कीचड़ से दलदल की ओर बढ़ती राजनीति
- THURSDAY, 19 APRIL 2012 15:30
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राजनीति मुख्य रूप से सत्ता प्राप्त करने को उद्देश्य मानकर किया जाने वाला एक ऐसा पेशा बनकर रह गई है जिसमें अनपढ़, गुण्डे, बदमाश, लफंगे, स्वार्थी, धनार्जन की इच्छा रखने वाले, अखबारबाजी व प्रेसनोट की राजनीति कर अपने नाम को जनता के मध्य नियोजित तरीकों से उछालने तथा छल-कपट से अपना नाम रौशन करने वालों की भीड़ नजर आती है...
निर्मल रानी
राज करने अथवा राज चलाने सम्बन्धी नीति को 'राजनीति' कहा जाता है। स्पष्ट है कि राज करने या चलाने जैसी अति संवेदनशील एवं गम्भीर जिम्मेदारी के लिए इस पेशे में शामिल व्यक्ति को अत्याधिक योग्य, दक्ष, ईमानदार तथा कुशल नेतृत्व प्रदान कर पाने की क्षमता रखने वाला व्यक्ति होना चाहिए। अशोक सम्राट, चन्द्रगुप्त, चाणक्य जैसे राजनीति में सिद्ध पुरूषों से लेकर सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, लालबहादुर शास्त्री तथा इंदिरा गांधी सरीखे देश के सुप्रसिद्ध राजनीतिक महापंडितों तक भारतीय राजनीति का इतिहास ऐसे तमाम दिग्गजों से भरा पड़ा है, जिन पर न सिर्फ जनता, बल्कि देश की राजनीतिक व्यवस्था भी गर्व करती है।
भारत का सौभाग्य है कि प्राचीनकाल से ही देश को राजनीतिक क्षेत्र में ऐसी तमाम योग्य एवं विलक्षण प्रतिभाएं मिलीं, जिन्होंने अपने तमाम राजनीतिक फैसलों से देश को आगे ले जाने, देशवासियों को न्याय देने तथा गति और विकास में अपनी योग्यताओं एवं प्रतिभाओं का भरपूर इस्तेमाल किया।
आज के समय में पश्चिमी देशों की साम्राज्यवादी नीतियों के कारण विश्व के बिगड़ते हालातों पर नजर डालें तथा प्रभावित देशों में मच रही तबाही, बर्बादी एवं आए दिन होने वाले कत्ल-ए-आम पर गौर करें तो हमें अपने देश के कुशल राजनीतिज्ञों की योग्यता पर यह सोचकर और भी गर्व होता है कि 200 वर्षों की गुलामी के बाद भी बना किसी भीषण संघर्ष किए देश को अंग्रजों की गुलामी की बेडिय़ों से किस प्रकार मुक्ति दिलाई।
देश की आजादी को छह दशक से ज्यादा का वक्त बीत चुका है। आज़ाद भारत दुनिया के अन्य विकासशील देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ता हुआ विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होने की तैयारी कर रहा है। विकास सम्बन्धी इस महान उपलिबध में निश्चित रूप से हमारे ही देश के कुशल नेतृत्व का पूरा योगदान है, परन्तु सिक्के के दूसरे पहलू पर नजर डालें तो कुछ ऐसे तथ्य भी नजर आते हैं जिन्हें देखकर नजरें शर्म से झुक जाती हैं।
दरअसल हमारे देश के कल के नेताओं में बलिदान का जज़्बा था, वे नि:स्वार्थ सेवा भाव के साथ अपने पूरे कौशल एवं योग्यता के बल पर प्रभावी राजनीति किया करते थे। ऐसी राजनीति जिसमें नैतिकता एवं सिद्धान्त कूट-कूट कर भरे होते थे।
इसके विपरीत आज की राजनीति मुख्य रूप से सत्ता प्राप्त करने को उद्देश्य मानकर किया जाने वाला एक ऐसा पेशा बनकर रह गई है जिसमें अनपढ़, गुण्डे, बदमाश, लफंगे, स्वार्थी, धनार्जन की इच्छा रखने वाले, अखबारबाजी व प्रेसनोट की राजनीति कर अपने नाम को जनता के मध्य नियोजित तरीकों से उछालने तथा छल-कपट से अपना नाम रौशन करने वालों की भीड़ नजर आती है।
परिणामस्वरूप देश में चारों ओर भ्रष्टाचार का वातावरण व्याप्त है। आम लोगों का राजनीति तथा राजनीतिज्ञों पर से विश्वास कम होता जा रहा है। राजनीति में नैतिकता की न सिर्फ कमी दिख रही है बल्कि ऐसा लगने लगा है कि राजनीति जैसे पवित्र पेशे के लिए नैतिकता की बात करना ही कोई अनैतिक वार्तालाप बनकर रह गया हो। पारदर्शिता सियासत से खत्म होती जा रही है । इसी प्रदूषित एवं निम्न स्तरीय स्वार्थी एवं भ्रष्ट राजनीति की वजह से ही देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी को यह स्वीकार करना पड़ा था कि विकास के नाम पर एक रूपया जब केन्द्र सरकार पंचायत के विकास कार्यों के लिए रवाना करती है तो पंचायत तक आते-आते वह एक रूपया मात्र 25 पैसे ही रह जाता है। यानि 75 पैसे देश के खोखले राजनीतिक ढांचों तथा भ्रष्ट राजनीतिक एवं प्रशासनिक व्यवस्था की भेंट चढ़ जाते हैं।
तमाम नेताओं पर हम नजर डालें तो यह देखकर दु:ख होता है कि इनमें अनेक ऐसे लोग दिखाई देते हैं जो अशिक्षित होने के अलावा अपने जीवन के तमाम क्षेत्रों में असफल होने के बाद सफेद कुर्ते-पायजामे सिलवा कर समाजसेवा को बहाना बना राजनीति में सक्रिय हो गये हैं। ऐसे तत्वों की सक्रियता राजनीति में इसलिए भी बढ़ती गई क्योंकि देश की जनसंख्या के साथ-साथ बेराजगारी भी अपने चरम पर पहुंच चुकी है। दूसरा ऐसे अपरिपक्व एवं असामाजिक लोगों के राजनीति में बढ़ते प्रवेश को देखकर योग्य, ईमानदार तथा देशसेवा का जज़्बा रखने वाले लोगों ने अपने आपको राजनीति से दूर रखना शुरू कर दिया जो इनकी राजनीति में घुसपैठ को कतई उचित नहीं समझते थे।
शरीफों द्वारा राजनीति से मुंह मोड़ लेने की घटना ने तीसरे दर्जे के ऐसे लोगों को इतना अधिक प्रोत्साहित किया कि आज राजनीति में इनका वर्चस्व साफ नजर आता है। योग्य राजनीतिज्ञ या तो राजनीति के दलदल से दूर होता जा रहा है या फिर सक्रिय होते हुए भी स्वयं को असहाय एवं निष्प्रभावी महसूस करने लगा है। आज का आधारहीन तथाकथित नेता अखबारनवीसों को तमाम प्रकार की भेंट देकर अपने राजनीतिक आकाओं के पक्ष में तारीफों के पुल बांधने वाले प्रेस नोट जारी करवा खुद को सफल राजनीतिज्ञ मानता है।
कोई दूसरे देशों के झण्डे जलाकर अपनी राजनीति चटकाता है तो कोई अफसरों व अन्य वरिष्ठ नागरिकों को स्मृति चिन्ह भेंटकर उन्हें सम्मानित करने के बहाने अपना ही मान-सम्मान बढ़ाने का प्रयास करता है। कोई अपने साथ चार लोगों को लेकर सडक़ों पर दहशत फैलाने, कारों व जीपों में बैठकर तेज रफ़्तार से गाड़ी चलाने को ही सफल राजनीति मानता है तो कोई राष्ट्रीय राजमार्ग पर शहीदों की फोटो से लैस गाडिय़ों पर पिकनिक मनाए जाने की घटना को रथयात्रा का नाम देकर स्वयं को लालकृष्ण आडवाणी की श्रेणी में स्थापित करने का प्रयास करता है।
राजनीति में अपराधी भी काफी सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं। इन अपराधियों की सक्रियता का केवल एक ही उद्देश्य होता है, अपनी जान बचाना तथा शासन-प्रशासन का संरक्षण प्राप्त करना। जाहिर है अपने इस उद्देश्य के लिए वे किसी एक राजनीतिक दल के साथ किन्हीं सिद्धांतों के तहत बंधे नहीं होते। वे उसी दल के साथ होते हैं जो दल उनकी सुरक्षा की पूरी गारन्टी लेता हो।
राजनीति के गिरते हुए स्तर के लिए काफी हद तक अकुशल, अयोग्य, भ्रष्ट व व्यवसायिक मानसिकता रखने वाले ढोंगी नेताओं की राजनीति में घुसपैठ जिम्मेदार है। यदि देश को इस नासूर से मुक्ति दिलानी है तो ऐसी व्यवस्था करनी पड़ेगी जिससे शिक्षित, योग्य, ईमानदार एवं नीतियों और सिद्धांतों पर विश्वास रखने वाले समर्पित लोग ही सक्रिय राजनीति में भाग ले सकें।
लेखिका उपभोक्ता मामलों की विशेषज्ञ हैं और सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर भी लिखती हैं.
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