Wednesday, May 9, 2012

आमिर ने एक संवेदनशील मुद्दे को भी बाजार में बेच दिया!

आमिर ने एक संवेदनशील मुद्दे को भी बाजार में बेच दिया!


 ख़बर भी नज़र भीनज़रियामीडिया मंडी

आमिर ने एक संवेदनशील मुद्दे को भी बाजार में बेच दिया!

9 MAY 2012 3 COMMENTS

♦ कृति श्री

मिर खान के 'सत्यमेव जयते' सीरियल का कई दिनों से टीवी पर प्रोमो आ रहा था। ऐसा तो लग ही रहा था कि आमिर कुछ अलग करेंगे। छह मई की सुबह वो इंतजार खत्म हुआ। आमिर अपना प्रोडक्शन लेकर आये। जाहिर है मुद्दा कुछ ऐसा था, जिसने दिल को छू लिया। प्रस्तुति भी बहुत सधी हुई थी। चेहरे बेहद आम और हममें और आपमें से एक थे। टीवी चैनलों पर आ रहे सीरियलों की चकाचौंध, शादीविवाह की प्रतिगामी रस्मों, सास-बहू की फूहड़ प्रस्तुति के बीच यह कार्यक्रम थोड़ी राहत देने वाला था। मुद्दा भी कुछ ऐसा था, जिसे देख-सुन कर दिल में इतनी नफरत गुस्सा और विवशता भर जाती है कि जी करता है कि कुछ ऐसा करें कि इस पूरे सिस्टम के पूरे ताने बाने को नोच कर रेशा-रेशा कर दें।

खैर, आइए आमिर के सीरियल पर बात करते हैं। आमिर ने अपने पहले एपिसोड के लिए जिस मुद्दे को चुना, जाहिर है वह दिल को छूने वाला था। (जिसकी घोषणा उन्होंने अपने कार्यक्रम के प्रचार के दौरान की थी) कई बार दिल भर आया और आंख से आंसू भी निकले। वहां बैठे दर्शकों की आंखों में भी आंसू आ गये। कई बार आमिर भी अपनी आंख के किनारे पोंछते नजर आये। कैमरे ने अपना काम बखूबी किया। आंखों में भरे हुए आंसू, अविरल बहते हुए आंसू, रुमाल में समाते आंसू इन सभी ने हमारी आंखों को बाकायदा नम किया। आमिर जिन चेहरों को लेकर आये, वह बहुत ही सामान्य थे। और उनकी दिल हिला देने वाली दास्तान ने रोंगटे खड़े कर दिये। एक बार फिर नफरत तीखी हो गयी कि कैसे सड़े हुए समाज में रहते हैं हम। और अंत में एक औपचारिक हल भी प्रस्तुत किया।

लेकिन यह मुद्दा कोई नया नहीं है। यह भारतीय समाज की एक कड़वी हकीकत है और इसके खिलाफ बहुत से सरकारी और गैरसरकारी औपचारिक अभियान चल भी रहे हैं। अतः आमिर खान का यह अभियान कोई नया नहीं है। न ही यह मसला सिर्फ जागरूकता का है। यह हमारे समाज का एक माइंडसेट है, जिसकी जड़ें इस समाज के पितृसत्तात्मक ढांचे और संपत्ति संबंधों में इनबिल्ट है। तो इस मुद्दे को अगर उठाना है, तो इस पितृसत्तात्मक ढांचे व संपत्ति संबंधों को बदलने की बात करनी होगी। पितृसत्ता को नष्ट करने की बात करने की जुर्रत तो बड़े-बड़े नारीवादी संगठन भी नहीं करते। फिर आमिर खान तो इस व्यवस्था के एक बड़े प्रहरी हैं। जिनकी इस व्यवस्था पर बड़ी आस्था है और उन्हें इस देश की न्यायपालिका से बहुत उम्मीदें हैं। जबकि ज्यादातर न्यायाधीशों की महिला विरोधी, सवर्ण एवं सामंती मानसिकता जगजाहिर है। भंवरी देवी के केस में जज का घटिया महिलाविरोधी बयान क्या कोई भूल सकता है? खुद आमिर के सीरियल में एक वकील, जो एक महिला का केस लड़ रहे थे, ने उस जज का कथन बताया कि 'कुल दीपक' की चाह किसे नहीं होती। ऐसी सामंती और महिलाविरोधी सोच वाली न्यायपालिका से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं?

हम अच्छी तरह से जानते हैं कि बाजार हर चीज से मुनाफा कमाने के फिराक में रहता है। और आमिर इस बाजार के ब्रांड एंबेसडर हैं। किसी भी वैल्यू को बाजार में कैसे कैश करना है, वह अच्छी तरह जानते हैं। आमिर यह जानते हैं कि अपने प्रोडक्ट की मार्केटिंग कैसे की जाए। ऐसे में कन्या भ्रूण हत्या का मसला भी बाजार में कैश किया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड मशीनों की मार्केटिंग से जितना मुनाफा कंपनियों ने कमाया होगा और उससे कहीं ज्यादा आमिर खान के इस कार्यक्रम के प्रचार और प्रस्तुति से इसके प्रायोजक भी शायद कमा लें। इसमें आमिर के प्रति एपिसोड तीन करोड़ भी शामिल हैं। निश्चित रूप से आमिर की वजह से कार्यक्रम एवं चैनल की टीआरपी भी बहुत बढ़ेगी। रिलायंस एवं एयरटेल जैसे कॉरपोरेट घरानों के इस मानवीय चेहरे के पीछे कितनी अमानवीयता है, इसकी कल्पना भी आम लोग नहीं कर सकते। ऐसे में बाजार की इस चकाचौंध से बजबजाती दुनिया में हम कितनी भी अच्छी बात क्यों न करें, वह खोखली बातें होंगी।

सत्यमेवजयते का नारा लिखा हुआ हर थाने में
जैसे कोई इत्र की शीशी रखी हुई पैखाने में

महेंद्र मिहोनवी

इस तरह इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुद्दा क्या है। फर्क इससे पड़ता है कि इसे कौन, कैसे, किस फ्रेमवर्क में और किस नीयत से उठा रहा है। अभी यह देखना है कि आने वाले वक्त में आमिर जनता की नब्ज को छूने वाले और कौन-कौन से मुद्दे उठाते हैं। या यूं कहें कि और किन मुद्दों की बाजार में बोली लगाते हैं। क्या वह सरोगेसी के मुद्दे को भी छुएंगे? कुछ दिन पूर्व ही आमिर ने अपना बच्चा सरोगेसी से हासिल किया है। क्या किसी महिला के मातृत्व और स्वास्थ्य एवं भावनाओं से खिलवाड़ का हक उन्हें केवल इसीलिए मिल जाता है कि उनके पास अथाह पैसा है? जबकि बच्चे पर हक तो उसे पैदा करने वाली मां का ही होता है। बच्चे की चाहत तो किसी अनाथ बच्चे को गोद लेकर भी पूरी की जा सकती थी। जबकि सरोगसी की अवधारणा पितृसत्ता को ही पोषित करती है और एक महिला की मजबूरी का निर्मम फायदा उठाती है।

पिछले दस पंद्रह सालों में दुनिया के तेजी से बदलते हालात ने मध्य वर्ग के एक हिस्से में व्यवस्था विरोधी रुझान पैदा किया है। तभी से मध्य वर्ग के इस हिस्से के व्यवस्था विरोधी रुझान को बांधने या सीमित करने के प्रयास भी तेज हो गये हैं। इसमें जाने अनजाने बहुत से एनजीओ, राजनीतिक-सामाजिक आंदोलन व हमारी साहित्यिक बिरादरी का एक हिस्सा भी लगा हुआ है। आमिर के इस प्रोग्राम को भी हम इसी व्यापक प्रयास के एक हिस्से के रूप में देख सकते हैं, जहां मध्यवर्ग के इस हिस्से की व्यवस्था परिवर्तन की आकांक्षा को महज एसएमएस और चिट्ठी पत्री तक सीमित कर देने की एक सचेत-अचेत साजिश चल रही है।

[ सत्‍यमेव जयते पर कृति श्री का यह नजरिया एक टिप्‍पणी के जरिये हमारे पास आया। उनके बारे में कोई परिचयात्‍मक जानकारी मोहल्‍ला लाइव के पास नहीं है। हमने उन्‍हें मेल किया है। जैसे ही कोई जवाब आएगा, हम यहां अपडेट कर देंगे। ]

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