Sunday, 15 April 2012 15:24 |
तरुण विजय ये धन्य हैं। शायद ही किसी को इस बात से आपत्ति हो कि जर्मन भाषा या चीनी और फ्रांसीसी पढ़ी जाए। जरूर पढ़ें। मैं खुद चीनी भाषा पढ़ने की जरूरत पर लिखता आया हूं। लेकिन क्या वह संस्कृत की कीमत पर होना चाहिए? क्या अपनी मातृभूमि और विदेशी भूमि को हम एक जैसा मान सकते हैं? अगर धन, वैभव और अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं और सम्मान के लिए विदेशी भाषाएं अपने देश की सांस्कृतिक धरोहर और स्वदेशी सम्मान से ज्यादा बड़ी मान ली गई हैं, तो फिर अंग्रेजों के खिलाफ भी लड़ने की क्या जरूरत थी? वैसे भी भारत में गोमाता की पूजा के जितने भी ढकोसले चलते हों, सर्वाधिक गो-हत्या कर गो-मांस का व्यापार करने वालों में तथाकथित उच्च जाति के हिंदुओं का ही नाम बड़े पैमाने पर आता है। वे भी धन्य हैं। केवल संस्कृत नहीं, हिंदी भी अखबारों के कुछ ज्यादा ही पढ़े-लिखे, मालिक-संपादक अपने समाचारों और स्तंभों में अंग्रेजी के अस्वीकार्य और जुगुप्साजनक प्रयोग से क्षत-विक्षत कर रहे हैं। सरकार भी अपने संस्थानों में हिंदी खत्म करने पर तुली है। पिछले दिनों मैंने यह विषय राज्यसभा में उठाया, तो कोई सन्नाटा भंग नहीं हुआ। हिंदी के बिना सब कुछ चलता है और हिंदी में वोट लेने की मजबूरी थोड़ी-बहुत निभा लेने के बाद हिंदी को बिना किसी सरकारी हानि की आशंका से आराम से लतियाया जा सकता है। संसद सांस्कृतिक हानि के प्रति चिंतित होगी, यह देखना बाकी है। बैंकों में कितने गजनवीपन से सरकार हिंदी के प्रति अपनी भावनाएं व्यक्त कर रही है, इसका विवरण तनिक देखिए। विभिन्न सरकारी बैंकों में राजभाषा अधिकारी पद की जितनी रिक्तियां होती हैं, उन्हें भरा नहीं जा रहा है और प्रार्थियों की योग्यताओं में से संस्कृत हटा कर अंग्रेजी जोड़ी जा रही है। 2009 में यूको बैंक में अठारह राजभाषा अधिकारी नियुक्त किए जाने की विज्ञप्ति निकली थी, लेकिन अंतिम रूप से केवल आठ का चयन किया गया और वह भी अंग्रेजी की जानकारी अनिवार्य करने के बाद। 2009 के बाद यूको बैंक में किसी राजभाषा अधिकारी की नियुक्ति नहीं की गई, ऐसी जानकारी है। इंडियन बैंक में 2009 में तेरह राजभाषा अधिकारियों की नियुक्ति की विज्ञप्ति निकाली गई थी, लेकिन केवल एक पद पर नियुक्ति की गई और बारह पदों पर क्यों नियुक्ति नहीं की गई, इसका भी कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया। पंजाब ऐंड सिंध बैंक में 2010 की विज्ञप्ति के अनुसार राजभाषा अधिकारी के दस पद रिक्त थे, लेकिन एक भी नियुक्ति नहीं की गई। आंध्र बैंक में 2011 की विज्ञप्ति के अनुसार दस राजभाषा अधिकारी के पद रिक्त थे, पर एक भी नियुक्ति नहीं की गई। पंजाब नेशनल बैंक में 2011 की विज्ञप्ति के अनुसार इक्यावन पद रिक्त थे, लेकिन केवल एक नियुक्ति का समाचार है। हिंदी और संस्कृत में पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री होने के बावजूद बैंक कहते हैं कि अंग्रेजी की डिग्री लाओ तब आपको हिंदी अधिकारी के नाते नियुक्ति मिलेगी। इस परिस्थिति में रोने की भी जगह नहीं बचती। |
Sunday, April 15, 2012
संस्कृत बनाम जर्मन
संस्कृत बनाम जर्मन
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