Wednesday, April 11, 2012

राष्‍ट्रपति महोदया, प्‍लीज हमारे बच्‍चों को भी मंच पर आने दें!

राष्‍ट्रपति महोदया, प्‍लीज हमारे बच्‍चों को भी मंच पर आने दें!


 आमुखसिनेमा

राष्‍ट्रपति महोदया, प्‍लीज हमारे बच्‍चों को भी मंच पर आने दें!

11 APRIL 2012 NO COMMENT

सेवा में,
महामहिम श्रीमती प्रतिभा देवीसिंह पाटिल
राष्ट्रपति, भारत गणराज्य
राष्ट्रपति भवन, नयी दिल्ली।

विषय : 59वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार समारोह में पुरस्कृत फिल्म 'बोम' के निर्देशक के साथ दो बच्चों (जो फिल्म में चित्रित हैं) को पुरस्कार-ग्रहण करते समय मंच पर साथ आने की अनुमति के लिए प्रार्थना।


आदरणीय राष्ट्रपति महोदया,

मैं,अमलान दत्ता, कोलकाता निवासी, इस देश का आम नागरिक हूं और पेशे से स्वतंत्र फिल्मकार हूं। यह मेरे लिए गौरव की बात है कि बीते सालों में आपके हाथों से प्रतिष्ठित राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार को दो बार ग्रहण करने का अवसर प्राप्त हुआ है – 2007 में निर्णायक मंडल का विशेष सम्मान और 2009 में सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण फिल्म के लिए राष्ट्रीय सम्मान।

मुझे आपको सूचित करते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि इस वर्ष पुनः आपके कर-कमलों से मेरी फिल्म बोम वन डे अहेड ऑव डेमोक्रेसीको सर्वश्रेष्ठ नृजातीय फिल्म का राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त करने का अवसर मिल रहा है।

यह फिल्म हिमाचल प्रदेश के एक गांव मलाना पर आधारित है, जहां आर्य-पूर्व समुदाय का वास है, जिसकी भाषा 'कानाशी' जो अब लुप्तप्राय है। संभवतः यह भाषा पौराणिक राक्षसों की भाषा हो सकती है। हिमालय की पहाड़ियों से घिरे मलाना में भारत की स्वतंत्रता के बहुत बाद तक स्वायत्त गणतांत्रिक व्यवस्था थी। पिछले कुछ दशकों से आधुनिक विश्व के गांव में अतिक्रमण ने समुदाय के प्रकृति-आधारित स्वलांबित अस्तित्व को नष्ट कर दिया है, प्राचीन परंपराओं और आमराय पर आधारित गणतंत्र को, तथा उसके संगृहित ज्ञान और विश्वास को तहस-नहस कर दिया है।

फिल्म बनाने के अतिरिक्त, मैं बोम-बोम नामक संस्था संचालित कर रहा हूं, जिसका उद्देश्य इस विशिष्ट समुदाय और मुख्यधारा के बीच सकारात्मक संबंध स्थापित करना है। हमारा प्रयास उनके प्राकृतिक संसाधनों और पारंपरिक ज्ञान के उपयोग से जीवन-यापन की व्यवस्था करना और उनकी भाषा और संस्कृति को सरंक्षित करना है। मैंने मलाना के दो बच्चों राजकुमारी और राजेश को गोद लिया है, जिनकी त्रासद-कथा भी फिल्म का एक हिस्सा है। पिछले दो वर्षों से बोम-बोम संस्था उनकी शिक्षा-दीक्षा की जिम्मेदारी का निर्वाह कर रही है। नौ-वर्षीय राजकुमारी इस फिल्म का चेहरा-मात्र नहीं है, बल्कि मलाना की यह राजकुमारी समुदाय की आशा का प्रतीक भी है।


राजेश और राजकुमारी

आपसे सविनय निवेदन है कि मुझे इन दो देवदूतों राजकुमारी और राजेश को आपसे पुरस्कार-ग्रहण के समय मंच पर साथ ले आने की अनुमति प्रदान करने की कृपा करें। यह पुरस्कार मलाना के लोगों के लिए है और मेरी प्रार्थना है कि आप उस समुदाय के प्रतिनिधियों से उनके इस गौरवशाली क्षण में मिलने का समय देने की कृपा करें। आपकी ओर से यह उपहार सामाजिक जुड़ाव की प्रक्रिया से गुजरते इस प्राचीन समुदाय का हौसला तो बढ़ाएगा ही, साथ ही, भारतीय राज्य की सर्वोच्च पदाधिकारी की ओर से की गयी यह मानवीय पहल एक अनूठे उदहारण के रूप में भी दर्ज की जाएगी।

फिल्म के प्रारंभ में ही यह कहा गया है कि इस फिल्म को राष्ट्रपति के सामने ले जाया जाएगा। 'गणतंत्र' के बारे में बनी फिल्म जो नागरिकों के असंतोष को स्वर देती हो, उसे आप, विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र की राष्ट्रपति, तक पहुंचना ही चाहिए। मैं इस फिल्म को आपको देने के लिए अवसर प्रदान करने की अनुमति की भी प्रार्थना करता हूं।

मैं, मलाना के गणतांत्रिक नागरिकों के साथ, हमारी प्रार्थनाओं को स्वीकार करने के लिए आपके प्रति बहुत आभारी रहूंगा।

धन्यवाद सहित,
सम्मान और हर्ष के साथ
अमलान दत्ता
निर्देशक, बोम

प्रति
फिल्म समारोह निदेशालय, भारत सरकार।

[ मूल अंग्रेजी में यहां पढ़ें www.bargad.org | अनुवाद प्रकाश के रे ]

(अमलान दत्ता। स्‍वतंत्र डॉक्‍युमेंट्री फिल्‍मकार। एफटीआईआई पुणे से प्रशिक्षण। कोलकाता में रहते हैं। बोम से पहले भी दो बार राष्‍ट्रीय फिल्‍म पुरस्‍कार मिल चुका है। बोम बोम नाम की संस्‍था भी संचालित करते हैं। उनसे animagineer@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।)

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