सत्यमेव जयते ने लोगों को ग्लानि और करुणा से भर दिया!
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है!
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समाज में जिनका अच्छा असर होना हो, उनमें मीन-मेख मत निकालिए
♦ शशिभूषण
आमिर खान के मोटी रकम लेने की बात तो कही ही जा रही है, कहने के लिए कोई यह भी कह सकता है कि केंद्र में कांग्रेस गठबंधन की सरकार है तो निशाना बने गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश। लेकिन बहुत जल्द समझ में आ जाएगा कि यह कोरा विरोध होगा।
मैंने एक भिन्न बात सोची कि शाहरुख और अमिताभ को कितना पछतावा हुआ होगा (राखी सावंत के पछताने की बात मैं नहीं सोच पा रहा हूं) कि हमने ऐसा कार्यक्रम न किया, जिसमें समाज की ऐसी चिंता होती। जिसे देखकर अगर मुट्ठी भर लोग भी बदल गये तो आमिर खान का जीवन धन्य हो जाएगा। वे और ऐसे ही कई जरूर पछता रहे होंगे कि हमारी पोल खुल गयी। सरोकारी चीजें भी लोग पसंद करते और देखते हैं।
किसी भी कला माध्यम की सफलता यही होती है कि उससे जनता का भला होगा। दूसरी बात आमिर खान ने जिस साहस के साथ सत्य रखे और अपील की, वह कितनी चुनौतीपूर्ण रही होगी, इसे नजरअंदाज किया जा रहा है।
पैसा तो एक माध्यम है हर बात का हर काम का। क्या कोई गरीब आदमी इतना समृद्ध कार्यक्रम कर सकता है? अगर कर सकता है तो आइए उसी को अमीरी मानें।
मैं समझता हूं समाज में जिनका अच्छा असर होना हो, उनमें मीन-मेख कम निकालना चाहिए। और गलत काम चाहे कितने ही सादे क्यों न हों, जान की बाजी लगाकर उनका विरोध करना चाहिए।
इन्हीं आमिर खान ने डेल्ही-बेली जैसी घटिया फिल्म बनायी थी
♦ संदीप पांडेय
दूरदर्शन पर प्रसारण की आमिर की शर्त को कार्यक्रम की पहुंच से जोड़ कर देखा जा रहा है। मुझे इतनी छूट दीजिए कि मैं इसे बाजार की समझ रखने वाले कारोबारी आमिर खान की इस कोशिश के रूप में देखूं कि स्टार प्लस के साथ दूरदर्शन पर प्रसारण कम से कम यह भी तय कर देगा कि कार्यक्रम किसी भी सूरत में असफल नहीं होगा। क्योंकि आज भी देश की अधिसंख्य आबादी दूरदर्शन देखती है।
शुचिता के तर्क को किनारे रख दिया जाए तो भी यह बात हम कैसे भूल जाएंगे कि यह वही आमिर हैं, जिन्होंने डेल्ही बेल्ही जैसी फिल्म बनायी [ इस फिल्म पर टिप्पणीकार से एक भिन्न नजरिया को यहां देखा जा सकता है : डेल्ही बेली स्त्री के साथ खड़ी है, स्त्री के विरोध में नहीं! : मॉडरेटर ] । रजत शर्मा की आपकी अदालत में आमिर खान से जब एक लड़की ने कहा कि वह आज तक अपनी मां के साथ ही फिल्म देखती रही है और अब वह ये फिल्म देखने कैसे जाएगी, तो आमिर ने आंख दबा कर कहा था कि आप दूसरे के साथ जाइए, आपकी मां को कहिए, वो किसी और के साथ जाएं। डेल्ही बेली का जिक्र इसलिए क्योंकि उसमें भी महिलाएं थीं। और कुछ याद दिलाने की जरूरत शायद नहीं पड़ेगी।
कहने का मतलब यह है कि आमिर खान का बिना मतलब का महिमामंडन बंद किया जाए और एंकर को परे हटाकर एक कार्यक्रम के रूप में सत्यमेव जयते पर बात हो। अगर आमिर खान को समाज सुधार के किसी अभियान के ध्वजवाहक के रूप में पेश किया जाएगा, तो अतीत की उनकी हरकतों का जवाब भी मांगा जाएगा।
कन्या भ्रूण हत्या निस्संदेह एक राष्ट्रीय समस्या है
♦ चंदन पांडेय
सत्यमेव जयते की प्रस्तुति अच्छी थी। आंकड़े पेश करने का तरीका कमाल था। पहले लोकप्रिय मिथ दिखाया और फिर उसे काटते हुए आंकड़े दिखाये। अपने ही स्टिंग के शिकार बेचारे उन पत्रकारों के जरिये बड़ा राज सार्वजनिक किया। दूसरों के अनुभवों को सीधे सीधे सुनना रोंगटे खड़े कर देने वाला था।
आमिर खान का प्रस्तोता होना कुछ इस तरह था कि बचपन में माता पिता के सामने स्कूल के प्रिंसिपल कुछ इस तरह समझाते थे – बेटा, अगर समझ में न आये कुछ तो मैथ वाले सर से पूछो, फिर भी समझ में न आये तो हमसे पूछो। वैसे भी स्कूल के अहाते में प्रिंसिपल का डर ही नहीं, उसका जलवा भी होता है। कई बार हम उस जलवे की आभा से भी कुछ-कुछ समझ जाते थे। वरना तो सवाल वही और तरीके भी लगभग वही के वही।
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