Tuesday, March 20, 2012

आदिवासियों की मांगें अक्षरश: सही है (09:51:10 PM) 21, Mar, 2012, Wednesday

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आदिवासियों की मांगें अक्षरश: सही है
(09:51:10 PM) 21, Mar, 2012, Wednesday
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केयूर भूषण
संवेदनशील मुख्यमंत्री उसे स्वीकार कर उन्हें समाधान करें
छत्तीसगढ़
 का वनवासी अंचल आज दिन उजड़ने के कगार पर है। खनिज सम्पदा से भरपूर होने के कारण, भारत के उद्योगपति ही नहीं, विश्व के सौदागरों की निगाह उस अंचल पर लगी हुई है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आधार पर उस पर कब्जा करना चाहते हैं। इसलिए वहां के आदिवासियों को योजनापूर्वक उजाड़ रहे हैं। जबकि वहां के आदिवासियों का जीवन, वहां के जल, जमीन, जंगल और वहां के वन उपज पर निर्भर है। 
जिस गति से वन अंचल के आदिवासियों को उजाड़ा जा रहा है, उनके जीवनयापन के साधन उनसे छीने जा रहे हैं, जिसके कारण वहां के आदिवासियों को वहां से पलायन करना पड़ रहा है। इस सबके भुक्तभोगी होने के कारण, वहां के आदिवासी भविष्य की चिंता से भयभीत हैं। अपनी पीड़ा प्रदर्शित करने के लिए ही वे राजधानी में प्रदर्शन किये साथ ही प्रदेश के सर्वोच्च संस्था विधानसभा के सामने, जहां आज दिन जनप्रतिनिधियों का जमाव है अपनी पीड़ा प्रकट करना चाहे। इस बीच जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ। विषय की गंभीरता को देखते हुए, मूल समस्या के निराकरण के लिए, उसे दोनों पक्ष भूल जायें और समस्या के समाधान निकालने में लग जायें। परस्पर सहयोग से ही समाधान निकाला जा सकता है। 
छत्तीसगढ़ अंचल के आदिवासी उजड़ने से बचें अन्यथा आदिवासियों की आह सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ को भस्म कर देगी। क्योंकि वह पीड़ा आज सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ भोग रहा है। जिस गति से छत्तीसगढ़ उजड़ रहा है। उस गति से तो वन आच्छादित धान का कटोरा छत्तीसगढ़ के स्थान पर चिमनी आच्छादित छत्तीसगढ़ रह जाएगा। खदान और कारखाने ही दिखेंगे। किसानों के खेतों के स्थान पर धनकुबेरों के फार्म हाउस दिखाई देंगे। जिसे यहां के निवासी टुकुर-टुकुर दूर से देखते रहेंगे। यहां के आदिवासी और किसान ही नहीं, यहां के शिक्षित नवयुवक और यहां के व्यापारियों को भी जीवनयापन के लिए पलायन करना पड़ेगा। देश के विभिन्न स्थानों में ही नहीं, विदेशों में जाकर पेट की आग बुझाना पड़ेगा। संवेदनशील मुख्यमंत्री इस सच्चाई पर गंभीरता से चिंतन करें साथ ही इसका निराकरण निकाले। छत्तीसगढ़ की जनता उनसे यही आशा रखती है। आदिवासियों द्वारा किए गए प्रदर्शन का भी यही उद्देश्य है।
अत: मैं आदिवासी नेताओं एवं शासन के कर्णधारों से निवेदन करता हूं कि वे इस जनसमस्या के निराकरण के लिए प्रथम कदम के रूप में वार्ता से प्रारंभ करें। जन आन्दोलन दूसरा कदम हो, पर हिंसा दोनों तरफ वंचित हो इसकी सावधानी बरतें। यह मेरा निवेदन दोनों पक्ष से है।

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