वहां कौन है तेरा, मुसाफिर जाएगा कहां…
♦ सैन्नी अशेष
मोहिंदर सिंह रंधावा, बलराज साहनी और पंजाबी कवि मोहन सिंह।
…
1970-71 के दिन थे। मनाली में एक तरफ 'पराया धन' फिल्म की शूटिंग चल रही थी, दूसरी तरफ आचार्य रजनीश 'नव संन्यास' का सूत्रपात कर रहे थे। मैं फिल्मी और रूहानी दोनों किस्म की गोपियों का लाडला हो रहा था। एक दिन हेमा मालिनी और चालीस कलाकारों के नृत्यगीत 'आओ, झूमें गाएं' के दोहरावों के साथ सैकड़ों रीटेक के बीच गेहूं की फसल से भरा खेत लगातार रौंदा जा रहा था। एक किशोर के रूप में मैं भी शॉट्स का हिस्सा था। बलराज साहनी बगल में खामोश बैठे थे। मैंने देखा, दूर खड़ी एक बुढ़िया चुप अपने आंसू पोंछ रही है। मैंने जाकर कारण पूछा, तो उसने कुल्लुई बोली में बताया कि उसे बताये बिना उसका खेत रौंदा जा रहा है। मैंने बलराज साहनी को बताया तो वे चकित थे कि ऐसा हुआ है। उन्होंने तत्काल बुढ़िया को बुलाया, उससे बात की, उसे मुआवजा दिलवाया और आगे की शूटिंग के लिए उससे अनुमति लेने को कहा। मगर गजब यह था कि उन्होंने अपनी जेब से एक सौ रुपये निकाल कर उसे पैसे देने में पहल की थी।
शाम को रोज मैं इस फिल्म के नायक राकेश रौशन के साथ एक रेस्तरां में बैठता था। उन दिनों उसे कोई नहीं जानता था। शॉट्स के बाद हेमा भी अपनी मां के साथ रहती और हिंदी के डायलाग बोलने का अभ्यास करती। मैंने राकेश को दिन की शूटिंग वाला किस्सा सुनाया तो वो बताने लगा कि कैसे बलराज उसे हौसला बंधाते हैं। फिल्मी लोगों से मैंने जितने लोगों से लंबी बातें की हैं, उनमें बलराज साहनी सबसे जहीन शख्स लगे।
एक दिन उन्होंने पूछा : "बंबई चलोगे?"
मैंने कहा : "जिस खानाबदोश को आचार्य रजनीश नहीं भगा सके, उसे आप ले जा सकेंगे? असंभव!"
पेश हैं पराया धन के तीन गाने
आज उनसे पहली मुलाकात होगी
आशा गयी उषा गयी मैं न गयी
दिल हाए मेरा दिल
(सैन्नी अशेष। हिंदी के महत्वपूर्ण-कवि कथाकार। आध्यात्मिक रूझान। बरसों से मनाली में रहते हैं। मशहूर कहानीकार स्नोवा वार्नो के दोस्त। उनसे sainny.ashesh@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)
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