अबूझमाड़ में सुरक्षाबलों के कल्याणकारी कदम का पहला नमूना
- TUESDAY, 10 APRIL 2012 10:51
छत्तीसगढ़ के सबसे घने जंगलों में से एक अबूझमाड़ में सुरक्षा बल के जवान आदिवासियों पर कहर बरपा कर रहे थे और प्रदेश की राजधानी में बैठे अधिकारी पत्रकारों को यह बताने में मशगूल थे कि वे वहां दवाइयां और राशन बाँट रहे हैं. अत्याचार का मंजर इतना खौफनाक था कि मारे गए एक आदिवासी की लाश को दो दिन तक ग्रामीण छुने की हिम्मत नहीं कर सके...
सुरक्षाबलों के वहशीपने को उजागर करती अबूझमाड़ से लौटकर कमल शुक्ल की विशेष रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले के अबूझमाड़ में दो सप्ताह तक चलाये गये नक्सल ऑपरेशन के दौरान जवानों ने जमकर कहर बरपाया. कई घर जलाये, बंदूक की बट से पीट -पीटकर एक की हत्या की, कई की निर्मम पिटाई की,12 साल के बच्चे को भी गिरफ्तार किया, निर्दोषों पर गोली चलाई. इन सबके बाद जब सुरक्षा बलों के जवान हेलीकाप्टर से अपने लिए राशन लेकर आये और उन्हें नक्सलियों ने नहीं उतरने नहीं दिया तो जवानों ने आदिवासियों के घर से अनाज लूट लिया और मुर्गे मारकर खा गये.
रायपुर में डीजीपी अनिल नवानी ने 19 मार्च को दावा किया था कि दुनिया के लिए अब-तब पहेली बने अबूझमाड़ में माओवादियों के खिलाफ सुरक्षा बलों द्वारा एक व्यापक संयुक्त अभियान चलाया जा रहा है. पहली बार सेंट्रल पैरा मिलेटरी फोर्स (सीपीएमएफ), महाराष्ट्र पुलिस व छत्तीसगढ़ राज्य पुलिस की तीन अलग-अलग टुकड़ियाँ एक साथ अबूझमाड़ के घने जंगलों में घुसीं.'आपरेशन हाका' के नाम से चलाये जा रहे इस अभियान के तहत अबूझमाड़ को बीजापुर, महाराष्ट्र बॉर्डर के बांदे और नारायणपुर में सोनपुर की ओर से घेरा गया और प्रत्येक टुकड़ी में 1200 संख्या वाले इस दस्ते ने 450 किमी के क्षेत्र में घुसना शुरू किया.
इस अभियान के तहत छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिला पुलिस अधीक्षक मयंक श्रीवास्तव के नेतृत्व में सीआरपीएफ और जिला बल के 1200 जवानों द्वारा 10 मार्च से 17 मार्च के बीच सोनपुर, कुन्दला, कोहकामेटा, कच्चापाल, तोके, जटवर और इरकेनार गांवों में दबिश दी गयी.
कच्चापल के ग्रामीणों ने बताया कि कुन्दला-कोहकामेटा के जंगल से घुसी फोर्स ने 15 मार्च को सबसे पहले सल्फी पीने गये कुछ ग्रामीणों पर गोली चलाई, जिसमें एक 25 वर्षीय युवक सोनू कवाची के घुटने में गोली लगी.अभी भी पुलिस की गोली युवक के घुटने में फंसी है. जबकि इसी गांव के सुखदेव, राजू आयता, पाण्डू की जमकर पिटाई की गयी, जो अब तक चलने फिरने के हालत में नहीं हैं.
कच्चापाल के बाद पुलिस जवानों का दल छोटे तोके गांव पहुंचा.यहां पहुंचकर पुलिस ने 35 वर्षीय उधोराम और उसके 15 साल के बेटे को पीटा और दोनों के हाथ बांधकर उन्हें तोके चलने के लिए कहा. उधोराम इस क्षेत्र के एकमात्र गैर आदिवासी हैं. तोके पहुंचते ही पुलिस वालों ने गांव के मुहाने के पहले घर को ही आग के हवाले कर दिया.यह घर तोके के केये ध्रुवा का था.
घटना के समय घर के सभी सदस्य महुआ बीनने जंगल गये थे. कोये और उसके बाप सन्नू ने यहां घर की छपरी में तीन साल में बकरी बेचने से इकट्ठा 16 हजार रुपये एक पॉलिथीन की थैली में रखे थे, वह भी आग में स्वाहा हो गयी. घर के बर्तनों में गोली मारकर छेद कर दिया गया.गांववालों को पुलिस के आने की सूचना मिली तो गांव के पुरुष भाग खड़े हुए. ग्राम तोके के सरकारी बालक आश्रम स्कूल के प्राथमिक में पढने वाले बच्चों को फोर्स ने अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल किया और घरों में रखे पानी को पीने से पहले बच्चों को पिलाकर देखा.
आश्रम के बच्चों के इस्तेमाल के लिए रखे 19 सोलर टार्चों को भी जवानों ने लूट लिया.फोर्स ने गांव के अनेक घर में तोड़फोड़ की. कई घरों के दरवाजों व बर्तन में छेद कर दिया.गांव के तुषा, घुरवा, आयत, कोका आदि 16 लोगों ने बताया कि उनके घरों में से चावल और मुर्गे भी जवानों ने लूट लिए और गांव में ही खाना बनाकर खाया.
ग्रामीणों ने बताया कि इसके पहले जटवर की ओर पहाड़ी पर उतरने की कोशिश कर रहे सेना के हेलीकॉप्टर पर नक्सलियों ने गोलीबारी कर दी, जिससे वह उतर नहीं पाया था. ग्रामीण कोका ने बताया, 'अनाज और मुर्गा लूटने वाले जवानों ने घर की महिलाओं को धमकाया कि उनके लिए राशन लेकर आये हेलीकॉप्टर को नक्सलियों ने नहीं उतरने दिया है, इसलिए गांव वाले जवानों को खाना खिलाएं.
ग्राम तोके की 50 वर्षीय महिला आयते बाई के मुताबिक, 'घर में छिपे उनके पति डुंगा गोटा (55 वर्ष) को पुलिस के जवान मारते हुर घर से बाहर आम के पेड़ तक ले गये, फिर बंदूक के बट से पीट-पीटकर उसे मार डाला.पुलिस बल के गांव से जाने के बाद दो दिन तक दहशतजदा ग्रामीणों ने उसके पति की लाश का अंतिम संस्कार नहीं किया था.
इसके बाद जवानों का दल दिन ढलने से पहले यहां से 15 किमी दूर जटवर के लिए रवाना हुआ.जाते-जाते फिर से मदमस्त जवानों ने गांव के आखिरी घर को भी जला दिया था. यह घर वत्ते धु्रवा का था.घर जलने के साथ ही यहां रखे दस खंडी कोसरा-कोदो (अनाज) भी जलकर राख हो गया.ग्रामीणों ने बताया कि जटवर के रास्ते में फायरिंग की आवाज दूर तक सुनाई दी. इधर जटवर पहुँच कर रात्रि में कैम्प डाली फोर्स ने दूसरे दिन खूब उत्पात मचाया.
यहां भी गंगलू, जट्टी, जोगा और बोठू बड्डे के घर जला दिये गये.यहां भी घर-घर में तोड़फोड़ करने बर्तनों में छेद करने और कई ग्रामीणों के साथ मारपीट करने के बाद जवानों ने दो सगे भाई लाल सूये बड्डे 30 वर्ष और बिठिया बड्डे 25 वर्ष को नक्सली बताकर साथ ले गये. जवानों ने इस गांव के सभी घरों की टांगी (लोहे और लकड़ी से बना पेड़ कांटने का एक औजार) जब्त कर ली .इसके बाद इरनानार पहुंच पुलिस ने फिर वही कहानी दोहराई. यहां घरों में तोड़फोड़ कर मारपीट तो की, पर घर को नहीं जलाया.जबकि ग्रामीणों के कब्जे से जानवरों का शिकार करने वाली 5 नग बंदूक भी जब्त कर ली.इस गांव से जवानों ने एक 12 वर्षीय बच्चा छन्नू पटोडी को भी उठा लिया.
नारायणपुर के पुलिस अधीक्षक मयंक श्रीवास्तव ने स्वीकार किया कि 10 मार्च से 17 मार्च तक 1200 जवानों के साथ वह स्वयं इन गांव की गश्त में शामिल थे. उन्होंने ग्रामीणों के घर जलाये जाने, मार-पीट करने व ग्राम तोके के किसी ग्रामीण की हत्या करने से साफ इंकार किया. उन्होंने कहा कि उन्हें पता है कि अबूझमाड़ के ग्रामीणों तक अब तक सरकार नहीं पहुंची है, जिसकी वजह से वे नक्सलियों के सम्पर्क में हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि अबूझमाड़ के अंदरूनी गांवों में स्कूल एवं अस्पताल नहीं हैं और माओवादी ही स्कूल चला रहे हैं.किन्तु पुलिस ने उनके बीच जाकर यह संदेश दिया है कि जंगल में माओवादियों के अलावा अब पुलिस भी घुस सकती है. पुलिस अधीक्षक ने यह भी बताया कि अभियान के दौरान जवानों ने ग्राम कुन्दला में मेडिकल कैम्प लगाकर ग्रामीणों का स्वास्थ्य परीक्षण कर दवाई भी बांटी. वहीं ग्राम जटवर में पुलिस वालों ने ग्रामीणों को हेलीकॉप्टर से राशन मंगाकर बांटा. उन्होंने बताया कि नक्सलियों की ओर से ग्राम तोके व जटवर में गोलीबारी भी की गई थी, जिसमें दो जवान घायल हुए थे.उन्होंने स्वीकार किया की एक बाल संघम सदस्य सहित तीन नक्सली पुलिस ने गिरफ्तार किये हैं.
पिछले पच्चीस वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय कमल शुक्ल कई बार पुलिस और प्रशासन का कहर झेल चुके हैं. वह कांकेर में राजस्थान पत्रिका के ब्यूरो प्रमुख हैं और घोटुल नाम का ब्लॉग संचालित करते हैं.
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