Saturday, 17 March 2012 11:36 |
अनिल बंसल शिकायत की तो मीरा कुमार ने गड़बड़ी तुरंत दुरुस्त हो जाने का भरोसा जताया, जो हो भी गई। इस पर विपक्षी सदस्यों ने मुखर्जी को टोका कि वे कुछ पंक्तियां जो सुनाई नहीं पड़ी थी, फिर से पढ़ दें। शोर-शराबे में दादा को उनकी बात समझ तो आई पर कुछ देर से। उन्होंने पूछा- क्या 'रोल बैक' करना है? जवाब मिला- हां। यह सुनते ही दादा ने फरमाया- 'रोल बैक आॅफ स्पीच'? सुनते ही पूरा सदन ठहाकों से गूंज उठा और विपक्षी सदस्यों ने चुटकी लेने के अंदाज में कहा- रोल बैक आॅफ महंगाई। लोकलुभावन घोषणाओं के बाद जब कर प्रस्तावों की बारी आई तो प्रणब मुखर्जी ने उसकी भूमिका रोचक अंदाज में बनाई। नाटकीय अंदाज में सामने बैठे हरिन पाठक का नाम लेकर मुखर्जी ने कहा कि वित्त मंत्री की जिंदगी सहज नहीं होती क्योंकि उसे चौतरफा दबावों और मांगों से दो-चार होना पड़ता है। जब अर्थव्यवस्था के साथ सब कुछ ठीक-ठाक चलता है तो सब खुश रहते हैं। पर जब कोई गड़बड़ी होती है तो ठीकरा अकेले वित्तमंत्री के सिर फूटता है। इससे सदन का माहौल फिर हल्का-फुल्का नजर आया और इसी का फायदा उठाते हुए भाजपा के मुरली मनोहर जोशी भी मजाक करने से नहीं चूके । उन्होंने नहले पर दहला जड़ने के अंदाज में पलटवार किया कि कई बार वित्तमंत्री औरों की जिंदगी को असहज और दूभर बना देता है। सुनते ही फिर सदन ने ठहाका लगाया। सर्विस टैक्स की दर में दो फीसद की बढ़ोतरी का उल्लेख करने की बारी आई तो मुखर्जी ने साहित्यकार शेक्सपियर को याद किया। उनके मशहूर नाटक- हैमलेट के इस जुमले को दोहराया- दयावान बनने के लिए मुझे क्रूर बनना ही होगा। इस जुमले पर विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ही नहीं सोनिया गांधी भी अपनी हंसी नहीं रोक पाईं। हंसे बिना तो खुद मुखर्जी भी नहीं रह पाए। पश्चिम बंगाल में गंगा के प्रदूषण संबंधी एक कदम का जब मुखर्जी ने एलान किया तो कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी अपनी खुशी को छिपा न पाए। उन्होंने खड़े होकर दो बार थैंक्यू सर कहा तो बाकी सदस्यों को भी जिज्ञासा हुई। सिनेमा उद्योग के लिए कर राहत घोषित करते वक्त भी मुखर्जी मजाकिया मूड में दिखे। उन्होंने कहा कि यह भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्ष है। दादा साहब फाल्के ने राजा हरिश्चंद्र पर फिल्म बनाकर इस उद्योग का श्रीगणेश किया था और सौ साल बाद शीर्षक हरिश्चंद्र से बदल कर रा-वन तक पहुंच गया है। इतना सुनते ही फिर सदन में ठहाका गूंज उठा। दादा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि अनेक विविधताओं के बावजूद सिनेमा ने देश को एक सूत्र में पिरोने में अहम भूमिका निभाई है। अपने भाषण का समापन उन्होंने दार्शनिक अंदाज में किया और कहा- देश एक बड़े बदलाव की दहलीज पर खड़ा है। आज की गई घोषणाएं कल सुबह के अखबारों की सुर्खियां बनें या न बनें, पर एक दशक बाद के भारत को सुर्खियों में लाने में जरूर मददगार होंगी। |
Friday, March 16, 2012
कड़वी दवा पिलाने के लिए वित्त मंत्री ने लिया शेक्सपियर का सहारा
कड़वी दवा पिलाने के लिए वित्त मंत्री ने लिया शेक्सपियर का सहारा
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