Sunday, 06 May 2012 13:32 |
कुलदीप कुमार इस मनोनयन का उद्देश्य इन व्यक्तियों का सम्मान करना नहीं, बल्कि राज्यसभा की प्रभविष्णुता को बढ़ाना और सदन में होने वाली चर्चा को समृद्ध बनाना है। विशिष्ट व्यक्तियों को सम्मानित करने के लिए पद्म पुरस्कार और अनेक अन्य पुरस्कार हैं। मसलन, साहित्यकारों के लिए साहित्य अकादेमी पुरस्कार और फिल्म से जुड़े लोगों के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार। क्रिकेटर के रूप में सचिन तेंदुलकर को पूरी दुनिया इस खेल के महानतम खिलाड़ियों में से एक मान चुकी है। राज्यसभा के लिए उनका मनोनयन समाजसेवा के क्षेत्र से किया गया है। क्या किसी ने इस क्षेत्र में उनकी किसी गतिविधि के बारे में सुना है? सोली सोराबजी जैसे मूर्धन्य विधिवेत्ता जब यह तर्क देते हैं कि पहले भी तो इस तरह के मनोनयन हुए हैं, तो यह बात गले नहीं उतरती। सरकार को किसी को मनोनीत करते समय दो बातों का ध्यान रखना चाहिए। एक तो यह कि वह व्यक्ति वास्तव में इसके योग्य हो, और दूसरी यह कि वह राज्यसभा की कार्यवाही में योगदान करने की इच्छा और सामर्थ्य रखता हो। मकबूल फिदा हुसेन, रविशंकर, नर्गिस, लता मंगेशकर, हेमा मालिनी आदि को कलाजगत के प्रतिनिधि के तौर पर राज्यसभा में मनोनीत किया गया। इनकी पात्रता में किसी को भी संदेह नहीं हो सकता। लेकिन इनमें सदन की कार्यवाही को समृद्ध करने की कोई इच्छा नजर नहीं आई। ये सदन की बैठकों से या तो अधिकतर अनुपस्थित रहे, और अगर उपस्थित हुए भी तो खामोश ही बैठे रहे। मृणाल सेन जैसे सामाजिक-राजनीतिक रूप से जागरूक फिल्म-निर्देशक का आचरण भी इससे भिन्न नहीं था। सवाल है कि क्या राज्यसभा के लिए मनोनयन का उद्देश्य विशिष्ट व्यक्तियों का सम्मान करना और उन्हें सांसदों की सुविधाएं देना है या इसका उद्देश्य सदन की कार्यवाही का स्तर ऊंचा उठाना और उसे और अधिक गरिमा प्रदान करना है? सचिन ने अभी तक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास नहीं लिया है। उनका अधिकतर समय देश-विदेश में मैच खेलने में बीतता है। वे चाहें तो भी राज्यसभा की बैठकों में ज्यादा उपस्थित नहीं रह सकते। उन्हें राज्यसभा में लाकर सरकार ने केवल उनकी लोकप्रियता का लाभ उठाने की कोशिश की है, संविधान की मर्यादा का पालन नहीं किया है। इसी तरह यह भी कहना मुश्किल है कि फिल्म अभिनेत्री रेखा राज्यसभा की बैठकों में कितना मौजूद रहेंगी और कार्यवाही में कितनी रुचि दिखाएंगी। यहां यह कहे बिना नहीं रहा जा सकता कि हमारे विविध भाषाओं और साहित्य वाले देश में अनेक साहित्यकार ऐसे हैं, जिन्होंने श्रेष्ठ साहित्य सृजन के अलावा समाज की अंतरात्मा के संरक्षण का काम भी किया है। मसलन, बांग्ला साहित्यकार महाश्वेता देवी। लेकिन मनमोहन सिंह सरकार को जब साहित्य के क्षेत्र से किसी को मनोनीत करने का खयाल आता है तो वह मणिशंकर अय्यर को चुनती है! सत्ता, चाहे वह लोकतंत्र में हो या तानाशाही में, अंधी ही होती है। इसलिए अगर रेवड़ियां इस ढंग से बंट रही हैं, तो इसमें आश्चर्य कैसा? हां, अफसोस जरूर किया जा सकता है। |
Sunday, May 6, 2012
रेवड़ी बांटने का चलन
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