Monday, April 9, 2012

मुन्नी, शीला और चमेली … कोई तो हल करे ये पहेली!

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 आमुखशब्‍द संगत

मुन्नी, शीला और चमेली … कोई तो हल करे ये पहेली!

9 APRIL 2012 ONE COMMENT

♦ कपिल शर्मा

कुछ दिनों पहले की ही बात है। सुबह-सुबह आठ बजे जब मैं नींद से उठा, तो मुंह की उबासी पूरी किये बिना ही, मिचमिचाती आंखों के साथ अखबार के पन्ने उलटना शुरू कर दिये। खबरें वही रुटीन हवाबाजी वाली थी, लेकिन मैं भी ढीठ बैंलों के तरह खबरों में कुछ नया खोजने में जुटा था। तभी पेज नंबर सात में अखबार के बीचोंबीच तीन कॉलम की एक खबर दिखाई दी। खबर के साथ लगी फोटो को देखते ही मैं यादों के गर्त में चला गया।

दरअसल बात ज्यादा पुरानी नहीं थी। एकाध साल पहले एक दिन शाम को मेरे एक मित्र चुलबुल पांडे मेरे कमरे में तिलमिलाये हुए से आये और ना जाने किसी लड़की की मां-बहन को अपशब्द कहने लगे। माहौल को गर्म देखकर मैं चुलबुल जी को ठंडा करने लगा।

मैंने कहा कि चुलबुल भाई शांत हो जाइए, अब क्या गालियों की चालीसा ही सुनाते रहेंगे कि मामला भी उगलेंगे। बात क्या हो गयी है और किसकी मां-बहन याद कर रहे हैं। मेरे इतना कहते ही चुलबुल भाई अपना दर्द उलटने लगे।

दरअसल मामला यह था कि चुलबुल जी की उम्र लगभग पैंतीस-छत्तीस साल हो चुकी थी। नौकरी का जुगाड़ हुआ नहीं था, शादी की सैंटिग हो नहीं पायी थी। जिदंगी अवसाद में थी, युवा उम्र लड़कियों को ताड़ते ही गुजर गयी। इसलिए बची खुची अधेड़ उम्र में शौक पूरा करने के लिए आजकल मुन्नी नाम की वेश्या की नियमित सेवाएं लेने लगे। चुलबुल भाई को दो-चार दिन ही उस मुन्नी के यहां जाते हुआ था कि उन्होंने मुन्नी से गहन प्रेम की बात बोलते हुए शादी का प्रस्ताव दे दिया। भाई इनके ऐसे क्रांतिकारी कदम से मुन्नी घबरा गयी और चुलबुल भाई के मुंह पर ही ना कर दी। इसके बाद चुलबुल भाई मारे ताव के गाली गलौज करते हुए चले आये और हमारे कमरे पर आकर अपना रोना रोने लगे।

कमरे पर बैठे-बैठे मुझसे कहने लगे कि देखो मित्र, कैसा जमाना आ गया है, एक हम हैं जो समाज की जूठन को भी अपने घर की थाली बनाना चाहते हैं और वो ससुरी हमीं को ना कर रही है। लेकिन मित्र वास्तविकता यही है कि हम मुन्नी से बहुत गहन प्रेम करने लगे हैं। अब कुछ भी कर के हमारी शादी मुन्नी से करा दो, वरना हम जहर खाकर तुम्हारे कमरे में ही जान दे देंगे। ये बात सुनकर मैं घबरा गया। मामला दिल का था। मित्र जान देने की बात कर रहा था। मैंने भी सोचा दो प्रेमियों को मिलाना मेरा धर्म है, मामले में कूद जाया जाए। मैंने चुलबुल से कहा कि चलो मुझे मुन्नी का अड्डा दिखा दो। मैं वहां जाकर मुन्नी से बात करूंगा और तुमसे शादी करने के लिए राजी कर लूंगा।

कुछ देर बाद ही मैं चुलबुल के साथ मुन्नी के अड्डे के सामने था, जो कि किसी रिहाइशी कालोनी का घर था। ऐंठन के मारे चुलबुल बाहर ही रुक गया, जबकि मैं अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद मुन्नी मेरे सामने थी। मैंने मुन्नी से कहा कि मुझे चुलबुल ने भेजा है, मैं उसका दोस्त हूं। चुलबुल बहुत अच्छा लड़का है, तुमसे प्रेम करने लगा है। तुमसे शादी करके इस दलदल से निकलना चाहता है और तुमने ना कर दिया, क्यों भाई।

इतना सुनते ही मुन्नी बिफर पड़ी। चिल्लाने लगी। बोली कि अगर जानना चाहते हो तो तुम्हें शीला की कहानी सुननी पड़ेगी। मैंने कहा कि अब ये शीला कौन है। मुन्नी ने बताया कि शीला का जन्म हरियाणा के रोहतक जिले के एक गांव में हुआ था। शीला की मां का नाम चमेली था। जब शीला अपनी मां चमेली के गर्भ में आयी थी, तो पहले से ही उसकी तीन बहनें जन्म ले चुकी थी, जिन्हें पैदा होते ही मार डाला गया था। इस बार शीला के पिता और दादी को चमेली के गर्भ से पुत्र के होने की सौ फीसदी संभावना थी। लेकिन शीला के रूप में उनके घर में जब एक और लड़की ने जन्म लिया, तो उसके पिता और दादी के पैरों तले जमीन खिसक गयी और वे उसे भी मारने के लिए आगे बढ़े। लेकिन शीला की मां चमेली उसे बचा कर भाग खड़ी हुई और शीला के नाना- नानी के यहां आ गयी। उधर शीला के पिता ने पुत्र प्राप्ति की चाह में दूसरी शादी कर ली।

फिर क्या था, शीला का लालन-पालन ननिहाल में ही मामा-मामियों के तानों के बीच हुआ। बचपन से ही शीला ने अपनी मां चमेली को उसको पालने में आ रही तंगहाली और संसाधनों की कमी से जूझते हुए देखा। लेकिन हद तो तब हो गयी, जब पढ़ाई में अच्छी होने के चलते बारहवीं पास होने पर शीला को सरकारी वजीफे से शहर के कॉलेज में एडमिशन मिला और मामा-मामियों ने शीला के शहर जाने पर अड़बिंगा लगा दिया। जबकि बड़े और छोटे मामा दोनों के ही लड़के शहर से ही पॉलीटेक्नीक कर रहे थे। शीला ने अपनी मां चमेली को पढ़-लिख कर कुछ बनने के बाद जिंदगी के सुधरने के सपने दिखाये और उसे शहर भेजने के लिए राजी कर लिया। इसके बाद शीला मामा-मामी से तर्क वितर्क करते हुए शहर पढ़ने आ गयी। शीला की मामियों ने उसके घर से चलते समय कुलटा होने का श्राप भी दिया लेकिन उसने किसी की भी नहीं सुनी।

इतनी कहानी सुनने के बाद मैंने मुन्नी से पूछा कि फिर शीला के साथ आगे क्या हुआ।

मुन्नी ने कहा कि खैर शहरी वातावरण में शीला को कुछ राहत महसूस हुई। उसे कुछ खुलापन सा लगा। गांव की तुलना में यहां लड़कियां थोड़ी छूट में थी। शीला को लगा कि यह सभ्य समाज है। इसलिए यहां पर उसे विकास करने का भरपूर मौका मिलेगा। फिर कुछ दिनों बाद उसकी जिंदगी में भोलाराम गुप्ता आया। शीला का भी युवा मन था। वह भोलाराम से प्रेम कर बैठी। भोलाराम पढ़ने में काफी तेज था और सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा था। कॉलेज में ग्रेजुएशन के तीनों साल के दौरान दोनों ने कई बार एक दूसरे के साथ जीने मरने और एक-दूसरे को न छोड़ने की कसम खायी। कई बार सिर से सिर टिकाकर, एक-दूसरे को याद कर रोये। शीला भोलाराम के भोलेपन में ऐसा फंसी कि जवानी के बांध को कई बार ये सोच कर फांदा कि अब जीना भी भोला के साथ और मरना भी भोला के साथ। लेकिन भोला का चोला उस दिन शीला के सामने उतर गया, जब भोलाराम की सरकारी नौकरी लग गयी। शीला ने शादी करने को कहा तो भोला तुंरत रिवर्स गियर लगाते हुए बैकफुट पर आ गया और इस रिश्ते को उसके घरवालों की सहमति न मिलने की बात कहने लगा। भोलाराम ने तर्क दिये कि उनकी शादी होने पर उसकी मां जहर खा लेगी, पिता संपत्ति से बेदखल कर देंगे। उसके पूरे परिवार का गांव से हुक्का पानी बंद हो जाएगा।

यहीं नहीं, दोनों अलग-अलग जाति से हैं, खून-खराबा हो जाएंगा। हो सकता है इन सबके बीच बेचारे भोलाराम की जान भी चली जाए। लेकिन ये सब भी भोलाराम सह लेगा लेकिन अगर शीला को कुछ हो गया तो वह अपने आपको कभी भी माफ नहीं कर पाएगा। इसके बावजूद भी अगर शीला को लगता है कि नहीं भोला के साथ शादी करके ही उसे उनके प्रेम की प्राप्ति हुई है, तो वह यह भी करेगा। इतना सब कुछ सुनकर शीला का दिल पसीज गया और उसने भोलाराम को किसी मुसीबत में न डालने का निर्णय लेते हुए उससे शादी करने के अपने हठ को तोड़ दिया और अपने दिल पर पत्थर रख कर मान लिया कि अपने पवित्र प्रेम को किसी रिश्ते का नाम देने की उन्हें जरूरत नहीं है।

शीला की कहानी का ये हिस्सा सुनते ही मेरा दिमाग ठनक गया। मैंने तुरंत मुन्नी से पूछा कि शीला से शादी न होने पर क्या भोलाराम ने भी शादी नहीं की।

इस पर मुन्नी ने आगे की कहानी सुनाते हुए बताया कि इस घटना के कुछ दिनों बाद ही शीला को पता चला कि भोलाराम किसी दूसरी लड़की के साथ धूमधाम से परिणय सूत्र में बंध गये हैं। भोलाराम और उस लड़की का पिछले तीन महीनों से चक्कर चल रहा था। खास बात यह थी कि ये लड़की भी भोलाराम की जाति की नहीं थी। लेकिन दहेज में भोलाराम को एक गैस एजेंसी और दो करोड़ कीमत का एक फ्लैट बीचोंबीच शहर में मिला था। यह सुनते ही भोलाराम के भोलेपन से शीला को चिढ़ हो गयी। इस घटना के बाद कुछ दिन शीला ने सदमे में गुजारे लेकिन जिंदगी कहां रुकने का नाम है। पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, तो शीला ने नौकरी ढूंढनी शुरू की।

नौकरी ढूंढने के दौरान ही उसकी जान पहचान लवली सिंह से हुई, जिसने अभी-अभी एक नयी हाई प्रोफाइल बॉडीगार्ड एजेंसी खोली थी और शीला ने उसकी कंपनी में रिसेप्‍शनिस्‍ट की नौकरी कर ली। लवली सिंह की मां महिला सुधार समिति के नाम से एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था चलाती थी, इसलिए राजनीतिक महकमे में उनकी काफी हनक थी। पिता भी सूबे के अव्वल उद्योगपतियों में से एक थे। लवली सिंह भी महिला सुधार से संबंधित कामों में गहरी दिलचस्पी रखता था और अपनी मां के महिला सुधार कार्यक्रमों में हाथ बंटाता रहता था।

ऐसे में एक दिन लवली सिंह ने शीला को उसकी मां की संस्था में शामिल हो, महिला सुधार के लिए काम करने का प्रस्ताव दिया। इतना बड़ा मंच पाकर शीला अचंभित हो गयी। शीला ने लवली सिंह का प्रस्ताव सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। इसके बाद काम के सिलसिले में लवली सिंह और शीला एक दूसरे के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताने लगे। जाने अनजाने में शीला लवली सिंह की तरफ खिचंती चली जा रही थी। लवली सिंह के साथ ने मध्यमवर्गीय समाज से आयी शीला को एक दूसरे ही पूंजीपति समाज में लाकर खड़ा कर दिया। इस समाज में महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही अपनी स्‍वतंत्रता से जीवन जीने का अधिकार प्राप्त था। यहां महिलाओं के छोटे कपड़े पहनने, शराब या सिगरेट पीने, किसी मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखने, रात में घर से बाहर रहने या पर-पुरुषों से दोस्ती और शारीरिक संबंध बन जाने पर इतनी हाय तौब्बा नहीं मचती थी, जितनी कि मध्यम वर्ग में। शीला ने इसी को असली महिला सशक्तीकरण मान लिया था। यही नहीं, शीला के जीवन का लक्ष्य भी अब भारत के गांवों और शहरों में दमित हो रही प्रत्येक महिला को ऐसा ही समाज और सशक्तीकरण देना हो गया था।

शीला की इतनी कहानी सुनने के बाद मैंने मुन्नी से कहा कि इसके बाद तो शीला जी जान से महिला सशक्तीकरण के अपने लक्ष्य में जुट गयी होगी।

इस पर मुन्नी ने कहा कि नहीं, ऐसा कुछ नहीं हुआ। बल्कि एक दिन शीला की जिंदगी ने यू टर्न ले लिया। हुआ यूं कि एक दिन लवली सिंह ने अपने जन्मदिन के अवसर पर कॉकटेल पार्टी रखी। लवली सिंह ने शीला के साथ अपने कुछ पुरुष मित्रों को भी उसमें बुलाया और पार्टी के बाद लवली सिंह ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर शीला की इज्जत लूट ली। इस घटना ने शीला को झकझोर दिया और उसके मध्यमवर्गीय मूल्य उसके अंदर जाग उठे। अपने साथ हुए गैंगरेप की रपट लिखाने के लिए वह रात को ही सड़क पर निकल पड़ी। उसे इस बात का ध्यान नहीं था कि हाई फाई पार्टी के चलते उसने मिनी स्कर्ट और छोटा सा ब्लाउज पहना हुआ है। शराब की हल्की बू भी उसके मुंह से आ रही है। लेकिन उसको धुन चढ़ी थी तो बस पुलिस स्टेशन जाने की। उसने एक टैक्सी की, टैक्सी वाला उसे देखते ही समझ गया कि किसी बड़े बाप की बिगड़ी लड़की है और नशे में भी है। इसके बाद क्या था टैक्सी वाले ने भी शीला को गाड़ी में बैठाया और टैक्सी स्टैंड में ले जाकर अपने दोस्तों के साथ ले जाकर रात भर नोंचा। इसके बाद शीला अपने साथ हुए गैंगरेपों के अपराधियों को पकड़वाने के लिए खूब दौड़ी। प्रशासनिक चौखटों पर बड़ा बवाल किया लेकिन लवली सिंह का कुछ नहीं हो सका। हां, टैक्सी स्टैंड में रेप करने वाले मुजरिमों के तौर पर पुलिस ने दो चार गिरफ्तारियां जरूर की, लेकिन शीला द्वारा पहचान न हो पाने की वजह से उन्हें भी छोड़ दिया गया।

लवली सिंह की मां के प्रभाव के चलते किसी महिला संगठन की भी हिमाकत शीला के मुद्दे को उछालने की नहीं हुई। अंत में शीला हार मान कर बैठ गयी और इस घटना के नौ महीने बाद उसने एक लड़की को जन्म दिया, जिसे शीला एक मंदिर के आंगन में छोड़ आयी। साथ ही उस बच्ची की कलाई में बांध आयी एक चिट्ठी जिसमें शीला ने अपनी आप बीती लिखी दी। साथ में यह भी लिखा कि अब वह अपनी मां चमेली के पास अपने गांव वापस जा रही है और अब वह घरवालों के कहे अनुसार शादी कर चुपचाप तरीके से अपना घर बसा कर रहेगी। क्योंकि अब वह जान गयी है कि पुरुषों के बनाये इस समाज में जीने का सबसे आसान तरीका यही है।

इसके बाद क्या था, आंगन में रोती अबोध बच्ची की आवाज सुनकर मंदिर के पुजारी ने पुलिस को खबर दे दी। प्रशासन ने बच्ची के लालन-पालन का जिम्मा एक अनाथालय को दे दिया।

इतनी कहानी सुनाने के बाद मुन्नी चुप हो गयी और कुछ सोचने लगी। इतनी लंबी कहानी सुनने के बाद मेरा सिर चकरा रहा था। मैंने खीझ के कहा कि शीला की इस कहानी से चुलबुल के साथ तुम्हारे शादी करने और न करने का क्या लेना-देना है।

मेरा इतना कहते ही मुन्नी एक बार फिर से चीख पड़ी और उसके मुंह से निकला कि मंदिर के आंगन में पड़ी वो अबोध बच्ची मैं थी, मुन्नी। शीला मेरी मां थी, ये मुन्नी उस शीला की ही औलाद है। इसीलिए मैं चुलबुल से शादी करना नहीं चाहती हूं क्योंकि मैं इस पुरुष प्रधान समाज की असलियत जान गयी हूं। यहां औरत न तो किसी जाति की होती है और न ही किसी वर्ग से। वो सिर्फ औरत होती है और इस समाज ने औरत का धर्म यहां पुरुषों की आग को शांत करना ही तय कर रखा है, फिर वह आग चाहे पेट की हो या नीचे की। पुरुष चाहे पूंजीपति हो, मध्यमवर्गीय हो या निम्नवर्गीय, औरत केवल उसके लिए मनोरंजन का साधन भर है, जिसकी कीमत मात्र कुछ मीठे वादे और सुनहरे झूठे सपने हैं। अगर ये भी मर्द न कर पाता हो तो कुछ रुपये फेंक कर भी ये सुविधा प्राप्त की जा सकती है। लेकिन हद तो तब हो जाती है जब मर्द जानवर बन जाता है और अपनी आग शांत करने के लिए उन्हें रौंद देता है।

लेकिन अब ये सारी दिक्कतें महिला समाज के सामने ज्यादा दिनों की नहीं है। सूचना और तकनीकी क्रांति ने हमें पुरुषों के पाश से निकालना शुरू कर दिया है। गर्भनिरोधक साधनों ने हमें पहले से ही प्राकृतिक बेबसी से निजात दिला दी है। आईवीएफ तकनीक, टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक भी कारगर साबित हुई है। बस एक बार ऐसी तकनीक और आ जाए, जब महिलाएं पुरुषों की मदद लिये बिना अपने शरीर से ही बच्चे पैदा करने लगे। कुछ वैज्ञानिक ऐसी तकनीक की खोज पहले ही शुरू कर चुके हैं। अगर ऐसा हो जाए, तो मैं दावा करती हूं कि मार्क्‍स की मजदूरों की क्रांति हो या न हो, महिला क्रांति जरूर हो जाएगी। और फिर शुरू होगा पुरुषों के शोषण का दौर… क्‍योंकि तब कोई औरत बच्चा पैदा करने और पालने के लिए पुरुष समाज की मोहताज नहीं होगी।

बल्कि उल्टा पुरुष अपनी शारीरिक और पितृत्व की भूख के लिए महिला समाज पर निर्भर हो जाएगा और महिलाओं के इशारे पर नाचने वाले बंदर के अलावा उसकी इस समाज में कोई भूमिका नहीं होगी। क्योंकि वो समाज एक महिला प्रधान समाज होगा, जिसे बनते देखना मेरा सपना है। इसके बाद मुन्नी ने मुझसे कहा कि जाओ चुलबुल पांडे से कह दो, भविष्‍य में बनने वाले बंदर से मुन्नी शादी नहीं करेगी, बल्कि जरूरत पड़ी तो अपने घर में ही पिंजड़ा लगवा कर उसे पाल लेगी। मुन्नी के ऐसे तेवर देख कर मैंने वहां से निकलना ही उचित समझा। लेकिन मुन्नी के घर से बाहर निकलने के पहले ही वहां पुलिस का छापा पड़ गया। मेरी हालत बिगड़ गयी। पुलिस ने मुझे कॉलगर्ल का ग्राहक समझ कर हिरासत में ले लिया। इज्जत की मिट्टी पलीद होने के डर से मैं पुलिस इंस्पेक्टर के पैरों पर गिर पड़ा। लेकिन पुलिस वाला दयालु निकला और उसने मुझसे एटीएम से निकाले गये आठ हजार रुपये लेकर बैरंग रवाना कर दिया। मैं दौड़ते हुए चुलबुल के कमरे पर पहुंचा, तो देखा चुलबुल खुश होकर मिठाई खा रहा है, क्योंकि शाम को ही उसके गांव से फोन आया था। खबर मिली थी कि उसकी शादी सत्रह साल की एक बारहवीं पास लड़की से तय हो गयी है। लड़की की सात बहनें हैं, इसलिए उसके माता-पिता शादी जल्दी में निबटाने के चक्कर में चुलबुल जैसे निठल्ले आदमी को भी दो लाख रुपये का नगद दहेज दे रहे हैं।

तभी न जाने कहां से एक आवाज मेरे दिमाग में सुनाई देने लगी। आलू ले लो, टमाटर ले लो, प्याज, लहसुन, धनिया ले लो ओ ओ ओ… यह चिर-परिचित आवाज सुनते ही मैं अपनी यादों से वापस आया, घड़ी में दस बज चुके थे। मुझे याद आया कि अरे मैं तो खबर पढ़ने जा रहा था, इसके बाद मैंने जल्दबाजी में खबर पढ़ना शुरू की। खबर में लिखा था कि प्रख्यात महिला सुधारक मुन्नी सत्तासीन हो रही पार्टी के टिकट से मेरे विधानसभा क्षेत्र से विधायकी का चुनाव जीत गयी है। राजनीतिक आकाओं से उनके घनिष्‍ठ संबंधों को देखते हुए चुनाव विश्लेषक उनके मंत्री बनने का भी कयास लगा रहे हैं। यही नहीं, महिलाओं के उद्धार के लिए किये गये उनके कार्य और विधानसभा में उनकी जीत से उत्साहित होकर राष्ट्रीय स्तर की संस्था महिला सुधार समिति के अध्यक्ष लवली सिंह ने मुन्नी को अपनी संस्था के सर्वोच्च पुरस्कार से नवाजे जाने की घोषणा की है। मुन्नी को इस पुरस्कार से आने वाले बुधवार को सिटी सेंटर में एक भव्य समारोह में सूबे के महिला एंव बाल विकास मंत्रालय के प्रमुख सचिव भोलाराम के द्वारा सम्मानित किया जाएगा।

(कपिल शर्मा। पेशे से पत्रकार। इंडियन इंस्‍टीच्‍यूट ऑफ मास कम्‍युनिकेशन से डिप्‍लोमा। उनसे kapilsharmaiimcdelhi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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