक दूसरे को फोन करते हुए इकट्ठा हो जा रहा है और पीड़ित परिवारों को झूठी दिलासा देने लग रहा कि सब ठीक हो जायेगा और वे लोग किसी के बहकावे में नहीं आयें.यह तो एक दुर्घटना थी, जिसमें मालिक का कोई दोष नहीं हैं.इस दुर्घटना की जानकारी मांगने पर मैनेजमेंट के गुंडे लोगों से उलझ पड़ रहे हैं और धमकी दे रहे हैं कि जो करना हैं, कर लो. 

मैनेजमेंट द्वारा मृतक मान सिंह की मां को बहला-फुसला कर मामले को रफा-दफा कर लिया गया, लेकिन किसी भी बात का खुलासा नहीं किया गया कि मृतक की मां के साथ फैक्ट्री मालिक की क्या बात हुई, जबकि मान सिंह कि माता जी दृष्टिहिन हैं.इसी तरह घायल दीपू  व दिलीप के परिवार वालों पर दबाव मामले को सुलझाने का दबाव बनाया जा रहा है.

पुलिस अभी तक इस मामले में किसी को भी गिरफ्तार नहीं कर सकी  है और न ही मृतक या घायल मजूदरों के परिवार वालों को  बताया है कि क्या कानूनी कार्रवाई हो रही है.पीड़ित मजदूरों के सभी परिवार वाले निरक्षर हैं, जिनको किसी भी प्रकार के हक अधिकारों की कोई जानकारी नहीं है.कहा यह भी जा रहा है कि अभी तीन-चार मजदूर लापता हैं, जिनके बारे में कोई जानकारी नहीं है.मिडिया के लिये भी यह खबर कोई खबर नहीं रही.यह खबर किसी भी इलेक्ट्रानिक या प्रिंट मिडीय द्वारा आम जनता तक नहीं पहुंचायी गयी  और न ही इन परिवारों की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की गई।

इसमें से किसी भी मजदूर के पास जो कि लगभग 5-6 वर्ष से काम कर रहे हैं कोई भी पहचान पत्र व ईएसआई कार्ड कंपनी ने नहीं दिया है, पीएफ और बाकी श्रम कानूनों को लागू करना तो दूर की बात है.इतने बड़े हादसे के बाद भी कोई श्रम अधिकारी इन परिवार वालों से नहीं मिला है .इतने लम्बे समय से काम करने के बावजदू इन मजदूरों को चार से पांच हजार रुपये प्रतिमाह ही मिलता था जो कि दिल्ली सरकार के न्यूनतम वेतन से बहूत ही कम है.मजदूरों ने बताया कि इस फैक्ट्री में  पहले भी दो आग लग चुकने के बाद भी आग से बचाव के उपाय नहीं किये थे.  

फैक्ट्री नं. 278 के एक मजदूर ने बताया कि जब वह टी लंच में बाहर निकला था तो फैक्ट्री नं. 274 से धुंआ निकलते हुए  देखा तो वह तुरंत 274 मलिक के पास दौड़कर  गया और फैक्ट्री के शिशे को तोड़ने के लिए बोला जिससे कि धुआं निकलता रहे, लेकिन फैक्ट्री नं. 274 के मालिक ने गाली देते हुए उस भगा दिया.  

(नागरिक अधिकार कार्यकर्ता सुनील कुमार मजदूरों के मुद्दे पर सक्रिय हैं.)

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