Saturday, March 17, 2012

अथ पौड़ी कथा.12 लेखक : एल. एम. कोठियाल :: अंक: 14 || 01 मार्च से 14 मार्च 2012:: वर्ष :: 35 :March 10, 2012 पर प्रकाशित आन्दोलनों की धरती-4

http://www.nainitalsamachar.in/story-of-pauri-part-12/ 

अथ पौड़ी कथा.12

आन्दोलनों की धरती-4

Chandra Singh Garhwali stampआजादी के आन्दोलन में कांग्रेस के योगदान के साथ ही पौड़ी के एक छोटे से कम्यून को भुलाना सम्भव नहीं है। इसने टिहरी की मुक्ति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी से पहले कांग्रेस के अलावा किसी दूसरी विचारधारा या कार्यक्रम का प्रसार करना कठिन था। पेशावर काण्ड के नायक चन्द्रसिंह गढ़वालीका रुझान जेल में दूसरे कम्युनिस्टों से मिलने के बाद वामपंथ की ओर होने लगा था, लेकिन वे अन्तिम निर्णय पर नहीं पहुँचे थे। 11 साल 3 माह की सजा काटने के बाद जब वे 1941 में लखनऊ जेल से छूटे तो उन पर गढ़वाल में प्रवेश पर प्रतिबन्ध था और राजनीतिक भाषण न देने की शर्त लगी थी। नेहरू जी ने उनके आनन्द भवन में रहने की व्यवस्था की, लेकिन वहाँ पर उनका मन नहीं रम रहा था। नेहरू जी जब होते तो तब उनकी पूछ होती, नेहरू जी जाते तो वे परेशान हो उठते। इसी बेचैनी में वे बारदोली, वर्धा, मलाड और दूसरे स्थानों में गये। परिवार की आजीविका कैसे चले, यह भी समस्या थी। उनकी पत्नी कभी कहीं होती तो कभी कहीं। 1942 में वे 6 माह तक सेवाग्राम में बापू के साथ रहे। यहाँ पर उनकी पत्नी भागीरथी देवी उनके साथ थीं। आश्रम में वे रहे तो सही, लेकिन वे आन्दोलन में कोई भूमिका चाहते थे।

वर्धा में 6 माह काटने के बाद कोटद्वार जाने की बात कह कर गढ़वाली वहाँ से चले आये और इलाहाबाद पहुँचे। आनन्द भवन का माहौल न रुचने पर बनारस चले आये। वहाँ पत्नी के रहने की व्यवस्था किसी तरह से की। डॉ. कुशलानन्द गैरोला के कहने पर 1942 के आन्दोलन में काशी विद्यापीठ में छात्रों का कमांडर बन गुपचुप रूप से छात्रों को संगठित करने लगे। लेकिन सन् 1943 में उनको पुलिस ने पकड़ लिया। उन पर हत्या की झूठी धारायें जड़ दी र्गइं और इसके लिये उनको व उनके 20 क्रान्तिकारी छात्रों को तीन से सात साल की सजा सुना कर बनारस सेन्ट्रल जेल भेज दिया गया। वहाँ से नैनी जेल होते हुए वे लखनऊ जेल पहुँच गये। उन्हें 2 साल की सजा दी गई थी। यहाँ पर कई हजार बन्दी थे, जिनके साथ न तो अच्छा व्यवहार होता था और न ही उन्हें अच्छा खाना मिलता था। गढ़वाली ने इसका विरोध किया। यहाँ पर जयानन्द भारती से उनकी मुलाकात हुई। उन्होंने अपनी पत्नी को हल्द्वानी भेज दिया।

सन् 1945 में गढ़वाली जी जेल से रिहा हुए, लेकिन उनके गढ़वाल आने पर प्रतिबन्ध बना रहा। वे लेखक और क्रान्तिकारी यशपाल के घर चले आये। फिर उन्होंने जगह-जगह भटकने की बजाय कुमाऊँ जाने का निश्चय किया, जहाँ उनकी पत्नी व बच्ची एक अनाथालय में रह रहे थे। गढ़वाली जी मदद के लिये कांग्रेस नेता हरगोविन्द पन्त से मिले जिन्होंने पहले तो उन्हें टका सा जवाब दे दिया, किन्तु दूसरे दिन उन्होंने अपने व्यवहार के लिये क्षमा माँगते हुए गढ़वाली के लिये ताड़ीखेत के एक विद्यालय के होस्टल में रहने की व्यवस्था कर दी। लेकिन कांग्रेसियों को उनका वहाँ रहना रास नहीं आ रहा था। इसलिये अगली मुलाकात पर हरगोविन्द पन्त ने उनसे स्थान खाली करने को कहा। कांग्रेसियों से खिन्न होकर, मित्रों के सहयोग से कुछ पैसे व कुछ राशन की व्यवस्था कर पत्नी को वहीं छोड़ गढ़वाली अपने कम्युनिस्ट मित्र रमेश चन्द सिन्हा के पास बम्बई चले आये। यहाँ पर उनका कम्युनिज्म का सघन अध्ययन चला। यहाँ का माहौल उन्हें सेवाग्राम से भी अधिक अच्छा लगा। उनकी राजनीतिक सोच पुख्ता हुई और उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बना दिया गया। 1946 में वे ताड़ीखेत आये और पत्नी से होस्टल छुड़वा कर रानीखेत में रहने लगे।

1946 में राज्य एसेम्बली के लिये हुए चुनावों में कम्युनिस्ट पार्टी गढ़वाली जी को गढ़वाल सीट पर लड़वाना चाहती थी। मगर उनके गढ़वाल प्रवेश पर पाबन्दी लगी होने के कारण नजीबाबाद में पार्टी का कार्यालय खोल कर एक चुनाव संचालन समिति बनाई गई, जिसके सचिव बृजेन्द्र कुमार गुप्त थे। कहानीकार रमाप्रसाद घिल्डियाल 'पहाड़ी' और नागेन्द्र सकलानी अन्य दो सदस्य थे।

गढ़वाल प्रवेश पर लगे प्रतिबन्ध को हटाने के लिये गढ़वाली जी को बहुत प्रयास करना पड़ा। इसे गवर्नर ही हटा सकते थे और वे गढ़वाली पर पेशावर में चले कोर्ट मार्शल के मुकदमे की नकल चाह रहे थे। नकल के लिये वे गुपचुप रूप से लैसडौन भी आये। अन्ततः साथियों की मदद से वे शिमला में एडजुटेन्ट जनरल के दफ्तर से नकल पाने में सफल रहे। लखनऊ में लाट के आदेश से 1946 के दिसम्बर माह में गढ़वाली के गढ़वाल प्रवेश पर प्रतिबन्ध हटा।

कम्युनिस्ट चाहते थे कि गढ़वाली जी कोटद्वार में प्रवेश करें तो उनका भव्य स्वागत हो। मगर कांग्रेसी इस विचार से सहमत नहीं हुए। कांग्रेसियों को यह भी आपत्ति थी कि गढ़वाली जी क्यों कांग्रेस के खिलाफ चुनाव में उतरने जा रहे हैं? इस सबके बावजूद नागेन्द्र सकलानी की जबर्दस्त भागदौड़ के कारण गढ़वाली जी का कोटद्वार रेलवे स्टेशन पर भव्य स्वागत हुआ। स्वागत करने वालों में हरिराम मिश्र 'चंचल' भी थे। शाम को झण्डा चौक में हुई स्वागत सभा में 500 लोग जुटे। कांग्रेस अध्यक्ष कृपाराम मिश्र 'मनहर' ने पार्टी लाइन से हटकर इस सभा की अध्यक्षता की। इसके बाद लैंसडौन में भी गढ़वाली जी का अच्छा स्वागत हुआ। कई कांग्रेसियों ने उनसे कांग्रेस से चुनाव लड़ने को कहा और यह वादा किया कि वे जहाँ से भी लड़ना चाहें, वहाँ की सीट उनके लिये छोड़ दी जायेगी। लेकिन गढ़वाली राजी नहीं हुए। उन्होंने माँग की कि चुनाव तो वे कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से ही लड़ेंगे, कांग्रेस को चाहिये कि जहाँ से वे लड़ें वहाँ अपना उम्मीदवार खड़ा न करें। कांग्रेस इसके लिये तैयार नहीं हुई।

लैंसडौन से गढ़वाली जी पौड़ी आये और यहाँ अपर बाजार में पार्टी का कम्यून स्थापित किया गया। यहाँ चार लोग रहते थे। गढ़वाली जी व उनकी पत्नी, ब्रजेन्द्र गुप्त और देवीदत्त तिवारी। अपर गढ़वाल के कई स्थानों पर जनसभायें कर दल का आधार बनाने का प्रयास किया। गढ़वाली जी कई स्थानों पर गये। लेकिन संसाधनों का नितान्त अभाव था। चुनाव जीतने का सवाल ही नहीं उठता था। दूसरे, उनको चुनाव लड़ने की अनुमति की फाइल भी अटकी थी। इसलिये कांग्रेसी उम्मीदवार कुशलानन्द गैरोला के पक्ष में काम करने का निश्चय किया गया ताकि सरकारपरस्त अमन सभा के उम्मीदवार शंकरसिंह नेगी न जीत सकें। कुशलानंद गैरोला यह चुनाव जीत गये। (जारी है)

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