Friday, April 27, 2012

काला का खेड़ा के सवर्णों की काली करतूत, दलितों को कर रहे है गांव छोड़ने को मजबूर !

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काला का खेड़ा के सवर्णों की काली करतूत, दलितों को कर रहे है गांव छोड़ने को मजबूर !

काला का खेड़ा के सवर्णों की काली करतूत, दलितों को कर रहे है गांव छोड़ने को मजबूर !

By  | April 27, 2012 at 8:00 am | No comments | राज्यनामा

भंवर मेघवंशी

दक्षिणी राजस्थान का भीलवाड़ा जिला दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने में अव्वल रहा है, विगत एक दशक से समाज के उपरोक्त तीनों वंचित वर्ग भेदभाव, उत्पीड़न, शोषण, अन्याय और सामाजिक असमानता के शिकार बनते आ रहे।
दलित अत्याचारों व सांप्रदायिकता की प्रयोगशाला बन गए भीलवाड़ा में गंगापुर को एक ऐतिहासिक इलाका माना जाता है, कहा जाता है कि ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की एक महिला गंगाबाई ने यह शहर बसाया था, तब से यह क्षेत्र सिंधिया परिवार के अधीन रहा, मतलब यह कि सामंतशाही तो यहां की जड़ों में थी ही, दबंग जाट समुदाय भी यहां के गांवों में बहुतायत में है और दक्षिणपंथी संगठनों के साथ जुड़ा हुआ है, भाजपा नेता डॅा. रतनलाल जाट इस इलाके से विधायक बनकर राजस्थान सरकार में मंत्री भी रह चुके है, आजकल उनके सुपुत्र कमलेश चैधरी सहाड़ा पंचायत समिति के प्रधान है, गांवों में जाट समुदाय ग्राम पंचायतों, दुग्ध उत्पादक सहकारी संघों तथा ग्राम सेवा सहकारी समितियों सहित कई प्रमुख संस्थानों पर काबिज होकर काफी वर्चस्वशाली कौम के रूप में उभर कर सामने आया है, हालांकि जाट स्वयं को किसानों का स्वयंभू प्रतिनिधि घोषित करते है तथा सामंतशाही ताकतों के विरुद्ध लड़ने का संकल्प दोहराते है मगर देखा यह जा रहा है कि वे आजकल नवसामंत है तथा गंगापुर क्षेत्र में दलित आदिवासी तबकों पर अत्याचार करने में वे प्रमुख भूमिका अदा करते है।

इस मकान के छज्जा नहीं बनाने दे रहे है चौधरी (जाट)

इस बार उनके निशाने पर गंगापुर थाना क्षेत्र की गोवलिया ग्राम पंचायत के काला का खेड़ा गांव के बैरवा समुदाय के लोग है। कहा जाता है कि इन दलित बैरवाओं से गांव के जाट, गाडरी, कुमावत इत्यादि लोग इसलिए नाराज है क्योंकि ये दलित परंपरागत रूप से कांग्रेस के समर्थक है जबकि सवर्ण भाजपाई। दूसरी दिक्कत यह है कि बैरवा समुदाय के लोगों ने कड़ी मेहनत के बूते अपनी आर्थिक स्थिति ठीक करने का प्रयास किया है, उन्होंने अपने कच्चे मकानों को अब पक्के मकानों में तब्दील करना शुरू कर दिया है, यहीं से शुरू हुई दबंग सवर्णों के पेट में मरोडि़या उठना, उन्हें यह अच्छा नहीं लगा कि लोभचंद बैरवा अपने चौराहें पर स्थित मकान को सुंदर स्वरूप दे, उन्होंने लोभचंद को चेताया कि वह नए मकान पर रोशनदान नहीं लगाए, दलित लोभचंद ने कहा जब सारे लोगों ने लगाए है तो मैं क्यों नहीं लगाऊं, लगाऊंगा। उसने अपने निर्माणाधीन मकान पर रोशनदान लगवा दिए, यह सवर्णों को बर्दाश्त नहीं हुआ। कहा जाता है कि सवर्णों द्वारा 18 मार्च 2012 को रात साढ़े ग्यारह बजे लोभचंद बैरवा के मकान पर सामूहिक हमला किया गया, उनकी पत्नी लेहरी बैरवा के साथ मारपीट की गई तथा मकान में आग लगा दी गई, फिर गांव छोड़ देने की धमकी देकर वे लोग चले गए। लेहरी बैरवा ने 19 मार्च को गंगापुर थाने में माधवलाल जाट, रतनलाल जाट, जगदीश गाडरी, शांतिलाल जाट, रामा गाडरी, जगदीश जाट, रामलाल जाट, डालु जाट तथा कनीराम इत्यादि के विरुद्ध भादंसं की धारा 143, 453, 323, 438, 427 तथा 504 तथा अनुसूचित जाति जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(1) (10) व 3 (5) के तहत मुकदमा दर्ज करवाया जिसकी जांच पुलिस उपाधीक्षक वृत गंगापुर सत्यनारायण कनौजिया को सौंपी गई है।

घर पर फैंके गए पत्थरों से फूटे कवेलू

घटना की प्राथमिक दर्ज हुए एक माह से भी अधिक का समय हो गया है, मगर कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। कहा जाता है कि गांव के दबंग सवर्ण दलितों को मुकदमा उठा लेने के लिए निरंतर धमका रहे, मोबाइल पर सुरेशचन्द्र बैरवा को दी गई धमकी की तो रिकार्डिंग पुलिस को सौंपी भी गई है, सवर्ण रात के वक्त इन दलितों के घरों में पथराव करते है, दिन के वक्त सार्वजनिक चौराहें या चबूतरे इत्यादि के भी पास नहीं फटकने देते है, कुएं से पानी तक नहीं भरने दे रहे है, गांव वालों का दबाव इतना अधिक है कि या तो दलित समुदाय के पीडि़त अपनी एफआईआर वापस लें अथवा गांव खाली कर दे।
18 अप्रेल को शाम 5 बजे पीडि़त पक्ष के लोग सुरेशचंद्र बैरवा, रतनलाल बैरवा, गंगाराम बैरवा, रोशनलाल बैरवा, लोभचंद बैरवा तथा पारसलाल बैरवा तीनों मोटरसाइकिलों पर सवार होकर काला का खेड़ा से खांखला होते हुए गंगापुर थाने में बयान देने के लिए जा रहे थे कि कनीराम जाट, नारायण जाट, भगवान जाट, कालु जाट, गणेश गाडरी तथा सोहन जाट ने उनकी मोटरसाइकिलों को टक्कर मारकर उन्हें नीचे गिरा दिया तथा धमकी देते हुए कहा-''चमारटो, तुम्हें गांव में नहीं रहनें देंगे, हमने लहरी चमारटी का मकान तो तोड़ दिया है तुम्हें भी चैन से नहीं रहने देंगे।'' इस प्रकार के जातिगत अपमान और हिंसात्मक व्यवहार की शिकायत भी काला का खेड़ा के दलित बैरवाओं ने पुलिस उपाधीक्षक से की, लेकिन आज तक कार्यवाही के नाम पर केवल शून्य ही है, दूसरी ओर आरोपियों के हौंसलें बुलंद है, वे सरेआम घूम रहे है, धमकियां दे रहे है, दलितों का सामाजिक बहिष्कार कर रहे है और आर्थिक रूप से दलितों की कमर तोड़ने में लगे है, जो दलित निर्माण मजदूरी अथवा खेत मजदूरी के जरिए अपनी आजीविका चलाते है, उन्हें अब कोई काम पर नहीं बुलाता है। दलित युवा सुरेशचंद्र बैरवा, बालुराम बैरवा तथा रतनलाल बैरवा के ईंट भट्टों की शिकायत करके उन्हें बंद करवा दिया गया है, इतना ही नहीं बल्कि प्रशासन के जरिए उनकी ईंटों की जब्ती की कोशिश भी की जा रही है, सवर्णों की मांग तो यह है कि दलित अगर काम चाहते है, ईंट भट्टा चलाना चाहते है अथवा गांव में रहना चाहते तो उन्हें दलित अत्याचार का मामला वापस लेकर समझौता करना होगा, अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो उन्हें गांव छोड़ना होगा।
25 अप्रेल को अपने साथियों के साथ इस गांव का दौरा करके जब मैं पीडि़त दलितों से मिल रहा था, तब गांव के दबंग सवर्णों की घेराबंदी और उनका अनियंत्रित व्यवहार तथा एकजुटता यही साबित कर रही थी कि काला का खेड़ा के दलित परिवार सुरक्षित नहीं है, जब तक कि कोई बड़ी सामाजिक व प्रशासनिक कार्यवाही वहां नहीं होगी तब तक काला का खेड़ा में रहना वहां के दलितों के लिए काला पानी की सजा से कम नहीं है। हालांकि गंगापुर थानेदार बाबूलाल सालवी और पुलिस उपाधीक्षक सत्यनारायण कन्नौजिया, दोनों ही दलित समुदाय से है जिनसे भी मिलकर बात की गई पर मुझे लगा कि हमारे लोग चाहे वे ग्रामीण मजदूर हो अथवा जनप्रतिनिधि या कि प्रशासन के आला अधिकारी, सब कोई मजबूर है और इतने विवश इतने लाचार कि कही ना जाए का कहिए।
(लेखक दलित, आदिवासी और घुमंतु समुदाय के प्रश्नों पर राजस्थान में कार्यरत है और 'डायमंड इंडिया' तथा खबरकोश डॅाटकॅाम के संपादक है,

भंवर मेघवंशी

भंवर मेघवंशी (लेखक 'डायमंड इंडिया' तथा 'खबरकोश डाॅट काॅम' के संपादक है।)

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