ओ दामोदर, तुम बहती हो क्यों!
- THURSDAY, 19 APRIL 2012 10:57
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नदी में पानी अब सालों भर नहीं बहता। साल के 3-4 महीने इसका पानी सूख जाता है। चिंता इस बात की है कि यहां कोई उसे बचाने वाला नहीं। गंगा को बचाने के लिए तो गंगा एक्शन प्लान बना है। गंगा के लिए अनशन करने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद हैं, लेकिन दामोदर के लिए...
संजय कृष्ण
झारखंड का एक जिला है चतरा। माओवाद प्रभावित। सांझ ढलते ही जिले में सन्नाटा पसर जाता है। गांव-गिराव की बात छोड़ दें। इस जिले का एक प्रखंड है टंडवा। इस पंचायत में 16 गांव हैं। कुछ गांव, उनके खेत, जंगल विकास की भेंट चढ़ रहे हैं। ये गांव हैं बसरिया, कुसुमटोला, पुरनाडीह, झूलनडीह। पूछिए क्यों? तो जवाब है सीसीएल। सीसीएल यानी सेंट्रल कोल फिल्ड्स लिमिटेड। सीसीएल ने यहां अपना प्रोजेक्ट लगाया है। नाम है पुरनाडीह प्रोजेक्ट।
पुरनाडीह ओपन कास्ट माइनिंग पिछले तीन सालों से चल रही है। तीन साल के दौरान कोलरा जंगल में खनन समाप्त हो चुका है। अभी टागर जंगल और बगलाता जंगल में खनन कार्य चल रहा है। कास्ट माइनिंग के चलते जल, जंगल और जमीन तीनों प्रभावित हो रहे हैं। सैकड़ों एकड़ में फैले जंगलों की हरियाली को माइनिंग की धूल ने निगल लिया है। जंगल में पाए जाने वाले टेना, मेठी आदि कंद-मूल समाप्त हो गए हैं। इन जंगलों से प्राप्त होने वाली जड़ी-बूटी, लकड़ी और पत्ते भी अब समाप्त हो गए हैं, निकट के जंगल भी समाप्त हो रहे हैं। इससे उनकी आजीविका पर ही संकट के बादल नहीं छाए हैं, ग्रामीणों को अपने पशुओं के आहार आदि के लिए दूर के जंगलों में जाना पड़ता है।
माइनिंग से पशुओं को घास एवं पत्ते भी नहीं मिल नहीं मिल रहे हैं। कृषि उजड़ रही है। किसान धीरे-धीरे मजदूर में तब्दील हो रहे हैं। इस खनन से लगभग ढाई हजार लोगों और छह गांवों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। वहां के ग्रामीण भूमि रक्षा के लिए आंदोलन लगातार चला रहे हैं, पर उनकी समस्याओं पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है।
ओपन कास्ट माइनिंग से यहां के जंगल और पहाडिय़ों में बहने वाले दो झरने मादी चुआं और छापर झरना अब सूख गए हैं। दामोदर नदी दम तोड़ रही है। यह नदी टंडवा प्रखंड से गुजरती है। पूर्व में यह नदी वहां की आबादी के लिए जीवनरेखा के समान थी, दैनिक जीवन में लोग इसका पानी पीने और सिंचाई में इस्तेमाल करते थे। नदी में मछलियां पकड़ते थे, लेकिन सीसीएल के कोयला खनन के कारण इस नदी में पानी अब सालों भर नहीं बहता। साल के 3-4 महीने इसका पानी सूख जाता है। चिंता इस बात की है कि यहां कोई उसे बचाने वाला नहीं। गंगा को बचाने के लिए तो गंगा एक्शन प्लान बना है। यहां भी दामोदर बचाओ आंदोलन चल रहा है। लेकिन गंगा के लिए अनशन करने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद हैं। लेकिन दामोदर के लिए...? भूपेन हजारिका की तरह कहने को मन होता है, 'ओ दामोदर, बहती हो क्यों?'
यहां ब्लास्टिंग से बच्चे काफी भयभीत रहते हैं। स्कूलों और घरों में दरारें पड़ चुकी हैं। माइनिंग के लिए धरती की ऊपरी परत को हटाकर कड़े चट्टान को धंसाने के लिए गहन ब्लास्टिंग की जाती है। ग्रामीण असरफी उरांव कहते हैं 'ब्लास्टिंग के कारण घर की दीवारों पर बड़ी-बड़ी दरारें आ गई हैं। छत भी टूट गयी है। इस मकान को बनाने में 87 हजार रुपये लगे थे और 57 हजार की लागत से एक आटा चक्की लगाई थी, लेकिन सब बेकार हो गया।'
पर, सीसीएल के तकनीकी निदेशक टीके नाग के मुताबिक 'ब्लास्टिंग का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। डायरेक्टर जनरल एंड माइंस सेफ्टी की टीम की स्वीकृति के बाद भी प्रोजेक्ट से उत्पादन शुरू हुआ है। प्रोजेक्ट से आठ सौ मीटर की दूरी पर गांव बसे हैं।' इसका सबसे पहले खुलासा यूएन के विश्वव्यापी संगठन 'फूड फस्र्ट इनफारमेशन एंड एक्शन' ने किया था। उसने पूरनाडीह प्रोजेक्ट को दौरा किया था। जो स्थिति देखी उसे लेकर उसने प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति एवं झारखंड के राज्यपाल को जुलाई, 2009 को पत्र लिखा।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने झारखंड के गृह विभाग के उपसचिव विपिन बिहारी चौधरी को 21 जुलाई 2011 को पत्र लिखा। चतरा के एसडीओ कोभी पत्र भेजा। एसडीओ ने कार्यपालक अभियंता, पूरनाडीह के परियोजना अधिकारी अनूप श्रीवास्तव को लेकर स्थल निरीक्षण किया और इसमें पाया कि पत्र में वर्णित आरोप काफी हद तक सही हैं। कुसुम टोला के ग्रामीण पुरनाडीह कोलियरी द्वारा किए जा रहे विस्फोट से प्रभावित हैं। विस्फोट से स्कूल भवन क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, भूमिगत जलस्तर नीचे जा रहा है, जनजीवन एवं कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
बस्ती के समीप उत्खनित कोयले का स्वत: आक्सीकरण हो जाने के कारण कोयला भंडार निरंतर धुआं देकर जल रहा है और पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है। जिसके कारण टोले के ग्रामीणों को सांस की समस्या और जानमाल की सुरक्षा बन गई है। 10 अक्टूबर, 2010 को एसडीओ ने आदेश दिया कि विस्फोट तत्काल प्रभाव से अगले आदेश तक रोक दें। यदि उन्हें कोई आपत्ति है तो 15 अक्टूबर, 2010 को अधोहस्ताक्षरी कार्यालय/न्यायालय कक्ष में प्रात: साढ़े दस बजे उपस्थित होकर अपना रक्ष रखें।
सीसीएल ने अपने पक्ष में 18 पेजों एवं 108 पेजों की संदर्भित सामग्री भी लगा दी। इसमें बताया गया कि उनके मकान पुराने हैं, इसलिए क्षतिग्रस्त हो रहे हैं, विस्फोट से नहीं। पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं हो रहा, क्योंकि मानक के अनुसार काम हो रहा है। हालांकि इस जवाब से एसडीओ संतुष्ट नहीं दिखे और 16 नवंबर, 2011 को उनकी दलीलों को अस्वीकार कर दिया और अपने आदेश को आत्यंतिक घोषित किया। कहा, आदेश की अवहेलना पर दंप्रसं की धारा 143 के अंतर्गत सीसीएल के विरुद्ध पुन: कार्रवाई करने की अधोहस्ताक्षरी की विवशता होगी। उन्होंने आदेश दिया कि किसी भी सूरत में गहन एवं साधारण ब्लास्टिंग बस्ती के नजदीक न की जाए।
उन्होंने एक और तथ्य का उल्लेख किया कि 19 सालों में जिनकी जमीन ली गई है, उन्हें न मुआवजा दिया गया न नौकरी, जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति बदतर होती जा रही है। 2500 की आबादी उत्खनन से घिर गई है। पारंपरिक कृषि कार्य ध्वस्त हो गयी है। जमैक की एक फैक्ट फाइडिंग टीम 29 फरवरी को वहां गई तो परियोजना पर एसडीओ के आदेश का कोई असर नहीं था। आखिर झारखंड का यह विकास कहां ले जाएगा?
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