Friday, February 17, 2012

दर्शकों और सिनेमा के बीच पहले जैसा जुड़ाव नहीं रहा: दिलीप कुमार

दर्शकों और सिनेमा के बीच पहले जैसा जुड़ाव नहीं रहा: दिलीप कुमार

Friday, 17 February 2012 13:48

मुंबई, 17 फरवरी (एजेंसी) बॉलीवुड के मशहूर कलाकार दिलीप कुमार को लगता है कि वर्तमान सिनेमा और दर्शकों के बीच उस तरह का भावनात्मक जुड़ाव नहीं रहा जैसा पुराने दौर में नजर आता था। 
दिलीप कुमार ने कहा, ''आज के सिनेमा और दर्शकों के बीच उस तरह के भावनात्मक संबंध नहीं हैं जैसे 50 के दशक के सिनेमा के दौर में थे। इसका मूल कारण है कि उन दिनों में सिनेमा मनोरंजन का प्रमुख साधन था और इससे भी ज्यादा इसकी विषय वस्तु को संजीदा दर्शकों द्वारा गंभीरता से लिया जाता था।''
89 वर्षीय दिलीप कुमार को नसरीन मुन्नी कबीर की 'द डायलॉग आॅफ देवदास' का लोकार्पण बुधवार को करना था लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वह इस अवसर पर मौजूद नहीं रह सके।
संजय लीला भंसाली की 'देवदास' में मुख्य भूमिका अदा करने वाले शाहरुख खान ने इस अवसर पर दिलीप कुमार के लिखे पत्र को पढ़ा।
दिलीप कुमार ने शरतचंद्र चट्टोपाध्याय के इस उपन्यास पर 1955 में बनी 'देवदास' में अविस्मरणीय अभिनय किया था।
उन्होंने कहा, ''मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि हमारे समय में निर्देशक जब अपने कंधों पर कोई जिम्मेदारी लेता था तो वह एक ऐसी कहानी को चुनता था जिसपर बनी फिल्म  दर्शकों के दिल को गहराई तक छूती थीं। ''
दिलीप कुमार ने कहा ,''देवदास के संवादों में एक सहजता और संवेदनशीलता है जो राजेन्द्र सिंह बेदी की कलम से उपजी थी। बेदी एक ऐसे विशिष्ठ लेखक थे जिनके लिखे संवादों में भावों की कमाल की अभिव्यक्ति होती थी और अभिनेता खुद उसमें डूब जाते थे ।''

दिलीप कुमार ने कहा कि बेदी उन दुर्लभ लेखकों में से थे जिनके संवाद बहुत ही बेहतरीन थे। उनकी लिखे सहज संवाद कलाकार को गहरी संवदेनाओं के साथ प्रस्तुति को प्रेरित करते थे। 
उन्होंने कहा, ''मैं देवदास में उनके लिखे बेहतरीन और संक्षिप्त संवादों के लिए उनकी सराहना करता हूं।''
'देवदास' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले दिलीप कुमार ने अपने पत्र में कहा कि विमल रॉय के संपर्क करने के पहले तक उन्होंने इस उपन्यास को नहीं पढ़ा था।
उन्होंने कहा, ''जब विमल दा ने देवदास के विचार के साथ मुझसे संपर्क किया तब न तो मैंने पहले की फिल्में देखीं थी और न ही शरत बाबू का मशहूर उपन्यास पढ़ा था। उन्होंने मुझसे यह नहीं कहा कि उनका उद्देश्य फिल्म पर चर्चा करना है। कुछ समय बातचीत के बाद उन्होंने अपने साथ मौजूद हम दोनों के मित्र हितेन चौधरी से विषय रखने को कहा। यह मेरे लिए अप्रत्याशित था इसलिए मैंने सोचने के लिए कुछ समय मांगा।''
उपन्यास में मौजूद दर्द को याद करते हुए दिलीप कुमार ने कहा, ''उपन्यास की मार्मिकता और देवदास के चरित्र के प्रस्तुतीकरण में गहन संभावनाओं ने मुझे हां करने के लिए प्रेरित किया।''

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