Friday, April 13, 2012

मादक सौंदर्य के साथ सहज हो रही हैं साक्षी तंवर!

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मादक सौंदर्य के साथ सहज हो रही हैं साक्षी तंवर!

13 APRIL 2012 NO COMMENT

♦ जुगनू शारदेय

ह जानना और समझना थोड़ा मुश्किल है कि यह साक्षी तंवर का प्रचार अभियान है या चाणक्य चद्रप्रकाश द्विवेदी के काशी का अस्सी का प्रचार या हमेशा की तरह एकता कपूर का 'बड़े अच्छे लगते हैं' की टीआरपी बढ़ाने का कोई नुस्खा। साक्षी तंवर सीरियल की दुनिया में भी कहानी घर घर की पार्वती भाभी हो कर रह गयीं। एक जवान-जहान कन्या के ऊपर भाभी का ऐसा ठप्पा लगा कि अपने बीसे से तीसे में पहुंच गयी और बड़ी अच्छी लगती हो कर रह गयी। ऐसा ही कभी अत्यंत ही प्रतिभाशाली नीना गुप्ता के साथ हुआ था। उसके पास मुंबई में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का प्रशिक्षण था, रानावि के ही पुराने यार दोस्त थे – अपने किस्म का अनुभव था जो उसके सीरियल सांस में पति – पत्नी – परिवार के संबंधों में दिखा था। आज के पारिवारिक सीरियलों की अम्मा भी सांस ही है। लेकिन साक्षी के पास ऐसा कुछ नहीं था। भाभी की भाव भंगिमा को निहारते-बनाते-समझते हुए एक दिन सामने आता है कि यह तो सचमुच में बड़ी अच्छी लगती है।


डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्‍म मोहल्‍ला अस्‍सी के एक दृश्‍य में साक्षी तंवर और सन्‍नी देओल

साक्षी जब तक कहानी घर घर के माध्यम से घरों के कचड़ा डब्बा में घुस कर भाभी जी बन चुकी थी, तब तक सीरियल से ही शुरुआत करने वाली विद्या बालन लगभग अनजान हो कर भी जहां जानी पहचानी होनी चाहिए थी, वहां जानी पहचानी थी, यानी वो लोग जो प्रतिभा की परख रखते हैं, वहां जानी पहचानी थी। वह एकता कपूर के सीरियल पिंजड़े में भी कैद नहीं थी। जबकि साक्षी तो कहानी घर घर की सुरक्षा में रही। कहानी … बंद होने के बाद दाल रोटी के लिए इधर उधर भटकी भी। भटकना तो विद्या बालन को भी पड़ा लेकिन उसे एक राह मिल गयी परिणीता की शक्ल में। बाकी इतिहास यह है कि वह नायिका प्रधान सिनेमा की हीरोइन बन कर अपने आप में एक कहानी हो गयी क्योंकि संवाद लेखक ने उसके लिए संवाद रचा : एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट …! साक्षी के पास ऐसा कोई संवाद नहीं था। हो भी नहीं सकता था क्‍योंकि जिस परिवार को नीना गुप्ता ने गढ़ा था, उसे एकता कपूर ने अपने ढंग का ही दैनिक एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट बना दिया था।

इस एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट और एंटरटेनमेंट की दुनिया का सामाजिक – राजनीतिक – आर्थिक लाभ भी स्मृति (मल्होत्रा) ईरानी ने उठाया। आज वह माननीय सदस्य राज्य सभा हैं, अपना प्रोडक्शन हाउस है। नीना ने भी बनाया था। लेकिन साक्षी के पास सिर्फ बड़ी अच्छी लगती हैं ही बड़े अच्छे लगते हैं … के माध्यम से रह गया। थोड़ा सा अखबारी विवाद भी हुआ या बनाया जा रहा है बड़े अच्छे लगते हैं … के किसी पति-पत्नी के सेक्सिया सीन को ले कर।

मैंने वह दृश्य नहीं देखा है, इसलिए कह नहीं सकता हूं कि वह कितना सेक्सिया सीन रहा होगा। पर ज्यादा से ज्यादा ऐसा हाव भाव रहा होगा कि साक्षी अपनी पीठ दिखा रही हो या आलिंगनबद्ध हो रही हो या चेहरे पर सेक्सिया संतुष्टि का भाव रहा होगा। इससे ज्यादा सीरियल में कुछ हो भी नहीं सकता। लेकिन अखबार में साक्षी का वही सच्चा झूठा बयान है कि इस सीन को करने के पहले अपनी बहन, माता-पिता-परिवार-मित्रों से उसने विचार विमर्श किया। पुराने जमाने में कहा जाता था कि टांग या पीठ डुप्लीकेट की है। यहां पर एक सौ फीसदी सच भी साक्षी बोली कि लोगों के पास रिमोट होता है, अगर उन्हें अच्छा नहीं लगता है तो इस्तेमाल कर रिमोट को बदल डालते चैनल।

हमारे देश की बहुत सारी विडंबनाओं में से एक विडंबना रिमोट और वोट भी है। हम दोनों का इस्तेमाल सही ढंग से नहीं करते हैं। जैसे अभी दिल्ली में चुनाव आयोग की तरफ से हर तरफ एक बैनर छाया हुआ है कि एक बच्ची कह रही है कि आपका वोट हमें उद्यान दिला सकता है। इस बच्ची का चेहरा देख कर मुझे रघुवीर सहाय की पंक्तियां याद आती हैं : मुंह छुओ / मेरे बच्चे का / गाल वैसा नहीं / जैसा / विज्ञापन में छपा … अगर यही बात कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार कहता कि मुझे वोट दो मैं बगिया खिलाऊंगा तो उस पर चुनाव आयोग की आचार संहिता वाली गाज गिर जाती। यह बात इसलिए कि इन दिनों हर चैनल चिल्लाता है कि कुछ भी आपत्तिजनक दिखे तो शिकायत कीजिए। पता नहीं कितनी शिकायतें हुई हैं जबकि टीवी चैनलों पर आपत्तिजनक ही हुआ करता है।

बहरहाल, अगर हम मान कर चलें कि साक्षी की बात बहुत अच्छे लगते हैं .. की टीआरपी बढ़ाने के लिए है तो मानना पड़ेगा कि वह सीरियल दुनिया की नंबर एक हीरोइन हो चुकी है। और यह अगर चाणक्य द्विवेदी के काशी का अस्सी या अस्सी का काशी का प्रचारात्मक सोच है तो वहां साक्षी क्या कर रही होगी। काशीनाथ सिंह के इस उपन्यास की चर्चा हिंदी जगत में अपने बेबाकपन के लिए हो चुकी है। इसके फिल्म संस्करण के हीरो ढाई किलो का हाथ वाले सन्नी देओल हैं। उनकी मौजूदगी में किसी हीरोइन का क्या काम!

अनुमान के आधार पर कह सकता हूं कि यहां भी साक्षी भाभी – पत्नी – बहन की भूमिका ही निभा रही होगी। बारह साल से एक्टिंग करते करते इतना तो तय ही है कि वह अपनी भूमिका का निर्वाह करेगी – पर फिर सवाल वही है कि जैसे नीना गुप्ता अपार प्रतिभा के बाद गुमनाम सी ही रही और अपनी कामचलाऊ प्रतिभा और सही भूमिका के कारण आज विद्या बालन नायिका वाली फिल्मों की नंबर एक हीरोइन हो चुकी है, क्या उसी प्रकार साक्षी की सही प्रतिभा हिंदी सिनेमा में उभर सकेगी या सीरियल संसार में ही वह बड़ी अच्छी लगती है हो कर रह जाएगी।

(जुगनू शारदेय। हिंदी के जाने-माने पत्रकार। जन, दिनमान और धर्मयुग से शुरू कर वे कई पत्र-पत्रिकाओं के संपादन/प्रकाशन से जुड़े रहे। पत्रकारिता संस्थानों और इलेक्ट्रोनिक मीडिया में शिक्षण/प्रशिक्षण का भी काम किया। उनके घुमक्कड़ स्वभाव ने उन्हें जंगलों में भी भटकने के लिए प्रेरित किया। जंगलों के प्रति यह लगाव वहाँ के जीवों के प्रति लगाव में बदला। सफेद बाघ पर उनकी चर्चित किताब मोहन प्यारे का सफेद दस्तावेज हिंदी में वन्य जीवन पर लिखी अनूठी किताब है। फिलहाल पटना में रह कर स्वतंत्र लेखन। उनसे jshardeya@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

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