Wednesday, April 11, 2012

फिर चमकने लगी छंटनी की तलवार Created on Monday, 09 April 2012 12:00 Written by एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

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फिर चमकने लगी छंटनी की तलवार

वह जमाना गया कि सबकुछ दांव लगाकर या कुछ भी न करके महज जुगाड़ के जरिये एक बार नौकरी हासिल कर लो और फिर जिंदगीभर मौज मस्ती में ऐश करो। अब हाल यह है कि यह कहावत कि करो सरकारी चाकरी, वरना बेचो तरकारी का दहेज के बाजार में कोई भाव नहीं देने वाला। सरकारी महकमे में नयी भर्ती बंद है। आर्थिक सुधारों ने स्थाई नौकरी हजम कर ली। अब आरक्षण के जरिये भी नौकरी मुश्किल है। राजनीतिक वायदे के मुताबिक वोट बैंक साधने के लिए कोटा और आरक्षण बढ़ता ही जा रहा है।

 

राजनीति में कुर्सियां हासिल करने यें यह काफी कारगर साबित हुआ है। पर नौकरियों के मामले में आरक्षण और कोटे का कोई खास मतलब नहीं रह गया है। ठेके पर नौकरी के लिए न आरक्षण लागू होता न कोटा। आरक्षित वर्गों के लिए रिक्तियां भरने का इंतजाम नहीं है। ले किन इन हालात में भी कर्मचारियों के तौर तरीके नहीं बदले। थोड़ा सा भत्ता और थोड़ा सा बोनस यही उनकी दुनिया है। पर उस दुनिया पर १९९१ से लगातार वज्रपात का क्रम जारी है। जो मारे गये, उनकी याद में कोई नहीं रोया। स्वेच्छा सेवानिवृत्ति, तालाबंदी, निजीकरण और छंटनी से बचे हुए लोगों की अब नये सिरे से शामत आ रही है।

 

विनिवेश की मुहिम नये सिरे से चालू होने वाली है। रेल बजट महज किराये या मालभाड़े का मामला नहीं था, जैसा कि प्रचारित होता रहा। यह रेलवे के दीरघकालीन निजीकरन योजना का कार्यान्वयन है और अग्निकन्या ममता दीदी की सहमति से ही जाहिर है कि नये रेलमंत्री मुकुल राय भूतपूर्व बना दिये गये दिनेश त्रिवेदी के अधूरे काम को बखूबी अंजाम देंगे। नवरत्न कंपनियों को नीलामी पर चढ़ाने की तैयारी है।

एसबीआई हो या  एलआईशी सभी निजीकरण की चपेट में हैं। टेलीकाम का हाल तो सब जानते है, पर गरीब डाक विभाग की खबर किसी को नहीं है, जहां खासकर रेलवे मेल सर्विस में भारी पैमाने पर छंटनी होती रही है। ज्यादातर एक्सप्रेस ट्रेनों में अब आऱएमएस के डब्बे नहीं लगते। य़हां तक कि रक्षा सेवाओं का भी निजीकरण होने लगा है। एअर इंडिया के अंजाम से भी जिन लोगों को होश नहीं आयें वे कृपया अपने को सीट बेल्ट से बांध लें क्योंकि देश अब दूसरी पीढ़ी के सुधारों की लंबी और ऊंची उड़ान पर जाने वाला है।

संसद को बाईपास करने के लिए सिरफ बजट सत्र खत्म होने का इंतजार है। वैसे भी संसदीय हंगामे के बीच दरकारी कानून पास होने में कभी अड़चनें नहीं आती। बाजार और कारपोरेट इंडिया को नाराज करके राजनीति चल सकती है क्या?

 

इस देश को अभी इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि विमानन कंपनियों एअर इंडिया औक किंग फिशर के कर्मचारियों को महीनों से वेतन बंद है। आपके साथ भी जब यही सलूक होगा, तो कौन रोयेगा जनाब? आर्थिक संकट से जूझ रही किंगफिशर एयरलाइंस अब अपने कर्मचारियों में से 50 फीसदी की छटनी कर सकती है। सुत्रों के मुताबिक बहुत जल्द छंटनी हुएकर्मचारियों की सूची पेश कर दी जाएगी। इस मामले को लेकर कर्मचारियों में एक तनाव का माहौल बना हुआ है।

 

रोक सको तो रोक लो! संसद सत्र में है और अन्ना हजारे ब्रिगेड मय बाबा रामदेव सड़क पर!विजय माल्या ने किंग फिसर को बचाने के लिए जो सख्त कदम उठाने वाले थे , वह दरअसल आधे कर्मचारियों की छंटनी की दवा आजमाने की है। यह नूस्खा बिना रोक टोक कामयाब रहा तो बाकी सरकारी बेसरकारी कंपनियों और सेक्टरों में आजमाया जाना सिर्प वक्त बेवक्त का मामला है। पिछले बीस साल से देश इसी तरह आर्तथिक गति पा रहा है।

 

किंगफिशर एयरलाइंस ने चालू वित्ताीय वर्ष के अंत तक अपने बकाया 76 करोड़ रुपये में से 10 करोड़ रुपये का कर भुगतान करने पर सहमति दे दी है। बाकी राशि के भुगतान के लिए कंपनी ने केंद्रीय कर व राजस्व विभाग से कुछ समय की और मोहलत मांगी है। सीबीईसी के अध्यक्ष एस के गोयल ने बताया कि कंपनी से हुई विभाग की बातचीत के बाद यह बात स्पष्ट हो गई है कि फिलहाल कंपनी अपनी बकाया राशि में से सिर्फ 5- 10 करोड़ रुपये का ही भुगतान कर पाएगी। गोयल ने कहा कि इस के लिए कंपनी के उपर किसी भी तरीके का आर्थिक दंड नहीं लगाया जाएगा।गौरतलब है कि केंद्रीय कर व राजस्व विभाग ने कंपनी को बकाया कर भुगतान के लिए 31 मार्च तक का वक्त दिया था। लेकिन इस समय में कंपनी के लिए पूरी राशि का भुगतान करना संभव नहीं हो पा रहा है। इसलिए कंपनी ने अपनी घरेलू व अंतरराष्ट्रीय हवाई सेवाओं में कटौती की है। यहीं नहीं कंपनी ने अब अपने कर्मचारियों की भी कटौती करने का फैसला कर लिया है।

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