Sunday, March 11, 2012

विद्या की ‘कहानी’ देखिए, हिंदी सिनेमा करवट ले रहा है!

विद्या की 'कहानी' देखिए, हिंदी सिनेमा करवट ले रहा है!


आमुखसिनेमा

विद्या की 'कहानी' देखिए, हिंदी सिनेमा करवट ले रहा है!

10 MARCH 2012 2 COMMENTS

♦ डॉ अनुराग आर्य

ब कोई निर्देशक हिंदी दर्शको की समझ पर भरोसा करता है, तो अच्छा लगता है। लगता है वाकई हिंदी सिनेमा करवट ले रहा है। थ्रिलर फिल्‍में हिंदी सिनेमा में याद है आपको? "इत्तेफाक" राजेश खन्ना की पुरानी फिल्म, जिसमें कोई गाना नहीं था। पहली बार उसमें मुख्य अभिनेत्री नंदा ने एक बंधी-बंधायी लीक को लांघा था।

कोलकाता पूरी फिल्म में मौजूद है। जैसा है, वैसे का वैसा। निर्देशक को मोह नहीं है उसे खूबसूरत दिखाने का। वो जोखिम लेता है और सफल भी होता है। कोलकाता पूरी कहानी के साथ साथ चलता है, सोता है, जागता है। पर कहीं से आपको कभी अपरिचित नहीं लगता। सुबह अमूमन ऐसी ही दिखती है होटल की खिड़की से, दोपहर भी ऐसी ही और रात तो जैसे जीरोक्स होती है टेक्सी से, उठा कर रख दो कहीं भी फिट हो जाएगी। पूरी फिल्म में कैमरा अनुपस्थित होते हुए भी उपस्थित है।

कहानी कहना भी एक आर्ट है, कहानी दिखाना भी…

कैमरा बैकग्राउंड में एयरपोर्ट से चलता है और इतनी खूबसूरती से आपके साथ चल देता है। सीन दर सीन आप आगे बढ़ते हैं। कहीं कोई शॉट फ्रीज नहीं होता और आप कैमरे की उपस्थिति कहानी में इंटरफेयरेंस के तौर पर नहीं देखते। फिल्म किसी हॉलीवुड फिल्म की तरह चलती है। पूरी फिल्म में एक कंटीन्यूटी है, जो इस फिल्म की एडिटिंग का सबसे प्रबल पक्ष है। कैसे एक शहर अपने भीतर कई कहानियां लेकर चलता है और रील दर रील आहिस्ता आहिस्ता किरदार अपने आप जोड़ता है, जिसमें आम दिखने वाले चेहरे हैं … इतने आम कि आप को लगता है आप स्क्रीन पर कोई फिल्म नहीं देख रहे हैं।

विद्या बालान को जितनी हाइप "डर्टी पिक्चर" से मिली, उसकी असल हक़दार "कहानी" है। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जहां हिरोइन को अच्छा ओर खूबसूरत दिखना अनिवार्य है, विद्या उस मिथ को तोड़ने वाली मुख्यधारा की पहली अभिनेत्री है। वे इमेज के टेक्सचर से बाहर कदम रखने वाली अभिनेत्री है। इश्किया में वे बिलकुल अलग मुकाम पे खड़ी थीं। कहानी में उससे आगे बढ़ी हैं। एक दो मौकों को छोड़कर वे इतनी स्वाभविक लगी हैं कि हॉल की सीढ़‍ियां उतरते हुए भी आप उन्हें प्रेग्नेंट ही इमेजिन करते हैं। जिस तरह की वॉक उन्होंने ली है, कमाल है।

दरअसल कहानी को इसके सारे किरदार बड़ी काबिलियत से बुनते हैं। इंस्‍पेक्टर खान का किरदार हो या गेस्ट हाउस का मैनेजर या विद्या की रिपोर्ट लिखने वाला पुलिस वाला, सब जैसे बिलकुल फिट हैं अपने अपने टाइम फ्रेम में। "पीपली लाइव" में ईमानदार पत्रकार बने शख्स यहां "खान" के रोल में हैं और यकीन मानिए वे खान ही लगते हैं। उनका परसोना लार्जर देन लाइफ नहीं है, पर आहिस्ता आहिस्ता सिर्फ अपनी अदायगी की काबिलियत से वे उस पर्सोने का स्केच खींचते हैं। इस फिल्म को जरूर देखिए।

(डॉ अनुराग आर्य। पेशे से डरमेटोलोजिस्ट। मशहूर ब्‍लॉगर, ब्‍लॉग दिल की बात। सिनेमा पर पैनी नजर रखते हैं। काव्‍यमय गद्य लिखते हैं। उनसे aryaa0@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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