Monday, March 5, 2012

कुछ काम तो धुमाकोट/ नैनीडांडा ग्रुप को भी करना ही होगा

Date: Mon, Mar 5, 2012 at 9:50 AM  
कुछ काम तो धुमाकोट/ नैनीडांडा ग्रुप को भी करना ही होगा
 
सदस्य, म्यर उत्तराखंड, धुमाकोट/नैनीडांडा  तथा इंटरनेट पर उपलब्ध दूसरे उत्तराखंडी ग्रुप
 
कल की मेल Date: Sun, Mar 4, 2012 at 2:43 PM   क्याफेसबुककेलोगउत्तराखंडकोचुकापटसेबचापाएंगे?  में इतिहास के उस घटना क्रम की चर्चा हुई थी जिसे गोरख्याणी के नाम से जाना जाता है. चर्चा धुमाकोट के इतिहास से शरू हुई.  धुमाकोट शायद इतिहास के उस पन्ने में इतना महत्वपूर्ण न था जितना वह अंग्रेजों के शासन काल में बना.  पर उसका सम्बन्ध दो महत्व पूर्ण गढों से तो तब भी रहा होगा जिनके  नाम दीबागढ़ और गुजडू
गढ़ है. दीबाडांडा रेंज के जंगल गोरखों के जमाने में ज्यादा घने होंगे.  यह गढ़ गोरखों से बचने के लिए बनाये गए होंगे.  गांवों में रहने वाला कोई भी व्यक्ति मार दिया जाता था.  इस लिए उन्हें इन दो गढों में जाकर अपने आप को बचाना होता था.
 
गोरख्याणी तो बाढ थी. इस बात का इतिहास जो कि उपलब्ध है वह इस प्रकार है:                
King Ajaypal and his successors ruled the Garhwal for nearly three hundred years even during this period they had faced a number of attacks from Kumaon, Mughal, Sikh, Rohilla. An important event in the history of Garhwal was the Gorkha invasion. It was marked by extreme brutality and the word 'Gorkhyani' has become synonymous with massacre and marauding armies. After subjugating Doti and Kumaon, Gorkhas  attacked Garhwal and reached as far as Langoorgarh despite stiff resistance put up by the Garhwali forces. But in the meantime, news came of a Chinese invasion and the Gorkhas were forced to lift the siege. However, in 1803, they again mounted an invasion.  After capturing Kumaon, they attacked Garhwal in three columns.  Five thousand Garhwali soldiers could not stand the fury of their attack and the King Pradyumna Shah escaped to Dehradun to organize his defense. But his forces were no match to the Gorkha might. Garhwali soldiers suffered heavy
casualties and the King himself was killed in the battle of Khudbuda. The Gorkhas became the masters of entire Garhwal in 1804 and ruled the territory for twelve years.
 
अंग्रेजों के जमाने की बातें तो आज भी कुछ लोगों को पता होंगी. कहा जाता है कि गोरखों के शासन काल में  गढवाल क्षेत्र में भूकंप भी आया था और भीषण अकाल भी पड़ा. इसलिए अंग्रेजों को इस क्षेत्र में राहत कार्य करने पड़े. सड़कें बनाई पुल बनाए. दीबागढ़ और गुजडूगढ़ के आसपास सडकों के निशान होंगे. धुमाकोट/नैनीडांडा ग्रुप के लोग इस जानकारी को विस्तार के साथ इन्टरनेट पर उपलब्ध कर सकते हैं. 
 
धुमाकोट/नैनीडांडा क्षेत्र कॉर्बेट नॅशनल पार्क से जुड़ा है.  यह पार्क  राम नगर और कोटद्वार के बीच में स्थित है. धुमाकोट से होकर नेशनल हाई वे १२१ गुजरता है.  इस मार्ग पर राम नगर से लेकर मर्चूले तक संगठित पर्यटन व्यवस्था है. मर्चुला में अंतर्राष्ट्रीय महत्व का पर्यटन रिजोर्ट है. यह रिजोर्ट प्राइवेट सेक्टर में है.  धुमाकोट में भी रिजोर्ट बनाने के लिए प्राइवेट प्रस्ताव आया
था.  पर समस्या पर्यावरण की है. पानी की है. धुमाकोट अब कोटद्वार से जुड गया है कोटद्वार धुमाकोट मार्ग वैसा ही है जैसा राम नगर  धुमाकोट  मार्ग जो अब नॅशनल हाई वे बन रहा है.  धुमाकोट नैनीडांडा क्षेत्र के साथ सल्ट का क्षेत्र जुड़ा है.  स्वाधीनता संग्राम के दौरान वहाँ गोली चली थी.  यहाँ गुजडू कोट नाम जगह है. वहाँ  एतिहासिक कथा हरुहीत से सम्बंधित अवशेष  हैं.  इन्टरनेट हमें  राजा जी
जन्मस्थली मंदीर कमेटी, गुजरुकोट, सल्ट.उत्तराखंड से मिलाता है और इस कमेटी के जरिये जानकारी देता है 
राजा जी, राजा हरु हीत,  उत्तराखंड के स्थानी राजा थे लोगो उन्हें भगवान के रूप मैं पूजते है ! आज भी लोग उनके मंदिर मैं दुआ  मागते है और उनकी दुआ  पूरी होती है. राजाजी के बारे आप ने बचपन से ही कई कहानियाँ  सुनी होगी! आप इस कोम्मुनिटी से जुड कर आपने विचारों से हमें अवगत करना और इसमे अपना सहयोग देते रहना !
 
वीरभूमि सल्ट  ग्रुप के साथ मिलकर यह ग्रुप बहुत कुछ कर सकता है. अगर यह प्रयास व्यावहारिक बन जाता है तो क्षेत्र को  तीलू रौतेली के माध्यम से  नयार नदी तक पंहुचाया जा सकता है.  इन्टरनेट बताता है 
While Teelu was winning the other territories back, the Katyura came back to attack Khairagarh. As soon as Teelu heard the news, she returned to Khairagarh with her army and won it once again. After that battle, Teelu went to Kandagarh, another Garhwali territory, to have some well-deserved rest. On the way here, she decided to take a bath in the Nayar River. While she was bathing, a Katyur soldier saw her unprotected and unarmed. When Teelu arrived at the bank of the river, the soldier took advantage of her vulnerability and killed her. Born in Chaundkot in Garhwal, this brave woman became a martyr at the age of only 22. She bravely fought and won 11 forts (11 Garh). She has become a part of the Garhwal folklore.
 
इस मेल में यह चर्चा इस लिए की गयी है कि कल की मेल पर बीरेन्द्र सिंह रावत की और से यह टिप्पणी के गयी: 
बहुत अच्छी जानकारी दी गयी है  पर धुमाकोट में ताड़का और धुंआघर के बारे में भी बताना था.  तथा चौधरी मुछी भी धुमाकोट का पुराना नाम है   
 इस जानकारी के ऊपर अगर चर्चा की जाये तो बहुत कुछ ज्ञान सूनी सुनायी कथाओं से लिया जा सकता है और उसे विकास के साथ जोड़ा जा सकता है 
 
राम प्रसाद 

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