Monday, May 14, 2012

तो बहन जी का कर्ज़ उतारने आई थीं हिलेरी

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तो बहन जी का कर्ज़ उतारने आई थीं हिलेरी

तो बहन जी का कर्ज़ उतारने आई थीं हिलेरी

By  | May 14, 2012 at 2:30 pm | No comments | कुछ इधर उधर की

अमेरिका की मेहरबानी के मतलब

अमित पाण्डेय
7 मई 2012, रविवार को बांग्लादेश से कोलकाता पहुँची हिलेरी क्लिंटन ने दिल में दफन मोहब्बत से मगरबी बंगाल के सचिवालय 1, राईटर्स बिल्डिंग को सराबोर कर दिया वे बंगाल की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी से ऐसे मिलीं मानो कितनी चिर-कांक्षित मुलाकात हो! ममता ने भी गर्मजोशी से स्वागत किया। आमतौर पर वे अपने रफ-टफ लिबास के लिए ही जानी जाती है पर उस दिन ममता ने अपने को समय जिया। 8 मई ,2012 के अंग्रेजी दैनिक Hindustan times ने पहले पेज की लीड खबर के् रूप ममता हिलेरी का फोटो लगाया पर इस फोटो मे बहुत कुछ ऐसा था जो कि शायद सामान्यत: नहीं होता….। मसलन उस फोटो में ममता दी को हिलेरी के लिपिस्टिक की तुलना में कुछ कम लेकिन उसी रंग के लिपिस्टिक में दिखाया गया है, वो भी उस रंग में जिससे उनको धरती पर सबसे ज्यादा चिढ है क्योंकि वो रंग वामपंथियो द्वारा रजिस्टर कराया जा चुका है। क्या ये एक सामान्य प्रक्रिया है या अमरेकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को प्रसन्न करने की कोशिश? सामान्य प्रक्रिया तो हो ही नहीं सकती क्योंकि ममता 1980 से ही ऐसी ही है जब वे यादवपुर विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति करती थी. फिर अचानक ये परिवर्तन क्यों? क्या ये मुख्यमंत्री ममता बंदोपाध्याय का अंदाज है जो शासक वर्ग का प्रतिनिध्तिव करता है या ये वही जननेत्री हैं जो अब मुख्यमंत्री है. जबाब चाहे जो हों ,सबब बहुत बड़ा है।
हिलेरी क्लिंटन ममता से मिली पर आश्चर्य ऐसी कोई बात ही नहीं हुई जो इन दोनो नेताओं में से किसी को भी सकते में डाल सके. ममता ने कहा कि मैं तिस्ता और एफ.डी.आई जैसे मुद्दों पर कोई बात नहीं करना चाहती. हिलेरी ने तुरंत उसे पने एजेंडा से निकाल फेंका, उन्होने परमाणु करार पर सहयोग मांगा. ममता तैयार, वादा भी किया. सवाल उठता है ये वही अमरीका है जिसने परमाणु परीक्षण के मुद्दे पर अटल जी जैसे प्रधानमंत्री को खूब नचाया, अक्सर भारतीयों को अमरिकी हवाई अड्डो पर कभी खान तो कभी फर्नांडीज़ होने की सजा भोगनी पड़ती है और हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी लोग उसे उनकी सिक्योरिटी पालिसी बता कर मुंह फेर लेते हैं लेकिन आज ममता ने उनसे अपनी बात मनवाई और उनके लिये आश्वाशन दिया. वैसै यही काम वो संसद में करती तो 84 बिल न लटके होते। खैर,
बंगाल चुनाव के ठीक पहले की बात. अमरीकी उच्चायुक्त के बयान को लेकर कोलकाता में काफी हाय-तौबा मची थी. उच्चायुक्त ने कहा था कि ममता में एक बेहतर शासक के गुण है और तब से वो ममता के इतने आधिक मुरीद हुए कि अक्सर किसी न किसी बहाने ममता के साथ देखे जाते. वामपंथियो ने इसकी शिकायत भी की और जांच की मांग की. उनका कहना था कि भारत के किसी राज्य के चुनाव में अमेरिका की इतनी दिलचस्पी क्यों है? दबी जुबां ये भी सुनने को मिला कि मीडिया को मैनेज करने में कुछ अपरोक्ष ताकतें ममता का साथ दे रही हैं ( इशारा अमेरिका के तरफ था). वो प्रचूर धनराशि व्यय कर रही है, ममता की सरकार को लाने के लिए. कुछ ही दिन बाद दोनों ने एक दूसरे के हाथ से हाथ मिल जाने की बात स्वाकारी और वामो को जबाब दिया कि चीन भी आपकी मदद करता था क्या वो विदेशी नहीं था?
दर्असल अमेरिकी विदेशमंत्री उसी का शुक्रिया अदा करने आई थी और ममता का ढेर सारा उत्साहवर्धन करने भी। दोनो ही नेत्रियों ने अपने संकल्प को दोहराया और एक दूसरे के विश्वास को अडिग रखने की बात कही होगी.
जयहिन्द

अमित पाण्डेय, लेखक कोलकाता स्थित स्वतंत्र पत्रकार व हस्तक्षेप.कॉम के सहयोगी हैं,

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