Monday, April 23, 2012

मजदूर आंदोलनों की दिशा-दशा

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मजदूर आंदोलनों की दिशा-दशा

मजदूर आंदोलनों की दिशा-दशा

By  | April 22, 2012 at 4:30 pm | No comments | हस्तक्षेप

लेनिन के जन्मदिन पर विशेष

सुनील दत्ता

19 वी शताब्दी के उत्तर्राद्ध में आठ घन्टे की कार्य दिवस की प्रमुख माँग को लेकर यूरोप में ,फिर अमेरिका में आंदोलनों का दौर बढ़ता रहा |अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इस माँग को 1866 में इंटरनेशनल लेबर संगठन के जेनेवा कांग्रेस में उठाया गया |इस इंटरनेशनल लेबर संगठन को गठित करने का प्रमुख दायित्व मार्क्स अगेल्स ने निभाया था |जिनेवा कांग्रेस में यह प्रस्ताव सर्व समिति में दर्ज है "काम के दिन की वैध सीमा तय करना ,मजदूर वर्ग की स्थिति में सुधार की पहली शर्त है "|
1880 के दशक में अमेरिकी मजदूर यूनियन अपने आंदोलनों में आठ घन्टे के कार्य दिवस को अपना प्रमुख माँग ,मुद्दा बनाकर आगे बढ़ी |1885 के बाद पूरे अमेरिका में मजदूर आदोलानो हडतालो का तांता लग गया |शिकागो इन हडतालो का केंद्र था पहली मई 1886 को ,शिकागो में कई मजदूर यूनियनों के संयुक्त मोर्चे में मजदूर यूनियनों का एक विशाल समूह आठ घन्टे के कार्य दिवस तथा अन्य मांगो को लेकर आंदोलित हो उठा |मजदूर आन्दोलन के आव्हान पर शहर की सारी फैक्टरिया ठप्प हो गयी |उन फैक्टरियों के मालिको और शिकागो के प्रशासन ने मजदूरों की सभा पर पुलिस बल का हमला करवा दिया |मजदूरो की मार -पिटाई के साथ अग्रणी मजदूर लीडरो और तमाम मजदूरों को गिरफ्तार कर लिया गया |पुलिस की इस कार्यवाही के विरोध में 3 मई को हे मार्केट स्क्वायर पर इकठ्ठा मजदूरों के बड़े समूह ने पुन: हमला कर दिया |भयंकर रक्तपात हुआ |कई मजदूर मारे गये |चार मजदूर लीडरो पार्सन्स ,स्पेस ,फिशर ,और एंजेल को गिरफ्तार करने के बाद फांसी दी गयी |शिकागो के अन्य मजदूर नेताओं की भी गिरफ्तारिया की गयी फिर उन्हें सजा भी दी गयी |
अमेरिका व यूरोप के मजदूर आठ घन्टे के काम की माँग को लेकर शिकागो के पहली मई के आन्दोलन व संघर्ष को अन्तराष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मान्यता प्रदान कर दी |सारी मजदूर यूनियनों ने इसे अपना समर्थन दिया |1890 का -मई -दिवस अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशो में मनाया गया |कार्ल मार्क्स की 1883 में मृत्यु के बाद उनके अनन्यतम मित्र ,मजदूर वर्ग के महान शिक्षक एवं अग्रदूत फेडरिक एंगेल्स ने 01 मई 1890 को कम्युनिस्ट घोषणा पत्र के चौथे जर्मन संस्करण की भूमिका में लिखा है कि ….."यह पहला मौक़ा है जब सर्वहारा वर्ग ,एक झण्डे के तले ,एक तात्कालिक लक्ष्य के वास्ते ,एक सेना के रूप में गोलबंद हुआ है |मुख्यत: आठ घन्टे के कार्यदिवस को कानून द्वारा स्थापित कराने के लिए |काश !मार्क्स भी इस शानदार दृश्य को देखने के लिए मेरे साथ होते |"
पहली मई 1886 का संघर्ष यूरोप और फिर अमेरिका में चलते रहे संघर्षो की एक कड़ी थी |पहली मई उन संघर्षो का एक पडाव है |उस पड़ाव से मजदूर आन्दोलन की दशा व दिशा का मूल्याकन करना और आन्दोलन का कार्यभार था और है |जहा तक मजदूर आन्दोलन की भावी दिशा का उसके तात्कालिक और दूरगामी उद्देश्य का सवाल है तो , मजदूर वर्ग के महान दार्शनिक ,महान शिक्षक और महान क्रांतिकारी अग्रदूत मार्क्स ,एंगेल्स ने 1848 में कम्युनिस्ट घोषणा पत्र में इसे स्पष्ट कर दिया था " मजदूर वर्ग और उसकी पूर्ण मुक्ति से भिन्न कम्यूनिस्टो का अलग से कोई दुसरा लक्ष्य नही होता |इसीलिए कम्युनिस्ट घोषणा -पत्र दर असल मजदूर वर्ग का घोषणा -पत्र है |उसकी मुक्ति का पथ -प्रदर्शक है |
इसी घोषणा पत्र में मजदूर वर्ग के महान अग्रदूतो ने आज से लगभग 160 साल पहले यह घोषणा कर दी थी की अब मजदूर वर्ग ही समाज का क्रांतकारी वर्ग है |………..कि मजदूर की मुक्ति का कार्यभार मजदूर वर्ग का ही कार्यभार है |
॥कि उसे अपनी मुक्ति के लिए मानव समाज के अभी तक के विकास से ,उसमे चले क्रांतिकारी वर्ग संघर्षो से सीख लेने की जरूरत है |…..कि आधुनिक युग में उत्पादन के साधनों का धनाढ्य मालिक ,पूंजीपति वर्ग ,सामन्ती वर्ग से संघर्ष करके उससे धन ,सत्ता का मालिकाना छीनकर हर राष्ट्र का और समूचे विश्व का सर्वाधिक धनाढ्य व सर्वाधिक प्रभुत्व वर्ग बन गया है |….कि आधुनिक राष्ट्रों की राज व्यवस्था वहा के धनाढ्य पूंजीपति वर्ग की प्रबंधकारी कमेटी ही है |साथ ही वह मजदूर वर्ग के दमन उत्पीडन का यंत्र भी है |अपनी पूंजी व राज्य की ताकत से पूंजीपति वर्ग अपने शोषण लूट को अपने लाभ व मालिकाने को निरंतर बढाता जा रहा है
समाज के टूटपुजिया हिस्सों की भी संपत्तिया छीनते हुए उसे मजदूर वर्ग की पंक्ति में धकेलता जा रहा है |………आधुनिक पूंजीवादी समाज लगातार दो विशाल शत्रु शिविरों में बटता जा रहा है |एक तरफ देश दुनिया के धनाढ्य पूंजीपति वर्ग और उनके उच्च हिमायती वर्ग और उनके उच्च हिमायती समर्थक सेवक वर्ग है |दूसरी तरफ मजदूर वर्ग और लगातार टूटता हुआ और टूटकर सर्वहारा बनता हुआ टूटपुजिया वर्ग है |
की धनाढ्य पूंजीपति वर्ग मेहनतकश वर्ग हितो में न हल किया जा सकने वाला विरोध मौजूद है और वह निरंतर बढ़ता जा रहा है |.पूंजीपति वर्ग अपने दासो को यानी सम्पत्ति हीन होते जा रहे लोगो मजदूरों को खिलाने -जिलाने में अधिकाधिक अक्षम साबित होता जा रहा है |इसीलिए अब उसे समाज का शासन वर्ग बने रहने ,समाज के संसाधनों का मालिक बने रहने का कोई अधिकार नही रह गया है |अब मजदूर वर्ग के सामने अपनी मांगो ,संघर्षो को आगे बढाते हुए सब से पहला लक्ष्य राष्ट्र का शासक बर्ग बनना है |मजदूर तानाशाही राज्य निर्माण करना है |
फिर उनका अगला महत्वपूर्ण कार्य मजदूर तानाशाही सत्ता के जरिये धनाढ्य वर्गो के मालिकाने व प्रभाव को लगातार घटाते हुए अंतत: निजी मालिकाने को समाप्त कर देना है |
"मजदूर वर्ग की मुक्ति का कोई दुसरा रास्ता नही है |वर्ग संघर्ष के इस रास्ते के अलावा बाकी सारे रास्ते व उपाय धनाढ्य वर्गो का सहयोग करने के रास्ते व उपाय है |उसकी मुक्ति के नही बल्कि उस पर सम्पत्तिवान वर्गो की गुलामी को लादने ,बढाने के उपाय है |
इसलिए उसे पूंजीवादी या उनके हिमायतियो के झांसे में आने की जरूरत नही है |बल्कि उसे मजदूर वर्ग की अपनी पार्टी बनाकर इस लक्ष्य पर आगे बढने की आवश्यकता है |
मजदूर पार्टी के जरिये पूंजीवांन वर्गो तथा अन्य नये पुराने सम्पत्तिवान वर्गो के विरुद्ध संघर्ष को निरंतर बढाने की आवश्यकता है |उन्हें सत्ताच्युत करने और स्वंय सत्तासीन वर्ग बनने ,समाज के साधनों पर अपना सामाजिक ,सामूहिक मालिकाना स्थापित करने की आवश्यकता है |व्यापक समाज की आवश्यकता पूर्ति के साथ -साथ पूरे समाज को श्रमशील कमकर समाज बनाए जाने की आवश्यकता है |
ये सारे लक्ष्य मजदूर वर्ग के संगठित संघर्षो से लगातार चलाए जाने वाले वर्ग संघर्ष से ही हासिल किये जा सकते है |परन्तु इन संघर्षो में देश -दुनिया के धनाढ्य वर्गो द्वारा मजदूर आंदोलनों ,संगठनों को तोड़ने का खतरा हर वक्त मौजूद है |देश -दुनिया का वर्तमान दौर भी उसी भारी टूटन का दौर है ,लेकिन मजदूर वर्ग के पास अपनी मुक्ति का रास्ता जानने और पुन:ताकत बटोर कर संघर्ष के रास्ते पर आगे बढने के सिवा कोई दुसरा रास्ता नही बचा है |
फिर लोहे के गीत हमे गाने होंगे
दुर्गम यात्राओं पर चलने के संकल्प जगाने होंगे |
फिर से पूँजी के दुर्गो पर हमले करने होंगे |
नया विश्व निर्मित करने के सपने रचने होंगे |
श्रम की गरिमा फिर से भाल करनी होगी |
फिर लोहे के गीत हमे गाने होंगे |
सत्ता के महलो से कविता बाहर लानी होगी |
मानवात्मा के शिल्पी बनकर आवाज उठानी होगी |
मरघटी शान्ति की रुदन भरी प्रार्थना रोकनी होगी |
आशाओं के रणराग हमे रचने होंगे |
फिर लोहे के गीत हमे गाने होंगे |
शशिप्रकाश का यह गीत हमे संबल दे रहा है की फिर हमे एक बार मुखर होकर पूंजीवाद के खिलाफ जंग का ऐलान करना होगा |
…सुनील दत्ता
पत्रकार
आभार
चर्चा आजकल की

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