Sunday, March 18, 2012

गुलजार में नाजिम हिकमत की आत्‍मा बसती है!

 ख़बर भी नज़र भीशब्‍द संगत

गुलजार में नाजिम हिकमत की आत्‍मा बसती है!

19 MARCH 2012 2 COMMENTS

नाजिम हिकमत और गुलजार की इन कविताओं को देखने से आप खुद अंदाज लगा सकते हैं कि कौन-सी कविता मौलिक है और कौन सी नहीं। पहली कविता नाजिम हिकमत की है जो 'पहल' पुस्तिका में 1994 में प्रकाशित हुई थी। इसका अनुवाद प्रसिद्ध कवि वीरेन डंगवाल ने किया था। यह कविता अप्रैल, 1963 में मास्‍को में लिखी गयी थी। दूसरी कविता गुलजार की है, जो विख्‍यात कथाकार हसन जमाल के संपादन में त्रैमासिक 'शेष' के जनवरी-मार्च, 2012 अंक में प्रकाशित हुई।

प्रेमचंद गांधी, फेसबुक पर एक नोट

मेरा जनाजा

♦ नाजिम हिकमत

मेरा जनाजा क्‍या मेरे आंगन से उठेगा
तीसरी मंजिल से कैसे उतारोगे
ताबूत अंटेगा नहीं लिफ्ट में
और सीढ़ियां निहायत संकरी हैं
शायद अहाते में घुटनों पर धूप होगी और कबूतर
शायद बर्फ बच्‍चों के कलरव से भरी हुई
शायद बारिश अपने भीगे तारकोल के साथ
और कूड़ेदान डटे ही होंगे आंगन में हमेशा की तरह

अगर जैसा कि यहां का दस्‍तूर है
मुझे रखा गया ट्रक में खुले चेहरे
हो सकता है कोई कबूतर बीट कर दे मेरे माथे पर
यह शुभ संकेत है
बैंड हों या न हों बच्‍चे आएंगे जरूर मेरे करीब
उनमें उत्‍सुकता होती है मृतकों के बारे में
हमारी रसोई की खिड़की मुझे जाता हुआ देखेगी
हमारी बालकनी मुझे विदा देगी तार पर सूखते कपड़ों से
इस अहाते में मैं उससे ज्‍यादा खुश था
जितना तुम कभी समझ पाओगे
पड़ोसियों मैं तुम सबके लिए दीर्घायु की कामना करता हूं


मैं नीचे चलके रहता हूं

♦ गुलजार

मैं नीचे चलके रहता हूं
जमीं के पास ही रहने दो मुझे
घर से उठाने में बड़ी आसानी होगी
बहुत ही तंग हैं ये सीढ़ियां और ग्‍यारहवीं मंजिल
दबाव पानी का भी पांचवीं मंजिल तक मुश्किल से जाता है
मुझे तुम लिफ्ट से लटकाके नीचे लाओगे
यह सोच के अच्‍छा नहीं लगता
मैं नीचे चलके रहता हूं
वगरना सीढ़ियों से दोहरा करके उतारोगे
वो क्रिश्चियन पादरी जो सातवीं मंजिल पर रहता है
हिकारत से मुझे देखेगा, 'गो टू हेल' कहेगा
मुझे वो जिंदगी में भी यही कहता रहा है
यहां कुछ लोग हैं ऐसे
मैं उनके सामने जाने से बच जाऊं तो अच्‍छा है
वो मिश्रा मास्‍टर जिसको दमा है
खांस कर पांव से दरवाजा ठेलेगा
झिर्री से झांकेगा
फिर भी कोई एक श्‍लोक पढ़ देगा
'तुरुप और सात सर'
पीपल के नीचे बैठकर
जब खेला करता था
वो बड़ी बेमंटी करता था
मगर बेला बहुत ही खूबसूरत थी
वो मिश्रा अब अकेला है
बहुत समझाया बाजी खत्‍म हो जाए तो
पत्‍ते फिर से बंटते हैं
मुझे कंपाउंड में पीपल के नीचे मत लिटाना
परिंदे बीट करते हैं
कि जीते जी तो जो भी हो
मरे को पाक रखते हैं।

No comments: