Saturday, May 12, 2012

जिस महाप्रलय की अवधारणा को लेकर ग्लोबीकरण के पक्ष्य में, विश्व व्यवस्था और वैश्विक सरकार बनाने एवम्​ ​ कारपोरेट साम्राज्यवाद को जायज ठहराने का विश्वव्यापी सूचना विस्फोटक प्रचार अभियान जारी है, उस झूठ का पर्दाफाश हो गया!

जिस महाप्रलय की अवधारणा को लेकर ग्लोबीकरण के पक्ष्य में, विश्व व्यवस्था और वैश्विक सरकार बनाने एवम्​ ​ कारपोरेट साम्राज्यवाद को जायज ठहराने का विश्वव्यापी सूचना विस्फोटक प्रचार अभियान जारी है, उस झूठ का पर्दाफाश हो गया!

मुंबई से एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

माया कैलेंडर में खुला असली राज! नास्त्रेदामस और माया सभ्यता की दुहाई देकर जहां इस वर्ष दुनिया का अंत होने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं वही ग्वाटेमाला के जंगलों में मिले माया कैलेंडर के एक अज्ञात संस्करण से खुलासा हुआ है कि अगले कई अरब वर्षों तक पृथ्वी पर मानव सभ्यता के अंत का कारण बनने वाली कोई भी प्रलयंकारी आपदा नहीं आएगी।ग्वाटेमाला के जंगलों में मिले माया कैलेंडर के अब तक के सबसे पुराने संस्करण से साफ है कि अगले कई अरब वर्षो तक पृथ्वी बनी रहेगी। कम से कम कुछ लाखों साल तक तो मानव सभ्यता के अंत का कारण बनने वाली कोई भी प्रलयंकारी आपदा नहीं आएगी। हालीवूड की फिल्मों में हमेशा विश्व पर मंडराते खतरों की थीम कमाऊ साबित होती रही है। महाप्रलय और विश्व के खात्मे के मुकाबले​ ​ एक विश्व व्यवस्था और वैश्विक सरकार भी लोकप्रिय कथानक रहा है। ग्लोबीकरण और वैश्वक खुले बाजार की मार्केटिंग में ये फिल्में काफी मददगार रही हैं। तकनीक और विज्ञान के संयोजन से भविष्यवाणियों को हमेशा सच बनाया जाता रहा है। विश्व पर मंडराते खतरे के मुकाबले वैश्विक​​ सरकार को युदध और नरसंहार की खुली छूट मिल जती है, जो विश्व के अस्तित्व के लिए जरूरी बताया जाता है। मालूम हो कि​ ​ ग्लोबीकरण  और खुला बाजार के लिए अंतिम लक्ष्य भी ऐसी व्यवस्था और वैश्विक सरकार हैं। जिसके तहत विश्व बैंक, विश्व व्यापार संगठन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत अब संयुक्त राष्ट्र संघ के तमाम संगठन काम कर रहे हैं और दुनियाभर के देशों में डालर का वर्चस्व बनाये​ ​ रखने के लिए आर्थिक सुधार यानी विश्व व्यवस्था और खुले बाजार के हक में कानून बनाने के लिए मजबूर किया जाता रहा है। भारत के मीडिया और सिनेमा में यह चलन काफी लोकप्रिय बना हुआ है।रंगबिरंगे स्पेक्ट्रम के जरिये मोबाइल क्रांति के जरिये दर आम ओ खास को इस व्यवस्था से नत्थी भी कर दिया गया है।


मजे की बात है कि जिस महाप्रलय की अवधारणा को लेकर ग्लोबीकरण के पक्ष्य में, विश्व व्यवस्था और वैश्विक सरकार बनाने एवम्​ ​ कारपोरेट साम्राज्यवाद को जायज ठहराने का विश्वव्यापी सूचना विस्फोटक प्रचार अभियान जारी है, उस झूठ का पर्दाफाश हो गया। अमरीकी पुरातत्वविदों ने ग्वाटेमाला में माया सभ्यता का सबसे प्राचीन खगोलीय कैलेंडर खोज निकाला है। ग्वाटेमाला के उत्तरी भाग में खुदाई के दौराना मिला यह कैलेंडर एक इमारत की दीवारों पर तालिकाओं के रूप में मिला है। रिया नोवस्ती के अनुसार इस कैलेंडर में सौर और चांद्र वर्षों का उल्लेख है और आगामी सात हज़ार वर्षों में चाँद ग्रहणों तथा मंगल और शुक्र ग्रहों के मिलाप की तिथियों का वर्णन किया गया है। दुनिया के अंत की भविष्यवाणी कर रहे लोगों के लिए अच्छी खबर नहीं है। ऐसा लगता है कि 2012 दुनिया का आखिरी साल नहीं होगा। जिस माया सभ्यता के कैलेंडर की दुहाई देकर इस वर्ष दुनिया का अंत होने की भविष्यवाणियां की जा रही थीं, उसी के बनाए एक कैलेंडर ने इन आशंकाओं पर विराम लगा दिया है। लैटिन अमेरिका में प्राचीन माया सभ्यता के एक पुराने कैलेंडर में 2012 में दुनिया के खत्म होने का कोई संकेत नहीं दिया गया है। ग्वाटेमाला के एक प्राचीन मकान में मिले अति प्राचीन कैलेंडर में 21 दिसंबर को प्रलय आने की कोई पूर्व प्रचारित भविष्यवाणी नहीं की गई है।पुरातत्वविदों का कहना है कि उन्होंने प्राचीन माया सभ्यता का अब तक का सबसे पुराना कैलेंडर खोज निकाला है जिसमें इस बात का कोई संकेत नहीं मिलता कि दुनिया का अंत करीब है। पुरातत्वविदों का कहना है कि ये कैलेंडर नौंवी सदी का है जिसे अमरीकी शोधकर्ताओं ने सल्टन के भग्नावशेषों से ढूढा है। माया सभ्यता के अन्य कैलेंडरों की इस तरह व्याख्या की जाती रही है कि ये दुनिया वर्ष 2012 में खत्म हो जाएगी।कैलेंडर में सौर और चंद्र वर्षों का उल्लेख है और आगामी सात हजार वर्षों में चंद्र ग्रहणों तथा मंगल और शुक्र ग्रहों के मिलाप की तिथियों का वर्णन किया गया है। पुरातत्वविदों का कहना है कि यह कैलेंडर नौंवी सदी का है। शोधकर्ताओं का कहना है कि यह कैलेंडर कहता है कि दुनिया खत्म होने में अभी कम से कम 7 हजार वर्ष लगेंगे।

दुनिया के अंत, प्रलय या डूम्सडे को लेकर माया माइथॉलजी से शुरू होकर हमारी आज की जिंदगी तक फैला है।अमेरिका की प्रचीन माया सभ्यता ग्वाटेमाला, मैक्सिको, होंडुरास तथा यूकाटन प्रायद्वीप में स्थापित थी। इसका कार्यकाल 300 ई. से 16 वीं शताब्दी तक का था। यह एक कृषि पर आधारित सभ्यता थी।पृथ्वी की उम्र कितनी हो चुकी है इस सवाल पर वैज्ञानिक कभी एक मत तो नहीं हुए लेकिन वर्तमान दौर में तकनीकी विकास ने दुनिया के अंत की अटकलें लगाने में सहूलियत जरूर पैदा कर दी हैं। एक ब्रिटिश सॉफ्टवेयर जो कि 'वेब-बॉट' के नाम से जाना जाता है, का आकलन है कि 21 दिसम्बर 2012 इस दुनिया का अंतिम दिन होगा या विश्व में इस दिन कोई घनघोर तबाही होगी जैसा अभी तक के इतिहास में नहीं हुआ। इस तारीख तक पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र पूरी तरह बदल जाएगा जो जीवन के अस्तित्व के लिए खतरा होगा। कुछ खोजकर्ता इस बात का दावा कर रहे हैं कि माया सभ्यता के कैलेंडर में इस बात का जिक्र है कि पृथ्वी का विनाश हो जाएगा, लेकिन विनाश कब होगा इसका कोई निश्चित आकलन नहीं है। विनाश अगर होगा भी तो अचानक नहीं। विनाश की प्रक्रिया धीरे-धीरे होती है, जैसे पहले हुई थी। जब से पृथ्वी बनी हैं, विनाश के कई चरण हुए हैं, कई प्रजातियां विलुप्त हुई तथा नई आई हैं। भूगर्भीय साक्ष्य भी पृथ्वी पर कई प्राचीन विनाशकारी हलचल को दर्शाते हैं। चाहे वे भूकम्प के रूप में हो या ज्वालामुखी के रूप में या ग्लोबल वार्मिंग या हिमयुग के रूप में।अब तो समाचार चैनलों के साथ-साथ डिस्कवरी चैनल और हिस्ट्री चैनल जैसे चैनल भी पूरी तरह से खुल कर जनता को डरा रहे हैं। हो सकता है यह विश्व को सतर्क करने की पहल हो, परंतु ऐसी भी सर्तकता क्या जो किसी के मन मे भय ही बैठा जाए ?

न्यूयॉर्क टाइम्स के स्तंभकार थॉमस एल. फ्रीडमैन ने घोषणा की कि भूमंडलीकरण के इस नए दौर में विश्व शासन मजबूत होगी क्योंकि कोक-पेप्सी और पिज्जा हट के पित्जा तथा मैकडोनल्ड के हैमबर्गर का उपभोग बढेग़ा और इनको पीने-खाने वाले आपस में नहीं लड़ेंगे। फ्रांसिस फुकुयामा के अनुसार लोकतंत्र और पूंजीवाद का दबदबा बढने से वर्ग संघर्ष समाप्त हो जाएगा और इस प्रकार कोई मूलभूत सामाजिक-आर्थिक संरचनात्मक बदलाव न होगा यानी इतिहास का अंत हो जाएगा। पूंजीवादी व्यवस्था शाश्वत बन जाएगी। फ्रीडमैन ने अपनी पुस्तक ''द लेक्सस एंड दी ओलिव ट्री'' और फुकुयामा ने अपनी कृति ''दी ऐंड ऑफ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन'' अपने दावों को विस्तार से रखा।  वाशिंगटन आम राय पर आधारित भूमंडलीकरण द्वारा अपनाई गई विश्व दृष्टि के अनुसार बाजार कुशल और स्वचालित होंगे। उनमें कोई भारी उतार-चढाव नहीं होंगे। दूसरे शब्दों में, मंदी और तेजी के लम्बे काल नहीं आएंगे।  

2012-पृथ्वी का अंत, प्रलय के महाविनाश के खिलाफ धरतीवासियों के संघर्ष की कहानी है। फिल्म की थीम हॉलीवुड के प्रचलित कॉन्सेप्ट पर आधारित है। 1000 करोड़ डॉलर के बजट पर बनी इस फिल्म के स्पेशल एफेक्ट लोगों को कुर्सी से उछलने पर मजबूर कर सकते हैं। इस फिल्म का बजट 1000 करोड़ रुपए बताया जा रहा है।

निर्देशक - रोनाल्ड एमैरिक

स्टार कास्ट - जॉन कॉक, डैनी ग्लोवर, ऑलिवर प्लैट ,एमांडा पीट

स्क्रिप्ट राइटर - रोनाल्ड एमैरिक, हेराल्ड क्लोसर

रोनाल्ड डिसास्टर मूवी डायरेक्टर हैं। गोडजिला,10000 बी सी और द डे आफ्टर टोमॉरो में लोग उनकी फिल्मों के जादू में बँध चुके हैं।
फिल्म की कहानी ज्योतिष और विज्ञान का अद्भुत संगम है। प्राचीन माया कैलेंडर के मुताबिक २१ दिसंबर २०१२ को दुनिया का अंत हो जाएगा, इसी तथ्य को आधार बनाकर कहानी आगे बढ़ती है। एक तलाकशुदा लेखक और उसका पिता जैक्सन अपने प्रयासों से खोजते हैं कि इस प्रलय में सम्पूर्ण मानवता का नाश नहीं होगा बल्कि कुछ लोग बच जाएंगे। पर वो लोग कौन होंगे? कैसे बचेंगे? इस के बारे में उन्हे कोई जानकारी नहीं हासिल होती।

२१ तारीख को जब प्रकृति दुनिया पर अपने कहर ढाने शुरू करती है तो विनाश के जीते-जागते गवाह बने ये बाप, बेटे क्या करते हैं। यही इस फिल्म की कहानी है। रोनाल्ड एक बार फिर डिसास्टर डायरेक्टर की अपनी इमेज पर खरे साबित हुए।

इससे पहले वैज्ञानिकों ने भी वर्ष 2012 में पृथ्वी पर प्रलय आने की आशंकाओं को निराधार बताया था। अटकलों में कहा जा रहा है कि वर्ष 2012 में अधिनव तारा का विस्फोट होगा, जिससे सूर्य के पूरे जीवन के बराबर ऊर्जा निकलेगी और इससे पृथ्वी पर जीवन प्रभावित हो सकता है।लेकिन अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष की व्यापकता और प्रकाश वर्ष का हवाला देते हुए बताया कि कोई भी तारा पृथ्वी के इतने करीब नहीं है कि वह उसे नुकसान पहुंचा सके। नासा की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि पृथ्वी के सबसे नजदीक गामा किरणें हैं, जो पृथ्वी से 1.3 अरब प्रकाश वर्ष दूर है।

भारत में भविष्यवाणियां और दैवी वाणियां पौराणिक कथाओं, रामायण, महाभारत और भागवत का आधार बनती रही हैं, पर इनमें विश्व ​व
व्य्वस्था का उल्लेख नहीं है। इनका संबंध कर्मफल और मनुस्मृति के सिद्दांतों के साथ है, जिससे भारत में आज भी ब्राह्ममवादी व्यवस्था चल रही है। इस तंत्र को समझें तो ग्लोबीकरण के लिए माया कैलेंडर का कारोबार समझने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। महात्मा मार्कण्डेय ने कलयुग के तमाम लक्षणों को स्पष्ट करने के बाद कल्कि अवतार की बात की है। अवतार के संबंध में लेखक अपने बुद्धि व विवेक के आधार पर उपरोक्त कथन का जो निष्कर्ष निकाला है वह इस तरह से है। मार्कण्डेय ऋषि ने लिखा है कि कल्कि भगवान संभल नामक ग्राम में ब्राम्हण परिवार में जन्म लेगा, यहां पर पाठक ध्यान दे कि कोई भी भविष्यवाणी पहले कूट शब्दों में  की जाती थी जैसे नास्त्रेदामस की भविष्यवाणियों में कूटभाषा का प्रयोग किया गया है हां तो आइये इसी आधार पर विश्लेषण करने की कोशिश करते है|भूमंडलीकरण के वर्तमान दौर ने बीस वर्ष पूरे कर लिए हैं। इसकी शुरुआत 1989 में हुई जब इसके वैचारिक आधार 'वाशिंटन आम राय' का प्रतिपादन जॉन विलियम्सन ने किया, वैसे उसकी पृष्ठभूमि थैचर और रीगन के सत्तारूढ होने, अर्शशास्त्रियों के शिकागो स्कूल का दबदबा बढने, सेवियत संघ एवं समाजवादी खेमे के अवसान के कारण अमेरिका के एकमात्र महाशक्ति बन जाने तथा गुटनिरपेक्ष आंदोलन के शक्तिहीन होने और आत्मनिर्भर स्वतंत्र अर्थव्यवस्था की बात नवस्वतंत्र देशों में भुलाने के साथ तैयार हो गई थी।  वाशिंगटन आम राय पर आधारित भूमंडलीकरण में राज्य की आर्थिक भूमिका को न्यूनतम बनाने और निजीकरण पर विशेष जोर दिया था। इस धारणा को रेखांकित किया गया कि राज्य संरक्षणवाद, सब्सीडी और अपने स्वामित्व में उद्यमों की स्थापना द्वारा अर्थव्यवस्था की कार्य कुशलता पर बुरा प्रभाव डालता है। वाशिंगटन आम राय ने विदेशी प्रत्यक्ष एवं संस्थागत निवेश के बेरोक टोक आने-जाने, कम्पनियों को मजदूरों की भर्ती और सेवाशर्तों को बिना सरकारी हस्तक्षेप तय करने तथा मजदूर संगठनों पर अंकुश लगाने पर जोर दिया।

प्रो हरार ने कुछ तथ्य और अवतार के सम्बन्ध में स्पष्ट किये हैं कि जैसे उस अवतार का जन्म ब्राम्हण कुल में होगा एवं यज्ञ और पूजा पाठ में विशेष प्रवीण होगा, अपनी भविष्यवाणी में प्रो हरार ने उस अवतार को यज्ञ व पूजा पाठ में विशेष योग्य होने की बात कही है। और अगर वर्तमान यज्ञों की स्थिति देखी जाय तो बड़ी अजीब दशा है हर छोटी-बड़ी संस्था या संगठन एक कुण्डीय से 1008 कुण्डीय यज्ञ तक करा रही है। अधिकांश यज्ञों में किराये के पंडितों  द्वारा मंत्र पाठ होता है और यज्ञ वेदी में यजमान आहुति देते हैं। यज्ञकुण्ड में कुन्टलों सामग्री, टनों लकड़ी, मनों देशी घी स्वाहा कर देते हैं। लेकिन वेदों पुराणा में वर्णित यज्ञों से इन यज्ञों की तुलना की जाये तो ऊर्जात्मक स्थिति शून्य है। आज तो एक पंडित हर तरह के यज्ञ कराने को तैयार है, चाहे वह श्री कृष्ण हनुमान, लक्ष्मी या अन्य जितने वर्णित नाना प्रकार के यज्ञ हों। अधिकांश पण्डितों की अपने यजमान से यही अपेक्षा रहती है कि जितना ज्यादा से ज्यादा धन दक्षिणा के रुप में प्राप्त हो सके ले लिया जाय। जितना बड़ा यज्ञ होगा दक्षिणा उतनी ही मोटी होगी। यज्ञ के फल से उनका कोई सरोकार नहीं है|

आर्थर चाल्सक्लार्क ने एक नई बात कही है जिस तरह वर्तमान समय में संयुक्त राष्ट्रसंघ का मुख्यालय अमेरिका में है उसी तरह संयुक्त ग्रह राज्यसंघ का मुख्यालय अमेरिका में है उसी तरह संयुक्त ग्रह राज्यसंघ का मुख्यालय मंगल ग्रह या गुरू ग्रह पर हो सकता है। प्रश्न उठता है कि भारत क्यों  नहीं हो सकता ? जरा आप इन तथ्यों  पर विचार करें कि विश्व के समस्त उच्चकोटि के भविष्यवक्ता एक ही स्वर से स्वीकार कर रहे हैं कि ''ईश्वर का जन्म भारत में होगा'' तो फिर समस्त ग्रहों का मुख्यालय भी यहीं होना चाहिए।

महान भविष्यवक्ता नास्त्रेदमस ने उस अवतार के बारे में लिखा है कि उसका जन्म तीन ओर सागरों से घिरे देश में होगा, जो ब्रहस्पति को अपना उपासना दिवस घोषित करेगा, वह गैर ईसाई होगा। पाठकगण जरा ध्यान दें सम्पूर्ण विश्व में भारत देश ही एक ऐसा देश है कि जिसके दोनो छोर पर दो सागर तथा चरणों में एक महासागर है साथ ही आगे गौर करें कि ईसाइयों का पूजा दिवस रविवार, मुसलिम धर्माचार्यो का पवित्र दिवस शुक्रवार तथा यहूदियों का प्रार्थना दिवस शनिवार है। विश्व में एक हिन्दू जाति ही ऐसी है जो बश्हस्पतिवार (गुरुवार ) सर्वाधिक शुभ दिवस मानती है इसलिए और स्पष्ट हो जाता है कि नास्त्रेदमस ने भारत में ही उस अवतार के जन्म के विषय में कहा है।  आगे नास्त्रेदमस ने सेन्चुरी 27 में कहा है कि उसका जन्म पांच नादियों के प्रान्त में होगा। अब हमें गौर करना है कि भारत में ऐसा कौन सा प्रान्त है जिसमें वेदों में वर्णित पांच नदियां बहती हो। पाठकगण ध्यान दें हमनें वेदों में वर्णित नदियों का जिक्र इसलिए किया है कि जब यहां पर ईश्वर (अवतार) के जन्म की बात हैं तो नदियां भी वेदों में वर्णित होनी चाहिए जिन्हें भारतीय समाज श्रद्धा की दृष्टि से देखता हो। अस्तु भारत वर्ष के हर प्रान्त की नदियों की स्थितियों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश प्रान्त ही ऐसा है जहां वेदों में वर्णित व पूजित पांच 4नदियां- गंगा, यमुना, सरस्वती, गोमती, घाघरा प्रवाहित हैं अन्य ऐसा कोई प्रान्त नही है जहां इस तरह एक साथ पांच धार्मिक आस्था वाली नदियों  की उपस्थिति हो, साथ ही गंगा, यमुना, सरस्वती जैसी धार्मिक दृष्टि से उच्च स्थान प्राप्त तीन नदियों का संगम भी केवल उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले मे है। अत: इससे निश्चित हो जाता है कि उस ईश्वर का जन्म उत्तर प्रदेश में ही होगा।

एक ताजा अनुसंधान के अनुसार वैज्ञानिकों ने पाया कि माया सभ्यता के एक प्राचीन खंडहर की दीवार पर खुदे कैलेंडर में अब से 600 साल बाद तक की तिथियां अंकित हैं। यानी इस कैलेंडर के हिसाब से वर्ष 2012 में दुनिया के खत्म होने की माया सभ्यता की बात अतार्किक है। चूंकि माया कैलेंडर में भौगोलिक व खगोलीय घटनाओं का वर्णन अब तक काफी सटीक पाया गया है, इसलिए इस पुरातन सभ्यता के पिछले कैलेंडर में 21 दिसंबर 2012 को दुनिया के खत्म होने की भविष्यवाणी को इतिहासकार और वैज्ञानिक बहुत गंभीरता से ले रहे थे, लेकिन अब इसी सभ्यता का एक उससे भी पुराना कैलेंडर मिला है, जिसमें वर्ष 2012 के बाद की भी तिथियां अंकित हैं। इसलिए यह माना जा रहा है कि पृथ्वी पर प्रलय या विनाश का फिलहाल कोई अंदेशा नहीं है। माया सभ्यता के इस पुराने कैलेंडर में माया सभ्यता के समय से कुल 6000 वर्ष की तिथियों का वृतांत है। इसका मतलब पृथ्वी पर जीवन अब से काफी आगे तक रहने की संभावना है।

पूर्वोत्तर ग्वाटेमाला में माया सभ्यता के प्राचीन शहर शूलतुन में पुरातत्वविदों ने एक घर की दीवारों पर बनी पेंटिंग ढूंढ निकाली हैं। यह तस्वीरें न केवल गणितीय और ऐतिहासिक रूप से अहम है बल्कि इससे माया सभ्यता के जीवन की एक अनूठी झलक मिलती है। इस शोधकार्य को अंजाम देने वाले बोस्टन विश्वविद्यालय के पुरातत्वविद विलियम सैटनरे ने कहा कि माया सभ्यता के पुरोहित दरअसल ब्रह्मांडीय समय को समझने का प्रयास कर रहे थे और यही वह जगह है जहां वे इन गणनाओं को अंजाम दिया करते होंगे।दीवार पर बनी पेंटिंग्स में एक लगभग आधे वर्ग मीटर आकार का कैलेंडर है। वैज्ञानिक इसे अब तक मिला सबसे पुराना माया कैलेंडर करार दे रहे हैं। इस कैलेंडर में कई वर्षो के लिए समय की गणना की गई है और यह कम से कम 7000 साल आगे तक जाता है। जाहिर है 2012 का प्रलय इन मायावासियों के दिमाग में नहीं था। साथ ही इन गणनाओं के आधार पर लाखों-करोड़ों वर्ष आगे तक की भविष्यवाणियां की जा सकती हैं।यह नया कैलेंडर पत्थर की एक दीवार में तराशा हुआ है जबकि 2012 मे दुनिया के अंत की भविष्यवाणी करने वाले सभी माया कैलेंडर पुरानी पांडुलिपियों में मिलते हैं। दुनिया के अंत की घोषणा करने वाले सभी कैलेंडर इस पाषाण कैलेंडर से कई सौ वर्ष बाद तैयार किये गए थे।

शूलतुन के जंगलों में माया सभ्यता का एक महत्वपूर्ण शहर होने के बारे में पहली बार 1915 में पता चला था। इसके बाद यहां खजाना चोरों ने कई बार सेंध लगाने का प्रयास किया। प्रोफेसर सैटनरे के छात्र मैक्स चेम्बरलिन ने जब 2010 में एक सुरंग से जाकर यहां कुछ भित्तिचित्रों के होने का पता लगाया तो पूरी टीम खुदाई में जुट गई और उन्होंने सदियों से गुमनामी में खोए माया सभ्यता के इस प्राचीन शहर को ढूंढ निकाला। यह पूरा शहर 16 वर्गमील में फैला हुआ है और इसे पूरी तरह से खोदकर बाहर निकालने के लिए अगले दो दशकों का समय भी कम है।

साइंस पत्रिका की रिपोर्ट के अनुसार न्यूयार्क के हेमिल्टन स्थित कोलगेट यूनिवर्सिटी के एथोनी अवेनी का मत है कि अगर दुनिया खत्म होने वाली होती तो इतने आगे की अवधि की तिथियों को कैलेंडर में क्यों दर्ज किया जाता। पूर्वोत्तर ग्वाटेमाला के जुल्टन वर्षा वन में पाए गए माया सभ्यता के इस खंडहर की दीवारों पर उनके राजा के सिंहासन पर बैठने के चित्र अंकित हैं। इसके अलावा उस पर कई अन्य चित्र भी उकेरे गए हैं। एक अन्य दीवार पर चंद्रमा की गतियों पर आधारित 13 वर्षो को दर्शाने वाला एक कैलेंडर भी है। अनुसंधान कर्ताओं का मानना है कि माया सभ्यता के लोगों का मत रहा होगा कि उनकी देवी कभी-कभार चंद्रमा की गतियों को नजरअंदाज भी करती होंगी।

विश्व भर के अवाम ने पर्थ से लेकर वॉशिंगटन तक अलग-अलग समय पर अपने अपने अंदाज में बाहें फैलाकर जश्न मनाकर 2012 के उस वर्ष का स्वागत किया जिसमें दुनिया के खत्म हो जाने की आशंकाएं लंबे वक्त से की जाती रही हैं।

पृथ्वी के सुदूर पूर्व में स्थित देशों ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण प्रशांत में पड़ने वाले टापू देशों ने वर्ष 2012 का सबसे पहले स्वागत किया। जैसे-जैसे रात की खामोशी के बीच वक्त सरकर पश्चिम के देशों की ओर बढ़ रहा था वैसे-वैसे आसमान में रंगीन आतिशबाजी से उसका स्वागत किया गया। विश्व के 2012 में खत्म हो जाने की आशंकाएं पुराने समय से आस्तित्व में रही हैं।

माया सभ्यता के अनुसार 21 दिसंबर 2012 को पूरा विश्व एक जलजले में खत्म हो जाएगा। माया सभ्यता में मान्यता थी कि दुनिया 5125 वर्ष पुरानी है और 21 दिसंबर को कुछ ऐसा बड़ा होगा जो इस दुनिया के अंत का सबब बनेगा। लातिन भविष्यवक्ता नास्त्रेदामस ने भी 500 वर्ष पहले कुछ ऐसी ही भविष्यवाणी की थी। हालांकि ऐसा लग रहा था कि दुनिया के खत्म होने की आशंकाओं के बीच लोग जिंदगी का जश्न मना लेना चाहते हों।

ऑस्ट्रेलिया के सिडनी शहर पर जहां बादलों का आकार लिए हुए आतिशबाजी और उसके बीच में सिडनी ब्रिज को इंद्रधनुष जैसा जगमगा कर नववर्ष का जश्न मनाया गया, वहीं भयंकर राजनीतिक उथल-पुथल के केंद्र में चल रही रूस की राजधानी मास्को के आसमान पर सुर्ख आतिशबाजी ने जगह ली।

अमेरिका में न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कावयर पर भी हजारों लोग बीते वर्ष को विदाई देने के लिए जमा हुए थे। कई न्यूयॉर्क वासी शनिवार सुबह से ही पार्टी में पहनी जाने वाली टोपियां और 2012 के चश्मे लगाकर घूमते देखे गए थे।

न्यूयार्क का मौसम भी आम दिनों के मुकाबले काफी खुशनुमा और गर्म था। चीन की संवाद एजेंसी शिन्हुआ ने बताया कि नववर्ष के अवसर पर एक बड़ी संख्या में इंटरनेट उपभोक्ताओं ने इंटरनेट की मदद से दुनिया के अंत जैसे विषयों पर सर्च किया।

हालांकि दुनिया के खत्म होने की इस अटकलबाजी के बीच अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी (नासा) ने इस बारे में लोगों का भय दूर करते हुए कहा कि दुनिया को 2012 में कुछ भी नहीं होने जा रहा है।

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