Thursday, May 10, 2012

मुझे सुनें, मैं आपके लिए सुर में गाने की कोशिश करूंगा!

http://mohallalive.com/2012/05/09/taimur-rahman-version-on-laal-band-controversy-via-jnu/

 विश्‍वविद्यालयसंघर्ष

मुझे सुनें, मैं आपके लिए सुर में गाने की कोशिश करूंगा!

9 MAY 2012 4 COMMENTS

♦ तैमूर रहमान

पाकिस्तान के लाल बैंड के जेएनयू में कार्यक्रम को लेकर विश्वविद्यालय और विश्वविद्यालय के बाहर कई तरह की बातें हुई हैं। मोहल्ला लाइव पर भी उन तमाम बहसों को रखा गया है। बैंड के मुखिया तैमूर रहमान ने इन बहसों में उठे सवालों का जवाब देने की कोशिश की है : मॉडरेटर

पहले जेएनयू में लालबैंड से जुड़ी इन पोस्‍ट्स से गुजरें…

♦ उठो मेरी दुनिया, गरीबों को जगा दो!
♦ एक आभिजात्‍य सनक में बदलता जा रहा है तैमूर का "लाल"
♦ सुर न हो, तो सिर्फ शब्‍द से काम नहीं चलता लाल बाश्‍शाओ!
♦ क्रांतिकारी व्‍यवहार का विकल्‍प महज लफ्फाजी नहीं हो सकती
♦ मजहबी दहशतगर्द अवाम के साथ नहीं, सामराज के साथ हैं!
♦ पाक के हालात समझेंगे, तो "लाल बैंड" भी समझ में आएगा
♦ इतिहास बनाने वाले हंस नहीं पाते, हंसी उनके लिए बाधा है


दोस्तो,

ई दिवस पर जेएनयू में हुए लाल के कार्यक्रम को लेकर कई बातें कही जा रही हैं। हमने डीएसयू (माओवादी विचारधारा का एक संगठन : अनुवादक) का एक परचा पढ़ा, जो बहुत ही अधिक आलोचनात्मक था और कुछ हद तक दुखद भी। उस पर्चे में लाल के बाबत कही गयीं कुछ बातों पर हम स्पष्टीकरण देना चाहेंगे…

1) त्रिथा इलेक्ट्रिक ग्रुप को आइसा या जेएनयू छात्रसंघ की ओर से नहीं बुलाया गया था और न ही उनको टाइम्स म्युजिक द्वारा प्रायोजित किया जा रहा है। सच यह है कि उन्हें हमने यानी लाल ने अपने साथ बजाने के लिए शामिल किया था क्योंकि हमारे साथी हैदर और सलमान को किसी आवश्यक कारण से वापस पकिस्तान जाना पड़ा था। इसके बदले त्रिथा ने निवेदन किया था कि उन्हें उनके तीन गाने गाने का अवसर मिले। लाल को यह जानकारी नहीं थी कि वे क्या गाने वाले हैं। वैसे भी हम शायद ही समझ पाते कि हिंदुस्तान के संदर्भ में उस गाने का क्या वैचारिक मतलब हो सकता था क्योंकि वह संस्कृत में था। शायद वहां मौजूद लोगों के लिए यह स्वीकृत नहीं हो सकता था लेकिन हम पाकिस्तानी हिंदू संस्कृति या उसके भीतर की बहसों से परिचित नहीं हैं। छात्रसंघ तुरंत ही मंच के पीछे हमारे पास आये और गाने को बीच में रोकने के लिए कहा क्योंकि यह मई दिवस के अवसर के लिए सही नहीं था। लाल ने तुरंत ही मंच संभाला और जितना भी हो सकता था, उतनी शालीनता से गाने को रोक दिया। हमें अभी भी पता नहीं कि उस गाने में क्या कहा गया, बस इतना पता है कि वह एक धार्मिक गीत था। इसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं लेकिन यह जानबूझकर या किसी तरह के या किसी के द्वारा किसी विचारधारा या स्वार्थ से प्रेरित नहीं था।

2) जहां तक आतंक के विरुद्ध अमरीकी दुष्प्रचार को प्रचारित करने के आरोप का सवाल है, डीएसयू ने इसे ठीक से नहीं सुना और समझा। कृपया इस वीडियो को देखिए, हमारे लेखों को पढ़िए और नेट पर मौजूद हमारे भाषणों को सुनिए।


स गीत के बोल, संबंधित लेख और भाषण सभी यह बताते हैं कि साम्राज्यवादियों ने ही इन आतंकियों को पैदा किया है, जिनके खिलाफ आज वे लड़ने का दावा कर रहे हैं। और उनका असली मकसद दुनिया में साम्राज्यवादी वर्चस्व कायम करना है। गीत में साफ कहा गया है, 'अमरीका के टट्टू सारे, कब से हो गये दोस्त हमारे?'। मुझे लगता है कि डीएसयू ने ठीक से नहीं सुना, जब हमने यह गाया, सामराज मुर्दाबाद, सरमायेदारी मुर्दाबाद, जागीरदारी मुर्दाबाद'। कृपया इस बात को समझिए कि लाल कभी भी साम्राज्यवाद के समर्थन में नहीं हो सकता क्योंकि इस गाने में हम यह भी गाते हैं, 'साम्राज्यवाद मुर्दाबाद'।

पर्चे में कही गयी अन्य बातों पर मैं कुछ नहीं कह सकता क्योंकि उनके बाबत मुझे जानकारी नहीं है। मुझे उम्मीद है कि मैंने इन दो सवालों पर अपना पक्ष साफ कर दिया है।

जेएनयू में आपलोगों के लिए कार्यक्रम करना अद्भुत अनुभव था। मैं जानता हूं कि इस विश्वविद्यालय में विभिन्न संगठनों के बीच गरमागरम बहस होती रहती है। लेकिन लाल को इस बहस से दूर रखिए। कैंपस के किसी संगठन से हम किसी तरह संबद्ध नहीं हैं और न ही कोई संगठन हमसे संबद्ध है। हम आपको 'रास्ता दिखाने' की कोई कोशिश नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ कुछ गीत और पकिस्तान में संघर्ष के अनुभवों को आपसे साझा कर रहे थे। और यह करते हुए हमें बहुत अच्छा लगा।

मैंने इस आयोजन से एक दिन पहले जेएनयू में इप्टा के कार्यक्रम में कम्युनिस्ट मजदूर किसान पार्टी के बारे में विस्तार से बातचीत की थी। मुझे नहीं पता कि पकिस्तान में खुले तौर पर कोई 'कम्युनिस्ट' बैंड या संगीतकार है। लेकिन हिंदुस्तान में ऐसे कई ग्रुप हैं, जिनसे मैं सीखना चाहूंगा। जहां तक अनप्लग्ड या प्लग्ड, धीमे या तेज संगीत की बात है, तो यह संगीतकार और सुनने वालों की पसंद की बात है। मैं नहीं मानता कि एक तरह का संगीत दूसरे तरह के संगीत से बेहतर होता है। मैं बस वही बजता हूं, जिसे बजाना मुझे अच्छा लगता है। मई दिवस के उस अवसर पर मैं लोगों की भावनाओं को उद्वेलित करना चाहता था, इसीलिए मैंने तेज धुन के गीत गाये। दिल्ली प्रेस क्लब में हमने बिना ड्रम के गाया। यह वहां सुनने आये लोगों के लिए और माहौल के हिसाब से ठीक था।

एक दफा किसी ने फैज अहमद फैज से कहा, 'फैज साहेब, आप बहुत बढ़िया लिखते हैं, लेकिन उतना बढ़िया पढ़ते नहीं'। कुछ सोच के फैज ने कहा, 'अरे भाई, सबकुछ हम ही करें, कुछ आप भी करें ना'। लाल के साथ कई सही-गलत चीजें हैं। और हम आपके सहयोग से उसे बेहतर करेंगे।

इन दिनों लाल के व्यवसायीकरण के बारे में बहुत कुछ कहा-सुना जा रहा है। यह सब बकवास की बातें हैं। हमने अपना पिछला अलबम 'उम्मीद-ए-सहर' भी इसी तरह रिलीज किया था। इसे जियो टीवी ने प्रोमोट किया था और वीडियो भी उन्हीं ने बनाया था। हिंदुस्तान में वामपंथ की मजबूती के कारण हालात अलग हैं, लेकिन पकिस्तान में हम बुरी तरह से अलग-थलग हैं और मुख्यधारा में आने के लिए रास्ता निकालना पड़ता है। इसलिए, अपनी बात को आगे ले जाने के लिए मैंने बड़ी जद्दोजहद की। इप्टा के कार्यक्रम की बातचीत में मैंने लेनिन के बुलेट-प्रूफ ट्रेन का उदहारण दिया था, जिसकी व्यवस्था जर्मनों ने की थी। उस ट्रेन से लेनिन क्रांति से ठीक पहले रूस पहुंचे थे। लाल को भी बड़े स्तर पर पहुंचने के लिए ऐसे रास्ते की दरकार थी।

मैं यह भी कहना चाहूंगा, अगर मैं सुर में न गाऊं तो क्या आप खड़े होकर चल देंगे! मैं कहता हूं कि मुझे सुनें, मैं आपके लिए गाऊंगा, मेरी कोशिश होगी कि मैं सुर के साथ गा सकूं। मैं संगीत के माध्यम से कहानी कहना चाहता हूं। यह कहानी हमारे संघर्ष की कहानी है। यह बेसुरा है, गड्डमड्ड है, शोर से भरा है, बिखरा है, क्योंकि हमारी इस दुनिया के संदर्भ में हमारी कहानी भी ऎसी ही है। मैं बस इतना भरोसा दिलाना चाहता हूं, यह हमारी कहानी है, यह दिल से निकलती है।

पाकिस्तान में कम्युनिस्टों के बीच में हुई टूट का हिंदुस्तान की टूटों से लेना-देना नहीं है। पकिस्तान में बस दो ही पार्टियां हैं जो अपने को कम्युनिस्ट पार्टी कहती हैं, कम्युनिस्ट पार्टी और कम्युनिस्ट मजदूर किसान पार्टी, और हम दोनों में घनिष्ठ संबंध हैं। हमारे बीच कोई विवाद नहीं है, बस हम अलग-अलग इलाकों में काम करते हैं। हां, मैंने इन बंटवारे को तोड़ा है। यह मैं स्वीकार करता हूं। मैं इसे अनैतिक नहीं मानता क्योंकि मुझे एक उद्देश्य को पाना है और उसके लिए हर जरूरी कदम मैं उठाया है।

वर्ल्ड फैशन कैफे में बजाने का उद्देश्य यह था कि बाढ़ की आपदा झेल रहे दो करोड़ लोगों की मदद के लिए कुछ धन जुटाया जा सके। मैं समझता हूं कि मेरा यह कहना ज्यादा बुर्जुआ होता कि 'मैं इस कैफे में नहीं बजाऊंगा, मैं जानता हूं कि इससे कई परिवारों को मदद मिलेगी लेकिन इससे मेरे वामपंथी मूल्यों को नुकसान होगा'। हमारा उद्देश्य मदद के लिए धन जुटाना था। जितना हम कर सके वह बहुत नहीं था। काश, हम कुछ और कर पाते। टाइम्‍स और हार्ड रॉक कैफे के साथ किये इस टूर की बात है तो इसका उद्देश्य आप जैसे अच्छे लोगों से मिलना था, भले ही इसके लिए आलोचना की जाए, दोनों देशों के बीच की दूरी को कुछ पाटना था, अपने दूसरे अल्बम को जारी करना था और लाल को दक्षिण एशिया के पैमाने पर लाना था। यह हिंदुस्तान के लिए बड़ी बात नहीं हो शायद, जहां कई ऐसे बैंड हैं, लेकिन हमारे लिए यह बहुत बड़ी बात थी। हमने बहुत कुछ सीखा, प्रगतिशील राजनीति की एक बड़ी दुनिया हमारे सामने खुली, और इसने हमारे अनुभवों और संघर्ष को आगे बढ़ाया।

हमारे संगीत के व्यवसायीकरण की जो बात है तो यह स्पष्ट कर देता हूं कि हिंदुस्तान का पूरा टूर 'नो प्रौफिट, नो लॉस' के आधार पर था। हमने कोई पैसा नहीं बनाया (न ही हमारा कोई खर्च हुआ)। टाइम्स को यह अल्बम बिना पैसे के दिया गया है (हमें बस रॉयल्टी मिलेगी, जब मिलनी होगी)। बड़े नुकसान के साथ हम लाल को चलाते हैं, इसका खर्च लेक्चरार के तौर पर मिलने वाले वेतन से चलता है। अब इसमें व्यवसायीकरण कहां से आ गया!

बहरहाल, दोनों देशों में व्याप्त विरोधाभास एक-दूसरे से अलग हैं। हिंदुस्तान में मुख्य बहस इस बात पर है कि (जितना मैं समझ सका हूं) कैसे और कितना बुर्जुआ संसदीय व्यवस्था के साथ संबंध रखा जाए या बिलकुल न रखा जाये। पकिस्तान में तो यह बहस हो ही नहीं सकती क्योंकि हमने बहुत थोड़े समय के लिए बुर्जुआ लोकतंत्र देखा है। हमारे यहां तानाशाहियों का लंबा दौर रहा है।

अनुवाद : प्रकाश के रे

तैमूर रहमान पाकिस्‍तान के मशहूर स्‍वतंत्र गायक और संगीतकार हैं। उनके बैंड का नाम है, लाल। वे राजनीतिक कार्यकर्ता भी हैं और पाकिस्तान की कम्युनिस्ट मजदूर किसान पार्टी के महासचिव हैं। वे थिएटर भी करते हैं। ग्रीनेल कॉलेज से उन्‍होंने ग्रेजुएशन किया और ससेक्‍स विश्‍वविद्यालय से मास्‍टर डिग्री ली। स्‍कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्‍टडीज से पाकिस्‍तान के क्‍लास स्‍ट्रक्‍चर पर पीएचडी की। लाहौर स्‍कूल ऑफ इकोनॉमिक्‍स से उन्‍होंने अर्थशास्‍त्र भी पढ़ा और लाहौर युनिवर्सिटीज ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज से राजनीति विज्ञान की पढ़ाई भी की। उनसे फेसबुक के जरिये (www.facebook.com/messages/taimurr) संपर्क कर सकते हैं।

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