Monday, 19 March 2012 10:08 |
प्रभाकर मणि तिवारी नंदीग्राम के हर घर में ऐसी कितनी ही कहानियां बिखरी पड़ी हैं। मोहम्मद शेख ने उस फायरिंग में अपना इकलौता जवान बेटा खो दिया था। वे आरोप लगाते हैं कि मेरे बेटे के हत्यारे पुलिस वाले आज भी खुले घूम रहे हैं। सरकार ने उनको कोई सजा नहीं दी। स्थानीय लोगों का आरोप है कि बीते पांच वर्षों में किसी ने उनकी कोई सुध नहीं ली। वे कहते हैं कि तमाम दलों के नेता वोट मांगने तो इलाके में आए थे। लेकिन वह लोग कोरे आश्वासन देकर ही लौट गए। नंदीग्राम आंदोलन के जारी हिंसा में बेघर लोगों के घर पर अब तक छत नहीं बन सकी है। कमाई का कोई साधन नहीं है। खेती और मेहनत-मजदूरी से जो चार पैसे मिलते हैं उससे परिवार का पेट पालें या छत बनवाएं, इस सवाल का जवाब लोग अब तक नहीं तलाश सके हैं। कई लोग तो अब भी स्कूलों में बने शिविरों में रह रहे हैं। ऐसे ही एक युवक नईम बताता है कि पहले तो कुछ दिनों तक सरकार की ओर से खाने-पीने का इंतजाम किया गया था। बाद में वह बंद हो गया। अब हम लोग अपनी कमाई खाते हैं। लेकिन जाएं तो जाएं कहां? हमारा घर तो आंदोलन में ध्वस्त हो गया। |
Sunday, March 18, 2012
लगता नहीं पुराने रंग में कभी लौट पाएगा नंदीग्राम
लगता नहीं पुराने रंग में कभी लौट पाएगा नंदीग्राम
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment