Thursday, March 22, 2012

चार बार मेरी शादी हुई और चार बार मैं पागलखाने गयी!

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चार बार मेरी शादी हुई और चार बार मैं पागलखाने गयी!

22 MARCH 2012 NO COMMENT

♦ शेष नारायण सिंह

सीमा आजमी स्‍टार नहीं, अभिनेत्री हैं। उनमें खोखला ग्‍लैमर नहीं है, अपनी संवेदनशील उपस्थिति से खींचने वाला आकर्षण है। रंगमंच से लेकर सिनेमा और टेलीविजन की उनकी यात्रा के दस बरस गुजर चुके हैं और इन वर्षों में उन्‍होंने वही किया, जो उनकी आत्‍मा ने गवारा किया। सारा उनकी एकल नाट्य प्रस्‍तुति है। इसके कई मंचन हो चुके हैं और अभी इसी महीने के आखिर में बनारस में भी मंचन होना है। नाटक का नया पोस्‍टर उन्‍होंने फेसबुक पर कल ही जारी किया है। संयोग देखिए कि आज सुबह सुबह शेष नारायण जी का मेल इस नोट के साथ मिला, पुराना लेख और नया पोस्‍टर। दोनों ही चीजें प्रस्‍तुत हैं: मॉडरेटर

बंबई में शाहिद अनवर के नाटक सारा शगुफ्ता का मंचन होना था। थोड़ा विवाद भी हो गया तो लगा कि अब जरूर देख लेना चाहिए। बांद्रा के किसी हाल में था। हाल में बैठ गये। संपादक साथ थे, तो थोड़ी शेखी भी बनाकर रखनी थी कि गोया नाटक की विधा के खासे जानकार हैं। सारा को मैंने दिल्ली के हौज खास में 25 साल से भी पहले अमृता प्रीतम के घर में देखा था। बाजू में स. प्रीतम सिंह का मकान था, वहीं पता लगा कि पाकिस्तानी शायरा, सारा शगुफ्ता आयी हुई हैं, तो स्व प्यारा सिंह सहराई की अचकन पकड़ कर चले गये। इस हवाले से सारा शगुफ्ता से मैं अपने को बहुत करीब मानता था। लेकिन एक बार की, एक घंटे की मुलाकात में जितने करीब आ सकते थे, थे उतने ही करीब। बहरहाल सारा की शख्सियत ऐसी थी कि उस एक बार की मुलाकात या दर्शन के बाद भी उनकी बहुत सारी बातें याद रह गयी हैं। तो मुंबई में जब सारा की जिंदगी के संदर्भ में एक नाटक की बात सुनी, तो लगा कि देखना चाहिए। नाटक देखने गये। कम लोग आये थे। मंच पर जब अभिनेत्री आयी, तो लगा कि अगले दो घंटे बर्बाद हो गये। लेकिन कुछ मिनट बाद जब उसने शाहिद अनवर की स्क्रिप्ट को बोलना शुरू किया, तो लगा कि अरे यह तो सारा शगुफ्ता की तरह ही बोल रही है और जब उसने कहा कि…

मैदान मेरा हौसला है,
अंगारा मेरी ख्वाहिश
हम सर पर कफन बांध कर पैदा हुए हैं
अंगूठी पहन कर नहीं
जिसे तुम चोरी कर लोगे!


…लगा जैसे करेंट छू गया हो और मैं अपनी कुर्सी के छोर पर आ गया। समझ में आ गया कि मैं किसी बहुत बड़ी अभिनेत्री से मुखातिब हूं। नाटक आगे बढ़ा और जब मंच पर मौजूद अभिनेत्री ने कहा कि…

मेरा बाप जिंदा था और हम यतीम हो गये।


…तो मैं सन्न रह गया। याद आया कि ठीक इसी तरह से सारा ने शायद बहुत साल पहले यही बात कही थी। उसके बाद तो नाटक से वह अभिनेत्री गायब हो गयी। अब मेरी सारा शगुफ्ता ही वहां मौजूद थी और मैं सब कुछ सुन रहा था। कुछ देर बाद मुंबई के उस मंच पर मौजूद सारा ने कहा…

चार बार मेरी शादी हुई, चार बार मैं पागलखाने गयी और चार बार मैंने खुदकुशी की कोशिश की


मुझे लगा कि यह सारा तो पाकिस्तानी समाज में औरत का जो मुकाम है, उसको ही बयान कर रही है। नाटक आगे बढ़ा। सारा की शायद दो शादियां हो चुकी थीं। यह दूसरी शादी का जिक्र है। उसके नये शौहर के घर में बुद्धिजीवियों की महफिल जमने लगी। संवाद आया कि

घर में महफिल जमती। लोग इलियट की तरह बोलते और सुकरात की तरह सोचते।
मैं चटाई पर लेटी दीवारें गिना करती और अपनी जहालत पर जलती भुनती रहती।


मेरे लिए यह भी जाना पहचाना मंजर था। यह तो अपनी दिल्ली है, जहां सत्तर और अस्सी के दशक में अधेड़ लोग मंडी हाउस के आस पास पढ़ने वाली 20-22 साल की लड़कियों को ऐसी ही भाषा बोलकर बेवकूफ बनाया करते थे। और फिर शादी कर लेते थे। बाद में लगभग सबका तलाक हो जाता था। अब मुझे साफ लग गया कि मुंबई के थिएटर के मंच पर जो सारा मौजूद है, वह पूरी दुनिया की उन औरतों की बात कर रही है, जो बड़े शहरों में रहने के लिए अभिशप्त हैं।

नाटक देखने के बाद आकर इसका रिव्यू लिख दिया। अपने अखबार में छप गया। कुछ पोर्टलों पर छपा और मैं भूल गया। शुरू में सोच था कि अगर सारा का रोल करने वाली अभिनेत्री सीमा आजमी कहीं मिल गयी तो उसका इंटरव्यू जरूर करूंगा। लेकिन नहीं मिली। किसी दोस्त से जिक्र किया तो उन्होंने मिला दिया और जब सीमा आजमी से बात की तो निराश नहीं हुआ। सीमा का संघर्ष भी गांव से शहर आकर अपनी जिंदगी अपनी शर्तों पर जीने का फैसला करने वाली लड़कियों के गाइड का काम कर सकता है। सीमा की अब तक जिंदगी भी बहुत असाधारण है।

सीमा के पिताजी रेलवे में कर्मचारी थे, दिल्ली में पोस्टिंग थी। सरकारी मकान था सरोजिनी नगर में। लेकिन उनकी मां कुछ भाई-बहनों के साथ गांव में रहती थीं जबकि पिता जी सीमा और उनके दो भाइयों के साथ दिल्ली में रहते थे। सोचा था कि बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो ठीक रहेगा। कोई सरकारी नौकरी मिल जाएगी। बस इतने से सपने थे, लेकिन सीमा के सपने अलग थे। उसने एनएसडी का नाम नहीं सुना था। लेकिन वहां से उसने तालीम पायी और एनएसडी की रेपर्टरी कंपनी में करीब ढाई साल काम किया। माता जी तो बेटी की हर बात को सही मानती थीं लेकिन पिता जी नाराज ही रहे। नाटक में काम करने वाली बेटी पर, आजमगढ़ से आये एक मध्यवर्गीय आदमी को जितना गर्व होना था, बस उतना ही था। किसी से बताते तक नहीं थे। हां, जब फिल्म चक दे इंडिया में काम मिला, तो वे अपने दोस्तों से बेटी की तारीफ करने लगे और अब उन्हें भी अपनी बेटी पर नाज है। कई सीरियलों और कुछ फिल्मों में काम कर चुकी हैं, सीमा आजमी … लेकिन अभी तो शुरुआत है। सीमा को अभिनय करते देख कर लगता है कि शबाना आजमी या स्मिता पाटिल की प्रतिभा वाली कोई लड़की भारतीय सिनेमा को नसीब हो गयी है।

shesh narayan singh(शेष नारायण सिंह। मूलतः इतिहास के विद्यार्थी। पत्रकार। प्रिंट, रेडियो और टेलिविज़न में काम किया। 1992 से अब तक तेज़ी से बदल रहे राजनीतिक व्यवहार पर अध्ययन करने के साथ साथ विभिन्न मीडिया संस्थानों में नौकरी की। महात्‍मा गांधी पर काम किया। अब स्‍वतंत्र रूप से लिखने-पढ़ने के काम में लगे हैं। उनसे sheshji@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

शेष नारायण सिंह से जुड़ी अन्‍य पोस्‍टें यहां देखें : www.mohallalive.com/tag/shesh-narayan-singh/

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