Saturday, April 7, 2012

मार्क्स विदा होंगे बंगाल की स्कूली किताबों से

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Saturday, 07 April 2012 10:55

जनसत्ता संवाददाता 
कोलकाता, 7 अप्रैल। राज्य में इतिहास की स्कूली पुस्तकों में मार्क्सवाद के जनक कार्ल मार्क्स अब जल्द ही इतिहास बनने वाले हैं। बदलाव की लहर पर सवार होकर बीते साल सत्ता में आई ममता बनर्जी की अगुवाई वाली सरकार ने अब इतिहास के स्कूली पाठ्यक्रम में बड़े पैमाने पर बदलाव का फैसला किया है।
इस कवायद के तहत अब उच्च-माध्यमिक में पढ़ाई जाने वाली इतिहास की पुस्तकों में मार्क्स, एंगेल्स और वोल्शेविक की जगह शीतयुद्ध के बाद हुए लोकतांत्रिक आंदोलनों को शामिल किया जाएगा। लेकिन पाठ्यक्रम सुधार समिति ने इस बदलाव को राजनीति से परे करार दिया है। समिति अपनी सिफारिशें अगले सप्ताह सरकार को सौंपेगी।
राज्य के स्कूली छात्र कोई दो दशक से भी लंबे अरसे से 11वीं और 12वीं कक्षा में इतिहास में मार्क्स और वोल्शेविक क्रांति पढ़ते रहे हैं। लेकिन अब यह अध्याय राज्य में इतिहास बनने वाला है। हालांकि समिति के अध्यक्ष अवीक मजूमदार कहते हैं कि यह कहना गलत है कि हमने इतिहास के पाठ्यक्रम से मार्क्सवादी आंदोलन या वामपंथ को बेदखल कर दिया है। समिति ने अपनी सिफारिशों में लोकतांत्रिक आंदोलनों, विभिन्न विदेशी हमलावरों की ओर से देश पर हुए हमलों और बीसवीं सदी का इतिहास शामिल करने पर जोर दिया है।
देश की आजादी के बाद बांग्लादेश व श्रीलंका की बढ़ती अहमियत को ध्यान में रखते हुए उन पर भी अलग अध्याय शामिल करने की सिफारिश की गई है। मजूमदार का दावा है कि वाममोर्चा के शासनकाल में इतिहास का पाठ्यक्रम दिशाहीन था। इसमें महज वामपंथी आंदोलनों का जिक्र किया गया था। हमने रूसी क्रांति से संबंधित अध्याय हटा दिया है। लेकिन लेनिन और चीनी क्रांति को पाठ्यक्रम में बरकरार रखा है।
इस सवाल पर कि क्या इस बदलाव की वजह राजनीतिक है, उनकी दलील है कि अगर हमारी मंशा वामपंथ से संबंधित अध्याय को पूरी तरह खत्म करने की होती तो हम इसमें चीनी क्रांति और लेनिन को क्यों बहाल रखते? उन्होंने कहा कि बच्चों को हरित क्रांति, चिपको आंदोलन और नेल्सन मंडेला के बारे में जानकारी देना भी जरूरी है।

समिति के अध्यक्ष ने कहा कि इतिहास के लिहाज से मार्क्स और एंगेल्स का किरदार महान नहीं था। बावजूद इसके पाठ्यक्रम में होने की वजह से उनको पढ़ाया जाता रहा। मजूमदार का कहना है कि लेनिन अब भी प्रासंगिक हैं। इसलिए यह आरोप निराधार है कि हमने वामपंथ को पाठ्यक्रम से बाहर रखा है।
समिति ने 11वीं व 12वीं के अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में अमिताभ घोष, अरुंधति राय, झुंपा लाहिड़ी, विक्रम सेठ, आरके नारायण और अनिता देसाई सरीखे समकालीन लेखकों के कार्यों को शामिल करने की सिफारिश की है। पश्चिम बंगाल उच्च-शिक्षा परिषद के अध्यक्ष मुक्तिनाथ चट््टोपाध्याय ने कहा कि छात्रों में साहित्य के प्रति रुचि पैदा करने और उनको भारतीय अंग्रेजी साहित्य की मौजूदा स्थिति की जानकारी देने के लिए समकालीन लेखकों के कार्यों के बारे में जानकारी देना जरूरी है। 
इस बीच पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने राज्य में उच्च-माध्यमिक की इतिहास के पाठ्यक्रम से रूसी क्रांति, मार्क्स और एंगेल्स से संबंधित अध्याय कथित तौर पर हटाने के लिए शुक्रवार को राज्य सरकार की खिंचाई की। उन्होंने इस बात पर आश्चर्य जताया कि आखिर इस मसले पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सलाह कौन दे रहा है।
चटर्जी ने पत्रकारों से कहा कि मुझे इसकी कोई जानकारी नहीं है कि आखिर विश्व इतिहास से संबंधित अध्यायों को इतिहास की पुस्तकों से हटाने के बारे में मुख्यमंत्री को सलाह कौन दे रहा है। लेकिन यह फैसला गलत और विवादास्पद है। वामपंथी नेता ने कहा कि छात्रों के मार्क्स, एंगेल्स और रूसी क्रांति के बारे में पढ़ने का मतलब यह नहीं है कि वे वामपंथी बन जाएंगे।
सोमनाथ ने कहा कि वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं और इतिहास के प्रमुख पात्रों को पाठ्यक्रम से क्यों हटाया जा रहा है। यह अनावश्यक और दुर्भाग्यपूर्ण है।

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