Wednesday, May 16, 2012

कोयले के लूट की काली कहानी

कोयले के लूट की काली कहानी

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कोयले के लूट की काली कहानी
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कोयला ब्लाकों के आवंटन में हुए लाखों करोड़ रुपये के घोटाले का मुद्दा सीएजी की रिपोर्ट में उजागर होने के बाद यह स्टैण्ड स्पष्ट हो गया कि इस कीमती ऊर्जा खनिज की लूट में देशी-विदेशी निजी कम्पनियां किस सीमा तक लगी हुई हैं। सीएजी की रिपोर्ट में तो इस लूट का एक छोटा सा ही हिस्सा वह भी केवल 2004-2009 के बीच के पांच सालों का ही है, यदि इसे उदारीकरण के पूरे दौर 1991-2011 के 20 वर्षों में फैलाकर देखा जाय तो जो आंकड़े आ रहे हैं वे आंखें खोलते ही नहीं आखें फाड़ देने वाले हैं। तथाकथित उदारीकरण के खिलाफ शुरु हुए आजादी बचाओ आन्दोलन के शोधकर्ताओं की टीम इन आंकड़ों को जुटाने में लगी। काफी जानकारियाँ एकत्र हुईं जिन्हें लेकर आन्दोलन के समाजकर्मियों ने कोयला भण्डार वाले चार प्रमुख राज्यों- महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, झारखण्ड का विस्तृत अध्ययन किया है। संक्षिप्त में यहां प्रस्तुत है अध्ययन का प्रमुख हिस्सा।

झारखण्ड में कोयले की लूट
झारखण्ड निर्माण के बाद राज्यवासियों को अपनी सरकारों से बड़ी उम्मीद बनी थी कि लोग सुरक्षित होंगे और विकास की नई परिभाषा गढ़ी जाएगी। परन्तु विकास के लिए सरकारों ने केन्द्र सरकार के साथ मिलकर राज्य के खजानों को देशी-विदेशी कम्पनियों को लूटने की छूट देकर झारखण्डी जनता का अपमान किया है। जैसा कि आप जानते हैं, झारखण्ड प्रदेश में कोयले का कुल भण्डार 78935.475 मिलियन टन है जो भारत के राज्यों में प्रथम स्थान रखता है, जिसका बाजार मूल्य 235 लाख 80 हजार 794 करोड़ रुपया है। इस भण्डार में से 9994.475 मिलियन टन कोयले का भण्डार 67 कोयला ब्लॉकों में आवंटित किया गया है। इनमें से 22 ब्लॉक सरकारी एवं 45 ब्लॉक निजी कम्पनियों का आवंटित किए गए हैं। ये भण्डार स्पंज, आयरन, ऊर्जा, पिग आयरन, स्टील तथा व्यवसायिक उपयोग के लिए कैप्टिव कोयला ब्लॉक के रूप में आवंटित किए गए हैं। झारखण्ड बनने के बाद जो कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए, उसकी मात्रा 9709.475 मिलियन टन है। इस आवंटित कोयले का वर्तमान बाजार भाव से मूल्य 29 लाख 12 हजार 842.50 करोड़ रुपया है। ये ब्लॉक 30 वर्षों के लिए आवंटित किए गए हैं, अर्थात वर्तमान दर से प्रतिवर्ष 97094.75 करोड़ रुपये की लूट होगी। यह लूट राज्य सरकार के बजट से 5 से 6 गुणा ज्यादा है। इस लूट की छूट नगण्य खनिज रॉयल्टी पर कम्पनियों को दी गई है। इसी लूट को विकास का ढोल पीटा जा रहा है।

वर्तमान समय में आवंटित कोयला भण्डार यहां के कुल कोयला भण्डार का मात्र 12.66 प्रतिशत है। इन कोयला ब्लॉकों से राज्य के कई सौ गांव नष्ट हो जायेंगे। खेती की लाखों एकड़ भूमि बंजर बन जाएगी। अब समय आ गया है कि संसाधनों पर जनता का अधिकार स्थापित किया जाय तथा ग्राम समुदाय को खनन अधिकार मिले, जिससे कोयले की आपूर्ति भी हो और 97094.75 करोड़ रुपया प्रतिवर्ष ग्राम समुदाय बने, ताकि झारखण्ड का आम व्यक्ति विस्थापित न होकर स्वाभिमान के साथ जिए और समृद्ध हो।

छत्तीसगढ़ में कोयले की लूट 
कोयला मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ में कोयले का कुल भण्डार 49,280.25 मिलियन टन है। इस भण्डार में से 1996 से 9.09.2009 तक कुल 65 कोयला ब्लाक आबंटित किये गये है। इन 65 कोयला खण्डों में कुल कोयले का भण्डार 11,170.06 मिलियन टन का है जो इन कम्पनियों द्वारा लूटने की खुली छूट दी गई है। इस कोयला भण्डार का वर्तमान बाजार भाव से कुल कीमत 33,51,180 करोड़ रुपया होती है। इस प्रकार इन कम्पनियों द्वारा प्रतिवर्ष 1,11,706 करोड़ रुपये की लूट होगी। 

इन कम्पनियों में से 25 कोयला ब्लाक मंद रायगढ़, 32 कोयला ब्लाक हसदेव अरण्य में तथा शेष उमारिया, विश्रामपुर, झिलीमिली तथा कोरबा में आबंटित किये गये है। ये कोयला ब्लाक स्पंज आयरन, ऊर्जा, सीमेंट, स्टील एवं व्यवसायिक उपयोग के लिए दी गई है। इनमें से स्पंज आयरन के लिए 1793.77 मिलियन टन, ऊर्जा के लिए 4220.93 मिलियटन टन, सीमेंट के लिए 20.30 मिलियन टन, स्टील के लिए 2924 मिलियन टन तथा व्यावसायिक उपयोग के लिए 2211.16 मिलियन टन का खजाना दिया गया है। इस क्षेत्र में आवंटित कोयला ब्लाकों में प्रति एकड़ जमीन में 12 से 60 करोड़ रुपये मूल्य का कोयला भण्डार है। इतने अकूत भण्डार के लिए जमीन मालिकों को मात्र 2 से 5 लाख रुपये प्रति एकड़ देने की कोशिश की जा रही है। सवाल यह है कि जमीन मालिकों को 2 से 5 लाख देकर कंपनियों को 12 से 60 करोड़ रुपये लूटने की छूट देने पर विकास किसका होगा। इतना ही नहीं ये कपंनिया सिर्फ हमारी जमीन एवं जीविका ही नहीं छीनती हैं बल्कि हमारे आस्था के केंद्र मंदिर, मस्जिद एवं अन्य पूजा स्थलों को भी नष्ट करते हैं। अभी हाल में प्रकाश आयरन कंपनी ने प्रशासन के आदेश की अवहेलना करते हुए मतीन दाई मंदिर को भी हटा दिया। इन कामों से यह स्पष्ट होता है कि जन भावना के आस्था का स्थान कंपनियों के लाभ के आगे नगण्य है।

आप सभी जानते हैं कि छत्तीसगढ़ में पहले से भी कई कोयला खदान तथा अन्य उद्योग चल रहे हैं। परन्तु छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी एवं गरीबी की समस्या सबसे ज्यादा है और इसी का नतीजा है कि यहां से आदिवासियों एवं दलित युवाओं का पलायन। एक और बात छत्तीसगढ का हसदेव अरण्य का इलाका अपने खुबसूरत एवं सघन वन के लिए मशहूर है। इस वन में पेड़ों को नष्ट करना पर्यावरण के साथ घोर अन्याय ही नही अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारने जैसा कदम माना जायेगा। हसदेव के सिर्फ मदनपुर इलाके में 14 कोयला ब्लाक निजी कपंनियों को देकर पूरे वन पर इन कंपनियों का अधिकार बनाने की साजिश रची जा रही है। समूचे छत्तीसगढ से आदिवासियों, दलितों एवं अन्य किसानों की जमीन, जंगल एवं जीविका छीनकर विकास के नाम पर निजी कंपनियों को अकूत मुनाफा के लिए देने से न तो राज्य का विकास होगा, न देश का और न ही समाज का। सरकारें अपने बनाये पेसा ;च्म्ै।द्ध कनून एवं आदिवासियों को सुरक्षित रखने वाले अन्य कानूनों का खुलेआम उल्लंघन कर रही हैं। अब वक्त आ गया है कि लोग इन कंपनियों को खदेड़ें और संसाधनों पर समाज की मालकियत स्थापित करें। अगर ऐसा हो गया तो लाखों लोगों का जीवन स्तर भी उच्च कोटि का हो जायेगा और गांव भी सुदृढ़ हो जायेंगे।

महाराष्ट्र में कोयले की लूट 
कोयला मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र में कोयले का कुल भण्डार 10,154 मिलियन टन है। इसमें से 32 कोयला कंपनियों को कुल 1055.042 मिलियन टन भंडार आवंटित किए है। 32 कंपनियों में सिर्फ 9 कंपनियों को 336.52 मिलियन टन दिया गया जबकि 18 निजी कंपनियों को 23 कोयला ब्लाक में 791.522 मिलियन टन का भण्डार दिया गया है। इन कंपनियों में से 8 थर्मल पावर के कैप्टिल ब्लाक है जिन्हें 422.352 मिलियन टन का भंडार दिया गया है। 13 ब्लाक स्पंज आयरन के लिए जिनका भंडार 233.99 मिलियन टन, 6 ब्लाक स्टील के लिए जिनका भंडार 155.87 मिलियन टन तथा 2 ब्लाक व्यावसायिक उत्पादन के लिए जिनका भंडार 84 मिलियन टन है।

गौरतलब है कि विदर्भ में चंद्रपुर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से खतरनाक स्थान रखता है। अधिकांश पावर, प्रोजेक्ट तथा स्पंज आयरन के प्रोजेक्ट इसमें प्रस्तावित है। ऐसी स्थिति में विदर्भ के पर्यावरण की स्थिति क्या होगी यह विचारणीय प्रश्न है। दूसरी ओर अगर बात लूट की करें तो इन कंपनियों के माध्यम से सिर्फ कोयला ब्लाकों से इस क्षेत्र से 30,46,200 करोड़ रुपये की संपत्ति की लूट होगी। इतनी बड़ी लूट में सरकार को खनिज रायल्टी के रूप में मात्र 1,01,540 करोड़ रुपये प्राप्त होंगे। इन अंाकड़ों से स्पष्ट होता है कि हमारे राजनेता किनके विकास के लिए प्रतिबद्ध है। विकास के नाम पर विदर्भ को प्रदूषण एवं विस्थापन के अतिरिक्त कुछ हासिल नहीं होगा।

उड़ीसा में कोयले की लूट 
कोयला भंडार के मामले में उड़ीसा का स्थान भारत में दूसरा है। कोयला मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार यहां कोयले का कुल भंडार 69,158.88 मिलियन टन है। इसमें से 25.02.1994 से 27.02.2009 तक भारत सरकार ने 63 कोयला ब्लाकों में कुल 14,492.44 मिलियन टन कोयला भंडार आवंटित कर दिया है। इसमें से 7,043.74 मिलियन टन निजी कंपनियों को तथा 7,448.7 मिलियन टन का कोयला भंडार सरकारी कंपनियों को दिया गया। इनमें से स्पंज आयरन के लिए 1781.मिलियन टन, पावर के लिए 8,978.04 मिलियन टन, कोल द्रव के लिए, 3,000 मिलियन टन तथा व्यावसायिक उपयोग के लिए 733 मिलियन टन का भंडार दिया गया है।

आपका ध्यान हम लोग उड़ीसा की लूट पर ले जाना चाहते हैं। 14,492.44 मिलियन टन कोयले का आज के बाजार भाव से मूल्य होगा 4347,732 करोड़ रुपये। इस प्रकार प्रति वर्ष कोयले की लूट 144,907.73 करोड़ रुपये होगी। वर्तमान समय में उड़ीसा की आबादी 4 करोड़ 19 लाख 47 हजार है। इस प्रकार प्रति परिवार 1 लाख 90 हजार रु. की लूट प्रति वर्ष सिर्फ कोयले के माध्यम से हो रही है। अगर इस पर जनता अधिकार हो जाय तो प्रति परिवार प्रति माह लगभग 15 हजार रुपये अतिरिक्त आमदनी बढ जाएगी। इस प्रकार खनिजों से भरपूर इस उड़ीसा के लोग देश के सबसे समृद्ध लोगों में शामिल हो पाएंगे। परन्तु दुर्भाग्यवश राजनेताओं की गलत नीतियों के कारण निजी कंपनियों के विकास को ही राज्य का विकास माना गया। इन खनिजों की लूट से राज्य का विकास कितना हुआ है और बदहाली कितनी बढ़ी है यह आपके सामने है।

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