आतंकवाद के नाम पर पांच साल में साठ से अधिक मुस्लिम युवक बंद
- THURSDAY, 12 APRIL 2012 09:01
आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद अधिकतर मुस्लिम युवा रिहा हो चुके हैं। निर्दोष मुस्लिम युवकों को छोड़ने की प्रदेश सरकार की घोषणा ने इस बात को स्थापित कर दिया है कि आतंकवाद कानून-व्यवस्था का सवाल न होकर एक राजनीतिक मसला है...
राजीव यादव
सपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में आतंकवाद के नाम पर जेलों में बंद मुस्लिम नौजवानों को रिहा करने की घोषणा अपने चुनावी घोषणापत्र में की थी। पिछले दिनों समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ कि प्रदेश सरकार को अपने इस वायदे पर अमल करने का विचार बना है.
मुस्लिम नौजवानों और उनकी संस्थाओं पर वर्ष 2000 से आतंकवाद का आरोप थोपा जा रहा है। पर देर से ही आज आतंकवाद के आरोप में जेलों में बंद अधिकतर मुस्लिम युवा रिहा हो चुके हैं। निर्दोष मुस्लिम युवकों को छोड़ने की प्रदेश सरकार की घोषणा ने इस बात को स्थापित कर दिया है कि आतंकवाद कानून-व्यवस्था का मसला न होकर एक राजनीतिक मसला है और इसका निदान भी राजनीतिक होगा। प्रदेश की जेलों में कुल कितने मुस्लिम युवक आतंकवाद के नाम पर बंद किये गये हैं, इसको सूचीबद्ध किया जाना अभी बाकी है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में करीब 65 युवक बंद किये गये हैं.
वर्ष 2007 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार में 23 नवंबर को यूपी की कचहरियों लखनऊ, वाराणसी और फैजाबाद में हुए धमाकों के आरोप में 12 दिसंबर को आजमगढ़ से तारिक कासमी और 16 दिसम्बर को खालिद मुजाहिद को यूपी एसटीएफ ने आपराधिक शैली में अपहरण किया, जिसके तमाम गवाह मौजूद हैं। जहां तारिक की गुमशुदगी की रिपोर्ट रानी की सराय थाने में 14 दिसंबर 2007 को उनके दादा अजहर अली द्वारा दर्ज करायी गई, वहीं खालिद मुजाहिद के बारे में आरटीआई द्वारा मडि़याहूं पुलिस बताती है कि उसे यूपीएसटीएफ ने 16 दिसंबर को मडियाहूं से उठाया, जो एक आपराधिक मामला बनता है।
इन दोनों युवकों को 22 दिसंबर की सुबह बाराबंकी से विस्फोटक और हथियारों के साथ यूपीएसटी ने आतंकवाद के नाम पर गिरफ्तारी करने का दावा किया। जनांदोलनों और राजनीतिक परिस्थितियों को भांपकर मायावती सरकार ने एक आरडी निमेष जांच आयोग का गठन किया जिसे छह महीने में रिपोर्ट पेश करनी थी, पर वो आज तक पेश नहीं कर पाई। बाराबंकी केस में चार्जशीट में पब्लिक को गवाह न बनाया जाना तो वहीं निमेष जांच आयोग के समक्ष पब्लिक के गवाह पेश करके भी अपने पक्ष को पुलिस द्वारा न साबित कर पाना ये साबित करना है कि दोनों लड़के बेगुनाह हैं।
यहां महत्वपूर्ण तथ्य हैं कि कचहरी धमाकों के आरोप में बंद आफताब आलम अंसारी को पहले ही रिहा किया जा चुका है तो वहीं कश्मीर के सज्जादुर्रहमान को लखनउ केस से बरी कर दिया गया है।
कचहरी धमाकों के बाद बार एसोशिएसन के हिंदुत्वादी तत्वों ने आतंकवाद के आरोपियों को मुकदमा न लड़ने का फरमान जारी किया और तर्क दिया कि संकटमोचन की घटना के आरोपी वलीउल्लाह पर कचहरियों में हुए हमले का बदला था प्रदेश की कचहरियों में हुए धमाके।
फैजाबाद की कचहरी में हुए धमाके भाजपा अध्यक्ष विश्वनाथ सिंह और उपाध्यक्ष महेश पांडेय के बिस्तर पर हुए और दोनों वहां से चंपत थे, इस घटना के कई आम निर्दोष नागरिक मारे गए। कचहरी धमाकों के परिप्रेक्ष्य में तत्तकालीन एडीजी बृजलाल ने 25 दिसंबर 2007 को कहा था कि कचहरी धमाकों में इस्तेमाल विस्फोटक और तकनीकि मक्का मस्जिद से मिलते जुलते हैं। ऐसे में जब मक्का मस्जिद की सच्चाई सामने आ गई है कि उसमें हिन्दुत्वादी आतंकी तत्वों की संलिप्तता थी तो ऐसे में हम मांग करते हैं कि इस घटना की भी उच्च स्तरीय जांच करवाई जाय।
मानवाधिकार व राजनीतिक संगठनों ने मुकदमे लड़ने का निर्णय लिया। इस दौरान लखनऊ के एडवोकेट मो. शोएब और एडवोकेट रणधीर सिंह सुमन पर बाराबंकी में, एडवोकेट मो. शोएब और एडवोकेट जमाल पर फैजाबाद में और लखनउ कचहरी में मो. शोएब को मारा पीटा गया और जबरन हिंदुस्तान जिन्दाबाद-पाकिस्तान मुर्दाबाद का नारा लगवाया गया। जिसकी रिपोर्ट भी मो. शोएब के खिलाफ लिखी गई। इससे पूरे न्यायिक तंत्र और पुलिस तंत्र के फासिस्ट स्वरुप को समझा जा सकता है।
इस दौरान वर्ष 2008 में जयपुर, अहमादाबाद, दिल्ली और 19 सितंबर 2008 को बाटला हाउस में आजमगढ़ के दो लड़ाकों को इंडियन मुजाहिद्दीन के नाम पर मारने का दावा किया गया। पर आज तक केन्द्र सरकार इस पर जांच कराने की हिम्मत नहीं जुटा पाई। 14 अगस्त 2008 को आजमगढ़ के बीनापारा में अबुल बसर को इंडियन मुजाहिदीन के नाम पर गिरफ्तार कर दावा किया गया कि आजमगढ़ इसका बेस माड्यूल है। इस आधार पर अब तक आजमगढ़ के 16 को गिरफ्तार, 7 गायब और दो लड़कों को बाटला हाउस फर्जी मुठभेड़ में मारने का दावा किया गया। आज देश के अहमदाबाद, जयपुर, महाराष्ट् दिल्ली समेत तमाम जेलों में यहां के लड़के बंद हैं।
इस बीच रामपुर में सीआरपीएफ कैंप पर हुए कथित हमले की जांच को लेकर भी मानवाधिकार संगठनों ने मांग की, क्योंकि 31 दिसंबर की रात कुछ नशे में धुत सीआरपीएफ के जवानों ने आपस में ही गोलीबारी कर ली जिसको छिपाने के लिए इसे आंतकवादी घटना का नाम दे दिया गया। इस घटना के आरोप में यूपी के चार कौशर फारुकी, जंग बहादुर, शरीफ, गुलाब खान, बिहार के सबाउद्दीन और मुंबई के फहीम अंसारी लंबे समय से यूपी की जेलों में बंद हैं। जबकि रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर कोई आंतवादी घटना नहीं हुई थी। हम इस घटना में बेकसूर मुस्लिम नौजवानों को रिहा करने की मांग के साथ यह मांग भी दुहराते हैं कि इस घटना की सीबीआई जांच करवाई जाय।
उस दौर के राजनीतिक हो हल्ले में जब 2008 में बजरंग दल के कारकून राजीव नगर के एक मकान में बम बनाते हुए उड़ गए थे तो श्रीप्रकाश जायसवाल ने कहा था कि इसकी सीबीआई जांच हो, जिस पर मायावती ने कहा था कि यूपी की कचहरियों में हुए धमाकों और रामपुर सीआरपीएफ कैंप पर हमले की भी आगे जांच करवा लीजिए। इस बात से स्पष्ट है कि राजनीतिक पेंचीदगियों के चलते इन घटनाओं की जांच नहीं हो पा रही है। ऐसे में हम मांग करते हैं कि इन सभी घटनाओं की सीबीआई जांच करवाई जाय।
कुछ और भी घटनाएं हैं मसलन 19 जून 2007 को मुन्नी की रेती टेहरी गढ़वाल से नासिर हुसैन को और नगीना से मो. याकूब को 21 जून 2007 को दोनों को लखनऊ से गिरफ्तार दिखाया गया। इसी तरह 19 जून को निर्वाना अलवर राजस्थान से नौशाद को और पश्चिम बंगाल से आए जलालुद्दीन को चार बाग से उठाकर दोनों की गिरफ्तारी लखनऊ रेजीडेंसी से दिखाई गई।
जलालुद्दीन द्वारा 23 जून 2007 को बताए जाने पर पश्चिम बंगाल से 24 जून 2007 को मो. अलीअकबर हुसैन और शेख मुखतार की गिरफ्तारी दिखाई गई तथा 26 जून 2007 को उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा अजीजुर्ररहमान को 22 जून 2007 को अतिरिक्त चीफ ज्यूडिसियल मजिस्टे्ट अलीपुर पश्चिम बंगाल द्वारा 22 जून 2007 से 26 जून 2007 तक के लिए पश्चिम बंगाल की पुलिस कस्टडी से अपनी हिरासत में लिया जाना दिखाया जाता है जो पुलिस की पूरी कहानी को झुठलाता है।
उत्तर प्रदेश में प्रदेश के व कश्मीरी मुस्लिम नौजवानों की आईएसआई एजेंट के नाम पर भारी पैमाने पर गिरफ्तारी की गई है। आज प्रदेश के हालात ऐसे हैं कि कश्मीर के लोग प्रदेश में आने से डरते हैं। 23 दिसंबर 2007 को चिनहट में मुख्यमंत्री मायावती की सुरक्षा के नाम पर दो कश्मीरी गर्म कपड़ें बेचने वालों के पुलिस ने फर्जी मुठभेड़ में मार दिया। तमाम तथ्यों से स्पष्ट है कि यूपी एसटीएफ और पुलिस द्वारा बेगुनाह मुस्लिम नौजवानों को पकड़कर प्रताडि़त किया गया और मुकदमें में झूठे साक्ष्य इकट्ठे करने का प्रयास किया गया, जो स्वयं में एक अपराध है।
उत्तर प्रदेश सरकार को अपने द्वारा किए गए वादों को पूरा करते हुए बेगुनाह मुसलमानों को तत्काल रिहा कर देना चाहिए। सरकार को उन्हें मुआवजा और नौकरी के अवसर प्रदान करने चाहिए, जिससे वे बेहतर तरीके से अपना जीवन यापन कर सकें। इतना ही नहीं सरकार को इस आपराधिक साजिश में लिप्त पुलिसकर्मियों के खिलाफ विधिक कार्यवाई करनी चाहिए और उच्च स्तरीय जांच आयोग द्वारा सभी आतंकी घटनाओं की जांच कर दोषियों को सजा दी जानी चाहिए।
(युवा पत्रकार राजीव यादव आतंकवाद के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियों के खिलाफ चल रहे आंदोलनों में सक्रिय हैं.)
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