पेड न्यूज से पिट रहे हैं प्रत्याशी
लेखक : डॉली जोशी :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 16, 2012 पर प्रकाशित
http://www.nainitalsamachar.in/paid-news-elections-and-media-responsibility/
पेड न्यूज से पिट रहे हैं प्रत्याशी
लेखक : डॉली जोशी :: अंक: 12 || 01 फरवरी से 14 फरवरी 2012:: वर्ष :: 35 :February 16, 2012 पर प्रकाशित
इस बात को कोई नहीं नकार सकता कि आज के दौर में मीडिया का प्रभाव यत्र तत्र सर्वत्र है। देश के कई बड़े घोटाले, झूठ के पुलिंदे लोगों के सामने सिर्फ मीडिया के दबाव के चलते ही बाहर आ पाए। शुरू से ही पत्रकारों को प्रबुद्ध वर्ग में सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। सोचने की ताकत और समाज को सच का आईना दिखाना पत्रकारिता का पहला उसूल है। यह वो सिद्धांत है जिसके बिना पत्रकारिता मृत है। यह समाज का कड़वा सच है कि आज के युग में भ्रष्टाचार के दलदल ने लगभग सब कुछ निगल लिया है। ऐसे में सच्चाई, ईमानदारी की बात करने वाले को लोग बेवकूफ से ज्यादा कुछ नहीं समझते। गलती उनकी भी नहीं। दरअसल हवा ही कुछ ऐसी चल रही। सच भी यही है की हुड़्भ्यास, सिध साद टाइपा लोग खाक छान रई। भ्रष्टाचार का अंधकार कुछ यूँ हावी हो गया है कि उम्मीद की किरन को भी संघर्ष करना पड़ रहा है अपना अस्तित्व बचाने के लिये। आखिर ऐसे में करे तो करें क्या ? हद तो तब हो जाती है जब देश का चौथा स्तम्भ हाशिये की कगार पर आ जाये। कोई भी समाचार पत्र या न्यूज चैनल समाज सेवा करने को तो बैठा नहीं। उसको भी तो टीआरपी की दौड़ में अपनी इज्जत बचा के रखनी है। टीआरपी में पिछड़े तो विज्ञापन नहीं मिलेंगे…विज्ञापन नहीं मिले तो भाई पैसा नहीं आएगा…ऐसा नहीं हुआ तो हम जैसे मीडियाकर्मियों की रोजी-रोटी भला कैसे चलेगी ? यह तो है कुछ पेशेवर मजबूरियाँ। पर जो कुछ मैंने उत्तराखंड चुनाव की कवरेज के दौरान अनुभव किया, उसने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया। यकीनन मेरा अनुभव कुछ नया नहीं क्योंकि सदा से यही होता आ रहा है….और आगे भी यही होगा…..पर मेरा उत्तराखंड को लेकर भावुक हो जाना बहुत लाजिमी है… पीड़ा, कष्ट, गुस्सा यह सब कुछ जायज है ……हो भी क्यों न….इसी मिट्टी से जन्मे है…..और यह दर्द मेरे अकेले का नही…..बल्कि हर वो इन्सान महसूस करेगा जिसकी जड़ें इस मिटटी से जुड़ी हैं…..जिसका दिल उत्तराखंड के लिए धड़कता है…..जिसके दिल में उत्तराखंड बसता है…..ठीक वही लगाव की बात कर रही जो हर किसी को अपनी माँ से होता है…..अगर किसी को मेरी बातें अतिशयोक्ति लगती हैं तो लगें…..मुझे परवाह नहीं…..यदि आप को भी इन पहाड़ों, कल-कल बहते झरनों, हुड़भ्यास किस्म के पहाड़ियों के प्रति लगाव है तो आप शत-प्रतिशत मेरे हृदय की पीड़ा समझ सकेंगे। आप में से कई लोग इस बात से इत्तेफाक रखते हैं कि आज के राजनेताओं या चुनाव के पहले घर-घर जाने वाले प्रत्याशियों के प्रति लोगों के मन में जरा भी विश्वास नहीं। हालात ही कुछ ऐसे हैं कि आप विश्वास करें भी तो कैसे ?
चुनावी मौसम के रंगों के भी क्या कहने ? कहीं नोटों की बहार है तो कहीं शराब का खुमार है….अजी क्या करियेगा…पर हद तो तब हो जाती है जब देश के चौथे स्तम्भ को कुछ फर्जी लोग धन उघाई का धंधा बना लेते हैं। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मुझे कुछ ऐसा ही ड्रामा देखने को मिला। देवभूमि में कुछ फर्जी लोगों के चलते सरेआम बेआबरू हो रही पत्रकारिता और इसकी आड़ में हो रही दलाली…चुनाव की इस बयार में जहाँ प्रत्याशी चुनावी अखाड़े में परचम फहराने के लिये कोई भी हद पार करने से नही हिचकिचा रहे तो वहीं ऐसे दलालों की कमी नहीं जो पैसे लेकर आपके पक्ष में खबर यानी कि 'पेड न्यूज' लिखने से गुरेज नहीं करते। अब तो नेताजी को भी पता है, भाई पेड न्यूज का है जमाना… तो अगले चुनाव में अगर आप भी चुनाव लड़ना चाहते हैं तो मैं आपको फ्री फंड में एक गुरुमंत्र दे रही। आँखें मूँद के इसको गाँठ बाँध लीजिये फिर क्या मजाल विरोध में खड़ा होने वाला ईमानदार से ईमानदार दावेदार का टिकट कट जायेगा…. अब जरा गौर फरमाइये…. कोई नहीं पूछेगा आपकी योग्यता के बारे में…..कुछ करने की आवश्यकता भी नहीं….अगर कुछ करना हो तो जम के अपन प्रचार करना न भूलें…. पेड न्यूज और दलाली को इतने नजदीक से देख के मुझे उन प्रत्याशियों पर तरस आ रहा जिनके पास दलालों को देने के लिये पर्याप्त पैसा नहीं है। प्रत्याशियों का प्रचार अवश्य होना चाहिए…. नहीं तो मतदाता कैसे उम्मीदवार के बारे में जानेंगे…..पर दुःख तो इस बात का है कि पेड न्यूज के ट्रेंड में कई लायक उम्मीदवारों को मुँह की खानी पड़ रही….ज्यादा मुश्किलें उनके लिए हैं जिनके पीछे किसी दल का साथ और आशीर्वाद नहीं। स्वाभाविक सी बात है कि ऐसे में तो पैसे वाले का बाजी मारना तय है। और आप घर आ कर चाय की चुस्की मारते रह जायेंगे।
चुनाव में बाकी राज्यों में दलाली की दलदल की थाह तो मुझे नहीं पर देवभूमि में इसका फलता-फूलता व्यापार देख के दिल को बड़ी तसल्ली मिली। चलो हम न सही पर बहती गंगा में….. पर किसी का तो भला हो। भाई हम जैसे लोग तो केवल आपसे ईर्ष्या कर सकते हैं। आखिर दलाली करना भी कोई मजाक नहीं, एक कला है। बड़ी हँसी आई जब दिल्ली से एक पत्रकार मित्र ने फोन पर पूछा कि मैंने कितने नोट कमाए। तब समझ में आया कि चुनाव के पहले यह सब शायद कोई नयी बात नहीं। यदि आगे भी पत्रकारिता से जुड़ी रही तो आने वाले समय में मुझे भी यह सब देखने की आदत सी हो जाएगी। फिर कुछ अजीब नहीं लगेगा। दलालों को होने वाला नफा या कलई खुलने के बाद होने वाला नुकसान मेरी समझ से बाहर है। पर नम्र निवेदन जरूर है ..भइया मेरे हुडभ्यास जैसे उत्तराखंडियों को तो बख्श दो…..यार दलाली की यह दुकान कहीं और खोल लो. ….याँ पना हालात खराब छन् दाजू…. वी लोग याँ पना पत्रकार बणि बेर घुमनईं जनन कें दूर दूर तक पत्रकारिता दगाड़ वास्ता नि छु। बस मतलब है तो नोट कमाने से। इन छुटभैया टाइप पत्रकारों में ज्यादातर लोग बाहर से आये हैं। तरक्की का यह आलम है कि छोटे से समय में इन लोगों ने कोठियाँ तान ली हैं…..फिर मुझ से कहते हैं कि आपकी तरफ के लोग तो बहुत सीधे-सादे हैं…..किसी से उनको कोई मतलब ही नही होता। ….इसमें कोई शक नहीं कि वो सीधे सच्चे होते हैं…. पर इतने हुड़भ्यास भी नहीं कि कोई भी चूना लगा के चला जाये! एक तरफ पहाड़ पलायन का दंश झेल रहा, गाँव के गाँव उजड़ रहे, बेरोजगारी से परेशान युवा के सामने आजीविका और परिवार को पालने का संकट गहरा रहा, दूरदराज के क्षेत्रों में बिजली, पानी, स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाएँ आज भी नहीं पहुँचीं, महिलाओं ने अपनी घर-गृहस्थी बचाने के लिए शराब के खिलाफ आन्दोलन छेड़ा है, जंगलों का विनाश हो रहा …..क्या इतना काफी नहीं आपको नींद से जगाने को.. ?…आने वाले समय में दलाली का यह विष पूरी तरह देवभूमि की नस नस में जहर बन के फैल जायेगा। यह रास्ता उत्तराखंड को विकास नहीं, विनाश की तरफ ले जा रहा…..सवाल यह नहीं कि इस हाशिये का ठीकरा किसके सर फोड़ा जाये……सवाल यह है कि इस राज्य का गौरव बरकरार रखते हुए कितने लोग इसको विनाश से बचाने को तैयार हैं…. आज से पहले भी इस बारे में बहुत कुछ लिखा गया है और आगे भी लिखा जायेगा…. आज भी मुँह खोले कई प्रश्न खड़े हैं जो निरुत्तर हैं…आगे ऐसे ही चलता रहा तो आने वाले समय में यह रक्तबीज बन जायेंगे….और फिर कोई कृष्ण नहीं बचा पायेगा…कंस के विध्वंस से इस देवभूमि को….!
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