Sunday, 15 April 2012 15:27 |
मधुकर उपाध्याय इसके बावजूद नीलामीघर 'सद्बी' की बोली में किताब की कीमत बहुत ऊपर नहीं गई। खरीदारों ने उसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई। बोली के अंत में किसी अनाम अमेरिकी नागरिक के प्रतिनिधि गैब्रियल वीस ने उसे लगभग चार सौ पाउंड स्टर्लिंग में खरीद लिया। रुबाइयों को न्यूयार्क ले जाया जाना था और इसका इंतजाम साउथैम्प्टन से दस दिन बाद रवाना होने वाले जहाज में हुआ। यह रुबाइयों की इज्जत के अनुकूल भी था। आखिर वह जहाज दुनिया का सबसे बड़ा, महंगा, नफीस और चर्चित जलपोत 'टाइटैनिक' था। उसके इर्द-गिर्द सपनों की दुनिया का ताना-बाना बुना गया था। एक ऐसी दुनिया में ले जाने का ख्वाब, जो हकीकत से दूर गाढ़ी अंधेरी रात में बिछी पानी की पतली चादर पर बनी हो। फ्रांस में रहने वाले लेबनानी लेखक अमीन मालूफ ने अपने उपन्यास 'समरकंद' में तो कल्पना के सहारे यहां तक कह दिया कि 'टाइटैनिक' से यात्रा करने वाली वह किताब दरअसल, उमर खय्याम की हस्तलिखित प्रति थी- रुबाइयों की मूल पांडुलिपि, जो न जाने कहां-कहां से होती हुई ईरान के शाह के पास पहुंची। ईरान की क्रांति के बाद शाह की नवासी और उसके अमेरिकी प्रेमी 'ओमर' उसे तेहरान से लेकर लंदन आए थे। 'ओमर' के लिए रुबाइयों की पांडुलिपि और अपनी प्रेमिका को न्यूयार्क ले जाने का इससे बेहतर तरीका शायद हो भी नहीं सकता था। उसने मूल रचना पढ़ने के लिए फारसी सीखी थी, प्रेम किया था, खतरे उठाए थे और वह 'टाइटैनिक' के डेक पर प्रेमिका के साथ रुबाइयां पढ़ते हुए अपनी यात्रा पूरी करना चाहता था। उसी 'टाइटैनिक' से, जिसे चार दिन की यात्रा के बाद पंद्रह अप्रैल को एक विशालकाय हिमखंड से टकरा कर डूब जाना था। अनंत प्रेम की अनंत यात्रा। जाहिर है, यह किस्सा अमीन मालूफ की कल्पना का हिस्सा था। पर इससे रुबाइयों की उस अलभ्य प्रति की कीमत कम नहीं होती। उसे संजो कर, संभाल कर जहाज में रखा गया, एक कीमती सामान की तरह। ऐसे खाने में, जिस पर किसी हादसे के समय पानी का असर न हो। 'टाइटैनिक' हादसे में जलपोत और उस पर सवार हजार से ज्यादा लोगों के साथ रुबाइयों की किताब ने भी जलसमाधि ले ली। अटलांटिक सागर की अतल गहराइयों में। इस बड़ी घटना और उसकी आपाधापी में किताब की मौजूदगी एक हफ्ते तक अलक्षित रही। बीस अप्रैल को 'न्यूयार्क टाइम्स' में एक छोटी-सी खबर छपी, तब दुनिया को पता चला कि उमर खय्याम की रुबाइयों की एक बेशकीमती प्रति समुद्र में डूब गई है। सौ साल में यकीनन उसके पन्ने समुद्री पानी के खारेपन में गल-खप गए होंगे। हो सकता है उसकी जिल्द बची हो, पर उसके भी मिलने की संभावना बहुत कम बची होगी। बड़ी घटनाएं फिर भी बची रह जाती हैं। अच्छा-बुरा वक्त झेलते। वे डूब नहीं जातीं बल्कि बूड़ कर उतराती हैं। रह-रह कर पानी से सर उठाती। 'टाइटैनिक' के डूबने की बड़ी घटना ने, एक पल को लगा कि, उमर खय्याम को भी अपनी अवांछित बदनीयती में लपेट लिया है। एक हजार साल तक अपनी सर्जनात्मक ऊर्जा और संगीत की धुनों पर तैरने वाली रुबाइयां डूब कैसे सकती थीं। किसी विलक्षण तैराक की तरह लंबा गोता लगा कर वे निकल आएंगी। बहुत देर पानी के अंदर रहने के बाद। उस समय, जब किनारे खड़े लोगों की सांसें थम गई हों। सतह पर पानी थिर हो गया हो। आशंका घर करने लगी हो। तभी वे अचानक एक हलचल के साथ सतह पर आती हैं। उथले साहिल की ओर बढ़ती हैं। पूरी गहराई अपने में समेटे। |
Sunday, April 15, 2012
अटलांटिक की रुबाई
अटलांटिक की रुबाई
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