सरकार और अदालत पर भारी एक कलक्टर
मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार स्वयं को सर्वोच्च न्यायालय से भी ऊपर मानती है इसीलिए सरकार की मेहरबानी पर डाॅ. एम गीता की कलेक्टरी चल रही है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को धता बताते हुए सरकार उनकी सेवाएं ले रही है। एम.गीता को छत्तीसगढ़ क्यों नहीं भेज रही है सरकार, इसका स्पष्ट जवाब मुख्यमंत्री ने विधान सभा में भी नहीं दिया। |
मध्य प्रदेश में कई कलेक्टरों के कामकाज चर्चा में रहे तो कइयों के काले कारनामे सुर्खियों में अब तक हैं। मुख्यमंत्री सचिवालय के प्रमुख सचिव मनोज श्रीवास्तव भी कम चर्चित नहंीं है। कभी दिग्विजय सिंह के चहेते थे लेकिन सरकार बदली तो शिवराज के खास हो गए। इसी तरह राधेश्याम जुलानिया भी दिग्विजय सिंह के समय छतरपुर में कलेक्टर रह कर राजा का डंका बजाया करते थे अब जल संसाधन विभाग इनके बगैर नहीं चलता। टीनू-आनंद जोशी दंपति तो अपने भ्रष्टाचार को लेकर अभी तक मीडिया में छाए हुए हैं। आईएएस की सूची में ऐसे कई कलेक्टरों के नाम हैं जो अपने कामों से कई जिलों की जनता के दिलो में अब भी बसे हुए है। ऐसी ही सूची में एक नाम है डाॅ. एम. गीता का। एम. गीता जहां भी रहीं, अपनी दबंग छवि के लिए जानी जाती रहीं। यह अलग बात है कि वो तृतीय, चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को ज्यादा परेशान करने के लिए जानी जाती हैं। साथ ही मीडिया में किस तरह चर्चा में बने रहना है, इसे वो बखूबी जानती हैं। समय समय पर उन पर कई आरोप लगे हैं। उनके खिलाफ लोकायुक्त में भी मामला है। साथ ही कई मौतों का आरोप भी उन पर है। बावजूद इसके सरकार उन पर मेहरबान है। सरकार की मेहरबानी से वो इन दिनों एक बार फिर सुर्खियों में हैं वो भी प्रशासनिक गलियारों में।
महिला आई.ए.एस. यानी उज्जैन की कलेक्टर डाॅ.एम गीता पर राज्य सरकार की मेहरबानियां प्रशासनिक गलियारों में चुटकुले की तरह सुनी जा रही हैं। कईयों की आॅखों में एम गीता खटक भी रही हैं इसलिए कि एक मात्र यही कलेक्टर हैं जिसका पक्ष सरकार सदन में और बाहर भी ले रही है। इन्हें सरकार श्रेष्ठ कलेक्टर के रूप में पुरस्कृत भी कर चुकी है। डाॅ. एम गीता कोे लेकर बजट सत्र में सवाल किया गया था, जिसका जवाब राज्य सरकार ने गोलमोल ढंग से दिया। सरकार के जवाब से असंतुष्ट होकर विधायक पुरुषोत्तम दांगी ने प्रश्न संदर्भ समिति में अपनी अर्जी लगाने का निर्णय लिया है। सरकार ने प्रमुखता से कलेक्टर एम.गीता का सदन के भीतर बचाव किया, साथ ही उनके खिलाफ एस.के. पांडे जांच आयोग की रिपोर्ट को भी दबा दिया। पांडे जांच आयोग ने वर्ष 2007 में शासन को रिपोर्ट सौंप थी। वर्ष 2006 में दतिया में दुर्गा मां के दर्शन करने भक्त जा रहे थे, उसी दौरान सिंध नदी में पानी छोड़ दिया गया। जिससे तीन दर्जन से अधिक लोग बह गए थे। मौत पर पर्दा डालने के लिए सरकार ने पांडे आयोग की रिपोर्ट को आज तक सदन के पटल पर नहीं रखा। जबकि एम गीता छत्तीसगढ़ कॉडर की महिला आईएएस हैं। बावजूद, सरकार का उन पर मेहरबान होना कई राजनीतिक सवालों को जन्म देता है।
गौरतलब है कि बीते बजट सत्र में विधायक पुरुषोत्तम दांगी ने विधान सभा में सवाल किया था कि छत्तीसगढ़ कॉडर आवंटित होने के बावजूद मध्य प्रदेश में कौन-कौन आईएएस अधिकारी प्रश्न दिनांक तक कार्यमुक्त नहीं किए गए हैं और किस वजह से उन्हंे अभी तक मुक्त नहीं किया गया। इस सवाल के जवाब में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने सदन को बताया कि केवल एक अधिकारी डा. एम.गीता के संबंध में छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव ने दो पत्र लिखे हैं। डा. गीता द्वारा उच्चतम न्यायालय में राज्य आवंटन के विरुद्ध विशेष अनुमति याचिका क्रमांक 3354/2007 दायर की गई है। यह याचिका उच्चतम न्यायालय द्वारा स्वीकार की गई है और प्रकरण अभी विचाराधीन है। इस बारे में छत्तीसगढ़ राज्य को अवगत कराया जा चुका है। सरकार के इस उत्तर से कांग्रेस विधायक पुरूषोतम दागी संतुष्ट नहीं हैं इसलिए अब वो प्रश्न के उचित उत्तर की प्रत्याशा में प्रश्न संदर्भ समिति के समक्ष एक अर्जी लगाने जा रहे हैं।
कांग्रेस विधायक पुरूषोतम दागी कहते हैं, ''मेरे पास जो दस्तावेज हैं उससे स्पष्ट है कि एम. गीता अपना कॉडर बदलवाने के लिए उच्चतम न्यायालय में अपील की थीं, लेकिन वहां से उनकों कोई राहत नहीं मिली। बावजूद इसके सरकार उन्हें छत्तीसगढ़ जाने से क्यों रोक रखी है समझ से परे है''? बताया जाता है कि उनकी पहुंच सत्ता में बैठे हाई प्रोफाइल नेताओं से हंै,इसलिए राज्य सरकार उन्हें छत्तीसगढ़ नहीं भेज रही है। गौरतलब है कि मध्य प्रदेश के विभाजन के बाद छत्तीसगढ़ राज्य गठन होने पर केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशासन मंत्रालय (डीओपीटी) ने आईएएस अधिकारियों को उनकी पसंद के आधार पर छत्तीसगढ़ कॉडर आवंटित किया था। 1997 बैच की महिला आईएएस एम.गीता ने छत्तीसगढ़ राज्य को चुना था। छत्तीसगढ़ आवंटित होने पर एम. गीता ने निजी कारणों का हवाला देकर ज्वाइंन करने के लिए समय मांगा। समय बीत जाने के बाद भी वे छत्तीसगढ़ नहीं गई। छत्तीसगढ़ में ज्वाइनिंग नहीं देने पर छग सरकार ने मध्य प्रदेश शासन को उनकी सेवाएं लौटाने के लिए पत्र लिखा। पत्र आने के बाद एम.गीता ने छत्तीसगढ़ न जाना पड़े और अपना कॉडर मध्य प्रदेश करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की। हाईकोर्ट ने वर्ष 2010 में एम.गीता के कॉडर बदलने की याचिका को खारिज कर दी। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। उच्चतम न्यायालय से भी उन्हें रियायत नहीं मिली।स्थगन भी नहीं मिला। इसके बाद छत्तीसगढ़ सरकार और केन्द्र सरकार ने एम. गीता की सेवाएं वापस करने के लिए मध्य प्रदेश शासन को कई पत्र लिखे। फिर भी नतीजा कुछ नहीं निकला। हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने केन्द्रीय कार्मिक एवं प्रशासन मंत्रालय नई दिल्ली को एक और पत्र लिखा है। छग के पत्र आने के बाद भारत सरकार ने एक और पत्र तत्कालीन मुख्य सचिव अवनि वैश्य को लिखा था,जिसमें एम.गीता की सेवाएं छग को वापस करने के लिए कहा गया था।
जाहिर है एम गीता मध्यप्रदेश में अपनी सेवाएं नियम विरूद्ध दे रही हैं। उनकी सेवायंे प्रदेश सरकार भी नियम विरूद्ध ले रही है। केरल मंें जन्मी श्रीमती गीता छत्तीसगढ़ काॅडर की होने के बाद भी उनका मध्यप्रदेश में अपनी सेवायंे देने के पीछे निश्चय ही संगठन के किसी ताकतवर नेता का वरदहस्त होने से इंकार नहीं किया जा सकता। जानकारों का कहना है कि संघ की पृष्टिभूमि के दक्षिण भारतीय ताकतवर नेता के दबाव की वजह से राज्य सरकार उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर पा रही है। चैकाने वाली बात यह है कि तमाम विवादों के बावजूद राज्य सरकार उन्हें कलेक्टर पर कलेक्टर बनाती जा रही है। देखा जाये तो श्रीमती गीता मध्य प्रदेश कॉडर की एक मात्र महिला आईएएस है, जो कि लगातार कलेक्टरी कर रही है। अब तक वे चार जिलों में कलेक्टर रह चुकी हैं। महाकाल की नगरी उज्जैन उनका पांचवा जिला है, जहां वे कलेक्टरी कर रही हैं। इसके पहले वे मंदसौर, शिवपुरी,दतिया और संभागीय मुख्यालय रीवा में भी कलेक्टर रह चुकी हैं।
शिवपुरी में जब कलेक्टर थी,उस समय उन्होंने सड़कों को लेकर राज्य शासन को पत्र भेजने के बजाए,सीधे केन्द्र सरकार को पत्र लिख दिया। जब इसका खुलासा हुआ तब उन्हें शिवपुरी कलेक्टर के पद से हटा दिया गया। शिवपुरी से हटाने के बाद उन्हें लूप लाइन में पदस्थ न करते हुए आबकारी विभाग में पदस्थ किया गया। कुछ माह बाद उन्हें फिर से कलेक्टरी सौंप दी गई। इसके बाद से वे लगातार कलेक्टरी करती आ रही है। यहां तक कि उनके विरुद्ध लोकायुक्त में शिकायत दर्ज है, बावजूद इसके राज्य शासन उन्हें हटा नहीं पा रही है। राज्य शासन की उन पर अपार मेहरबानी प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है।
तीन दर्जन से अधिक मौत की जांच के लिए बनाई गई एस.के.पांडे जांच आयोग की रिपोर्ट को राज्य सरकार ने तीन साल से दबा रखा है। इन मौतों के लिए आयोग ने तत्कालीन कलेक्टर डा. एम. गीता और जिला प्रशासन के पदाधिकारियों को दोषी ठहराया था। दतिया जिले के रतनगढ़ में स्थित दुर्गे मां के दर्शन करने के लिए भक्त जा रहे थे। उस समय प्रशासनिक घोषणा नहीं की गई कि सिंध नदी में पानी छोड़ा जा रहा है, भक्तगण दर्शन करने न जाएं। घटना सन् 2006 की है। श्रद्धालुओं को सिंध नदी में पानी छोड़े जाने की कोई सूचना नहीं थी। अचानक पानी छोड़ देने से तीन दर्जन से अधिक लोग बह गए थे। इस घटना को सरकार ने उस समय गंभीरता से लिया और मौत के कारणों की जानकारी के लिए एस. के. पांडे की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन किया। सरकार ने आयोग को अपनी रिपोर्ट साल भर में देने को कहा। पांडे जांच आयोग ने 23 मार्च 07 को अपनी रिपोर्ट राज्य शासन को सौंप दी। तब से आज तक इस रिपोर्ट को सरकार ने सार्वजनिक नहीं किया। |
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