Saturday, 17 March 2012 11:00 |
जनसत्ता ब्यूरो खाद्यान्न उत्पादन बढ़ने और रिजर्व बैंक के मौद्रिक उपायों से महंगाई में कुछ कमी आई तो वित्त मंत्री ने सर्विस टैक्स और उत्पाद शुल्क दोनों की दर दस से बारह फीसद करके कारखानों में बनने वाली तमाम चीजों और सेवाओं को और महंगा बना दिया है। फैसले महंगाई बढ़ाने वाले हैं पर दावे इस पर अंकुश लगाने के। शेयर बाजार की चिंता करते हुए बजट में प्रतिभूति सौदा टैक्स में रियायत दी गई है तो निवेश को उदार बनाया गया है। वित्तमंत्री ने 2012-13 के लिए 14,909.25 अरब रुपए का अपना बजट शुक्रवार को लोकसभा में पेश किया। इसमें 5135.90 अरब रुपए का राजकोषीय घाटा छोड़ा गया है जो सकल घरेलू उत्पाद के 5.1 फीसद के बराबर आंका गया है। कुल प्रस्तावित खर्च में जहां 5210.25 अरब रुपए की राशि का प्रावधान योजनागत मद में किया गया है वहीं बाकी 9699.00 अरब रुपए की भारी भरकम राशि गैरयोजनागत मदों में खर्च होगी। सरकार को इस वित्तीय साल में विभिन्न करों से 10776.12 अरब रुपए की आमदनी होने का अनुमान है। इसके अलावा करों से इतर दूसरे स्रोतों से भी सरकार ने 1646.14 अरब रुपए की आमदनी का अनुमान लगाया है। आर्थिक उदारीकरण का दौर जब से शुरू हुआ है, सरकार राजकोषीय घाटे को काबू करने के दावे तभी से बढ़-चढ़ कर करती रही है। इस दावे को भरोसेमंद बनाने के लिए उसने कानूनी जामा भी पहनाया। पर राजकोषीय घाटा अब उसके काबू से बाहर है। हर साल बजट के वक्त इस घाटे को लेकर जो भी अनुमान जताए जाते हैं, वे सभी संशोधित आकलन में हवाई साबित होते हैं। पिछले साल बजट पेश करते वक्त मुखर्जी ने राजकोषीय घाटा 4.6 फीसद तक आ जाने की उम्मीद जताई थी। पर साल बीतने पर गुरुवार को आर्थिक समीक्षा आई तो पता चला कि यह राजकोषीय घाटा बढ़ कर सकल घरेलू उत्पाद के 5.9 फीसद के बराबर रहेगा। इसी तरह आर्थिक विकास दर के पिछले बजट के अनुमान भी साल बीतते-बीतते ध्वस्त हो गए। तब सरकार ने आठ फीसद विकास दर की उम्मीद जताई थी पर अब वास्तविक आंकड़ा 6.9 फीसद ही रह गया। देखना है कि अगले वित्तीय साल के विकास दर को 7.6 फीसद तक पहुंचाने और राजकोषीय घाटे को 5.1 फीसद पर रोक देने के दावे की हकीकत क्या होगी? पर गनीमत है कि पिछले साल की तरह वित्त मंत्री ने इस साल 4.6 फीसद के राजकोषीय घाटे की कल्पना नहीं की है। जाहिर है कि घाटे की भरपाई के लिए सरकार को 5135.90 अरब का बंदोबस्त कर्ज से करना पड़ेगा। इस तरह अगले साल के अंत तक देश का कर्ज बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद के 45.5 फीसद के स्तर तक पहुंच जाएगा। हालांकि 13वें वित्त आयोग ने यह आंकड़ा 50.5 तक हो जाने की आशंका जताई थी। जहां तक राजस्व घाटे का सवाल है, उसे वित्तमंत्री ने 1857.52 अरब के स्तर पर सीमित करने का भरोसा जताया है जो सकल घरेलू उत्पाद के 1.8 फीसद के बराबर है। बकौल मुखर्जी, बजट में योजनागत मद में किए गए आबंटन में पिछले साल के बजट अनुमान की तुलना में 18 फीसद की बढ़ोतरी की गई है। जबकि गैरयोजनागत खर्च को वे चाह कर भी फिर काबू में नहीं रख पाए हैं। यह खर्च चालू वित्तीय साल के बजट अनुमान की तुलना में 18.8 फीसद ज्यादा है। पर चुभन ज्यादा न हो इसके लिए मुखर्जी ने इस आंकड़े की तुलना चालू वित्तीय वर्ष के संशोधित अनुमान से कर दी और बताया कि उसकी तुलना में यह केवल 8.7 फीसद ही ज्यादा है। उन्होंने बताया कि आगामी वर्ष बारहवीं पंचवर्षीय योजना का शुरुआती वर्ष है और उन्हें संतोष है कि पिछली पंचवर्षीय योजना में सरकार ने योजनागत मद में जितने खर्च का अनुमान लगाया था, उस पर वह सौ फीसद खरी उतरी है। राजकोषीय घाटा बढ़ने का सरकार के पास रटा-रटाया बहाना है कि अनुदान के बढ़ते बोझ के आगे वह बेबस हो जाती है। पेट्रोलियम उत्पादों, उर्वरक और राशन पर दिए जाने वाले अनुदान को जनहित में वह चाह कर भी नियंत्रित नहीं कर सकी है। छोटे और मंझोले उद्योगों को प्रोत्साहन देने के लिए भी बजट में कई कदम उठाए गए हैं। अभी तक साठ लाख रुपए सालाना तक का कारोबार करने वालों को ही आडिट से छूट थी। अब इसे बढ़ाकर एक करोड़ कर दिया गया है। पांच हजार करोड़ रुपए की रकम से भारत अवसर वेंचर कोष बना कर छोटे और मंझोले उद्योगों को वित्तीय सहायता दी जाएगी। ढांचागत विकास से जुड़े उद्योगों के लिए भी बजट में कई रियायतें दी गई हैं। |
Friday, March 16, 2012
सुधारों की दिशा में बढ़े प्रणब
सुधारों की दिशा में बढ़े प्रणब
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment